अंतरराष्ट्रीय
-एंड्र्यू हार्डिंग
यूक्रेन में जारी रूसी हमले में एक शहर ऐसा है जिसने रूसी सेना को अपनी ज़मीन से खदेड़ दिया.
यह लड़ाई युद्ध की अब तक की सबसे निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी - खेती और उपजाऊ धरती वाले शहर वोज़्नेसेंस्क और इसके रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पुल के नियंत्रण को लेकर दो दिनों तक ज़बरदस्त संघर्ष चला.
अगर रूस यहां विजयी हो जाता तो काला सागर तट के साथ ओडेसा के विशाल बंदरगाह और एक प्रमुख परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर नियंत्रण पाने में सक्षम हो जाता.
लेकिन इसके बजाय, स्थानीय वॉलेंटियरों की एक सेना के समर्थन से यूक्रेनी सेना ने रूसी सैनिकों के इरादों पर पानी फेर दिया.
पहले तो यूक्रेनी सेना ने पुल को उड़ा दिया और फिर हमलावर रूसी सेना को पूर्व की ओर 100 किमी पीछे खदेड़ दिया.
स्थानीय लोगों का जज़्बा
वोज़्नेसेंस्क के 32 वर्षीय मेयर येवेनी वेलिचको टाउन हॉल के बाहर ख़ुद बॉडी आर्मर पहने हुए जनता से बात करते हुए कहते हैं, '' यह समझाना मुश्किल है कि हमने यह कैसे किया. हमारे स्थानीय लोगों और यूक्रेनी सेना को लड़ने और लोहा लेने के जज़्बे के लिए धन्यवाद है."
लेकिन उस लड़ाई के लगभग तीन हफ्ते बाद, मेयर ने चेतावनी दी कि रूसी सेना दोबारा एक और हमला कर सकती है और शहर के वॉलंटियर्स के पास दूसरी बार उन्हें रोकने के लिए हथियारों की कमी है.
उन्होंने कहा, "यह एक रणनीतिक जगह है, हम न केवल इस शहर की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि इसके पीछे के सभी क्षेत्रों की रक्षा हमारे हाथों में है और हमारे पास हमारे दुश्मनों की तरह भारी हथियार नहीं हैं."
ब्रिटिश एंटी टैंक मिसाइलों की मदद
यूक्रेन में कई मोर्चों पर भेजी गई ब्रितानी एंटी-टैंक मिसाइलों ने वोज़्नेसेंस्क में रूसी सेना को नाकाम करने में अहम भूमिका निभाई.
वेलिचको ने कहा, "इन हथियारों की बदौलत ही हम यहां अपने दुश्मन को हरा पाए. हम अपने सहयोगियों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद कहते हैं. लेकिन हमें और चाहिए क्योंकि दुश्मन के काफ़िले आते रहेंगे."
यूक्रेन की दूसरी सबसे बड़ी नदी दक्षिणी बुह पर बने इस बड़े ब्रिज को रूसी सेना अपने क़ब्ज़े में नहीं ले सकी और इससे वोज़्नेसेंस्क का रणनीतिक महत्व और भी स्पष्ट हो गया.
आज, वोज़्नेसेंस्क यूक्रेन के कई शहरों की तरह भूतिया शहर तो नहीं बना है, लेकिन यहां की हवाओं में नियमित हवाई हमले के सायरन जैसे घुल चुके हैं.
हालांकि हाल के हफ़्तों में हज़ारों लोग ट्रेन से या गड्ढों वाली ग्रामीण सड़कों के ज़रिए शहर को छोड़ रहे हैं.
लेकिन इनमें से कई लोग जो अभी भी इस शहर में रह रहे हैं वो अपनी बड़ी जीत की इस कहानी को बार-बार सुनाने के लिए उत्सुक नज़र आते हैं.
एक स्थानीय दुकानदार एलेक्ज़ेंडर ने ख़ुद एके-47 के साथ फ़्रंटलाइन पर मोर्चा संभालते हुए एक वीडियो बनाया, उन्होंने कहा- "यह पूरे शहर की ओर से एक बड़ा प्रयास था. हमने शिकार करने वाली राइफ़लों का इस्तेमाल किया, लोगों ने ईंट और जार से हमले का जवाब देकर कर रूसी सेना का सामना किया, बूढ़ी महिलाओं ने रेत का भारी बैग लादा और इस लड़ाई में अपना अहम योगदान दिया.''
वह कहते हैं, ''रूसियों को नहीं पता था कि कहां देखना है या अगला हमला कहां से हो सकता है. मैंने कभी भी समुदाय को इस तरह एक साथ आते नहीं देखा." ये बात वह उस टूटे हुए पुल पर खड़े हो कर कह रहे थे जिसे यूक्रेनी सेना ने रूसी सेना के हमले के चंद घंटों के भीतर नष्ट कर दिया था. वोज़्नेसेंस्क के दक्षिणी किनारे पर राकोव गांव में स्वेतलाना निकोलायेवना के बगीचे में नज़र आने वाला रूसी टैंक और कुछ सामानों का उलझा हुआ ढेर दूर से ही ध्यान आकर्षित करता है. यहां सबसे ज़बर्दस्त लड़ाइयों में से एक लड़ाई लड़ी गई थी.
ख़ून से सनी पट्टियाँ और रूसी राशन पैकेज इस बागीचे में नज़र आते हैं. 59 साल की स्वेतलाना अपने पति के टूल शेड की ओर इशारा करते हुए बताती हैं कि रूसियों ने दो यूक्रेनी सैनिकों को बंधक बना कर वहां रखा था.
अपने जर्जर झोपड़ीनुमा घर में आगंतुकों को अंदर बुलाते हुए वह कहती हैं, "मेरे दरवाज़े पर ख़ून के धब्बे देखिए."
जब इस शहर पर हमला हुआ तो स्वेतलाना का घर रूसियों के क़ब्ज़े में था और उनका परिवार एक तहखाने में शरण लेकर रह रहा था. उस समय रूसी सेना ने उनके पूरे घर को एक अस्थायी अस्पताल में बदल दिया था.
वह बताती हैं, "जब मैं दूसरे दिन कुछ कपड़े लेने के लिए वापस आई. तो देखा हर जगह घायल लोग पड़े थे. दसियों लोग. अब मैंने अधिकांश ख़ून साफ़ कर दिया है.''
"एक रात वे जल्दी में ये जगह छोड़ कर चले गए. उन्होंने सब कुछ पीछे छोड़ दिया - जूते, मोज़े, बॉडी आर्मर, हेलमेट- और बस अपने मृतकों और घायलों को लादकर भाग गए."
यहां के स्थानीय अंतिम संस्कार निदेशक, मिखाइलो सोकुरेंको को काम दिया गया कि वह खेतों में जा कर रूसी सैनिकों के शवों को गाड़ियों में लाद कर बाहर निकालें.
उन्होंने कहा, " उन्होंने यहां जो किया उसके बाद मैं उन्हें इंसान नहीं मानता, लेकिन यह ग़लत होगा कि उन्हें मैदान में छोड़ दिया जाए, वो लोग अपनी मौत के बाद भी लोगों को डरा रहे हैं.''
'' रूसी मानसिक तौर पर बीमार हैं इसलिए हमें तैयार रहना होगा, लेकिन जीत हमारी होगी और हम रूसियों को अपनी ज़मीन से बाहर खदेड़ कर रहेंगे.'' (bbc.com)
रूस के यूक्रेन पर हमले के समय से वहां हो रही हिंसा और कथित अपराधों को लेकर रूस और पुतिन पर युद्ध अपराध के मुकदमे चल सकते हैं. पर सवाल यह है कि ऐसा होगा कैसे और क्या पुतिन पर यह दोष सिद्ध हो पाएगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सार्वजनिक रूप से 'युद्ध अपराधी' कहा है. हालांकि, कानूनी जानकारों का कहना है कि पुतिन या किसी अन्य रूसी नेता पर मुकदमा चलाना आसान नहीं होगा. इस राह में कई बाधाएं होंगी और इसमें बरसों लग सकते हैं.
क्या होता है युद्ध अपराध?
नीदरलैंड्स के द हेग शहर में स्थित 'इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट' यानी ICC इसे ऐसे परिभाषित करता है कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने जिनेवा कन्वेंशन का गंभीर उल्लंघन 'युद्ध अपराध' कहलाता है. जिनेवा कन्वेंशन में वे अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून दर्ज हैं, जिनका युद्ध के समय पालन किया जाता है. जानकार बताते हैं कि अगर कोई देश जान-बूझकर दूसरे देश के नागरिकों को निशाना बनाता है या सेना के ऐसे ठिकानों पर हमला करता है, जहां आम नागरिक ज्यादा हताहत हो सकते हैं, तो इसे कन्वेंशन का उल्लंघन माना जाएगा.
यूक्रेन और इसके पश्चिमी सहयोगी रूसी सेनाओं पर आम नागरिकों को अंधाधुंध निशाना बनाने का आरोप लगा रहे हैं. रूस यूक्रेन पर हमला करने को 'स्पेशल ऑपरेशन' करार दे रहा है. वह आम नागरिकों को निशाना बनाने से इनकार कर रहा है और कह रहा है कि इसका लक्ष्य यूक्रेन को सैन्यीकरण और नाजीवाद के रास्ते पर जाने से रोकना है. रूस का दावा है कि यूक्रेन और सहयोगियों के आरोप बेबुनियाद हैं.
सोवियत संघ ने 1954 में जिनेवा कन्वेंशन पर सहमति दी थी. फिर 2019 में रूस ने इसके एक प्रोटोकॉल से खुद को अलग कर लिया. हालांकि, वह बाकी समझौतों का हिस्सा बना हुआ है. ICC की स्थापना 2002 में की गई थी. यह इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) से अलग है. ICJ संयुक्त राष्ट्र की संस्था है, जो दो देशों के बीच मसलों की सुनवाई करती है.
किस दिशा में बढ़ सकता है मुकदमा?
ICC के मुख्य अभियोजक करीम खान बताते हैं कि इस महीने उन्होंने यूक्रेन में संभावित युद्ध अपराधों की जांच शुरू की है. रूस और यूक्रेन दोनों ही ICC के सदस्य नहीं हैं और रूस तो इस संस्था को मान्यता भी नहीं देता है. हालांकि, यूक्रेन ने अपनी जमीन पर 2014 तक हुए कथित अत्याचारों की जांच करने को मंजूरी दे दी है. 2014 यानी वह साल, जब रूस ने क्रीमिया को अपने में मिला लिया था.
वहीं रूस ICC की जांच में सहयोग करने से इनकार कर सकता है. ऐसे में मुकदमा तब तक खिंचेगा, जब तक इस मामले में कोई अभियुक्त गिरफ्तार नहीं हो जाता. अमेरिकन यूनिवर्सिटी में कानून की प्रोफेसर रेबेका हैमिल्टन कहती हैं, "इससे ICC को अपना मुकदमा चलाने और गिरफ्तारी वारंट जारी करने की राह में कोई बाधा नहीं आएगी."
पर सुबूत कैसे तय होंगे?
अगर अभियोजन पक्ष मजबूती से यह दिखा पाए कि युद्ध अपराध किए गए हैं, तो ICC गिरफ्तारी का वारंट जारी कर देगी. जानकार बताते हैं कि ऐसे मामलों में सजा दिलाने के लिए अभियोजन पक्ष को बिना किसी संदेह के यह साबित करना होता है कि अभियुक्त ने वह अपराध किया है. ज्यादातर आरोपों में मंशा साबित करने की जरूरत पड़ती है. अभियोजक के लिए मंशा साबित करने का एक तरीका तो यह होता है कि वह साबित करे कि जिस इलाके में हमला किया गया, वहां कोई सैन्य ठिकाना नहीं था और हमला गलती से नहीं, बल्कि जान-बूझकर किया गया था. हार्वर्ड लॉ स्कूल में विजिटिंग प्रोफेसर एलेक्स वाइटिंग बताते हैं, "अगर ऐसे हमले बार-बार होते हैं और शहरी इलाकों में आम नागरिकों को निशाना बनाने की सोची-समझी रणनीति सामने आती है, तो यह मंशा साबित करने का एक बेहद पुख्ता सुबूत हो सकता है."
किस पर चलाया जा सकता है मुकदमा?
जानकार बताते हैं कि युद्ध अपराध की जांच के केंद्र में सैनिक, कमांडर और राष्ट्रप्रमुख होते हैं. अभियोजक पक्ष ऐसे सुबूत पेश कर सकता है कि पुतिन या किसी अन्य राष्ट्रप्रमुख ने सीधे तौर पर अवैध हमले का आदेश देकर युद्ध अपराध किया है. ऐसे सुबूत भी पेश किए जा सकते हैं कि राष्ट्रप्रमुखों को ऐसे अपराधों की जानकारी थी, लेकिन उन्होंने इसे रोकने की कोशिश नहीं की या रोकने में नाकाम रहे.
विएना यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय कानून विभाग में लेक्चरर एस्ट्रिड रीसिंगर कोरासिनी बताती हैं कि ICC की टीम के सामने जमीन पर होने वाले अपराधों को ऊपरी नेताओं से जोड़ने वाले सुबूत पेश करने की चुनौती होती है. वह कहती हैं, "बात जितने ऊंचे नेताओं तक पहुंचती है, सुबूतों को उनसे जोड़ना उतना ही मुश्किल होता जाता है."
युद्ध अपराध में दोषी ठहराया जाना क्यों होता है मुश्किल?
कानूनी जानकार बताते हैं कि मारियूपोल के प्रसूति अस्पताल और बच्चों को पनाह देने वाले थिएटर पर में बम विस्फोट युद्ध अपराध की श्रेणी में आता है. हालांकि, इसमें दोषी को सजा दिलाना मुश्किल होता है. कई मामलों में मंशा साबित करने और खास हमलों को बड़े नेताओं से जोड़ने में एक और चुनौती यह आती है कि अभियोजक पक्ष को सुबूत इकट्ठा करने में बहुत समय लगता है. उन्हें ऐसे गवाहों की गवाही भी चाहिए होता है, जिन्हें कई बार डराया-धमकाया गया होता है या वे खुद ही बात नहीं करना चाहते हैं.
यूक्रेन के मामले में ICC के अभियोजक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध तस्वीरों और वीडियो की मदद लेंगे. हैमिल्टन कहते हैं, "यह किसी भी तरह से तेजी से होने वाला काम नहीं है. इस दिशा में काम होना ही अपने आप में बड़ा संकेत है." वहीं आरोपितों को कठघरे तक लाना मुश्किल होता है. यह बात करीब-करीब तय मानी जा रही है कि रूस गिरफ्तारी का वारंट मानने से इनकार कर देगा. ऐसे में ICC को संभावित अभियुक्तों पर निगाह रखनी होगा कि वे कब विदेश यात्रा करते हैं, जहां उन्हें गिरफ्तार किया जा सके.
क्या कहता है अतीत?
ICC की वेबसाइट बताती है कि कोर्ट अपनी स्थापना से अब तक 30 मामलों की सुनवाई कर चुकी है. ICC के जजों ने अब तक पांच लोगों को युद्ध अपराधों, मानवता के विरुद्ध अपराधों और नरसंहार के मामलों में दोषी ठहराया है. वहीं चार अन्य लोगों को बरी किया है. 2012 में कोर्ट ने कांगो के सिपहसालार थॉमस लुबंगा डायलो को दोषी ठहराया था. कोर्ट युगांडा में हथियारबंद समूह लॉर्ड्स रेसिस्टेंस आर्मी के मुखिया जोसेफ कोनी समेत कई बड़े आरोपितों के खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट जारी किए हैं.
1993 में संयुक्त राष्ट्र ने बाल्कन युद्धों के दौरान हुए कथित अपराधों की जांच के लिए पूर्व यूगोस्लाविया के लिए अलग इंटरनेशनल क्रिमिनल ट्राइब्यूनल (ICT) बनाया. 2017 में बंद हुई इस अदालत ने कुल 161 अभियोग जारी किए थे और 90 लोगों को सजा सुनाई थी. लाइबेरिया के पूर्व राष्ट्रपति चार्ल्स टाइलर को संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी. कानूनी जानकार इस बात की संभावना जता चुके हैं कि यूक्रेन में संभावित युद्ध अपराधों की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र या एक संधि के जरिए अलग से एक अदालत बनाई जा सकती है.
वीएस/आरपी (रॉयटर्स)
(योषिता सिंह)
संयुक्त राष्ट्र, 23 मार्च। भारत ने कहा है कि इजराइल और फलस्तीन के बीच शेष मुद्दों पर प्रत्यक्ष रूप से विश्वसनीय वार्ताएं शुरू करके राजनीतिक माहौल को कायम किया जाना चाहिये। साथ ही उसने कहा कि दोनों पक्षों के बीच सीधी बातचीत का अभाव दीर्घकालिक शांति हासिल करने के लिए अनुकूल नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने कहा, “हम संबंधित पक्षों से ऐसी किसी भी एकतरफा कार्रवाई से परहेज करने का आह्वान करते हैं जिससे जमीनी यथास्थिति अनुचित रूप से बदल सकती है और इससे दो-राष्ट्र समाधान की व्यवहार्यता कम हो सकती है। हमें हाल के सकारात्मक घटनाक्रमों पर तत्काल आगे बढ़ने की जरूरत है, पीछे हटने की नहीं।'
तिरुमूर्ति ने मंगलवार को फलस्तीन को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मासिक बैठक में कहा कि फलस्तीनी प्राधिकरण की अनिश्चित वित्तीय स्थिति सहित सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों से निपटने और राजनीतिक माहौल बनाने के लिए एक ठोस मार्ग तैयार करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ' दोनों पक्षों के बीच शेष मुद्दों पर प्रत्यक्ष रूप से विश्वसनीय वार्ता शुरू करके राजनीतिक माहौल की जल्द बहाली की आवश्यकता है। सीधी बातचीत का अभाव दीर्घकालिक शांति हासिल करने के लिए अनुकूल नहीं है।'
तिरूमूर्ति ने इस बात पर जोर दिया कि भारत ने इजराइल और फलस्तीन के बीच, अंतरराष्ट्रीय सहमति से तैयार किए गए फ्रेमवर्क के आधार पर सीधी शांति वार्ता करने का लगातार आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि वार्ता के दौरान पृथक देश के लिए फलस्तीनियों की जायज महत्वाकांक्षा को और इजराइल की वैध सुरक्षा चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। (भाषा)
वुझू (चीन), 23 मार्च। चीन में इस सप्ताह के शुरु में हुई विमान दुर्घटना की जांच अभी भी जारी है, जिसमें बुधवार को ऊबड़-खाबड़ रास्तों और बारिश ने खलल डाल दिया। विमान में 132 लोग सवार थे और सभी के मारे जाने की आशंका जतायी जा रही है।
बारिश के मौसम के बीच खोजकर्ता दुर्घटनास्थल पर विमान के ब्लैक बॉक्स, कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर और मानव अवशेषों की तलाश में जुटे हैं।
चीन के सरकारी मीडिया द्वारा जारी किए गए वीडियो क्लिप में हादसे का शिकार हुए बोइंग 737-800 विमान के छोटे-छोटे टुकड़े दुर्घटनास्थल पर बिखरे पड़े दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा कीचड़ में सने हुए बटुए, बैंक संबंधी कागजात और पहचान पत्र भी बरामद हुए हैं।
जांचकर्ताओं ने कहा है कि अभी दुर्घटना का कारण बताना जल्दबाजी होगी। विमान रवाना होने के एक घंटे के अंदर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और 96 सेकेंड के अंदर इससे संपर्क टूट गया था।
दुर्घटना सोमवार को दोपहर में गुवांगझी क्षेत्र के वुझू शहर में हुई थी। विमान युन्नान प्रांत की राजधानी कुमिंग से औद्योगिक केंद्र ग्वांगझू जा रहा था। (एपी)
ल्वीव (यूक्रेन), 23 मार्च। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने आरोप लगाया है कि रूसी सैन्य बलों ने मंगलवार को आवश्यक आपूर्ति लेकर मारियुपोल पहुंचने की कोशिश कर रहे एक मानवीय काफिले को न केवल रोका, बल्कि कुछ बचावकर्मियों तथा बस चालकों को बंदी भी बना लिया।
उन्होंने कहा कि रूस इससे पूर्व काफिले को रास्ता देने को लेकर सहमत हुआ था। जेलेंस्की ने मंगलवार रात राष्ट्र के नाम एक वीडियो संबोधन में कहा, ‘‘ हम मारियुपोल के निवासियों के लिए स्थिर मानवीय गलियारे बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे लगभग सभी प्रयासों को रूस ने गोलाबारी कर या जानबूझकर हिंसक गतिविधियों से विफल कर दिया है।’’
यूक्रेन की उप राष्ट्रपति इरिना वेरेश्चुक ने कहा कि रूसियों ने 11 बस चालकों और चार बचावकर्मियों को उनके वाहनों के साथ कब्जे में ले लिया है। उनके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं मिल पाई है।
जेलेंस्की ने कहा कि मंगलवार को मारियुपोल से 7,000 से अधिक लोगों को निकाला गया, लेकिन शहर में लगभग 1,00,000 लोग अब भी ‘‘अमानवीय परिस्थितियों में, पूर्ण नाकाबंदी के कारण भोजन, पानी, दवा के बगैर और लगातार गोलाबारी के बीच’’ रह रहे हैं। युद्ध से पहले, इस बंदरगाह शहर की आबादी 4,30,000 थी। (एपी)
श्रीलंका में मंगलवार को सरकारी पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात कर दी गई. देश में पेट्रोल-डीजल की भारी किल्लत की वजह से पेट्रोल पंपों पर लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं.
भीड़ में कोई हंगामा ना हो और लोग हिंसक ना हो उठें इसलिए सेना के जवानों को यहां तैनात किया गया है. श्रीलंका इस वक्त भारी आर्थिक संकट से गुजर रहा है. देश का विदेशी मुद्रा भंडार काफी घट गया है. इस वजह से पेट्रोल-डीजल का आयात मुश्किल हो रहा है. महंगाई भी चरम पर है.
देश में अनाज, चीनी, सब्जियों से लेकर दवाओं की कमी हो रही है. महंगाई की वजह से लोगों का खर्चा चार गुना तक बढ़ गया है.
विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से श्रीलंका पड़ोसी देशों से इन चीजों को खरीद भी नहीं पा रहा है. हालात इतने ख़राब हैं कि देश में स्कूली छात्रों की परीक्षा के पेपर छापने के लिए कागज और स्याही तक के पैसे नहीं है. इस वजह से परीक्षा रद्द करनी पड़ी है.
श्रीलंका को इस वक्त अनाज, तेल और दवाओं की खरीद के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. हाल में भारत ने इसे एक अरब डॉलर का कर्ज देने का वादा किया है. चीन भी इसे ढाई अरब डॉलर का कर्ज दे सकता है. श्रीलंका पर चीन का पहले से ही काफी कर्ज है. 1948 में आजाद होने के बाद श्रीलंका का ये सबसे भयावह आर्थिक संकट है.
श्रीलंका में पेट्रोल-डीजल के लिए लंबी लाइनों को देखते हुए मंगलवार को सरकारी तेल कंपनी सिलोन पेट्रोलियम कॉरपोरशन ने अपने पंपों पर सैनिकों को तैनात कर दिया.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक ऊर्जा मंत्री गामिनी लुकोगे ने कहा,'' पेट्रोल पंपों पर कोई अप्रिय स्थिति पैदा न हो इसलिए हमने सेना के लोगों को यहां तैनात करने का फैसला किया है. लोग बड़े कैन में पेट्रोल ले जाकर बिजनेस कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि पेट्रोल सबको मिले. ''
रसोई गैस के लिए भी लोग खाली सिलेंडर लिए घंटों लाइन में खड़े दिख रहे हैं. पेट्रोल और केरोसिन के लिए लाइनों में खड़े चार लोगों की मौत हो चुकी है. इनमें से तीन बुजुर्ग थे. एक शख्स की मौत लाइन में लगे लोगों के बीच झगड़े के दौरान चाकूबाजी की वजह से हुई.
खस्ताहाल विदेशी मुद्रा भंडार की मार
श्रीलंका को भारी बिजली संकट का भी सामना करना पड़ रहा है. मार्च की शुरुआत में श्रीलंका ने देश में अधिकतम साढ़े सात घंटे तक की बिजली कटौती का एलान किया. किया था.
श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार की हालत खस्ता है.
यहां के केंद्रीय बैंक की ओर से फरवरी में जारी आंकड़ों के मुताबिक देश का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी 2022 में 24.8 फीसदी घट कर 2.36 अरब डॉलर रह गया था.
रूस-यूक्रेन में छिड़ी जंग से श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था की हालत और खराब हो सकती है.रूस श्रीलंका की चाय का सबसे बड़ा आयातक है.
रूस और यूक्रेन से बड़ी तादाद में श्रीलंकाई पर्यटक भी आते हैं. रूबल की गिरती कीमत, जंग और रूस यूक्रेन की ओर से चाय की घटती खरीद की वजह से भी इसकी अर्थव्यवस्था को नुकसान हुआ है. भारत, चीन और रूस के सबसे ज्यादा पर्यटक श्रीलंका पहुंचते हैं.
श्रीलंका में आर्थिक हालात इतने खराब क्यों ?
श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का काफी बड़ा दारोमदार इसके पर्यटन उद्योग पर है. देश की जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी है दस फीसदी के करीब है.
लेकिन कोविड की वजह से श्रीलंका में पर्यटकों का आना बिल्कुल थम गया. इसने इसके पर्यटन उद्योग की कमर तोड़ दी. विदेशी मुद्रा की कमी से कनाडा जैसे कई देशों ने फिलहाल श्रीलंका में निवेश बंद कर दिया है.
कोविड से पर्यटन को लगे झटके का नुकसान उठाने के साथ ही श्रीलंका की सरकार ने कुछ ऐसी गलतियां की, जिससे इसकी अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हो गई. 2019 में नवनिर्वाचित राजपक्षे सरकार ने लोगों की खर्च करने की क्षमता बढ़ाने के लिए टैक्स कम कर दिया. इससे सरकार के राजस्व को भारी नुकसान हुआ.
देश में केमिकल फर्टिलाइजर से खेती बंद करने के आदेश का भी काफी घातक असर हुआ. विशेषज्ञों के मुताबिक इससे फसल उत्पादन में खासी गिरावट आई.
श्रीलंका की खराब आर्थिक स्थिति की वजह इस पर बढ़ता कर्ज भी है. अकेले चीन का ही इस पर 5 अरब डॉलर का कर्ज है. भारत और जापान का भी इस पर काफी कर्ज है. श्रीलंका को आयात के लिए महंगा डॉलर खरीदना पड़ रहा है. इससे वो और अधिक कर्ज में डूबता जा रहा है. इसने श्रीलंकाई मुद्रा की कीमत भी घटा दी है.
पिछले महीने बैंक ऑफ सिलोन ने 40 हजार टन पेट्रोल मंगाने के लिए 35.5 अरब डॉलर जारी किए. दरअसल पेट्रोल की शिपमेंट चार दिनों तक कोलंबो बंदरगाह पर इंतजार कर रही थी. सरकार के पास इसके भुगतान के लिए पैसा नहीं था. आखिरकार बैंक ऑफ सिलोन को पैसा देना पड़ा.
श्रीलंका के केंद्रीय बैंक की ओर से फरवरी में जारी आंकड़ों के मुताबिक देश का विदेशी मुद्रा भंडार जनवरी 2022 में 24.8 फीसदी घट कर 2.36 अरब डॉलर रह गया था. 2022 में श्रीलंका को सात अरब डॉलर का कर्ज चुकाना है. मौजूदा हालात को देखते हुए श्रीलंका के डिफॉल्ट होने का खतरा पैदा हो गया है. हालात नहीं सुधरे तो इसे कर्ज के लिए आईएमएफ के पास भी जाना पड़ सकता है
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक फरवरी में एशियाई देशों में सबसे ज्यादा महंगाई श्रीलंका में बढ़ी. फरवरी 2021 की तुलना में फरवरी 2022 में खुदरा महंगाई 15.1 फीसदी बढ़ गई.
श्रीलंका
श्रीलंका ने अपने देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए चीन से काफी कर्ज लिया है. अप्रैल 2021 तक श्रीलंका पर 35 अरब डॉलर का विदेशी कर्ज था. इसमें दस फीसदी हिस्सेदारी चीन की थी. अगर श्रीलंका की कंपनियों और उसके केंद्रीय बैंक को दिया गया चीनी कर्ज भी मिला दिया जाए तो यह और ज्यादा हो सकता है.
श्रीलंका ने जिन इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के लिए कर्ज लिया था, उनमें से कुछ फंस गए. दक्षिणी श्रीलंका के हम्बनटोटा में बंदरगाह बनाने के लिए श्रीलंका ने चीन से 1.4 अरब डॉलर का कर्ज लिया था. लेकिन वह कर्ज चुका नहीं पाया. आखिरकार 2017 में एक चीनी कंपनी को इसे 99 साल की लीज पर सौंप दिया गया. चीन से आसान कर्ज भी इसके लिए मुसीबत बन गया है. श्रीलंका की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं हो पा रही है कि वह चीन का कर्ज चुका सके. चीन से अब वह फिर 2.5 अरब डॉलर का कर्ज लेने की तैयारी कर रहा है.
श्रीलंका इस वक्त सबसे ज्यादा भारत, चीन और बांग्लादेश पर निर्भर है. खाने-पीने की चीजों के से लेकर विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने के लिए भी उसे इन तीनों ओर से बड़ी मदद की जरूरत है.
पिचले कुछ साल से श्रीलंका में बढ़ रही चीनी गतिविधियों की वजह से भारत के सथ इसके रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं. लेकिन चीनी कर्ज के दम पर शुरू की गई इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं के फंस जाने के बाद इसने भारत के साथ रिश्तों में संतुलन लाने की कोशिश की है. (bbc.com)
एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑस्ट्रेलिया के इर्द गिर्द समुद्र में गर्मी की ज्यादा और गंभीर लहरें आने की संभावना है, जिनसे प्राकृतिक धरोहर ग्रेट बैरियर रीफ को काफी खतरा है.
ऑस्ट्रेलियाई पर्यावरण समूह क्लाइमेट काउंसिल ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि देश के उत्तर-पूर्वी तट के पास समुद्री तापमान औसत से दो से चार डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है और इससे ग्रेट बैरियर रीफ में एक सामूहिक ब्लीचिंग का खतरा बढ़ गया है.
सामूहिक ब्लीचिंग तब होती है जब मूंगे अपने अंदर रह रहे शैवालों को बाहर निकाल देते हैं और इस वजह से मूंगों का रंग सफेद हो जाता है. पिछले छह सालों में यहां तीन बार सामूहिक ब्लीचिंग हो चुकी है और एक और ब्लीचिंग का खतरा मंडरा रहा है.
"खतरे में" रीफ
संयुक्त राष्ट्र की एक टीम ने भी इस विश्व धरोहर स्थल की यात्रा शुरू की है. टीम का उद्देश्य है यह मूल्यांकन करना कि रीफ को "खतरे में" घोषित किया जाए या नहीं. ऑस्ट्रेलिया सरकार के ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क प्राधिकरण ने पिछले शुक्रवार कहा था कि क्वींसलैंड राज्य के तट के पास अधिकांश मरीन पार्क में गर्मियों के दौरान गर्मी का स्तर काफी बढ़ गया था.
समुद्र में इस तरह की गर्मी की लहरें मछलियों को प्रभावित कर रही हैं, नस्लों को नुकसान पहुंचा रही हैं और पर्यटन को भी चोट पहुंचा रही हैं.
क्वींसलैंड के जेम्स कुक विश्वविद्यालय में मरीन बायोलॉजिस्ट जोडी रम्मर ने बताया, "स्थिति विकट होती जा रही है और ऐसे बिंदु तक पहुंचने वाली है जहां हम इसे समझने के लिए रीफ द्वारा महसूस किए जा रहे हालात की लैब में नकल भी कर सकें."
क्लाइमेट काउंसिल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अगर जलवायु परिवर्तन इसी तरह चलता रहा तो 2044 के बाद तो हर साल ही ब्लीचिंग होने की संभावना है. समूह ने मांग की है की ऑस्ट्रेलिया अपने कार्बन उत्सर्जन को 2030 तक 2005 के स्तर के मुकाबले 75 प्रतिशत नीचे ले कर आए. यह सरकार के लक्ष्य से तीन गुना ज्यादा है.
यूनेस्को करेगा फैसला
यूनेस्को के विशेषज्ञ 21 मार्च को ही ऑस्ट्रेलिया की 10-दिवसीय यात्रा शुरू करने वाले हैं. यात्रा के दौरान वो सरकार की रीफ 2050 योजना की समीक्षा करने के लिए वैज्ञानिकों, नियामकों, नीति निर्माताओं, स्थानीय समुदायों और मूल निवासी के नेताओं से मिलेंगे.
यूनेस्को ने एक बयान में कहा कि टीम का मुख्य लक्ष्य यह पता करना है कि योजना "जलवायु परिवर्तन और अन्य कारणों की वजह से ग्रेट बैरियर रीफ के प्रति खतरों का सामना करती है या नहीं और तेजी से कदम बढ़ाने का रास्ता बताती है या नहीं."
विशेषज्ञों की रिपोर्ट मई में आने की संभावना है, जिसके बाद विश्व धरोहर समिति में अनुशंसा भेजी जाएगी कि स्थल को "खतरे में" घोषित किया जाए या नहीं. समिति की बैठक जून में होनी है. 2015 और 2021 में ऑस्ट्रेलिया को "खतरे में" की घोषणा बचाने के लिए भारी लॉबिंग करनी पड़ी थी.
सीके/एए (रॉयटर्स)
मणिपुर में पहली बार अपने बूते बीजेपी को सत्ता दिलाने वाले मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का राजनीतिक करियर संघर्ष की मिसाल है. ऐसा संघर्ष जो उनकी पुरानी पार्टी कांग्रेस नहीं देख सकी.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
सोमवार को लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने वाले बीरेन ने किसी पूर्वोत्तर राज्य में किसी बीजेपी नेता के लगातार दूसरी बार यह कुर्सी हासिल करने का रिकार्ड तो बनाया ही है, चुनाव नतीजों के बाद दस दिनों तक कुर्सी के लिए चलने वाली तिकोनी लड़ाई में बाकी दावेदारों को मात देने में भी कामयाबी हासिल की है. एक फुटबालर और पत्रकार के तौर पर अनुभव ने उनको इस कठिन मुकाबले में मुकाम तक पहुंचाया है.
बीरेन सिंह चुनाव अभियान के दौरान ही राज्य की 60 में से कम से कम 40 सीटें जीतने के दावे करते रहे थे. बीजेपी को 40 सीटें तो नहीं मिलीं लेकिन उसने अपने बूते बहुमत का आंकड़ा जरूर पार कर लिया. चुनाव से पहले पार्टी ने किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया था. लेकिन नतीजों के बाद दो और दावेदारों के सामने आने के बावजूद पार्टी के प्रदर्शन ने बीरेन के पक्ष में पलड़ा झुका दिया.
दावेदारों के दो-दो बार दिल्ली दौरे और तमाम केंद्रीय नेताओं से मुलाकात के बावजूद बीरेन अपने प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़े. यही वजह थी कि रविवार को पार्टी के केंद्रीय पर्यवेक्षकों निर्मला सीतारमण और किरेन रिजिजू की मौजूदगी में हुई विधायक दल की बैठक में बीरेन को आम राय से नेता चुन लिया गया. दरअसल, पार्टी के जबरदस्त प्रदर्शन के पीछे बीरेन को ही सबसे प्रमुख वजह माना जा रहा था. जिस पार्टी का 2012 तक राज्य में कोई नामलेवा तक नहीं था उसके अपने बूते बहुमत हासिल करने की उम्मीद तो खुद बीजेपी के केंद्रीय नेताओं को भी नहीं थी. ऐसे में पार्टी का प्रदर्शन का सेहरा बीरेन सिंह को मिलना तय था क्योंकि उन्होंने पूरे राज्य में अभियान की कमान संभाल रखी थी.
एक फुटबॉलर के तौर पर उनके करियर को देखते हुए राज्य के राजनीतिक हलकों में यह चर्चा आम है कि गेंद लेकर आगे बढ़ते हुए अपने प्रतिद्वंद्वियों को छकाने की कला ही राजनीति में उनके काम आई है.
फुटबॉल और पत्रकारिता
एक जनवरी, 1961 को मणिपुर की राजधानी इंफाल में पैदा होने वाले बीरेन सिंह ने स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मणिपुर यूनिवर्सिटी से ही ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की थी. लेकिन खेल में ज्यादा रुचि होने की वजह से उन्होंने शुरुआत में फुटबॉल को अपने करियर के तौर पर चुना. फुटबॉल में पारंगत होने की वजह से उनको 18 साल की उम्र में ही सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की फुटबॉल टीम में चुन लिया गया. वह राज्य के बाहर खेलने वाले मणिपुर के पहले खिलाड़ी थे. बीरेन साल 1981 में डूरंड कप जीतने के लिए कोलकाता के मोहन बागान को हराने वाली बीएसएफ की टीम का हिस्सा थे. हालांकि, उन्होंने अगले साल ही बीएसएफ टीम से नाता तोड़ लिया. लेकिन मणिपुर टीम के लिए वर्ष 1992 तक खेलते रहे.
वर्ष 1992 में बीरेन सिंह की रुचि पत्रकारिता की तरफ बढ़ी और उन्होंने मणिपुर के ही स्थानीय अखबार नाहरोल्गी थोउदांग में नौकरी शुरू की. पत्रकारिता में भी बीरेन सिंह काफी तेजी से आगे बढ़े और 2001 तक वे संपादक के पद पर पहुंच गए. पत्रकारिता के दौरान ही उन्होंने राजनीति को करीब से देखा और आखिरकार इस क्षेत्र में किस्मत आजमाने का फैसला किया.
राजनीतिक करियर
बीरेन सिंह ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत वर्ष 2002 में क्षेत्रीय पार्टी डेमोक्रेटिक पीपुल्स पार्टी (डीपीपी) से की. उन्होंने मणिपुर के हिंगांग विधानसभा क्षेत्र से अपनी पहली चुनावी लड़ाई लड़ी और जीती. उन्होंने 2007 में कांग्रेस के टिकट पर सीट बरकरार रखी. वे कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार में सतर्कता राज्य मंत्री भी बनाए गए. वर्ष 2007 में एक बार फिर वह इसी विधानसभा क्षेत्र से चुने गए और उनको सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण, युवा मामले और खेल मंत्री बनाया गया.
वर्ष 2012 में वह तीसरी बार अपनी सीट बचाने में सफल रहे, लेकिन मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने के कारण इबोबी सिंह से उनके संबंध खराब हो गए. आखिरकार अक्टूबर, 2016 में वे कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए. वर्ष 2017 में उन्होंने फिर से अपनी सीट से जीत हासिल की उसके बाद उनको मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में वे लगातार पांचवीं बार हिंगांग सीट से चुने गए हैं. इस सीट पर उन्होंने कांग्रेस के शरतचंद्र सिंह को 18 हजार वोटों से पराजित किया.
वरिष्ठ पत्रकार ओ. कंचन सिंह बताते हैं, "बीरेन सिंह ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान पहाड़ पर चलो, हर महीने की 15 तारीख को आम लोगों का दिन और पर्वतीय नेता दिवस जैसी जो योजनाएं शुरू की उससे घाटी और पर्वतीय इलाके के लोगों के बीच पनपी खाई को पाटने में काफी मदद मिली. इन योजनाओं के तहत दुर्गम इलाके में रहने वाले लोग भी महीने के तय दिन को अपने नेताओं और सरकारी अधिकारियों से मुलाकात कर पाते थे.” वह बताते हैं कि बीरेन सिंह को राज्य की नियति बन चुकी आर्थिक नाकेबंदी को खत्म करने, पर्वतीय और घाटी के बीच बढ़ती खाई को पाटने और राज्य में शांति बहाल करने का श्रेय भी दिया जाता है. उनके नेतृत्व में पार्टी के चुनावी और बीते पांच साल के कार्यकाल ने ही तमाम दावेदारों को पीछे छोड़ते हुए बीरेन सिंह के दोबारा मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ किया.
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अपने पहले कार्यकाल में बीरेन सिंह के सामने सहयोगी दलों के साथ संतुलन बनाए रखने की जो चुनौती थी अबकी पार्टी के पास बहुमत होने के कारण उनको वैसी चुनौती से तो नहीं जूझना पड़ेगा. लेकिन पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री की कुर्सी के दावेदार उनके लिए मुश्किलें जरूर पैदा कर सकते हैं. इन चुनौतियों से बीरेन सिंह कैसे निपटते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. (dw.com)
135 सेकेंड के भीतर ऐसा क्या हुआ कि चीन में एक बड़ा विमान हादसा हो गया. क्रैश हुए चाइना ईस्टर्न एयरलाइंन के विमान में 132 लोग सवार थे.
चीन की सबसे बड़ी एयरलाइन कंपनी, चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस का विमान कुनमिंग से गुआंझो के लिए निकला था. लेकिन, उड़ान भरने के सवा घंटे भर बाद ही विमान रडार से गायब हो गया. बोइंग 737-800 मॉडल के इस विमान में 123 यात्री और 9 चालक दल के सदस्य थे.
एयरलाइन कंपनी ने एक बयान जारी करते हुए कहा है, "विमान क्रैश हो चुका है, इस बात की पुष्टि हो गई है." चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस ने इसके साथ ही विमान में सवार लोगों को परिजनों के लिए हॉटलाइन डिटेल्स भी साझा किए.
विमान जिस जगह पर क्रैश हुआ है, वहां पहाड़ी जंगल में भीषण आग लग चुकी है. चीन के सरकारी मीडिया सीसीटीवी के मुताबिक विमान पूरी तरह मलबे के रूप में बिखरा पड़ा है.
क्या कहता है फ्लाइट रडार का डाटा
विमान ने चीन के दक्षिण-पश्चिमी शहर कुनमिंग से दोपहर 01:11 बजे उड़ान भरी. दुनियाभर में उड़ान भरने वाले विमानों पर नजर रखने वाली बेवसाइट फ्लाइट रडार 24 के डाटा के मुताबिक फ्लाइट को करीब दो घंटे बाद 03:05 बजे दक्षिणी चीन के तटीय शहर गुआंझो में लैंड करना था.
हादसे से ठीक पहले विमान 29,100 फीट की ऊंचाई पर था, लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ कि फ्लाइट 135 सेकेंड के भीतर अचानक 20,000 फीट नीचे आ गई. फ्लाइट रडार 24 के डाटा के मुताबिक विमान पहले 9,075 फीट पर आया और फिर अगले 20 सेकेंड में और नीचे गिरकर 3,225 फीट पर गया. इसके बाद विमान को ट्रैक नहीं किया जा सका. स्थानीय समय के मुताबिक दो बजकर 22 मिनट के बाद विमान का कोई डाटा नहीं मिला.
लेकिन इसके कुछ ही देर बाद विमान के क्रैश होने की पुष्टि हो गई. चीनी सोशल मीडिया पर वह पहाड़ी जंगल दिखाई देने लगा, जहां विमान क्रैश होने के बाद आग लग गई. स्थानीय लोगों के मुताबिक विमान बिल्कुल बेकाबू हो चुका था.
चीन का सेफ्टी रिकॉर्ड बढ़िया
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हादसे की जांच के आदेश दिए हैं. चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस और बोइंग चाइना की वेबसाइट ब्लैक एंड व्हाइट कर दी गई है. ऐसा पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त करने के लिए किया जाता है.
एविएशन डाटा प्रोवाइडर ओएजी (OAG) के मुताबिक चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस एक सरकारी कंपनी है. प्रति सप्ताह सीट क्षमता के मामले में यह चीन की सबसे बड़ी और दुनिया की छठी बड़ी एयरलाइंस है.
क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया के पांचवें बड़े देश चीन में घरेलू एविएशन बाजार काफी मजबूत है. बीते दशकों में हवाई सुरक्षा के मामले में चीन का रिकॉर्ड जबरदस्त रहा है. चीन में आखिरी बड़ा विमान हादसा 2010 में हुआ था, जब खराब विजिबिलिटी के कारण एक छोटा E-190 विमान यिचुन एयरपोर्ट के पास क्रैश हुआ था. उस हादसे में विमान में सवार 96 में से 44 लोगों की मौत हो गई.
बोइंग के 737-800 विमान का सेफ्टी रिकॉर्ड भी काफी बेहतर है. चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस का यह विमान छह साल पुराना था. विमान के इस मॉडल को बोइंग 737 मैक्स के मुकाबले बेहद सुरक्षित विमान माना जाता है.
कीव के शॉपिंग सेंटर पर हुए रूसी हमले के बाद कुछ यूरोपीय देशों ने रूस के तेल और गैस निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है. जानिए युद्ध के 26वें दिन का अपडेट.
यूक्रेन के अधिकारियों का कहना है कि राजधानी कीव के शॉपिंग सेंटर पर हुए मिसाइल हमले में कम से कम आठ लोगों की मौत हुई है. हमला रविवार देर शाम हुआ. सोमवार को दिन भर बहुमंजिला इमारत के मलबे में दबे लोगों की खोज जारी रही. कीव के मेयर विटाली क्लिचको ने अपने टेलीग्राम चैनल पर कहा, "हमारी सूचना के मुताबिक अभी कई घर और शॉपिंग सेंटर्स निशाना बने हैं."
यूक्रेन सरकार के मुताबिक रूसी सेना कीव में घुसने की पूरी कोशिश कर रही है, लेकिन कड़े प्रतिरोध के कारण वह आगे नहीं बढ़ पा रही है. 24 फरवरी 2022 को रूसी सेना के तीन तरफ से यूक्रेन में दाखिल होने के साथ शुरू हुआ युद्ध अब और घातक होता जा रहा है. यूक्रेन का आरोप है कि रूस तमाम तरह की घातक मिसाइलों से आम नागरिकों पर भी हमला कर रहा है.
कीव में सैन्य अभियान में हिस्सा ले रहे मिकोला मेडिनस्कीय कहते हैं, "रूस ने हमारे शॉपिंग सेंटर पर हमला किया है. आसपास मौजूद मॉल और रिहाइशी इमारतों को भी बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा है." मेडिनस्कीय के मुताबिक रविवार को जिस शॉपिंग सेंटर पर हमला किया गया, उसके आसपास कोई सैन्य प्रतिष्ठान भी नहीं है.
रूसी हमले के कारण यूक्रेन के दक्षिणी शहर मारियोपोल में जान-माल का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. खारकीव और कीव समेत अन्य शहरों पर भी रूसी हमले लगातार तेज हो रहे हैं. वहीं रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अब भी यूक्रेन युद्ध को रूसी सेना का 'स्पेशल मिशन' बता रहे हैं.
रूस में एफबी, इंस्टा बैन
बाहरी मीडिया के जरिए यूक्रेन युद्ध की जानकारी को रोकने के इरादे से रूस आए दिन नए कदम भी उठा रहा है. डीडब्ल्यू, एआरडी और बीबीसी जैसे विदेशी समाचार समाचार प्रसारकों पर बैन लगाने के बाद अब फेसबुक और इंस्टाग्राम को भी बैन कर दिया गया है.
सोमवार को मॉस्को की एक अदालत ने फेसबुक और इंस्टाग्राम को 'अतिवादी' संगठन करार देते हुए इन पर बैन लगा दिया. रूसी प्रशासन के कहा है कि दिग्गज अमेरिकी टेक कंपनी मेटा, 'रूस को डरावना बताने' वाले अभियान को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है.
रूसी अधिकारियों ने व्हट्सऐप पर प्रतिबंध लगाने की मांग भी की थी. लेकिन तवेर्स्कोई की अदालत ने मैसेंजर सर्विस को पब्लिक प्लेटफॉर्म नहीं माना और उस पर बैन लगाने की अपील ठुकरा दी.
रूस के खिलाफ प्रतिबंधों को और कसने की मांग
इस बीच यूरोपीय संघ के देशों में रूस पर और कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने की मांग होने लगी है. यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के विदेशमंत्री इस बारे में बातचीत कर रहे हैं. कुछ देश रूस खरीदे जाने वाले तेल और गैस पर पूरा प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं.
एक वीडियो संबोधन के जरिए यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने मांग की है कि यूरोप रूस के साथ एक यूरो का कारोबार भी न करे. जेलेंस्की ने कहा, "कब्जा करने वालों के लिए कोई यूरो नहीं. अपने बंदरगाह उनके लिए बंद कर दीजिए. उन्हें अपना कोई सामान मत बेचिए. ऊर्जा संबंधी संसाधन देने से इनकार कर दीजिए."
रूस ने इन आरोपों का जवाब देते हुए चेतावनी दी है कि अगर उसके गैस और तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया तो इसका खामियाजा पूरी दुनिया भुगतेगी.
तुर्की के दावे में कितना दम
यूक्रेन में भीषण होती सैन्य कार्रवाई के बीच तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोग्लू का कहना है कि रूस और यूक्रेन समझौते के करीब पहुंच रहे हैं. तुर्की ने वोलोदिमीर जेलेंस्की और व्लादिमीर पुतिन के बातचीत के लिए मेजबानी की पेशकश भी है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने की शांति वार्ता की अपील
अब तक दोनों पक्ष एक दूसरे पर शांति वार्ता को संजीदगी से न लेने का आरोप लगाते आ रहे हैं.
ओएसजे/वीएस (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
जर्मनी हो, इटली हो या ब्रिटेन... तमाम पश्चिमी देशों के नेता इन दिनों खाड़ी देशों का रुख कर रहे हैं. मसला है तेल जैसा ऊर्जा संसाधन. पर इसमें फायदा किसका है और नुकसान किसका है.
डॉयचे वैले पर विशाल शुक्ला की रिपोर्ट-
यूरोप की सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्था वाले देश जर्मनी के वित्त मंत्री रॉबर्ट हाबेक कतर और संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर गए. कतर में उनकी मुलाकात यहां अमीर कहे जाने वाले देश के कमांडर या राजकुमार तमीम बिन हमद अल थानी से हुई. मुलाकात के बाद दोनों देशों ने बयान जारी किया कि उन्होंने लंबे समय तक ऊर्जा आपूर्ति को लेकर एक समझौता किया है. लेकिन, खाड़ी देशों का रुख करने वाले हाबेक इकलौते नहीं हैं.
पिछले सप्ताह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब के दौरे पर गए. वहां उन्होंने सऊदी को कुछ वक्त के लिए वैश्विक बाजार में तेल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए राजी करने की कोशिश की. वहीं इटली के विदेशमंत्री भी पहले अल्जीरिया और फिर कतर के दौरे पर गए, जहां उन्होंने ऊर्जा आपूर्ति संबंधी बातचीत की. इटली की निगाह अजरबैजान, ट्यूनीशिया और लीबिया पर भी है. सवाल यह है कि यूरोप और पश्चिम के तमाम अमीर देश खाड़ी देशों का रुख क्यों कर रहे हैं.
क्या हैं समस्याएं और मकसद?
दरअसल रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से कई वैश्विक समीकरण बदल गए हैं. रूस से लंबे समय से खूब तेल और गैस खरीदने वाले तमाम यूरोपीय देश अब रूस से निर्भरता घटाना चाहते हैं. अब इसके मूल में 'लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा' हो या 'रूस को दंडित करने की मंशा', लेकिन रूसी तेल और गैस पर यूरोप की निर्भरता आप यूं समझ सकते हैं कि जर्मनी अपनी कुल जरूरत की आधे से ज्यादा नेचुरल गैस, कुल जरूरत का आधा कोयला और कुल जरूरत का एक-तिहाई तेल रूस से आयात करता है.
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका ने रूसी तेल खरीदने पर पाबंदी लगा दी. यूरोपीय देशों ने भी तमाम पाबंदियों का एलान किया. फिर भी युद्ध शुरू होने के बाद से यूरोपीय संघ के देश तेल, नेचुरल गैस और कोयले के लिए रूस को 13.3 अरब यूरो ट्रांसफर कर चुके हैं. एक स्टडी के मुताबिक अभी यूरोप से सिर्फ तेल के लिए ही रूस को रोजाना 21 अरब रुपये से ज्यादा जा रहे हैं.
अब ऊर्जा स्रोतों के बिना तो काम चलने से रहा. ऐसे में यूरोपीय देश नए ठिकानों की तलाश में हैं, जहां से वे ऊर्जा संसाधन खरीद सकें और रूस पर से अपनी निर्भरता घटा सकें. यहां सवाल यह उठता है कि जब पाबंदियों की वजह से रूसी तेल और गैस बिकने में दिक्कत आएगी और अमीर देश बाकी जगहों से आने वाला तेल और गैस ऊंची बोली पर भी खरीद लेंगे, तो इस संघर्ष में आर्थिक रूप से कमजोर देश कहां जाएंगे? जानकार इसके जवाब में दो पहलू बताते हैं.
कमजोर देशों पर क्या असर पड़ सकता है
डॉयचे वेले में कारोबारी मामलों के रिपोर्टर आशुतोष पांडेय गरीब देशों पर कोई खास फर्क पड़ने से इनकार करते हैं. वह बताते हैं, "याद कीजिए बीते कुछ महीनों से जब अमेरिका समेत दुनिया के कई देश तेल उत्पादक देशों के संगठन ओपेक से तेल आपूर्ति बढ़ाने की मांग कर रहे थे, तब ओपेक कह रहा था कि अभी मांग इतनी नहीं है कि आपूर्ति बढ़ाई जाए. लेकिन, अब रूस-यूक्रेन संकट के मद्देनजर उसने उत्पादन कुछ बढ़ा दिया है. तो मसला यह है कि अगर ओपेक या तेल उत्पादन करनेवाले देश उत्पादन बढ़ाते हैं, तो वे ऐसा सिर्फ तेल बेचने के लिए ही नहीं, बल्कि बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए करेंगे."
वह कहते हैं, "यानी अगर प्रतिबंधों की वजह से कुछ देश रूस का तेल और गैस नहीं खरीद पाएंगे, वे किसी और देश से खरीदेंगे. तो जब तेल का उत्पादन बढ़ेगा, तो उससे कमजोर देशों को भी फायदा हो सकता है, क्योंकि उनके पास ऊर्जा संसाधन खरीदने विकल्प ज्यादा होंगे."
आशुतोष एक और बात पर जोर देते हैं, "जर्मनी और ज्यादातर यूरोपीय देश छोटी नहीं, बल्कि अवधि की योजना बना रहे हैं. उनके सामने चुनौती ऊर्जा संसाधनों का तुरंत इंतजाम करने की नहीं, बल्कि रूस से निर्भरता घटाने की है. ऐसे में जब तक यूरोपीय देश रूस से तेल और गैस खरीद रहे हैं, तब तक आर्थिक रूप से कमजोर देशों को चिंता करने की कोई खास जरूरत नहीं है. जब तक यूरोप रूस का कोई वैकल्पिक इंतजाम नहीं कर लेता, तब तक बाकी देशों पर भी रूस से तेल-गैस न खरीदने का उतना दबाव नहीं पड़ेगा."
पर क्या हो सकती हैं दिक्कतें?
हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि कमजोर देशों को एकदम ही दिक्कत नहीं होगी. अभी तेल की कीमतें बीते 14 वर्षों में सबसे ज्यादा हैं, जो अपने आप में एक समस्या है. सऊदी और ओपेक के तेल उत्पादन बढ़ाने से ये कीमतें घट सकती हैं, लेकिन ऐसा होने के कोई आसार अभी दिख नहीं रहे हैं.
व्यापारिक मामलों पर पकड़ रखने वाले पत्रकार शिशिर सिन्हा अपनी बात की शुरुआत यहां से करते हैं कि रूसी तेल खरीदने पर अभी कोई पाबंदी नहीं है और वह सस्ते में भी उपलब्ध है. यहां इस बात पर भी गौर किया जाना चाहिए कि क्वॉड में भारत के साझेदारों तक ने यह कह दिया है कि उसके रूस से ऊर्जा संसाधन खरीदने से कोई नाराज नहीं है. ऐसे में यह मामला कूटनीतिक नहीं, बल्कि व्यापारिक है. कमजोर देशों की समस्याएं भी कारोबारी हो सकती हैं.
शिशिर बताते हैं, "विकासशील देशों और गरीब देशों की बड़ी परेशानी विदेशी मुद्रा भंडार की है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण श्रीलंका है. इसके जैसे कई देशों में पर्यटन विदेशी मुद्रा में कमाई का एक बड़ा जरिया रहा है, लेकिन कोरोना की वजह से बीते दो वर्षों से पर्यटन ठप पड़ा है. तो इन देशों के लिए महंगा तेल खरीदने और फिर विदेशी मुद्रा में भुगतान करना अपने आप में संकट है. अब लड़ाई के बीच तेल के भाव में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है, तो इन देशों को परेशानी होना स्वाभाविक है."
पर क्या यूरोप की रूस पर से निर्भरता कम हो पाएगी?
यूरोपीय संघ का लक्ष्य है कि 2022 खत्म होते-होते रूसी गैस पर निर्भरता दो-तिहाई कम कर ली जाए और 2030 से पहले रूसी जीवाश्म ईंधन से मुक्ति पा ली जाए. किंतु इस लक्ष्य को पूरा करने के सामने कई ढांचागत चुनौतियां भी हैं. जैसे जर्मनी के वित्त मंत्री ने कतर दौरे के अंत में कहा कि उनके साथ जो कंपनियां कतर गई थीं, अब सौदा करना उनके ऊपर है.
अब कतर दुनिया में लिक्विफाइड नेचुरल गैस यानी LNG के तीन सबसे बड़े निर्यातक देशों में से है. जर्मनी जहाजों के जरिए LNG लाना चाहता है, लेकिन दिक्कत ये है कि लंबे समय तक पाइपलाइन गैस पर निर्भर रहने की वजह से जर्मनी के पास जहाजों के लिए कोई टर्मिनल नहीं है. दो नए LNG टर्मिनल बनाने को मंजूरी तो मिली है, लेकिन ये 2026 से पहले उपयोग में नहीं आ पाएंगे.
कतर के कुछ अधिकारी यह भी कह चुके हैं कि कतर की ज्यादातर गैस, एशियाई देशों के साथ लंबी अवधि के समझौतों के तहत उनके पास जाती है. ऐसे में शॉर्ट नोटिस पर सिर्फ 10 से 15 फीसदी गैस ही किसी दूसरे ग्राहक को दी जा सकती है. वहीं संयुक्त अरब अमीरात ग्रीन हाइड्रोजन का बड़ा केंद्र है. यह जर्मनी को स्वच्छ ऊर्जा पर शिफ्ट होने के अपने दीर्घकालिक लक्ष्य हासिल करने में मदद कर सकता है.
तो मसला यही है कि लक्ष्य दीर्घकालिक हैं. इन लक्ष्यों के हकीकत में बदलने में भी वक्त लगेगा और इस बदलाव के नतीजे सामने आने में भी वक्त लगेगा. वैसे भी तेल और गैस जैसे ऊर्जा संसाधनों का बाजार मांग और आपूर्ति का बाजार है. जिस देश की जरूरत जहां से पूरी हो रही होगी, वह अपनी जरूरत पूरी कर लेगा. पाबंदियों के दौर का ईरान और इससे कारोबारी रिश्ते रखने वाले देश इस बात के सबसे सटीक उदाहरण हैं. (dw.com)
रूस की एक अदालत ने फेसबुक और इंस्टाग्राम को चलाने वाली कंपनी 'मेटा' को अतिवादी संस्था घोषित किया है. हालांकि इसी कंपनी की ऐप व्हाट्सऐप को बैन से बाहर रखा गया है.
मॉस्को की एक अदालत ने फेसबुक और इंस्टाग्राम पर प्रतिबंध लगा दिया है. अदालत ने अमेरिकी कंपनी मेटा को उग्रवादी संस्था घोषित किया है. स्थानीय अधिकारियों की अपील पर अदालत ने यह आदेश दिया है. अपनी अपील में अधिकारियों ने कहा था कि फेसबुक और इंस्टाग्राम 'अतिवादी गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे.'
रूस की जासूसी एजेंसी एफएसबी ने कहा था कि ये दोनों सोशल मीडिया मंच "रूस और उसकी सेनाओं के खिलाफ" गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे इसलिए इन पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए.
भीषण हमले के बावजूद कीव के भीतर नहीं घुस पाई रूसी सेना
अमेरिका से काम करने वाली कंपनी मेटा ने कहा था कि वह यूक्रेन के लोगों को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ हिंसा के लिए उकसाने वाले संदेश पोस्ट करने देगा. इसके बाद रूस के मीडिया रेग्युलेटर ने फेसबुक और इंस्टाग्राम को ब्लॉक कर दिया था. मेटा ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि वह "रूसी आक्रामक मुर्दाबाद" जैसे संदेश नहीं हटाएगा, बशर्ते वे यूक्रेन से पोस्ट किए गए हों.
व्हाट्सऐप पर बैन नहीं
मेटा की ही मेसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप को इस प्रतिबंध के दायरे से बाहर रखा गया है. मॉस्को के त्वेरसकोए जिला न्यायालय ने कहा, "यह फैसला मेटा के मेसेंजर व्हाट्सऐप पर लागू नहीं होता क्योंकि सूचना को जनता के बीच फैलाने में उसकी क्रियाशीलता वैसी नहीं है."
वैसे, रूस में कई लोगों ने संदेह जताया है कि इस फैसले का असर व्हाट्सऐप पर भी हो सकता है. लेकिन मोबाइल इंटरनेट ट्रैफिक के विश्लेषण के मुताबिक टेलीग्राम ने व्हाट्सऐप को पीछे छोड़ दिया है और हाल के हफ्तों में यह देश में लोगों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली मुख्य ऐप बन गई है.
प्राइस ने कहा, "हम मॉस्को में अपनी राजनयिक मौजूदगी बनाए रखना चाहते हैं. और अमेरिका यह भी चाहता है कि रूस भी वॉशिंगटन में मौजूद रहे."
यूक्रेन ने खारिज की रूसी चेतावनी
इस बीच यूक्रेन ने रूस की तमाम चेतावनियों को खारिज कर दिया है जिसके बाद वहां युद्ध और तेज हो गया है. सोमवार को यूक्रेनी नेताओं ने कहा कि रूस ने खेरसोन में हो रही रूस-विरोधी रैली पर रूसी सैनिकों ने बल प्रयोग किया और प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर कर दिया. यूक्रेन की सेना ने कहा कि रूस ने लोगों को छितराने के लिए स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल किया.
यूक्रेन की सेना ने एक बयान जारी कर कहा, "रूस के सुरक्षा बल दौड़ते हुए आए और उन्होंने गोलियां व स्टन ग्रेनेड बरसाने शुरू कर दिए." बयान के मुताबिक कम से कम एक व्यक्ति घायल हुआ है. रूस ने इस बारे में फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन वह दावा करता रहा है कि उसकी सेनाएं आम नागरिकों पर हमले नहीं करतीं.
वीके/एए (रॉयटर्स, डीपीए)सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म निशाने पर
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद से तमाम सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म रूसी सरकार के निशाने पर हैं. ट्विटर को वहां पहले की ब्लॉक किया जा चुका है. पिछले हफ्ते रूस के मीडिया रेग्युलेटर रोस्कोमनाजोर ने मांग की थी कि गूगल की कंपनी अल्फाबेट इंक अपने वीडियो शेयरिंग मंच यूट्यूब पर रूसी नागरिकों के खिलाफ "धमकियां" फैलाना बंद करे.
रूसी चेतावनी के बीच यूक्रेन ने कहा, हथियार डालने का सवाल ही नहीं
युद्ध से पहले भी रूस में इंटरनेट पर कड़ी सख्ती बरती जाती रही है. पॉर्नोग्राफी और नशीली दवाओं के इस्तेमाल व आत्महत्या को उकसाने जैसी अवैध मानी जाने वाली पोस्ट को ना हटाने के लिए रूसी प्रशासन सोशल मीडिया मचों पर काफी सख्त रहा है.
पिछले साल रूस ने मांग की थी कि सोशल मीडिया साइट ऐसी सभी पोस्ट हटाएं जिनमें लोगों से जेल में बंद सरकार विरोधी राजनेता आलेक्सी नावाल्नी के समर्थन में आयोजित होने वाले प्रदर्शनों में हिस्सा लेने की अपील की जा रही थी.
रूस-अमेरिका संबंध मुश्किल में
रूस ने अमेरिका के मॉस्को में राजदूत जॉन सलिवन को बुलाकर कहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर के लिए 'युद्ध अपराधी' जैसे शब्दों के इस्तेमाल ने दोनों देशों के संबंधों को टूटने के कगार पर धकेल दिया है.
पिछले हफ्ते जो बाइडेन ने यूक्रेन पर हमला करने और आम नागरिकों को निशाना बनाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि व्लादिमीर पुतिन एक युद्ध अपराधी हैं. इस बारे में रूस के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा, "एक उच्च पद पर बैठे राजनेता द्वारा ऐसे बयान अमेरिका और रूस के रिश्तों को टूट के कगार पर धकेलते हैं." इससे पहले रूस ने इस बयान को निजी अपमान भी बताया था.
पुतिन को संदेश देने के लिए बाइडेन और शी की बातचीत
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की है कि जॉन सलिवन को रूसी अधिकारियों द्वारा बुलाया गया था. हालांकि प्रवक्ता नेड प्राइस ने यह नहीं बताया कि रूसी अधिकारियों को क्या जवाब दिया गया. उन्होंने कहा कि अमेरिका विवाद के दौरान रूस के साथ संवाद का विकल्प खुला रखने को अहम मानता है.
स्वीडन के माल्मो शहर में पुलिस ने 18 वर्ष के एक युवक को गिरफ्तार किया है. इस युवक पर आरोप है कि उसने चाकू से हमला करके दो महिलाओं की जान ले ली. अब तक घटना के कारणों का पता नहीं चल पाया है.
स्वीडिश पुलिस ने सोमवार देर रात बताया कि माल्मो के एक स्कूल में चाकू से हुए हमले में दो महिलाओं की मौत हो गई. राजधानी स्टॉकहोम से करीब 615 किलोमीटर दूर स्थित माल्मो में यह वारदात लैटिन स्कूल में हुई.
पुलिस ने बताया कि उन्हें शाम करीब 5 बजे आपातकालीन सूचना मिली. जब पुलिस और पैरामेडिक्स घटनास्थल पर पहुंचे उन्हें दो महिलाएं घायल अवस्था में मिलीं. दोनों की उम्र 50 साल से ज्यादा थी उनकी स्थिति गंभीर थी. उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया लेकिन बचाया नहीं जा सका.
घटना के वक्त स्कूल में लगभग 50 लोग मौजूद थे जिन्हें पुलिस ने फौरन सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया. पुलिस के मुताबिक 18 साल के एक युवक को हत्या के संदेह में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि हमले का मकसद क्या था.
माल्मो नॉर्थ इलाके के पुलिस प्रमुख आसा निलसन ने बताया, "हम जल्दी वहां पहुंच गए और आरोपी को गिरफ्तार करने में कामयाब रहे. अब हमें बहुत सारा काम करना है ताकि समझा जा सके कि जो हुआ वह क्यों हुआ और इस भयानक घटना के पीछे क्या मकसद रहा होगा."
वीके/एए (एएफपी, डीपीए)
-नोरबर्टो पैरेडेस
सेंट्रल लंदन के बेलग्रेविया इलाके के केंद्र में एक जगह है जिसे कुछ लोग "रेड स्क्वायर" के नाम से जानते हैं.
ईटन स्क्वायर में पांच मंजिला मेंशन है, जिसमें टेनिस कोर्ट के साथ निजी बगीचे हैं लेकिन ये मॉस्को के प्रसिद्ध के रेड स्क्वायर के सामने कुछ भी नहीं है.
हालांकि इन दोनों जगहों में एक खास बात है कि यहां बड़ी संख्या में रूसी लोग रहते हैं.
बीते एक दशक से अधिक समय से रूसी लोगों ने ईटन स्क्वायर सहित कई पॉश इलाके में कई लाख डॉलरों की संपत्ति खरीदी है.
दुनिया के सबसे पॉश इलाकों में से एक बेलग्राविया मार्च के मध्य में ब्रिटेन में रूसी पैसों के खिलाफ लंदन में हो रहे विरोध का केंद्र बन गया. प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने बेलग्रेव स्क्वायर के नंबर 5 मेंशन पर कब्जा कर लिया.
ये दसियों मिलियन डॉलर की संपत्ति, ओलेग देरिपस्का से जुड़ी हुई है, जो व्लादिमीर पुतिन के साथ जुड़े हुए हैं और ओलिगार्क है. इस संपत्ति को ब्रिटिश सरकार की ओर से मंजूरी हासिल है.
इस आलीशान बंगले की खिड़की से एक प्रदर्शनकारी ने रिपोर्टरों को बताया कि उन्होंने इस मेंशन पर कब्ज़ा इसलिए किया क्योंकि वो चाहते हैं कि यहां यूक्रेन से आए शरणार्थियों को शरण दी जाए जो रूस के युद्ध के कारण अपना देश छोड़ने पर मजबूर हैं.
एक नौजवान ने कहा, ''हम मांग करते हैं कि यह संपत्ति यूक्रेनी शरणार्थियों को दी जानी चाहिए. उनके घर नष्ट कर दिए गए हैं और इस आदमी (देरिपस्का) ने युद्ध का समर्थन किया है."
इस समूह ने बताया कि ये मेंशन बेहद ज़्यादा आलीशान हैं, इसमें 200 कमरे हैं, सिनेमा हॉल से लेकर कई आर्ट पीस हैं. यहां इतना कुछ है कि "इतनी सारी चीजों की किसी सामान्य इंसान को कभी ज़रूरत भी नहीं होगी.''
'ब्रिटेन की कानूनी प्रणाली थी असली वजह'
भ्रष्टाचार विरोधी संगठन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने ब्रिटेन की संपत्ति में कम से कम 1.5 बिलियन पाउंड (2 बिलियन डॉलर) की संपत्ति की पहचान की है, जो रूसियों से संबंधित है, जिनके पास संपत्ति का ज़रिया क्या है इसे लेकर कोई वजह स्पष्ट नहीं की गई है. साथ ही इस संपत्ति का रूस से संबंध ज़ाहिर किया गया है.
लेकिन रूसी अरबपतियों ने न केवल पूरे लंदन में मकान खरीदे हैं, बल्कि प्रीमियर लीग फुटबॉल क्लब जैसे चेल्सी एफसी, स्कॉटलैंड में बड़े एस्टेट और यहां तक कि लंदन इवनिंग स्टैंडर्ड जैसे मीडिया आउटलेट भी खरीदे हैं.
"लंडनग्रैड: फ्रॉम रशिया विद कैश; द इनसाइड स्टोरी ऑफ द ओलिगार्क्स" के लेखक मार्क हॉलिंग्सवर्थ का कहना है कि इन सब की शुरुआत 1990 के दशक के अंत में हुई थी.
हॉलिंग्सवर्थ ने बीबीसी मुंडो से कहा, ''निजीकरण के साथ बहुत पैसा कमाने के बाद कुछ ओलिगार्क जैसे मिखाइल खोदोरकोव्स्की अपना पैसा रूस से बाहर निकालना चाहते थे क्योंकि उन्होंने सताए जाने का डर था."
"इसलिए उन्होंने इसे विदेशी कंपनियों, विदेशी ट्रस्टों में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया. और इस तरह ये लंदन में जा पहुंचा. उन्होंने यहां संपत्ति खरीदी, निवेश किया और बैंक खातों से पैसे बनाए."
जानकारों के मुताबिक़, रूसी ओलिगार्क की आमद दो बार बड़ी संख्या में हुई.
पहली बार 1990 में , जब बोरिस येल्तसिन की सरकार के दौरान बड़ी सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों को मुनाफे के बदले में कुछ चुनिंदा टाइकूनों को कम कीमत पर बेचा गया था, जबकि दूसरी बार व्लादिमीर पुतिन ने कांट्रैक्ट के जरिये इनके निवेश को बढ़ावा दिया था.
2000 के दशक की शुरुआत में कई ओलिगार्क को पुतिन सरकार से सताए जाने का डर था. इनें खोदोरकोव्स्की जैसे लोग थे. वो रूस के सबसे अमीर आदमी थे और फोर्ब्स के मुताबिक़ दुनिया के सबसे अमीर लोगों में शुमार थे.
लेकिन 1990 के दशक के एक टैक्स से जुड़े धोखाधड़ी के मामले में उनका नाम सामने आया और उस वक़्त उनकी सारी ताकत हवा हो गईं.
लगभग एक दशक जेल में बिताने के बाद अब खोदोरकोव्स्की निर्वासन में हैं. उनका कहना है कि वह पुतिन के नेतृत्व में काम करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों के शिकार हुए, जो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से डरते थे और उनके व्यापारिक साम्राज्य को सीमित करना चाहते थे.
मार्क हॉलिंग्सवर्थ बताते हैं कि, राजनीतिक उत्पीड़न से बचने के लिए, ओलिगार्क ने लंदन को अपना नया ठिकाना बनाया और इसे पैसे रखने की सबसे सुरक्षित जगह के रूप में देखने लगे. यदि रूसी अधिकारियों ने उनमें से किसी के प्रत्यर्पण का अनुरोध भी किया, तो उनके वकील जानते थे कि ब्रिटेन उन्हें वापस नहीं भेजेगा.
एक खोजी पत्रकार ने कहा, '' मुझे लगता है कि इस देश में अपना पैसा लगाने के लिए कई लोगों के लिए ब्रिटिश कानूनी व्यवस्था मुख्य प्रेरणा रही. ''
उन दिनों, लंदन में पहले से ही कई वकील, रियल एस्टेट एजेंट, बैंकर, सलाहकार और अकाउंटेंट थे जिन्होंने लंदन में अपने पैसे स्थानांतरित करने और छिपाने के लिए ओलिगार्क को मदद की पेशकश की.
2003 में रोमन अब्रामोविच ने चेल्सी एफसी फ़ुटबॉल टीम खरीदी, जिसने ब्रिटेन में कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया. लोग आश्चर्य करने लगे कि ओलिगार्क कौन हैं और उनका पैसा कहाँ से आया है?
निवेश की पुरानी विरासत
लंदन विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर कोजो कोरम का तर्क है लंदन में विदेशी "डर्टी मनी" आने का सिलसिला पुराना है.
इस साल जनवरी में, कोरम ने अपनी किताब "अनकॉमन वेल्थ: ब्रिटेन एंड द आफ्टरमैथ ऑफ एम्पायर" प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने बताया कि कैसे ब्रिटेन की शाही विरासत ने उसकी कानूनी और वित्तीय प्रणालियों को प्रभावित किया है.
उन्होंने बीबीसी मुंडो को बताया, "लंदन ने न केवल रूसी बल्कि सऊदी अरब ,नाइजीरिया ओलिगार्क और चीनी अरबपतियों के लिए भी दरवाजे खोले हैं. ये सभी लंदन को निवेश के लिए विदेशी ठिकाने के रूप में इस्तेमाल करते हैं. ब्रिटिश साम्राज्य के पतन के बाद इस शहर को जिस तरह दोबारा स्थापित किया गया, उसने इसमें अहम भूमिका निभाई"
''ब्रिटिश ओवरसीज टेरिटरीज़, केमैन आइलैंड्स, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स और बरमूडा ऐसे निवेशों की बड़ी वजह हैं जो वर्तमान में दुनिया के तीन सबसे बड़े टैक्स हैवन हैं."
'गोल्ड वीज़ा' वाली विवादित स्कीम
कई ओलीगार्क हाल ही में ब्रिटेन आए. "गोल्डन वीजा" प्रणाली के उनके लिए ऐसा करना आसान बना दिया. इस सिस्टम को ब्रिटिश सरकार ने इस साल फरवरी बंद करना पड़ा क्योंकि ब्रिटेन की सरकार पर इसे लेकर घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ता जा रहा था.
साल 2008 में ब्रिटिश सरकार टियर 1 वीजा योजना बनाकर लाई और इसके ज़रिये दुनिया भर के हजारों अरबपतियों के लिए आधिकारिक तौर पर देश के दरवाजे खोले. ये वीज़ा उन उद्यमियों को दिया गया, जिन्होंने दस लाख पाउंड का निवेश किया था. 2014 में इस रकम को बढ़ाकर 20 लाख पाउंड कर दिया गया.
इस कार्यक्रम ने इन वीजा धारकों को ब्रिटेन में अपने परिवारों के साथ स्थायी निवास के लिए आवेदन करने की अनुमति दी. जितना पैसा निवेश करेंगे उस हिसाब से वीजा मिलेगा.
अन्य यूरोपीय देश जैसे स्पेन, पुर्तगाल और ग्रीस भी कम निवेश के साथ इसी तरह की योजनाओं की पेशकश करते हैं.
लेकिन यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के मद्देनजर, स्पेन, पुर्तगाल और ग्रीस दोनों ने रूसियों को गोल्डन वीजा जारी करना बंद कर दिया है.
यूके होम ऑफिस के आंकड़ों के अनुसार, कार्यक्रम शुरू होने के बाद से 2,581 रूसी नागरिकों को निवेशक वीजा जारी किए गए हैं.
देश में रूसी हस्तक्षेप की दो साल तक जांच के बाद ब्रिटिश संसद की खुफिया कमेटी ने 2020 में एक रिपोर्ट प्रकाशित की. इसमें इस बात की पुष्टि की गई कि ब्रिटेन में रूस का असर अब 'न्यू नॉर्मल' हो गया है.
रिपोर्ट में कहा गया, '' ब्रिटेन में एक के बाद एक आई सरकारों ने रूसी ओलिगार्क और उनके पैसे का खुली बांहों से स्वागत किया. पुतिन के करीबी रहे कई ऐसे रूसी हैं, जो यहां खास कर 'लंदनग्राद' में कारोबार, राजनीति और सामाजिक जीवन में अच्छी तरह जुड़ गए हैं. ''
ब्रिटिश संसद की विदेशी मामलों की कमेटी की ओर से दो साल पहले प्रकाशित एक दूसरी रिपोर्ट के मुताबिक रूस के जरिये आने वाले पैसे की यहां मनी लॉड्रिंग होती रही है. लेकिन ब्रिटिश सरकार इस ओर से आंखें मूंदे रही.
हॉलिंग्सवर्थ मानते हैं कि ब्रिटिश सरकार इस समस्या को नजरअंदाज करती रही औैर आखिर इसने इसे सिस्टम में मिलने दिया.
लंदन यूनिवर्सिटी के कोरम का मानना है कि सरकार इसे लंबे वक्त तक नजरअंदाज किए रही क्योंकि इससे ब्रिटेन को लंबे समय तक वित्तीय फायदा देते हुए देखा गया.
वह कहते हैं, '' ब्रिटेन विशाल फाइनेंशियल और लीगल सेंटर है. इसलिए यहां से काफी पैसा पूरे देश और इसके ओवरसीज टेरिटरीज में भी पहुंच जाता है. ''
'' लेकिन आम ब्रिटिश नागरिक के मामले में ऐसा नहीं है. ब्रिटेन की ओर से खुद को इस तरह के ऑफशोर हब के तौर पर पेश करने का नतीजा यह हुआ कि देश में खास कर लंदन में घरों के दाम में काफी बढ़ गए. ''
क्या 'लंदनग्राद' का खात्मा होगा ?
ब्रिटेन की ओर से एक हजार रूसियों, कंपनियों और दूसरे कारोबारी संगठन पर प्रतिबंध लगाए गए हैं. इनमें 50 से अधिक ओलिगार्क और उनके परिवार शामिल हैं. इनकी कुल संपत्ति 100 अरब पाउंड होगी. इसके बाद लोगों को लगने लगा है कि लंदनग्राद का खात्मा हो सकता है.
जिन लोगों पर प्रतिबंध लगाए गए हैं उनमें चेलेसा एफबी के मालिक रोमन अब्रामोविच, ओलिगार्क ओलेग देरिपास्का और रूसी बैंक वीटीबी के प्रेसिडेंट आंद्रे कोस्तिन शामिल हैं. ब्रिटेन में उनकी परिसंपत्तियां फ्रीज कर दी गई हैं.
ब्रिटिश सरकार ने कहा है कि इन लोगों के कारोबारी साम्राज्य, संपत्ति और संपर्क रूस से करीबी तौर पर जुड़े हुए हैं. हालांकि अब्रामोविच ने इससे इनकार किया है.
हॉलिंग्सवर्थ कहते हैं, ''ज्यादातर ओलिगार्क लंदन में कभी नहीं रहे लेकिन उनकी संपत्तियां और पैसे यहां हैं. उन्होंने यहां समय बिताया है. अपने बच्चों को पढ़ाया है. लेकिन अब लगे प्रतिबंध लंदनग्राद के खात्मे की निशानी हैं. ''
'' ओलिगार्क और पुतिन का समर्थन कर रहे कर रूसी कारोबारियों का विरोध बढ़ता जा रहा है. अब उन्हें लग रहा है कि अब यहां से निकला जाए और अपना पैसा कहीं और छिपाया जाए. ''
कोजो कोरम का मानना है सरकार को रूसी ओलिगार्क पर नकेल कसने के लिए और आगे बढ़ कर काम करना होगा.
वह कहते हैं, '' बदलाव वास्तविक होना चाहिए. सिर्फ कानूनी बदलाव से बात नहीं बनेगी. उस राजनैतिक नजरिये में भी बदलाव लाना होगा जो विदेशी पैसे को न्योता देता है. इसके साथ ही ब्रिटेन को ओवरसीज टेरेटरीज के बारे में अपने नजरिये को भी बदलना होगा. ''
ऐसा हो सकता है लेकिन फिलहाल लंदन में दुनिया में हर जगह से संदिग्ध पैसा आ रहा है.
बहरहाल, मेफेयर में सबसे आलीशान रेस्तराओं में आनेवाले और बेलग्रेविया के प्राइवेट बागों में सैर करने वाले रूसी ओलिगार्क के सामने दिक्कतें पैदा हो गई हैं. इस वक्त लंदनग्रादो और मास्को ऑन टेम्स का 'ब्रिटिश ड्रीम' खत्म होने के कगार पर दिख रहा है. कथित 'पुतिन वॉर' की वजह से इसे करारा झटका लगा है. (bbc.com)
साल 2021 में मुनाफा दोगुना करने के बाद सऊदी अरब की कंपनी अरामको की योजना ऊर्जा उत्पादन में अपना निवेश तेजी से बढ़ाने की है. कंपनी ने अगले पांच सालों में अपना उत्पादन महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाने का लक्ष्य रखा है.
हाल के महीनों में आपूर्ति की तुलना में मांग के ज़्यादा रहने के कारण तेल की कीमतें काफी बढ़ी हैं. यूक्रेन युद्ध और एनर्जी सप्लाई के मामले में रूस पर निर्भर होने पर हिचक के कारण ऊर्जा की आपूर्ति पर अतिरिक्त दबाव पड़ा है.
सऊदी कंपनी के इस कदम को लेकर माना जा रहा है कि ऊंची ऊर्जा क़ीमतों से परेशान राजनेता इसका स्वागत करेंगे. हालांकि अरामको उत्पादन बढ़ाने के लिए निवेश में वृद्धि का जो फ़ैसला लिया है, वो योजना अगले पांच से आठ सालों के लिए है.
पिछले हफ़्ते ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने सऊदी अरब का दौरा किया था. बोरिस जॉनसन ने इस दौरे में शॉर्ट टर्म के लिए विश्व बाज़ार में तेल की आपूर्ति बढ़ाने के लिए सऊदी अरब को मनाने की कोशिश की थी.
तेल उत्पादक देशों के समूह ओपेक में सऊदी अरब सबसे बड़ा उत्पादक है. तेल की क़ीमतें इस समय पिछले 14 सालों के उच्चतम स्तर पर हैं. माना जा रहा है कि सऊदी अरब अगर उत्पादन बढ़ाता है तो इससे क़ीमतों में कमी आ सकती है.
हालांकि सऊदी अरब की मानवाधिकार हनन के मामलों को लेकर आलोचना होती रही है. सऊदी अरब यमन के संघर्ष में शामिल है. उस पर साल 2018 में सऊदी पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या, असंतुष्टों को जेल भेजने और बड़े पैमाने पर लोगों को मृत्यु दंड की सज़ा देने का आरोप है.
ब्रिटेन में लेबर पार्टी ने सरकार पर ऊर्जा संकट से निपटने के लिए एक तानाशाह से दूसरे तानाशाह के पास हाथ फैलाने का आरोप लगाया है.
ब्रिटेन के चांसलर ऋषि सुनक ने इस पर जवाब देते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री का ऊर्जा आपूर्ति बढ़ाने के लिए सऊदी अरब से बातचीत करना पूरी तरह से सही कदम है.
कोरोना महामारी के दौरान वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में डिमांड और सप्लाई पर असर पड़ा था जिसकी वजह से तेल की क़ीमतें काफी कम हो गई थीं. आर्थिक गतिविधियों के सुस्त पड़ने से साल 2020 में अरामको के मुनाफे में भारी गिरावट आई थी.
लेकिन जैसे ही कई देशों में लॉकडाउन हटने लगा और आर्थिक गतिविधियां फिर से पटरी पर आने लगीं, साल 2021 में ऊर्जा क़ीमतों में तेज़ी से वृद्धि हुई. इस वजह से लगभग सभी बड़ी ऊर्जा कंपनियों के राजस्व में तेज़ वृद्धि हुई.
सऊदी कंपनी अरामको ने कहा है कि वो इस साल अपना पूंजीगत व्यय 45 से 50 अरब डॉलर बढ़ाने वाला है. कंपनी के खर्च में ये वृद्धि 2025 तक जारी रहेगी. पिछले साल कंपनी ने 31.9 अरब डॉलर खर्च किए थे. (bbc.com)
-मोहम्मद काज़िम
"मुझे यक़ीन था कि मैं नंगे पैर मार्च कर पाऊंगा क्योंकि बलूचिस्तान के दूरदराज़ के इलाक़ों में ग़रीबी के कारण हमारी मां, बहनें और भाई नंगे पैर ही चलते हैं."
ईरान की सीमा से लगे बलूचिस्तान के केच ज़िले के रहने वाले गुलज़ार प्रांत में लापता लोगों की बरामदगी के लिए तुरबत से क्वेटा तक लगभग 776 किलोमीटर का पैदल मार्च कर रहे हैं.
दूरी के लिहाज़ से पिछले आठ सालों में बलूचिस्तान से यह दूसरा बड़ा पैदल लॉन्ग मार्च है जिसमें उनके साथ महिलाओं ने भी हिस्सा लिया है.
बलूचिस्तान से लापता व्यक्तियों के रिश्तेदारों के संगठन, वॉयस फ़ॉर बलोच मिसिंग पर्सन्स के उपाध्यक्ष मामा क़दीर बलोच के नाम पर होने वाले इस मार्च के चार मक़सद हैं.
गुलज़ार बलोच हासिल क्या करना चाहते हैं?
गुलज़ार बलोच ने कहा कि वह इस मार्च के माध्यम से चार उद्देश्य पूरे करना चाहते हैं जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है लापता व्यक्तियों की बरामदगी.
उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि दुनिया का ध्यान लापता लोगों के मुद्दे की ओर आकर्षित किया जाए और जितने भी लापता बलोच हैं उनकी सुरक्षित बरामदगी सुनिश्चित की जाए."
उन्होंने आगे कहा, "दूसरी बड़ी समस्या प्रान्त में नशीले पदार्थों की तस्करी और स्वतंत्र रूप से इसके इस्तेमाल की है. वर्तमान में बलूचिस्तान और सिंध की बलोच आबादी को ड्रग्स का आदी बनाया जा रहा है. ड्रग एक ज़हर है और इसके ज़रिए बलोच लोगों को बर्बाद किया जा रहा है."
गुलज़ार ने कहा कि मार्च का एक उद्देश्य ये भी है कि बलूचिस्तान से फ़्रंटियर कोर को निकाला जाए. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राज के दौरान 1894 में जो लैंड एक्विज़ीशन ऐक्ट भारत में लागू किया गया था, अभी तक वही ऐक्ट चल रहा है.
उन्होंने आरोप लगाया कि इस ऐक्ट के ज़रिए बलूचिस्तान के लोगों को उनकी क़ीमती ज़मीनों से वंचित किया जा रहा है और अब तक इस ऐक्ट के तहत बलोचों की हज़ारों एकड़ भूमि को ज़ब्त किया जा चुका है.
"हम चाहते हैं कि बलोचों को उनकी ज़मीन से किसी भी बहाने से बेदखल करने का सिलसिला बंद किया जाए."
गुलज़ार दोस्त ने इस साल 27 फ़रवरी को केच ज़िले के मुख्यालय तुरबत से पैदल लॉन्ग मार्च की शुरुआत की थी. इस लॉन्ग मार्च में उनकी मंज़िल बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा है.
उन्होंने तुरबत से लेकर क्वेटा तक जिस राजमार्ग पर लॉन्ग मार्च किया है, वह ज़्यादातर शुष्क रेगिस्तान और पहाड़ी क्षेत्रों से गुज़रता है. वो क्वेटा पहुंचने के लिए 776 किमी की ये दूरी 22 दिनों में तय कर लेंगे.
गुलज़ार दोस्त बलोच ने बताया कि वह रोज़ाना औसतन 35 किमी पैदल चलते रहे हैं.
गुलज़ार के दोस्त ने बताया कि उन्होंने और तुरबत सिविल सोसाइटी ने इस मार्च को अनोखा बनाने के लिए, इसे नंगे पांव करने का फ़ैसला किया था.
उन्होंने कहा, "मुझे ये यक़ीन था कि मैं इस मार्च को नंगे पैर कर सकूंगा क्योंकि बलूचिस्तान के दूरदराज़ के इलाक़ों में ग़रीबी की वजह से हमारे लोग नंगे पैर चलते रहते हैं."
उन्होंने कहा, "तुर्बत से चलने के बाद दो दिन तक मैंने नंगे पैर मार्च किया और इन दो दिनों के मार्च से मेरे पैर पूरे ज़ख़्मी हो गए. सड़क के सख़्त होने के कारण पहले मेरे पैरों में छाले पड़ गए और फिर वो फूट गए और उनसे ख़ून बहने लगा.''
उन्होंने कहा कि हालांकि पैर ज़ख़्मी होने के कारण चलना बहुत मुश्किल हो रहा था, मगर उन्होंने मार्च जारी रखा. लेकिन दो दिन बाद डॉक्टर हनीफ़ शरीफ़ की मां नसीमा बलोच और उनकी बेटी उनके पास आए और उन्हें जूते पहनने के लिए मजबूर कर दिया.
उन्होंने कहा, "मैं उन्हें अपनी माँ की तरह मानता हूँ, इसलिए जब मैंने मना कर दिया तो उन्होंने भी मेरे साथ नंगे पैर चलना शुरू कर दिया. चूँकि मैं उन्हें इस तरह नहीं देख सकता था, इसलिए मैंने उनकी बात मान ली और जूते पहन लिए."
गुलज़ार बलोच ने कहा कि इस मार्च को अनोखा बनाने का दूसरा फ़ैसला यह था कि उन्हें यह मार्च तुरबत से क्वेटा तक अकेले ही करना था.
उन्होंने कहा कि तुरबत सिविल सोसाइटी के निर्णय के अनुसार, इस मार्च को पंजगुर तक उन्होंने बिल्कुल अकेले ही किया, लेकिन पंजगुर में उनके सहपाठी और दोस्त याक़ूब जोस्की समेत दो अन्य सहयोगी ज़ुबैर अस्कानी और सलाम बलोच ने भी उनके साथ चलने का अनुरोध किया.
उन्होंने कहा कि उनके अनुरोध पर उन्होंने सोसायटी के सदस्यों से सलाह मश्विरा किया और उनकी इजाज़त से ये तीनों दोस्त पंजगुर से उनके साथी बन गए.
मार्च का नाम मामा क़दीर के नाम पर क्यों?
उन्होंने कहा कि मामा क़दीर बलोच लापता व्यक्तियों की बरामदगी के लिए एक मज़बूत आवाज़ हैं इसलिए उन्होंने अपने मार्च का नाम मामा क़दीर के नाम पर रखा.
उनका कहना है कि मामा क़दीर बलोच ने न केवल लॉन्ग मार्च किया, बल्कि उन्होंने आधुनिक दुनिया के इतिहास में सबसे लंबी चलने वाली प्रतीकात्मक भूख हड़ताल कैंपेन भी चलाई जिसे अब तक चार हज़ार छह सौ से अधिक दिन हो गए हैं.
गुलज़ार बलोच का कहना है कि वे जो मार्च कर रहे हैं, किसी भी तरह से उसकी तुलना मामा क़दीर के मार्च से नहीं की जा सकती. "मामा क़दीर ने उम्र के जिस पड़ाव पर ये मार्च किया है. इस आधुनिक दौर में लोग इतनी कठिन और लंबी पैदल यात्रा के बारे में सोच भी नहीं सकते."
उनका कहना है कि मामा क़दीर का मार्च कठिनाइयों से भरा हुआ था, जबकि उन्हें किसी बाहरी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा, क्योंकि तुरबत से क्वेटा तक वो बलोच आबादी वाले इलाक़े से होते हुए गुज़रे हैं.
"हर जगह लोगों ने हमारा स्वागत किया और हमारे लिए खाने-पीने के अलावा रहने का भी इंतज़ाम किया."
गुलज़ार बलोच ने कहा कि बलूचिस्तान के लोग इस समय एक कठिन परिस्थिति का सामना कर रहे हैं और उनका यह छोटा सा संघर्ष उनके कर्तव्य को पूरा करने की एक कोशिश है.
यह पूछे जाने पर कि क्या इस तरह के मार्च का कोई फ़ायदा है तो उन्होंने कहा कि दुनिया में कोई भी संघर्ष व्यर्थ नहीं जाता है.
गुलज़ार बलोच
इससे पहले मामा क़दीर बलोच ने लॉन्ग मार्च किया था. उस मार्च से कितने लापता बलोच बरामद हुए इसकी कोई पुख़्ता जानकारी नहीं. लेकिन मामा क़दीर ने पूरी दुनिया को बताया कि बलूचिस्तान की सबसे बड़ी और सबसे गंभीर समस्या जबरन गुमशुदगी है और उन्होंने पूरी दुनिया का ध्यान लापता व्यक्तियों के मुद्दे की तरफ़ खींचा.
उन्होंने कहा कि उनके मार्च का एक मुख्य उद्देश्य सभी बलूचों को लामबंद करना और उन्हें यह एहसास दिलाना है कि हर बलोच को लापता व्यक्तियों की समस्या को अपने घर की समस्या समझना चाहिए.
बलूचिस्तान से लापता व्यक्तियों की बरामदगी के लिए मामा क़दीर बलोच के नेतृत्व में पहले क्वेटा से कराची और बाद में कराची से इस्लामाबाद तक लॉन्ग मार्च 2014 की शुरुआत में किया गया था.
इस लॉन्ग मार्च में एक बच्चे के अलावा महिलाएं भी शामिल थीं. मामा क़दीर के लॉन्ग मार्च के बाद, बलूचिस्तान में लोगों ने अपनी समस्याओं को हल कराने के लिए क्वेटा तक कई पैदल मार्च किए.
गुलज़ार बलोच कौन हैं?
गुलज़ार दोस्त बलोच बलूचिस्तान के ईरान की सीमा से लगे केच ज़िले के तिजाबान इलाक़े के रहने वाले हैं. उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा केच ज़िले से प्राप्त की और पोस्ट ग्रैजुएशन क्वेटा से किया.
उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ बलूचिस्तान से पत्रकारिता और राजनीति विज्ञान में एमए की डिग्रियां प्राप्त की हैं.
अपने छात्र जीवन के दौरान, वह प्रसिद्ध छात्र संगठन, बलोच स्टूडेंट्स ऑर्गनाइज़ेशन से जुड़े हुए थे. वह बलूचिस्तान सिविल सोसाइटी के अध्यक्ष और तुरबत सिविल सोसाइटी के कन्वेनर भी हैं. (bbc.com)
नयी दिल्ली, 21 मार्च। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने भारत के अपने समकक्ष नरेंद्र मोदी के साथ वर्चुअल शिखर वार्ता में सोमवार को कहा कि रूस के यूक्रेन में ‘भयानक’ आक्रमण करने के बाद युद्धग्रस्त देश में हुई जनहानि के लिए उसे (रूस को) जवाबदेह ठहराने की आवश्यकता है।
मॉरिसन ने यूक्रेन संकट पर क्वाड देशों के नेताओं की हाल में हुई बैठक का भी जिक्र किया और कहा कि इससे ‘‘हिंद प्रशांत क्षेत्र’’ के लिए घटनाक्रम के ‘‘असर और परिणामों’’ पर चर्चा करने का अवसर मिला।
उन्होंने कहा, ‘‘हम यूरोप में भयानक स्थिति से व्यथित हैं, हालांकि हमारा ध्यान हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर अधिक है।’’
वहीं, मोदी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में विविध क्षेत्रों में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच संबंधों में काफी प्रगति देखी गयी है। उन्होंने यह भी कहा कि वृहद आर्थिक सहयोग समझौते के लिए वार्ता के नतीजे पर पहुंचना आर्थिक संबंधों को मजबूत करने के लिए अहम होगा।
उन्होंने कहा कि हमारी भागीदारी मुक्त, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खनिज, जल प्रबंधन और अक्षय ऊर्जा के अहम क्षेत्रों में तीव्र गति से सहयोग बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं खुश हूं कि हम दो देशों के बीच वार्षिक शिखर वार्ता का तंत्र स्थापित कर रहे हैं।’’ (भाषा)
बच्चों के कल्याण के लिए काम करने वाले समूह सेव द चिल्ड्रन का कहना है कि युद्ध के कारण लाखों यूक्रेनी बच्चे गंभीर खतरे में हैं और जो अभी भी फंसे हुए हैं उन्हें तुरंत बचाया जाना चाहिए.
सेव द चिल्ड्रन का कहना है कि यूक्रेन के अस्पतालों और स्कूलों पर बढ़ते हमलों के कारण अब 60 लाख से अधिक बच्चे गंभीर खतरे में हैं, जिन्हें तत्काल सुरक्षा की आवश्यकता है. समूह के यूक्रेन निदेशक पीट वॉल्श ने कहा, "यूक्रेन में 60 लाख बच्चे गंभीर खतरे में हैं क्योंकि यूक्रेन में युद्ध का एक महीना पूरा हो रहा है."
समूह ने कहा कि रूसी गोलाबारी के कारण 464 स्कूल और 42 अस्पताल क्षतिग्रस्त हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक 24 फरवरी को रूसी हमला शुरू होने के बाद से अब तक कम से कम 59 बच्चे मारे गए हैं. वॉल्श ने कहा, "स्कूल बच्चों के लिए एक सुरक्षित आश्रय स्थल होना चाहिए, न कि भय, चोट या मौत की जगह."
यूक्रेन में लगातार हो रहे मिसाइल हमलों और गोलाबारी के कारण अब तक 15 लाख से अधिक बच्चे देश से भागने को मजबूर हो चुके हैं. हालांकि, सेव द चिल्ड्रन का अनुमान है कि देश में अभी भी करीब 60 लाख बच्चे फंसे हुए हैं.
वॉल्श ने कहा, "युद्ध के सिद्धांत बहुत साफ हैं: बच्चों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए और अस्पतालों या स्कूलों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए. हमें हर कीमत पर यूक्रेन में बच्चों की रक्षा करनी चाहिए. इस युद्ध के अंत तक और कितनी जानें जाएंगी?"
मानवाधिकार के उच्चायुक्त के कार्यालय ने यूक्रेन में युद्ध के कारण नागरिकों के हताहत होने पर अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि 24 फरवरी से 19 मार्च के बीच कुल 2,361 नागरिक प्रभावित हुए, जिसमें 902 लोग मारे गए और 1,459 घायल हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी ने केवल मौतों की पुष्टि की है. आशंका है कि मरने वालों की संख्या बहुत अधिक हो सकती है.
वहीं यूक्रेन के अधिकारियों का कहना है कि रूसी हमले के शुरू होने के बाद से देश के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव के आसपास लड़ाई में कम से कम 260 नागरिक मारे गए हैं.
महिलाएं चुकाती हैं युद्ध और संघर्ष में सबसे ज्यादा कीमत
यूएनएचसीआर का कहना है कि युद्ध से बचने के लिए अब तक 34 लाख लोग पड़ोसी देशों में भाग गए हैं. एक करोड़ लोग देश के भीतर विस्थापित हुए हैं.
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स, एएफपी)
वोलोदिमीर जेलेंस्की ने रूस से कहा है कि वह जितनी जल्दी शांति वार्ता शुरू करेगा, उसे उतना ही कम नुकसान होगा. यूक्रेन युद्ध पर हो रही वार्ताएं अभी चेतावनियों और अपीलों के जरिए माहौल टटोल रही हैं.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने शनिवार को रूस के साथ शांति और सुरक्षा के लिए सार्थक बातचीत की अपील की. वीडियो संबोधन में जेलेंस्की ने कहा, "बातचीत रूस के पास एकमात्र मौका है, जिसके जरिए वह अपनी गलतियों से हुए नुकसान को कम कर सकता है."
जेलेंस्की की बातों में रूस के लिए स्पष्ट संदेश था. यूक्रेनी राष्ट्रपति ने कहा, "मैं चाहता हूं कि हर कोई मुझे सुने, खासकर मॉस्को में. बैठक का समय आ चुका है, बात करने का समय यही है."
24 फरवरी, 2022 से रूसी हमला झेल रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति ने आगे कहा, "यूक्रेन की क्षेत्रीय संप्रभुता और उसके लिए न्याय बहाल करने का समय आ चुका है." इसके साथ ही उन्होंने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चेतावनी भी दी, "अन्यथा, रूस का इतना नुकसान होगा कि उससे उबरने में कई पीढ़िया लग जाएंगी."
रूस और यूक्रेन के बीच कुछ हफ्तों से द्विपक्षीय बातचीत भी हो रही है. कई चरणों के बाद भी इस बातचीत से अब तक कोई पुख्ता समाधान नहीं निकला है.
जेलेंस्की के बयान से एक दिन पहले रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने जर्मन चांसलर ओलाश शॉल्त्स से टेलीफोन पर बातचीत की. इस बातचीत में पुतिन ने यूक्रेन पर समझौते की कोशिशों को टालने का आरोप लगाया.
बाइडेन और शी ने क्या बात की?
यूक्रेन युद्ध के मुद्दे पर ही शुक्रवार को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच भी बातचीत हुई. करीब दो घंटे चली वीडियो कॉन्फ्रेंस में कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. बाइडेन ने चीन को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर उसने यूक्रेन में सेना घुसाने वाले रूस का समर्थन किया, तो बीजिंग को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
व्हाइट हाउस के मुताबिक, "राष्ट्रपति ने इस संकट के कूटनीतिक समाधान को लेकर अपना समर्थन जाहिर किया." बयान के अगले हिस्से में कहा गया, "दोनों नेताओं के बीच संवाद की लाइनें खुली रखने और आपसी प्रतिस्पर्धा को मैनेज करने पर भी सहमति बनी."
वहीं चीनी राष्ट्रपति ने भी पहले आपसी संवाद और वैश्विक शांति को लेकर दोनों देशों की भूमिका का जिक्र किया. लेकिन कुछ देर बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी अमेरिका को खरी-खरी सुनाई. वीडियो कॉल के बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया. इस बयान में नाटो के विस्तारीकरण और पश्चिमी देशों की शीत युद्ध वाली मानसिकता का जिक्र किया गया.
चीनी विदेश मंत्रालय के बयान में दो चीनी मुहावरों का जिक्र भी किया गया. यह मुहावरे हैं, "जिसने बाघ के गले में घंटी बांधी है, उसी को यह खोलनी होगी" और "ताली एक हाथ से नहीं बजती है."
न्यूक्लियर पावर प्लांट के करीब बसे शहर में कर्फ्यू
इस बीच यूक्रेन युद्ध के 24वें दिन यूक्रेनी सेना ने देश के दक्षिणी शहर जपोरिजिया में 38 घंटे का कर्फ्यू लगा दिया है. शहर के मेयर अनातोलिय कुर्तिएव ने सोशल मीडिया पर कर्फ्यू की जानकारी देते हुए लिखा, "इस दौरान बाहर न निकलें."
कुर्तिएव के मुताबिक शुक्रवार को शहर के बाहरी इलाकों में हुई बमबारी में नौ लोग मारे गए और 17 घायल हुए. जपोरिजिया वही शहर है, जिसके पास मौजूद परमाणु बिजलीघर को रूसी सेना ने दो हफ्ते पहले अपने नियंत्रण में लिया. रूसी सेना पर न्यूक्लियर पावर प्लांट पर हमला करने के आरोप भी लगे. यूक्रेन के अधिकारियों का आरोप है कि रूसी सेना न्यूक्लियर पावर प्लांट के पास विस्फोटकों में धमाका भी कर रही है.
ओएसजे/वीएस (एपी, एएफपी, रॉयटर्स, डीपीए)
बिजली की आपूर्ति को हैकर्स से सुरक्षित रखना ज्यादा महत्वपूर्ण होता जा रहा है, क्योंकि देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं को डिकार्बोनाइज कर रहे हैं और बिजली ग्रिड का आधुनिकीकरण हो रहा है.
डॉयचे वैले पर अजीत निरंजन की रिपोर्ट-
फरवरी महीने के अंत में रूसी सैनिकों ने यूक्रेन पर हमला किया था. इस हमले से कुछ मिनट पहले मध्य यूरोप में 5,800 विंड टरबाइनों से जुड़े एक उपग्रह लिंक ने अचानक काम करना बंद कर दिया. इसका असर यह हुआ है कि टरबाइन घूमते रहे, लेकिन वे तब से ऑटोपायलट मोड पर चल रहे हैं और उन्हें दूर से रीसेट नहीं किया जा सकता है. विंड टरबाइन निर्माता कंपनी एनरकॉन ने बीते मंगलवार को प्रेस के लिए जारी बयान में कहा, "यूक्रेन पर रूसी हमले की शुरुआत के साथ ही संचार सेवाएं लगभग एक साथ ठप हो गईं.”
अभी तक इस खराबी के कारण का पता नहीं चला है. हालांकि, कंपनी ने जर्मनी के फेडरल ऑफिस फॉर इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी (बीएसआई) को इस मामले की सूचना दे दी है. कंपनी का कहना है कि उसकी तरफ से किसी तरह की तकनीकी खराबी नहीं आई है. हालांकि, इस मामले में सवाल पूछे जाने पर न तो एनरकॉन ने और न ही बीएसआई ने किसी तरह का कोई जवाब दिया है.
गौरतलब है कि रूस की सेना यूक्रेन के अंदरूनी हिस्से में प्रवेश कर चुकी है. नागरिकों को निशाना बनाया जा रहा है और यूरोप के सबसे बड़े परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर गोलीबारी की गई है. वहीं, हैकर्स साइबर हमले करके सरकारी वेबसाइटों को निशाना बना रहे हैं. यूक्रेन के बिजली क्षेत्र की सुरक्षा सवालों के घेरे में आ गई है. युद्ध ने रूस और नाटो गठबंधन के बीच तनाव को बढ़ा दिया है. साथ ही, वैश्विक बिजली की आपूर्ति से जुड़ी साइबर सुरक्षा की कमियां भी उजागर हुई हैं.
अमेरिका में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के कंप्यूटर वैज्ञानिक और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ स्टुअर्ट मैडनिक ने कहा, "अगर दुश्मन के विमान आप पर बम गिराएंगे, तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि आपकी सेना उन्हें मार गिराएगी. वहीं, अगर कोई साइबर आतंकवादी किसी ठिकाने या प्रतिष्ठान पर हमला कर रहा है, तो आप अपनी सुरक्षा के लिए सरकार पर भरोसा नहीं कर सकते.”
हैकर्स ने ऊर्जा प्रणालियों को कैसे प्रभावित किया है?
कथित तौर पर रूसी सरकार के समर्थित हैकरों ने 2015 में यूक्रेन के पावर ग्रिड में सेंध लगाई और कंट्रोल सिस्टम को ठप कर दिया था. नतीजा ये हुआ कि राजधानी कीव और देश के पश्चिमी हिस्से में व्यापक तौर पर बिजली कटौती की समस्या पैदा हो गई थी. बिजली ग्रिड पर साइबर हमले का यह पहला मामला था जिसे सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया गया था. तब से दुनिया भर में इस तरह के कई हमले हो चुके हैं.
पिछले साल, रूसी रैंसमवेयर समूह से जुड़े हैकर्स ने अमेरिका के टेक्सास में एक तेल पाइपलाइन को मैनेज करने वाले कम्प्यूटरीकृत उपकरण को निशाना बनाया था. पाइपलाइन का मालिकाना हक कॉलोनियल पाइपलाइन कंपनी के पास है. इस हमले की वजह से कंपनी को अपना काम रोकना पड़ा और फिर से सिस्टम को चालू करने के लिए फिरौती देनी पड़ी.
जर्मन इंजीनियरिंग फर्म सीमेंस ने बिजली, गैस या पानी जैसी चीजों की सप्लाई करने वाली यूटिलिटी कंपनियों के बीच 2019 में एक सर्वे किया था. इस सर्वे में शामिल आधे से अधिक कंपनियों ने साइबर हमले की जानकारी दी. उन्होंने कहा कि इन हमलों की वजह से हर साल कम से कम एक बार उन्हें अपना काम रोकना पड़ा या काम से जुड़े डेटा का नुकसान हुआ.
कंपनियों ने कहा कि हमलों ने उनके काम को पूरी तरह ‘ठप' कर दिया था. इस वजह से बिजली में कटौती करनी पड़ी, उन्हें नुकसान हुआ और पर्यावरणीय आपदाएं हुईं. सर्वे में शामिल एक चौथाई अधिकारियों ने कहा कि उनकी कंपनी पर ऐसे ‘बड़े हमले' हुए जिनमें ‘हैकिंग के तरीके किसी देश ने विकसित किए थे.'
मैनेजमेंट कंसल्टेंसी मैकिन्से की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, ऊर्जा प्रणालियों पर हमले सप्लाई चेन के हर चरण में हो सकते हैं. बिजली बनाने के लिए ज्यादातर जिन बुनियादी ढांचे का इस्तेमाल किया जा रहा है उन्हें साइबर सुरक्षा को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया था. ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइन में सुरक्षा से जुड़ी कमियां हो सकती हैं जिसकी वजह से ग्रिड के कंट्रोल सिस्टम तक हैकर पहुंच सकते हैं. घरों में भी स्मार्ट मीटर और इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ने से सेवाओं को बाधित करना आसान हो सकता है.
अमेरिकी राज्य कोलोराडो में डेनवर विश्वविद्यालय के पर्यावरण कानून विशेषज्ञ डॉन स्मिथ ने कहा, "ऐसे हजारों तरीके हैं जिनसे हैकर निजी ऊर्जा कंपनियों या ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में सेंधमारी कर सकते हैं.” स्मिथ ने ऊर्जा क्षेत्र में डिजिटल सुरक्षा पर शोध किया है.
संचालन को बाधित करने और ब्लैकआउट जैसी स्थिति पैदा करने के साथ-साथ साइबर हमले उपकरण और बुनियादी ढांचे को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं. मैडनिक ने कहा कि अमेरिका की सरकारी प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिकों ने दिखाया कि इलेक्ट्रॉनिक हमले किस तरह उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. उन्होंने कहा, "अगर आपके जनरेटर में विस्फोट हो जाता है या टरबाइन कंट्रोल से बाहर होकर घूमते हुए अलग हो जाते हैं, तो आपको इसे बदलना होगा. यहां हम ऐसे उपकरणों के बारे में बात कर रहे हैं जिन्हें बदलने में महीनों नहीं, तो सप्ताह लगते ही हैं.”
क्या नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों को साइबर हमलों का ज्यादा खतरा है?
बुनियादी स्तर पर, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जैसे सौर और विंड फार्म को पारंपरिक जीवाश्म ईंधन संयंत्रों की तुलना में साइबर हमलों का ज्यादा खतरा है, क्योंकि वे इंटरनेट से अधिक जुड़े हुए हैं.
जीवाश्म ईंधन वाले बिजली संयंत्र केंद्रीकृत होते हैं. वहीं, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत वाले संयंत्र बड़े क्षेत्रों और सिस्टम में फैले होते हैं. हालांकि, साइबर हमले के दौरान इसका यह फायदा हो सकता है कि नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्र का कुछ ही हिस्सा प्रभावित हो, लेकिन इनकी ज्यादा कमियां भी उजागर होती हैं.
जिन जगहों पर नवीकरणीय ऊर्जा से बिजली का निर्माण होता है वे आबादी वाली जगहों से दूर होती हैं. ऐसे में यहां उत्पन्न होने वाली बिजली के इस्तेमाल के लिए ट्रांसमिशन लाइनों की जरूरत बढ़ जाती है और उपकरणों के कई हिस्सों को एक साथ जोड़ा जाता है.
फिर भी, विशेषज्ञों का कहना है कि जीवाश्म ईंधन वाले बिजली संयंत्रों में कई तरह की कमियां हैं. अधिकांश कोयला, तेल और गैस संयंत्र नवीकरणीय ऊर्जा संयंत्रों की तुलना में बहुत पुराने हैं. इन जीवाश्म ईंधन वाले संयंत्रों को इंटरनेट से जोड़ दिया गया है, लेकिन इन्हें साइबर हमलों से बचाने की कोई स्पष्ट योजना नहीं है.
कई देशों में, जीवाश्म ईंधन वाले संयंत्र के बुनियादी ढांचे का निर्माण कई दशकों पहले किया गया था. मैडनिक कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि साइबर हमले के खिलाफ उनके पास ज्यादा सुरक्षा थी. उन्होंने शायद डाकुओं से संयंत्र को बचाने के लिए सुरक्षा उपाय अपनाए थे, लेकिन साइबर हमले के खिलाफ नहीं.”
सरकार कैसे सुरक्षा कर सकती है?
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं तेजी से नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही हैं, लेकिन उनके पास अपने बिजली ग्रिड को डिजिटल खतरों से बचाने के लिए ठोस योजनाओं की कमी है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में, कोई संघीय साइबर सुरक्षा रणनीति नहीं है. डॉन स्मिथ ने कहा, "एक ऐसे देश में इसका कोई मतलब नहीं है जो पूरी तरह एक साथ जुड़ा हुआ है.”
अमेरिका में एक राज्य से दूसरे राज्य में बिजली भेजी जाती है. वहीं, यूरोपीय संघ में एक देश से दूसरे देश में बिजली भेजी जाती है. यहां सेवा देने वाली अलग-अलग कंपनियां अपने पड़ोसियों की कमजोरियों के संपर्क में आती हैं. स्मिथ कहते हैं, "ऊर्जा राज्य या देश की सीमाओं पर ध्यान नहीं देती है. जहां भी पाइपलाइन और ट्रांसमिशन लाइनें हैं वे वहां जाती हैं.”
हाल के समय में ऊर्जा से जुड़ी बुनियादी संरचना को लगातार बेहतर बनाया जा रहा है और हैकर्स बुनियादी ढांचे तक पहुंच के लिए लगातार नए तरीके खोज रहे हैं, इसलिए डिजिटल सुरक्षा के लिए कोई एक खाका तैयार नहीं किया गया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार, कंपनियां और व्यक्ति सभी अपने स्तर पर बेहतर सुरक्षा के लिए कदम उठा सकते हैं. उदाहरण के लिए, कंपनियां साइबर सिक्योरिटी मैनेजर नियुक्त कर सकती हैं जो कमियों की जांच करने और उन्हें दूर करने वाली तकनीक ईजाद कर सकें. सरकारें यूटिलिटी कंपनियों के लिए न्यूनतम साइबर सुरक्षा मानकों को लागू कर सकती हैं और इसकी नियमित तौर पर निगरानी कर सकती हैं. ऊर्जा कंपनियों के कर्मचारी नियमित रूप से अपने पासवर्ड बदल सकते हैं और मैलवेयर के लिए अपने उपकरणों की जांच कर सकते हैं. (dw.com)
ऑस्ट्रेलिया ने कहा है कि रूस पर भारत के रुख को क्वॉड सदस्यों ने स्वीकार किया है और कोई इस बात से नाखुश नहीं है. भारत के अलावा ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान क्वॉड के सदस्य हैं.
भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त बैरी ओ फैरल ने पत्रकारों को बताया कि क्वॉड सदस्य जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया इस बात को स्वीकार करते हैं कि रूस पर उनसे अलग है लेकिन इस बात से कोई नाराज नहीं है क्योंकि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यूक्रेन में जारी युद्ध को खत्म करने के लिए अपनी तरफ से कोशिशें कर रहे हैं.
बैरी ओ फैरल ने कहा, "क्वॉड देशों ने भारत के रुख को स्वीकार किया है. हम समझते हैं कि हर देश के अपने द्विपक्षीय संबंध होते हैं और भारतीय विदेश मंत्रालय व प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणियों से यह स्पष्ट है कि उन्होंने युद्ध खत्म करने के लिए अपने संपर्कों का इस्तेमाल किया है और कोई देश इससे नाखुश नहीं है.”
भारत का रुख
क्वॉड सदस्यों में भारत ही ऐसा देश है जिसने यूक्रेन पर हमले को लेकर रूस की निंदा नहीं की है. इसके उलट भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस विरोधी प्रस्तावों पर मतदान में हिस्सा नहीं लिया, जिसकी रूस ने तारीफ की थी. कई देशों ने भारत पर रूस के खिलाफ रुख अपनाने का दबाव बनाने का भी प्रयास किया लेकिन भारत रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को कायम रखे हुए है व उससे तेल आदि खरीदने का संकेत दे चुका है.
भारत की नजर सस्ते रूसी तेल पर
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच सोमवार को एक वर्चुअल मुलाकात होनी है, जिसमें दोनों नेता यूक्रेन की स्थिति और परिणामों पर चर्चा करेंगे. शुक्रवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि यूक्रेन और हिंद-प्रशांत पर उसके असर के बारे में चर्चा होगी.
जापान ने भी माना
इससे पहले भारत के रुख को जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा के भारत दौरे के दौरान भी समर्थन मिला. नरेंद्र मोदी और फूमियो किशिदा ने यूक्रेन युद्ध को रोकने और बातचीत से मसले सुलझाने का संयुक्त आग्रह किया. जापान ने न सिर्फ रूस की कड़ी निंदा की है बल्कि उस पर प्रतिबंध भी लगाए हैं, जो भारत के रुख के एकदम उलट है.
यूक्रेन युद्ध के बीच जापान के प्रधानमंत्री का भारत दौरा
मोदी से मुलाकात के बाद किशिदा ने कहा, "हम दोनों इस बात की पुष्टि करते हैं कि मौजूदा स्थिति में बलपूर्वक परिवर्तन को किसी भी क्षेत्र में स्वीकार नहीं किया जा सकता और यह आवश्यक है कि विवादों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के आधार पर शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाया जाए.”
जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के नेताओं ने इस महीने की शुरुआत में भारत के प्रधानमंत्री के साथ एक बैठक में यूक्रेन युद्ध पर चर्चा की थी. माना जाता है कि इस बैठक में तीनों नेताओं ने मोदी को अपने जैसा रुख अपनाने के लिए मनाने की कोशिश की थी, जिसमें वे नाकाम रहे.
भारत सैन्य और अन्य जरूरतों के लिए काफी हद तक रूस पर निर्भर है. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत की कुल हथियार खरीद का 60 प्रतिशत से ज्यादा रूस से आता है. अब जबकि भारत चीन के साथ संबंधों में ऐतिहासिक तनाव झेल रहा है तो उसकी हथियारों की जरूरत और बढ़ गई है और ऐसे में रूस के साथ संबंध बनाए रखना उसकी सामरिक शक्ति के लिए जरूरी माना जा रहा है.
वीके/सीके (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
अमेरिका ने औपचारिक रूप से रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ म्यांमार सेना के अत्याचारों को नरसंहार घोषित करने का फैसला किया है. इससे म्यांमार की सैन्य सत्ता पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने की उम्मीद है.
एक अमेरिकी अधिकारी ने रविवार को कहा कि अमेरिका ने रोहिंग्या अल्पसंख्यकों पर म्यांमार की लंबे समय से चली आ रही सैन्य कार्रवाई को नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन सोमवार को वॉशिंगटन में होलोकॉस्ट संग्रहालय में एक कार्यक्रम के दौरान इसकी आधिकारिक घोषणा करेंगे. संग्रहालय म्यांमार में रोहिंग्याओं के शोषण को दिखाने के लिए "नरसंहार के लिए बर्मा का पथ" नामक एक प्रदर्शनी की मेजबानी कर रहा है.
ब्लिंकेन ने पिछले साल दिसंबर में मलेशिया की यात्रा के दौरान कहा था कि अमेरिका "गंभीरता से विचार" कर रहा था कि क्या रोहिंग्या के दमन को "नरसंहार" के रूप में माना जा सकता है.
2018 में रखाइन में संयुक्त राष्ट्र की ओर से भेजे गए तथ्यखोजी दल ने रिपोर्ट दी थी कि 2017 में रखाइन प्रांत में चलाए गए सैन्य अभियान को "नरसंहार के इरादे" की तरह अंजाम दिया गया.
अनिश्चितता के दौर से गुजरते भारत में रोहिंग्या शरणार्थी
वर्तमान में लगभग साढ़े आठ लाख रोहिंग्या मुसलमानों ने पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ले रखी है. वहां से भागे हुए लोगों का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमानों का नरसंहार किया गया, महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और उनके घरों को लूटा गया. हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में भी इस मामले की सुनवाई चल रही है.
नरसंहार घोषित करने का मतलब यह नहीं है कि म्यांमार के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. रोहिंग्या के खिलाफ भयानक अभियान के कारण, म्यांमार के सैन्य नेतृत्व पर पहले ही कई प्रतिबंध लगाए जा चुके हैं. इनमें से कुछ प्रतिबंध तब से लागू हैं जब सैन्य जुंटा ने तख्ता को पलटा नहीं था.
नरसंहार की आधिकारिक घोषणा के बाद कुछ सहायता प्रतिबंधित हो सकती है और कुछ नए जुर्माने लगाए जा सकते हैं. वॉशिंगटन को उम्मीद है कि उसके फैसले से सैन्य जुंटा को जवाबदेह ठहराने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को मजबूती मिलेगी.
विदेश विभाग के एक अधिकारी ने रॉयटर्स के हवाले से कहा, "इससे उनके लिए (सैन्य जुंटा) रोहिंग्या का शोषण करना मुश्किल हो जाएगा."
मानवाधिकार समूह रिफ्यूजीज इंटरनेशनल ने अमेरिका के इस कदम की सराहना की है, समूह ने एक बयान में कहा कि "अमेरिका द्वारा म्यांमार में नरसंहार की घोषणा एक स्वागत योग्य और बहुत महत्वपूर्ण कदम है."
सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए अमेरिकी सीनेटर सेन जेफ मैर्केले ने कहा, "मैं रोहिंग्या के खिलाफ अत्याचारों को नरसंहार के रूप में मान्यता देने के लिए बाइडेन प्रशासन की सराहना करता हूं."
एए/सीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
नयी दिल्ली, 21 मार्च । ‘कतर एयरवेज़’ के दिल्ली से दोहा जा रहे विमान के ‘कार्गो होल्ड’ में से धुआं निकलने के संकेत के बाद, उसे सोमवार को कराची में आपात स्थिति में उतारा गया। विमान कम्पनी ने यह जानकारी दी।
विमान कम्पनी ने एक बयान में बताया कि विमान कराची में सुरक्षित उतर गया है, जहां आपात सेवाएं उसकी जांच कर रही हैं। सभी यात्रियों को सीढ़ियों के जरिए विमान से उतार दिया गया है।
कम्पनी ने कहा कि घटना की जांच जारी है और यात्रियों को दोहा तक पहुंचाने के लिए राहत उड़ान की व्यवस्था की जा रही है।
विमान कम्पनी ने कहा, ‘‘ हमारे यात्रियों को हुई असुविधा के लिए हम माफी मांगते हैं, आगे की यात्रा के लिए उनकी सहायता की जाएगी।’’
‘कतर एयरवेज़’ ने कहा, ‘‘ 21 मार्च को दिल्ली से दोहा जा रहे विमान संख्या क्यूआर579 के कार्गो होल्ड में से धुआं निकलने के संकेत के बाद आपात स्थिति की घोषणा की गई और उसे कराची में सुरक्षित उतार लिया गया।’’(भाषा)
वेलिंग्टन, 21 मार्च। न्यूजीलैंड के तट पर तूफानी मौसम के कारण एक नौका के डूबने से चार लोगों की मौत हो गई और एक अन्य व्यक्ति लापता है। नौका में 10 लोग सवार थे।
पुलिस ने सोमवार को बताया कि उत्तरी तट पर नॉर्थ केप में रविवार की रात हुए हादसे में पांच लोगों को बचाया गया है। सोमवार को सुबह हेलीकॉप्टर की मदद से दो शव पानी में से निकाले गए। तीसरा शव नौका द्वारा चलाए गए तलाश अभियान में बरामद हुआ।
उन्होंने बताया कि बचाए गए पांच लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां प्राथमिक उपचार देने के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई।
न्यूजीलैंड के समुद्री बचाव समन्वय केन्द्र के प्रवक्ता निक बर्ट ने बताया कि आपात सेवाओं को रात आठ बजे सक्रिय किया गया। एक हेलीकॉप्टर सबसे पहले रात 11 बजकर 40 मिनट पर मौके पर पहुंचा। इसके बाद देर रात ढाई बजे नौका के डूबने की पुष्टि हुई।
बर्ट ने बताया कि सोमवार को तलाश अभियान नौसेना के गश्ती दल के समन्वय से चलाया जा रहा है, जिसमें हेलीकॉप्टर और जमीनी दल की मदद से तटरेखा क्षेत्र में खोज की जा रही है।
समाचार वेबसाइट ‘स्टफ’ के अनुसार, मछुआरों की यह नौका उत्तरी बंदरगाह मानगोनुई से बृहस्पतिवार को रवाना हुई थी। नौका पर एक कैप्टन, चालक दल का एक सदस्य और आठ यात्री सवार थे। हादसे में नौका का कैप्टन बच गया है। (एपी)
वाशिंगटन, 21 मार्च। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का प्रशासन म्यांमा में रोहिंग्या मुसलमानों पर वर्षों से हो रहे अत्याचारों को ‘नरसंहार’ घोषित करने की तैयारी कर रहा है। अमेरिकी अधिकारियों ने रविवार को यह जानकारी दी।
अधिकारियों ने नाम न उजागर करने की शर्त पर बताया कि विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की सोमवार को यूएस होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम में होने वाले एक कार्यक्रम में रोहिंग्या मुसलमानों के दमन को ‘नरसंहार’ घोषित करने की योजना है।
इस घोषणा का मकसद म्यांमा की सैन्य सरकार के खिलाफ नए कदम नहीं उठाना है, क्योंकि वह पहले से ही रोहिंग्या जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ अभियान को लेकर अमेरिका के कई प्रतिबंधों का सामना कर रही है। म्यांमा की सेना ने साल 2017 में पश्चिमी रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ अभियान चलाया था।
हालांकि, अमेरिका के इस कदम से म्यांमा सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ सकता है, जो द हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत में पहले से ही नरसंहार के आरोपों का सामना कर रही है। मानवाधिकार समूह और सांसद अमेरिका के पूर्ववर्ती ट्रंप प्रशासन और मौजूदा बाइडन प्रशासन, दोनों पर ही रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों को नरसंहार घोषित करने का दबाव बनाते रहे हैं। (एपी)