अंतरराष्ट्रीय
-सरोज सिंह
वहाँ हीट वेव यानी ऐसी लू चली कि कई लोग गर्मी की वजह से मर रहे हैं.
मंगलवार को वहाँ 49.5 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया. लगातार तीसरे दिन वहाँ गर्मी के, एक के बाद एक, सारे रिकॉर्ड टूट गए.
इससे पहले कनाडा में 45 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा तापमान कभी रिकॉर्ड नहीं किया गया था.
एनवायरन्मेंट कनाडा के वरिष्ठ जलवायु विज्ञानी डेविड फ़िलिप का कहना है, "अब से पहले कनाडा को ठंडे मौसम के लिए जाना जाता था. कनाडा दुनिया का दूसरा ठंडा देश है और यहाँ बर्फबारी भी जम कर होती है."
ऐसी रिकॉर्डतोड़ गर्मी के पीछे जानकार 'हीट डोम' को वजह बता रहे हैं, जो सदी में एक बार आता है. 'हीट डोम' गर्म हवाओं का एक पहाड़ होता है, जो बहुत तेज़ हवा की लहरों के उतार चढ़ाव से बनता है. गर्म हवा वातावरण के ऊपर की ओर फैलती है और उच्च दवाब, बादलों को डोम से दूर धकेलता है.
कनाडा के अलावा उत्तर पश्चिम अमेरिका में भी इस बार रिकॉर्डतोड़ गर्मी पड़ रही है.
अमेरिका के नेशनल वेदर सर्विस ने कहा है कि सोमवार को उत्तर पश्चिम अमेरिका के पोर्टलैंड, ओरेगन में तापमान 46.1 डिग्री सेल्सियस पहुँच गया और सिएटल, वाशिंगटन में 42.2 डिग्री सेल्सियस. जब से अमेरिका में तापमान का रिकॉर्ड रखना शुरू किया गया है, तब से इतना अधिक तापमान पहले कभी रिकॉर्ड नहीं किया गया.
पोर्टलैंड में तो स्ट्रीट कार सर्विस ही बंद करनी पड़ी, क्योंकि गर्मी की वजह से केबल की तार भी ख़ुद-ब-खुद पिघलने लगी. भारत की बात करें तो चूरू और फलोदी में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के आस-पास चला जाता है.
जब गर्मी से केबल की तार तक पिघल सकती हैं तो ज़रा सोचिए मानव शरीर कैसे इतनी गर्मी को झेलता होगा?
सवाल ये भी उठता है कि हमारा शरीर बाहर का कितना अधिक तापमान झेल सकता है?
राजस्थान मेडिकल एंड हेल्थ के उदयपुर जोन के जॉइंट डायरेक्टर डॉक्टर जुल्फिकार अहमद क़ाज़ी के अंतर्गत उदयपुर समेत 6 ज़िलों के अस्पताल आते हैं. वहाँ हीट स्ट्रोक का क़हर काफ़ी रहता है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि "चाहे गर्मी हो या सर्दी हमारे शरीर के अंदर का तंत्र हमेशा शरीर का तापमान 37.5 डिग्री सेल्सियस बनाए रखने के लिए काम करता है.
दिमाग़ का पीछे का हिस्सा जिसे 'हाइपोथैलेमस' कहते हैं, वो शरीर के अंदर तापमान को रेग्यूलेट करने के लिए ज़िम्मेदार होता है. पसीना निकलना, सांस लेना (मुंह खोल कर), दिक़्क़त होने पर खुली हवादार जगह पर जाना, ये सब एक तरह से शरीर के अंदर बने वो सिस्टम है जिससे शरीर अपना तापमान नियंत्रित रखता है. अक़्सर तापमान बढ़ने पर हमारी धमनियाँ ( ब्लड वेसल्स) भी चौड़ी हो जाती हैं ताकि खून ठीक से शरीर के हर हिस्से तक पहुँच सके.
मानव शरीर 37.5 डिग्री सेल्सियस में काम करने के लिए बना है. लेकिन उससे दो-चार डिग्री ऊपर और दो-चार डिग्री नीचे तक के तापमान को एडजस्ट करने में शरीर को दिक़्क़त नहीं आती.
लेकिन किसी भी तापमान पर शरीर ठीक से काम करे, ये केवल बाहर के तापमान पर निर्भर नहीं करता. इसके साथ कई और बातें हैं जिन पर ये निर्भर करता है.
अमेरिका की इंडियाना विश्विद्यालय के प्रोफ़ेसर ज़ैकरी जे श्लैडर कहते हैं, इंसानी शरीर किस हद तक गर्मी बर्दाश्त कर सकता है, इसका सीधा जवाब नहीं हो सकता.
प्रोफ़ेसर ज़ैकरी ने थर्मल स्ट्रेस के बारे में काफ़ी रिसर्च की है. बीबीसी को भेजे ईमेल जवाब में वो कहते हैं कि इस सवाल का जवाब बाहर के परिवेश के अलावा कई और बातों पर निर्भर करता है.
" मसलन कितनी देर आदमी उस तापमान में एक्सपोज़ है, मौसम में आर्द्रता कितनी है, शरीर पसीना/पानी को कैसे निकाल रहा है, शारीरिक गतिविधि का स्तर कैसा है, इंसान ने कैसे कपड़े पहने है, अनुकूलन की स्थिति क्या है आदि...ये तमाम बातें भी शरीर को बढ़ते तापमान के साथ एडजस्ट करने में मदद करती हैं."
अक्सर गर्मी के साथ मौसम में आर्द्रता यानी ह्यूमिडिटी भी बढ़ जाती है, जिससे पसीना ज़्यादा निकलता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि शरीर गर्मी से छुटकारा पाने के लिए पसीने के वाष्पीकरण पर बहुत अधिक निर्भर करता है. पसीने का वाष्पीकरण तापमान पर निर्भर नहीं है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हवा में कितना पानी है"
डॉक्टर अहमद कहते हैं कि आर्द्रता ज़्यादा होने पर सांस लेने संबंधी दिक़्क़तें ज़्यादा बढ़ जाती हैं. पसीना भी ज़्यादा आता है और शरीर में पानी की मात्रा तेज़ी से कम होने लगती है.
जब शरीर लम्बे समय तक सूर्य की किरणों को सीधे झेलती है तो शरीर में पानी की कमी होने लगती है. पसीना और पेशाब के रास्ते शरीर से पानी निकलता है. अगर बाहर से पानी/तरल पदार्थ शरीर के अंदर नहीं जाता तो शरीर का तापमान सामान्य ( 37.5 डिग्री ) से ऊपर की ओर बढ़ने लगता है. इस वजह से बुख़ार जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. कभी-कभी उससे भी भयानक स्थिति पैदा हो जाती है. इस अवस्था को हाइपरथर्मिया कहते हैं.
डॉक्टर अहमद कहते हैं, "अगर बाहर का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता है तो मानव शरीर कुछ हद तक इसे बर्दाश्त करने के लिए तैयार रहता है. लेकिन मुश्किल तब आती है जब अचानक से तापमान बढ़ जाता है."
हीट स्ट्रोक क्या है?
सांसें तेज़ चलने लगे
पसीना बहुत ज़्यादा आने लगे
शरीर तपने लगे
पल्स रेट 85 से 100 के बीच हो जाए
ऐसे हालात को डॉक्टर 'हीट स्ट्रोक' कहते हैं.
जब मरीज़ की स्थिति इससे ज़्यादा ख़राब हो जाए - जिसमें ऊपर लिखी दिक़्क़तों के अलावा मांसपेंशियों में दर्द और चमड़ी का सिकुड़ना जैसी नौबत आ जाए तो उस स्थिति को 'हीट एक्ज़ॉशन' कहते हैं.
लंबे समय तक अत्याधिक गर्मी झेलने पर इस तरह दिक़्क़त बढ़ जाती है. उम्रदराज़ लोग, छोटे बच्चे और पहले से दूसरी बीमारी (जैसे किडनी, हार्ट, डायबिटीज़) झेल रहे लोगों में ये दिक़्क़त कई बार जानलेवा हो सकती हैं और कई अंग काम करना बंद कर देते हैं.
बचाव के तरीके
हीट स्ट्रोक के शिकार मरीज़ की हालात पर निर्भर करता है कि उसका इलाज कैसे होगा. इसमें लक्षण के हिसाब से उपचार की ज़रूरत होती है.
लेकिन शुरुआत में लक्षण दिखते ही मरीज़ के शरीर को ठंडा करने की कोशिश की जानी चाहिए. पहले पसीना पोछें. फिर पूरे शरीर को ठंड़े कपड़े से पोछने के इंतजाम किए जाने चाहिए जिसे कोल्ड स्पॉन्जिंग भी कहते हैं. इसके बाद ज़रूरत के हिसाब से ओआरएस का घोल पिलाएं.
अगर हालात फिर भी ना सुधरे तो ड्रिप लगाने की ज़रूरत हो सकती है. इसलिए तुंरत डॉक्टर की सलाह लें. नहीं तो जान जाने का ख़तरा हो सकता है.
हीट वेव क्या है?
अमूमन ऐसी नौबत तब आती है जब इलाके में हीट वेव का प्रकोप होता है. गर्मी में मौसम विभाग की तरफ़ से इस तरह के हीट वेव की चेतावनी पहले ही जारी कर दी जाती है.
रीजनल मीटियोरॉलॉजी डिपार्टमेंट, नई दिल्ली में वैज्ञानिक डॉक्टर कुलदीप श्रीवास्तव कहते हैं, किसी भी जगह पर 'हीट वेव' घोषित करने के दो पैमाने होते हैं.
पहला - तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर होना चाहिए.
दूसरा - पिछले पाँच दिनों का तापमान औसत तापमान से 4.5 डिग्री सेल्सियस ज़्यादा हो.
ये दोनों पैमाने जिस दिन के तापमान में फिट बैठते हैं तो उस दिन के लिए मौसम विभाग 'हीट वेव' की चेतावनी जारी करता है. अगर तापमान 45 डिग्री के पार चला जाए, तो दोनों पैमानों की ज़रूरत नहीं होती, मौसम विभाग उसे 'हीट वेव' करार दे सकता है.
अगर दिन का तापमान पिछले चार दिन के तापमान से 6.5 डिग्री ज़्यादा हो जाए तो उस दिन 'सीवियर हीट वेव' की चेतावनी जारी की जाती है.
धरती पर सबसे अधिक तापमान
कनाडा और उत्तर पश्चिम अमेरिका में आजकल जो तापमान है, उतना तापमान भारत सहित दुनिया के दूसरे देशों में पहले भी देखा गया है.
कैलिफोर्निया की डेथ वैली में 16 अगस्त 2020 को 55 डिग्री सेल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया था.
पिछले साल मापे गए तापमान से पहले, दो तापमान इस 'रिकॉर्ड' श्रेणी में दर्ज है -
पहला - फरनेस क्रीक नाम की जगह पर 1913 में 56.6 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज़ किया गया
दूसरा ट्यूनीशिया में 1931 में 55 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज़ किया गया.
लेकिन इन दोनों ही रीडिंग्स को लेकर विशेषज्ञों की राय सहमति वाली नहीं है.
'बीबीसी वेदर' के साइमन किंग कहते हैं, "आधुनिक समय के वैज्ञानिक और मौसम विशेषज्ञ मानते हैं कि ये दोनों ही रीडिंग्स सही नहीं थी.
जब इस तरह के उच्च तापमान की जानकारी रहती है तब विश्व मौसम संगठन (डब्लूएमओ) अलग-अलग कई तरीक़ों से इसकी पुष्टि करता है."
डब्लूएमओ से इस बारे में हमने सम्पर्क साधने की कोशिश की है. लेकिन उनका जवाब नहीं आया है.
यह भी दलील दी जाती है कि दूसरी जगहों पर डेथ वैली से भी ज़्यादा तापमान हो सकता है लेकिन चूँकि वहाँ कोई वेदर स्टेशन नहीं है, इसलिए उसके बारे में मौसम पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों को पता नहीं चल पाता है. (bbc.com)
अन्वेषा भौमिक
कोलकाता, 1 जुलाई | म्यांमार की सैन्य सरकार ने बढ़ती वैश्विक आलोचना को ध्यान में रखते हुए पिछले दो दिनों में 2,000 से अधिक कैदियों को रिहा किया है।
शासन के प्रवक्ता मेजर जनरल जॉ मिन टुन के अनुसार, रिहा किए गए अधिकांश लोगों पर शासन विरोधी प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था।
उन्होंने गुरुवार को बर्मी मीडिया को बताया, कुल 2,296 लोगों को रिहा किया गया है। उन्होंने विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया, लेकिन वे प्रमुख भूमिकाओं में नहीं थे। उन्होंने हिंसक कृत्यों में भाग नहीं लिया।
लेकिन प्रमुख एक्टिविस्ट और नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के सांसद रिहा होने वालों में शामिल नहीं हैं।
मानवाधिकार समूह असिस्टेंस एसोसिएशन फॉर पॉलिटिकल प्रिजनर्स (एएपीपी) के अनुसार, शासन ने मंगलवार को 6,421 लोगों को हिरासत में लिया था।
एएपीपी पदाधिकारियों ने कहा कि 4,000 से अधिक राजनीतिक कैदी अभी भी नजरबंद हैं।
यांगून की कुख्यात इनसेन जेल से म्यांमार नाउ की रिपोर्टर मा के जोन नेवे सहित 721 बंदियों को रिहा कर दिया है, जो चार महीने से अधिक समय से हिरासत में थे।
उन्हें फरवरी के अंत में यांगून में एक विरोध प्रदर्शन को कवर करते हुए गिरफ्तार किया गया था और उन पर उकसाने का आरोप लगाया गया था।
उन्होंने एफबी मैसेंजर पर आईएएनएस को बताया, मुझे रिलीज के लिए किसी प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर नहीं करना पड़ा।
पिछले दो दिनों में इनसेन से रिहा किए गए अन्य पांच पत्रकारों में 7-डे न्यूज के को आंग ये को, म्यांमार नाउ के के जोन नवे, फ्रीलांस एडिटर को बनयार ऊ, फ्रीलांस रिपोर्टर सो यारजार तुन, म्यांमार प्रेसफोटो एजेंसी के ये मायो खांट और जीकवत मीडिया से हेन पाए जॉ शामिल हैं।
इन सभी को फरवरी के अंत में यांगून में शासन विरोधी प्रदर्शनों को कवर करते हुए हिरासत में लिया गया था और उन पर उकसाने का आरोप लगाया गया था।
फ्रंटियर म्यांमार के प्रबंध संपादक डैनी फेनस्टर, थानलिन पोस्ट के प्रधान संपादक मा तू तू था, मिज्जिमा न्यूज एजेंसी के सह-संस्थापक मा थिन थिन आंग और मायितकीना जर्नल के रिपोर्टरों सहित कई पत्रकार अभी भी जेल में हैं।
बुधवार और गुरुवार को पाथेन, दावाई, श्वेबो, लैशियो और अन्य जगहों की जेलों ने भी बंदियों को रिहा किया।
सरकार विरोधी सक्रियता के लिए उकसाने के आरोप में 24 मशहूर हस्तियों के खिलाफ जुंटा ने आरोप हटा दिए थे, जिसके बाद अब कैदियों को रिहा करने का कदम उठाया गया है।
मार्च के अंत में, शासन ने 628 कथित प्रदर्शनकारियों को रिहा कर दिया था।
एएपीपी ने एक बयान में कहा कि हिरासत में लिए गए लोगों में से किसी को भी पहली बार में गिरफ्त में नहीं लिया जाना चाहिए था और पूछा कि क्या और अधिक निर्दोष नागरिकों को हिरासत में लिया जाएगा और उन लोगों के बारे में जिन्हें अभी भी रखा जा रहा है, जिनमें से कई को प्रताड़ित किया जा रहा है।
एएपीपी के संयुक्त सचिव यू बो ची ने आईएएनएस से कहा, किसी भी रिलीज का लक्ष्य वास्तविक सुधार होना चाहिए और इसमें डाव आंग सान सू की की रिहाई शामिल होनी चाहिए। हिंसा खत्म होनी चाहिए और यातना और हत्या करने वालों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इसे ढील के रूप में स्वीकार नहीं करना चाहिए और सभी राजनीतिक बंदियों की रिहाई और लोकतंत्र की वापसी के लिए दबाव जारी रखना चाहिए।
रिहाई का सिलसिला पिछले हफ्ते तब शुरू हुआ, जब आंग सान सू की के मीडिया प्रमुख यू जॉ हते को पांच महीने की हिरासत के बाद रिहा कर दिया गया।(आईएएनएस)
-सुमी खान
ढाका, 2 जुलाई | ढाका के गुलशन इलाके में 1 जुलाई, 2016 की देर शाम पांच युवा उग्रवादियों ने प्रवासियों के लोकप्रिय स्थल होली आर्टिसन बेकरी में धावा बोल दिया था और 20 खाने वालों, दो पुलिसकर्मियों और दो कर्मचारियों की हत्या कर दी। अगली सुबह सेना के पैरा-कमांडो ने उग्रवादियों को गोली मार दी।
पांच साल बाद, सात दोषियों की मौत के संदर्भ की कागजी कार्रवाई अब तैयार है, लेकिन चल रहे कोविड-19 महामारी के कारण सुनवाई शुरू नहीं हुई है।
पिस्तौल, सब-मशीन गन, हेलिकॉप्टर और ग्रेनेड से लैस नव-जेएमबी उग्रवादियों ने रेस्तरां के कर्मचारियों और मेहमानों सहित लगभग 40 लोगों को बंधक बना लिया था। भोजन करने वालों में, उन्होंने एक भारतीय लड़की, नौ इतालवी, सात जापानी, एक बांग्लादेशी मूल के अमेरिकी और दो बांग्लादेशियों को मार डाला।
दो पुलिस अधिकारी - बनानी पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी सलाहुद्दीन अहमद और रबीउल करीम हमलावरों को लेने की कोशिश में मारे गए।
सेना के एक मिशन 'थंडरबोल्ट' में, पैरा-कमांडो ने 13 बंधकों को बचाया, जिसमें महिलाएं और बच्चे शामिल थे, और रात भर की घेराबंदी को समाप्त करने के लिए सभी पांच हमलावरों को मार डाला, जिसने दुनिया को चौंका दिया और रमजान के दौरान शुक्रवार को आया।
इस घटना ने बांग्लादेश में आतंकवाद की धारणा को बदल दिया, यह दर्शाता है कि कैसे संपन्न परिवारों के शिक्षित युवाओं को भी इस सबसे जघन्य अपराध में फंसाया जा सकता है।
हमले के मद्देनजर, बांग्लादेश ने संकट से निपटने के लिए संसाधनों को स्थानांतरित कर दिया और आतंकवाद विरोधी अभियान तेज कर दिया गया। हमले के पीछे के अधिकांश मास्टरमाइंडों सहित दर्जनों आतंकवादी मारे गए या गिरफ्तार किए गए।
27 नवंबर, 2019 को एक आतंकवाद विरोधी न्यायाधिकरण ने हमले के लिए प्रतिबंधित नव-जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (नियो-जेएमबी) के सात आतंकवादियों को मौत की सजा सुनाई।
न्यायाधीश मोहम्मद मोजीबुर रहमान ने कहा, आतंकवाद के पागल, क्रूर और क्रूर पक्ष की घृणित अभिव्यक्ति के कारण हमलावर दया के योग्य नहीं हैं।
उन्होंने कहा, सशस्त्र आतंकवादियों ने बच्चों के सामने हत्याओं को अंजाम दिया।
आतंकवादियों ने उनकी मौत की पुष्टि के लिए गतिहीन शवों को काट दिया। बेकरी अचानक मौत की घाटी में बदल गई।
उन्होंने कहा कि यह हमला धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश के चरित्र हनन का प्रयास था और इसने विदेशियों को देश में असुरक्षित महसूस कराया।
मौत की सजा पाए सात दोषियों में जहांगीर हुसैन उर्फ राजीव गांधी, रकीबुल हसन रेगन, असलम हुसैन उर्फ रशीदुल इस्लाम राश, अब्दुस साबर खान उर्फ सोहेल महफूज, हदीसुर रहमान सागर, शरीफुल इस्लाम खालिद उर्फ खालिद और मामुनूर राशिद रिपन हैं। एक अन्य आरोपी मिजानूर उर्फ बोरो मिजान को बरी कर दिया गया, क्योंकि उसकी संलिप्तता साबित नहीं हो सकी। (आईएएनएस)
काबुल, 1 जुलाई | अफगानिस्तान के बल्ख प्रांत के कलदार और शोटेर्पा जिलों में तालिबान के अड्डे पर हुए हवाई हमले में कुल 33 आतंकवादी मारे गए। सेना के एक प्रवक्ता ने गुरुवार को यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने प्रवक्ता के हवाले से कहा कि एक गुप्त सूचना पर कार्रवाई करते हुए लड़ाकू विमानों ने बुधवार दोपहर अशांत जिलों के कुछ हिस्सों में तालिबान को निशाना बनाया, जिसमें 33 विद्रोही मारे गए और 19 अन्य घायल हो गए।
हवाई हमले के दौरान भारी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद भी नष्ट किया गया।
1 मई को अफगानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना की वापसी की शुरूआत के बाद से तालिबान आतंकवादियों ने 70 से अधिक जिलों पर कब्जा कर लिया है। (आईएएनएस)
लंदन, 1 जुलाई | भारत और नेपाल में कोविड-19 रोगियों में ब्लैक फंगस संक्रमण के मामलों में तेजी से वृद्धि के बीच, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने गुरुवार को इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा की कीमतों को कम करने का आह्वान किया है। यह जानकारी मीडिया रिपोर्टो में दी गई। कैलिफोर्निया स्थित दवा निर्माता गिलियड साइंसेज द्वारा विकसित, एम्बिसोम एक लिपिड-आधारित एम्फोटेरिसिन है, जिसका उपयोग ब्लैक फंगस संक्रमणों के इलाज के लिए किया जाता है, जो नाक में शुरू होता है और जल्दी से आंखों और मस्तिष्क में फैलता है।
फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि डब्ल्यूएचओ ने कंपनी से अपनी कीमतें कम करने के साथ-साथ आपूर्ति को बढ़ावा देने का आग्रह किया है, ताकि दक्षिण एशिया में तेजी से बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाया जा सके।
सहायक महानिदेशक मारियांगेला सिमाओ के हवाले से कहा गया है कि लिपिड-आधारित एम्फोटेरिसिन की आपूर्ति को व्यापक बनाने और सामथ्र्य में सुधार के लिए एक तत्काल रणनीति बनाने और कोविड रोगियों के लिए अपनी मूल्य निर्धारण व्यवस्था में सुधार कर दवाओं की कीमत कम करने की जरूरत है।
पिछले महीने, मेडिसिन्स सैन्स फ्रंटियर्स (एमएसएफ) और अमेरिका में येल और जॉर्जटाउन विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों ने गिलियड को एक खुला पत्र भेजा था, जिसमें कहा गया था कि एक मरीज के इलाज के लिए दवा की 150 से 300 शीशियों की जरूरत होती है, और एक शीशी की भारत में लाग 69 डॉलर है।
गिलियड ने एफटी को बताया कि भारत में दवा की कीमत और आपूर्ति की शर्तों पर अमेरिकी कंपनी वियाट्रिस से बातचीत चल रही है।
वियाट्रिस के हवाले से कहा गया था, हम भारत में कोविड-19 के रोगियों के लिए महत्वपूर्ण दवाओं तक पहुंच में तेजी लाने के लिए चल रहे प्रयासों के लिए सभी हितधारकों और भारत सरकार के साथ साझेदारी करना जारी रखेंगे।
इस बीच, मई में ताइवान में एक विशेष दवा कंपनी जायडस और टीएलसी ने भारत में एम्फोटीएलसी (एम्फोटेरिसिन बी लिपोसोम फॉर इंजेक्शन 50 एमजी) के व्यावसायीकरण के लिए एक लाइसेंस आपूर्ति और व्यावसायीकरण समझौते पर हस्ताक्षर किए।
एम्फोटीएलसी पहली और एकमात्र जटिल जेनेरिक दवा है, जिसने गिलियड के एंबिसोम के लिए जैव समानता हासिल की है, जो दुनिया में एम्फोटेरिसिन बी के सबसे सुरक्षित रूप में अपनी समानता साबित करती है।
भारत में संक्रमण के बढ़ने के साथ, भारत के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने भी एम्फोटेरिसिन बी लिपोसोम इंजेक्शन 50 एमजी या एम्फोटीएलसी को अनुमोदित उपयोग और संकेत के अनुसार तत्काल आयात के लिए मंजूरी दे दी है। (आईएएनएस)
तीन महीनों के भीतर पाकिस्तान में टिक टॉक ने 60 लाख से अधिक वीडियो हटाए हैं. रूढ़िवादी देश में टिक टॉक को बार बार प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है.
पाकिस्तानी युवाओं के बीच बेतहाशा लोकप्रिय चीनी स्वामित्व वाले ऐप टिक टॉक को "अश्लील" सामग्री परोसने पर अधिकारियों द्वारा दो बार बंद किया जा चुका है. सबसे ताजा मामले में मार्च में टिक टॉक को बैन किया गया था. जिसके बाद कंपनी ने मर्यादित वीडियो अपलोड करने को लेकर वादा किया था.
1 जुलाई को जारी टिक टॉक पाकिस्तान की नवीनतम पारदर्शिता रिपोर्ट कहती है, "पाकिस्तानी बाजार में टिक टॉक ने 64,95,992 वीडियो को हटा दिया है, जिससे यह अमेरिका के बाद सबसे अधिक वीडियो हटाने वाला दूसरा बाजार बन गया." अमेरिका में 85,40,088 वीडियो हटाए गए थे.
हटाए गए वीडियो में से लगभग 15 प्रतिशत "वयस्क नग्नता और यौन गतिविधियां" वाले थे. एक प्रवक्ता ने कहा कि पाकिस्तान में बनाए वीडियो को उपयोगकर्ता और सरकार दोनों के अनुरोधों के बाद प्रतिबंधित किया गया था. मुस्लिम देश में पश्चिमी कपड़ों में बहुत अधिक त्वचा दिखाने वाले वीडियो पोस्ट करना टैबू माना जाता है और अक्सर दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है.
टिक टॉक पर अश्लीलता परोसना का आरोप
इस महीने की शुरुआत में प्रदर्शनकारियों ने समलैंगिक सामग्री के प्रसार के खिलाफ टिक टॉक के खिलाफ रैलियों का आयोजन किया था. डिजीटल राइट्स एक्टिविस्ट निघत दाद कहती हैं, "कोई यह अनुमान लगा सकता है कि यह सरकारी दबाव या पाकिस्तान में बड़ी मात्रा में बनाई जा रही सामग्री का प्रतिबिंब है. या दोनों, मंच की लोकप्रियता को देखते हुए."
उन्होंने कहा, "सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पाकिस्तान में पूर्ण प्रतिबंध से बचने के लिए सामग्री को हटाने और ब्लॉक करने के लिए अधिक इच्छुक हैं."
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सवाल
ताजा मामले में कराची में कंपनी एक अदालती केस का सामना कर रही है. अदालत के जज ने दूरसंचार अधिकारियों से "अनैतिक सामग्री" फैलाने के लिए इसे बैन करने के लिए कहा है. हालांकि प्लेटफॉर्म अभी भी पाकिस्तान में इस पर काम कर रहा है.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकारों ने लंबे समय से सरकारी सेंसरशिप और पाकिस्तान के इंटरनेट और मीडिया पर नियंत्रण की आलोचना की है.
डेटिंग ऐप्स को ब्लॉक किया जा चुका है और पिछले साल पाकिस्तानी नियामकों ने यूट्यूब से उन सभी वीडियो को तुरंत ब्लॉक करने के लिए कहा था, जिन्हें वे देश में "आपत्तिजनक" मानते थे. अधिकार कार्यकर्ता ऐसी कार्रवाई की आलोचना करता आए हैं. (dw.com)
एए/सीके (एएफपी)
तुर्की ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा रोकने के लिए बनी एक अंतरराष्ट्रीय संधि से आधिकारिक रूप से खुद को अलग कर लिया है. एमनेस्टी इंटरनेशनल ने चेतावनी दी है कि इस कदम की वजह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़नी शुरू हो चुकी है.
इस्तांबुल कन्वेंशन के नाम से जाने जाने वाली इस संधि पर समझौता तुर्की के ही इस शहर में हुआ था, जिसे देश का ऐतिहासिक, आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है. संधि पर हस्ताक्षर 2011 में हुए थे और इसे स्वीकार करने वाले देशों ने घरेलु हिंसा रोकने और लैंगिक बराबरी को प्रोत्साहन देने का प्रण लिया था. तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोवान ने अपने देश को संधि से अलग करने की घोषणा मार्च 2021 में की थी. यह कदम गुरुवार एक जुलाई से लागू हो रहा है.
तुर्की के खुद को संधि से अलग करने की देश के कई नागरिकों ने तो निंदा की ही है, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भी आलोचना की है. इसी सप्ताह एक अदालत ने इस कदम को पलटने की अपील को भी खारिज कर दिया था. देश के अंदर हजारों लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन किए जाने की संभावना है.
तुर्की का नुकसान
फेडरेशन ऑफ टर्किश विमेंस एसोसिएशंस की अध्यक्ष कनन गुलु कहती हैं, "हम अपना संघर्ष जारी रखेंगे. इस फैसले से तुर्की खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है. उन्होंने बताया कि मार्च से महिला समूह मदद मांगने से भी हिचक रहे हैं. कोविड-19 घरों में जो आर्थिक संकट लाया है उसकी वजह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा में नाटकीय वृद्धि हुई है." एमनेस्टी इंटरनेशनल की महासचिव एग्नेस कैलामार्ड मानती हैं, "तुर्की ने महिलाओं के अधिकारों के संबंध में वक्त को 10 साल पीछे धकेल दिया है."
उन्होंने कहा कि खुद को संधि से अलग करके तुर्की ने एक "लापरवाही भरा और खतरनाक संदेश दिया है", क्योंकि अब हिंसा करने वालों का सजा से बच पाना संभव होगा. दूसरे कई देशों की तरह ही, तुर्की में भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक बड़ी समस्या है. महिलाओं की हत्या रोकने के लिए बनी एक जर्मन संस्था के मुताबिक, तुर्की में पिछले साल पुरुषों के हाथों कम से कम 300 महिलाएं मारी गई थीं.
देश में महिलाओं की हत्याएं बढ़ गई हैं. एक मॉनिटरिंग समूह का कहना है कि पिछले पांच सालों में हर रोज कम से कम एक हत्या जरूर हुई है. इस्तांबुल संधि की वकालत करने वालों का कहना है कि उससे अलग होने की जगह उसे और कड़ाई से लागू किए जाने की जरूरत है. लेकिन तुर्की के और खास कर एरदोवान की इस्लामिस्ट जड़ों वाली एके पार्टी के कई रूढ़िवादियों का कहना है कि संधि तुर्क समाज को बचा के रखने वाले वहां के पारिवारिक ढांचे को कमजोर करती है.
संधि के बचाव में
कुछ को यह भी लगता है कि लैंगिक अभिव्यक्ति के आधार पर भेदभाव ना करने के सिद्धांत के जरिये संधि समलैंगिकता को भी बढ़ावा देती है. एरदोवान के दफ्तर ने एक बयान में कहा है, "संधि से हमारे देश के अलग होने की वजह से महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकने में कोई भी कानूनी या जमीनी कमी नहीं आएगी."
इसी महीने यूरोपीय परिषद के मानवाधिकार आयुक्त दुन्या मिजातोविच ने तुर्की के गृह और न्याय मंत्री को एक पत्र लिख कर देश के कुछ अधिकारियों द्वारा समलैंगिक-विरोधी बयानों में आई बढ़ोतरी के बारे में चिंता जाहिर की. इनमें से कुछ बयानों के निशाने पर इस्तांबुल कन्वेंशन भी था. उन्होंने पत्र में लिखा, "इस्तांबुल कन्वेंशन के सारे प्रावधान परिवार की नींव और पारिवारिक संबंधों को और मजबूत करने का काम करते हैं. परिवारों के नष्ट होने का मुख्य कारण हिंसा है और यह संधि इसी हिंसा का मुकाबला करती है."(dw.com)
सीके/एए (डीपीए/रॉयटर्स)
पिछले कुछ दिनों में कनाडा और अमेरिका के कुछ हिस्सों में पड़ रही भयानक गर्मी से सैकड़ों लोगों की जान जाने की आशंका जताई जा रही है. वैज्ञानिक समझने की कोशिश में हैं कि मौसम में ऐसा उबाल क्यों आया.
उत्तर पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में तापमान बढ़ने से पश्चिमी कनाडा और अमेरिका के ऑरेगन व वॉशिंगटन राज्यों में गर्मी के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं. ऑरेगन के अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि कम से कम 60 लोगों की जान इस गर्मी के कारण गई है. राज्य की सबसे बड़ी काउंटी मल्टनोमा में ही 45 लोग गर्मी की भेंट चढ़ चुके हैं.
ब्रिटिश कोलंबिया के कोरोनर विभाग की प्रमुख लीसा लापोएंटे ने कहा कि उनके दफ्तर को कम से कम 486 लोगों की अचानक और अनपेक्षित जान जाने की सूचना मिली है. ये मृत्यु बीते शुक्रवार और बुधवार के बीच ही हुई हैं. आमतौर पर राज्य में इतने समय में लगभग 165 लोगों की मौत होती है.
लापोएंटे ने एक बयान जारी कर कहा, "वैसे तो फिलहाल यह कहना जल्दबाजी होगी कि इनमें से कितनी मौतें गर्मी के कारण हुई होंगी, लेकिन ऐसा माना जाता है कि मरने वालों की संख्या में हुई यह बढ़ोतरी अत्यंत कठोर मौसम से संबंधित है.”
अमेरिका के सिएटल की तरह कनाडा के वैंकूवर और ब्रिटिश कोलंबिया में भी बहुत से घरों में एयर कंडिशन नहीं होते. वैंकूवर के पुलिस सार्जेंट स्टीव ऐडिसन ने कहा, "वैंकूवर ने ऐसी गर्मी पहले कभी नहीं देखी. और अफसोस की बात है कि दर्जनों लोग इसके कारण मर रहे हैं.”
अमेरिका के वॉशिंगटन में अधिकारियों ने 20 से ज्यादा मौतों को गर्मी से जोड़ा है. और यह संख्या बढ़ने की आशंका है.
क्यों पड़ी गर्मी?
मौसमविज्ञानियों का कहना है कि उत्तर पश्चिम में उच्च दबाव का क्षेत्र बनने से गर्मी की यह लहर पैदा हुई है, लेकिन इसे खतरनाक हद तक ले जाने के लिए जलवायु परिवर्तन जिम्मेदार है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भविष्य में ऐसे कठोर मौसमी हालात और ज्यादा देखने को मिलेंगे.
सिएटल, पोर्टलैंड और अन्य कई शहरों में तो तापमान के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं. कई जगह तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा है. हालांकि पश्चिमी वॉशिंगटन, ऑरेगन और ब्रिटिश कोलंबिया में बुधवार के बाद तापमान में कमी आई है, कई अंदरूनी इलाके अब भी गर्मी की मार झेल रहे हैं.
एनवायर्नमेंट कनाडा विभाग ने चेतावनी दी है कि अब दक्षिणी अल्बर्टा और सास्काचेवान में गर्मी बढ़ सकती है. अमेरिका में वॉशिंगटन के अलावा आइडहो और मोन्टाना में भी बहुत ज्यादा गर्मी की चेतावनी बनी हुई है. एनवायर्नमेंट कनाडा ने कहा, "अल्बर्टा में इस हफ्ते लंबी, खतरनाक और ऐतिहासिक गर्मी पड़ेगी.”
जलवायु परिवर्तन के खतरे
ब्रेकथ्रू इंस्टीट्यूट में मौसम विशेषज्ञ जेके हाउसफादर के मुताबिक जलवायु परिवर्तन ना हुआ होता, तब भी प्रशांत उत्तरपश्चिम में गर्मी तो पड़ती, लेकिन वह इतनी भयानक न होती. उन्होंने बताया, "मौसम के लिए जलवायु स्टेरॉयड की तरह होता है. अगर कोई बेसबॉल या ओलंपिक खिलाड़ी स्टेरॉयड लेता है, तो कभी उनका प्रदर्शन अच्छा होगा, कभी खराब होगा. लेकिन उनके औसत प्रदर्शन में सुधार हो जाए. यही चीज जलवायु मौसम के साथ कर रही है. इसलिए ऐसे कठोर मौसमी दौर ज्यादा देखने को मिलेंगे.”
वैज्ञानिक गर्मी की इस लहर की सटीक वजहों का अध्ययन करने की योजना पर काम कर रहे हैं. वॉशिंगटन यूनिवर्सटी में मौसम विज्ञानी कैरिन बम्बाको कहती हैं कि इसकी कुछ जिम्मेदारी तो जलवायु परिवर्तन की बनती ही है. विशेषज्ञ कहते हैं कि आने वाले समय में इस तरह की गर्मी कब पड़ेगी, इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल है. हाउसफादर कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण जो नुकसान हो चुका है, उसकी भरपाई भी मुश्किल है. वह कहते हैं, "दुर्भाग्य से, अगर हमारे पास कोई जादू की छड़ी होती जो हमारे कार्बन उत्सर्जन को जीरो कर देती, तो भी दुनिया दोबारा ठंडी नहीं होगी. अब हमें यह गर्मी झेलनी ही होगी. और इसलिए, हमें ऐसे कठोर मौसमों की आदत डालनी होगी.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा है कि ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले चीनी मूल के वे विद्यार्थी और शिक्षक जो चीन के आलोचक हैं, परेशान किए जा रहे हैं.
बुधवार को जारी एक रिपोर्ट में ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालय चीन के आलोचक शिक्षकों और छात्रों की स्वतंत्रता की सुरक्षा करने में नाकाम रहे हैं. और, इन छात्रों को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की आलोचना करने के नतीजे भुगतने पड़ रहे हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि जिन छात्रों और शिक्षकों ने लोकतंत्र के समर्थन में आंदोलन में हिस्सा लिया या उनका समर्थन किया, उन्हें चीन सरकार और उसके समर्थकों द्वारा परेशान किया जा रहा है.
‘हमारे डर को वे नहीं समझते'
102 पेज की अपनी रिपोर्ट ‘दे डोंट अंडरस्टैंड द फीयर वी हैव' में संस्था ने विस्तार से बताया है कि कैसे चीन ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में पढ़ने और पढ़ाने वोलों को प्रभावित और परेशान कर रहा है. रिपोर्ट कहती है कि चीन की सरकार हांग कांग और बीजिंग से इन लोगों पर निगरानी रखती है, जिसके बारे में आमतौर पर लोगों को पता भी होता है, जिस कारण वे डर में रहते हैं.
रिपोर्ट कहती है, "बहुत से लोग अपना व्यवहार बदल लेते हैं. अपने ही सहपाठियों की धमकियों व प्रताड़ना से बचने के लिए और चीन में अधिकारियों को शिकायत कर दिये जाने से बचने के लिए अपने आप पर ही पाबंदियां लगा लेते हैं.”
जानिए, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कहानी
रिपोर्ट तैयार करने वाली रिसर्चर सोफी मैकनील कहती हैं, "ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों का प्रशासन चीन से आने वाले विद्यार्थियों के अधिकारों की सुरक्षा का अपना फर्ज निभाने में नाकाम हो रहा है. ऑस्ट्रेलियाई विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों से मिलने वाली फीस पर निर्भर करते हैं जबकि चीनी अधिकारियों और उनके लोगों द्वारा छात्रों को दी जा रही प्रताड़नाओं के प्रति आंखें मूंदे रहते हैं.”
मैकनील ने कहा कि विश्वविद्यालयों को इस बारे में आवाज उठानी चाहिए और इन छात्रों व शिक्षकों की अकादमिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए.
खुद पर ही पाबंदी
अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए संस्था ने लोकतंत्र का समर्थन करने वाले 24 छात्रों से बात की, जो चीन व हांग कांग से आते हैं. इसके अलावा उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे 22 अध्यापकों से भी बात की. पिछले एक साल से ज्यादा समय से ऑस्ट्रेलिया की सीमाएं बंद हैं और नए छात्र यूनिवर्सिटी में पढ़ने के लिए नहीं आ रहे हैं, लेकिन तब भी शिक्षा क्षेत्र देश के सबसे बड़े आर्थिक क्षेत्रों में शामिल है. बहुत से छात्र ऑनलाइन ही पढ़ाई कर रहे हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि कम से कम तीन मामले उसे ऐसे मिले जिनमें ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले छात्रों के परिवारों से चीनी पुलिस ने संपर्क किया. कम से कम एक विद्यार्थी को ट्विटर अकाउंट खोलने और लोकतंत्र समर्थक संदेश पोस्ट करने के बाद पुलिस ने जेल में डाल देने की धमकी दी.
एक अन्य छात्र ने ऑस्ट्रेलिया में अपने सहपाठियों के सामने लोकतंत्र का समर्थन करने की बात कही तो घर लौटने पर उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया. संस्था ने जिन छात्रों से बातचीत की है, उन्होंने अधिकारियों द्वारा चीन में अपने परिवार को प्रताड़ित किए जाने का भय जताया. उन्होंने कहा कि वे क्लास में कुछ कहने से पहले भी सौ बार सोचते हैं और अब दोस्त बनाने के बारे में भी सोचने लगे हैं.
एक चीनी छात्र ने कहा, "मैंने खुद पर ही पाबंदी लगा ली है. यही सच्चाई है. मैं ऑस्ट्रेलिया आ गया हूं लेकिन आजाद नहीं हूं. मैं यहां कभी राजनीति की बात नहीं करता.”
सरकार की जिम्मेदारी
मैक्नील बताती हैं कि परेशान छात्रों में से ज्यादातर ने इस बारे में यूनिवर्सिटी प्रशासन से बात नहीं की. वह कहती हैं, "उन्हें लगता है कि उनके विश्वविद्यालय चीन की सरकार के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर रखने की परवाह करती हैं ना कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थक छात्रों को अलग-थलग करने की.”
जिन शिक्षकों से बातचीत की गई, उनमें से आधे से ज्यादा को इसलिए चुना गया था कि वे या तो चीनी मूल के हैं या फिर चीन मामलों के विशेषज्ञ हैं. उन्होंने कहा कि वे चीन के बारे में बात करते हुए अपने आप पर पाबंदी लगाकर ही रखते हैं.
हालांकि मेलबर्न यूनिवर्सिटी के राजनीति विभाग में चीनी राजनीति पढ़ाने वाले प्रोफेसर प्रदीप तनेजा कहते हैं कि उनका ऐसा कोई अनुभव नहीं है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "मैंने तो कभी अपने ऊपर किसी तरह की पाबंदी नहीं लगाई है.”
प्रोफेसर तनेजा हालांकि जोर देकर कहते हैं कि ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी होनी चाहिए और ऐसा सुनिश्चित करना यूनिवर्सिटी प्रशासन व सरकार की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा, "कुछ छात्रों ने कहा है कि वे चीन समर्थक छात्रों से खतरा महसूस करते हैं. अगर ऐसा है तो ऑस्ट्रेलिया की सरकार, राज्यों की सरकारों और यूनिवर्सिटी प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा न हो. किसी विदेशी सरकार को अधिकार नहीं होना चाहिए कि यहां रहने वाले लोगों की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सके. और यह सुनिश्चित करना सरकारों की जिम्मेदारी है.”
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना 1921 में हुई थी और इस हफ्ते पार्टी के शीर्ष नेता अभियानों के जरिए अपनी उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं. लेकिन जैसे-जैसे पार्टी की छवि मजबूत हुई है, क्या मुखौटे के पीछे उसमें कमजोरी आई है?
डॉयचे वैले पर सू जी ब्रुनरसुम की रिपोर्ट
साल 1921 में शुरु हुई चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के गुरुवार को 100 साल पूरे हो रहे हैं और इस दिन वह देशभर में जश्न और धूमधाम से अपनी 100वीं सालगिरह मना रही है. 1 जुलाई के कई हफ्तों पहले से ही पार्टी नेतृत्व की सफलता का बखान करने वाले बैनर और होर्डिंग लगा दिए गए हैं. और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने सोमवार को बीजिंग के नेशनल स्टेडियम में असाधारण परफॉर्मेंस भी दी. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है, यह भारत की भारतीय जनता पार्टी (BJP) की आधी है. साल 2019 में पार्टी में करीब 9.2 करोड़ सदस्य थे. इसने चीन की सत्ता पर 1949 के गृह युद्ध के बाद कब्जा किया था, और तभी से यहां शासन करती आ रही है.
पार्टी के विदेश संपर्क विभाग के उप प्रमुख गुओ येझोउ ने इस हफ्ते एक प्रेस कार्यक्रम के दौरान रिपोर्टर्स से कहा, "चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव, अपील और आकर्षण लगातार बढ़ा है, जिससे यह विश्व राजनीति की सबसे अग्रणी पंक्ति में आ गई है." चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने चीन को युद्धों, अकाल और सामाजिक उठा-पटक वाली एक सदी में भी आगे ले जाने का काम किया है. पिछले 20 सालों में ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लाखों गरीब, भूखे चीनी लोगों को भारी गरीबी से उबारा है. सामाजिक स्तर पर आए इस बदलाव ने चीन को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने में मदद की है.
हालांकि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में पार्टी में सत्ता का केंद्रीकरण होने और इसकी विस्तारवादी विदेश नीति ने यह चिंता भी बढ़ा दी है कि चीन और ज्यादा अधिकनायकवाद की ओर बढ़ चला है. चीन में पार्टी और उसकी नीतियों की आलोचना ज्यादा देर नहीं ठहरती. दक्षिण चीन सागर में चीनी सैन्य विस्तारवाद की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई है. ऐसी ही प्रतिक्रिया उसकी हांगकांग में नागरिक स्वतंत्रता पर कार्रवाई और पश्चिमी शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुस्लिम अल्पसंख्यकों के साथ बर्ताव पर भी आई है.
सत्ता के शिखर पर राष्ट्रपति शी
जाहिर सी बात है, जश्न के दौरान इस बातों का जिक्र नहीं किया जाएगा. बर्लिन स्थित मर्केटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज (MERICS) की एक विश्लेषक वैलेरी टैन ने डीडब्ल्यू को बताया, "पार्टी अपनी शासन प्रणाली की सफलता और समय के हिसाब से ढलने वाले गुणों की झांकी पेश करेगी." उन्होंने कहा, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के लिए 100वीं सालगिरह का केवल ऐतिहासिक महत्व नहीं है. यह शी जिनपिंग के लिए बड़ा राजनीतिक महत्व भी रखती है. हफ्ते भर से पार्टी के अधिकारी शी की तारीफें करते आ रहे हैं, जिन्हें पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्थापक माओत्से तुंग के बाद चीन का सबसे शक्तिशाली नेता माना जाता है.
वैलेरी टैन ने कहा, "चीनी पार्टी दुनिया को यह दिखाने के लिए उत्साहित है कि इसकी बनाई व्यवस्था न सिर्फ आर्थिक संकटों, प्राकृतिक आपदाओं, राजनीतिक घोटालों और वैश्विक महामारी पर काबू करने में सफल रही है, बल्कि यह अटूट भी रही है और पहले से ज्यादा मजबूत होकर सामने आई है. अब यह 2049 तक महाशक्ति के दर्जे को पाने के उस लक्ष्य की ओर बढ़ रही है, जिसे शी जिनपिंग ने तय किया है." वैलेरी टैन मानती हैं कि 100वीं सालगिरह के दौरान पार्टी इसी छवि को पेश करना चाहती है.
चीनी इतिहास में भी कांट-छांट कर रही पार्टी
फरवरी में शी जिनपिंग ने पार्टी के 100 साल होने पर पार्टी के आधिकारिक इतिहास का एक संशोधित संस्करण 'चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का एक संक्षिप्त इतिहास' जारी किया था. यह 500 से अधिक पृष्ठों का है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के आधिकारिक इतिहास के इस नए संस्करण में सांस्कृतिक क्रांति के दौरान एक दशक तक चली खलबली को तीन पन्नों में समेट दिया गया है और माओ के अत्याचारों का जिक्र भी कम कर दिया गया है. पार्टी की 1981 में क्रांति की निंदा को भी नरम स्वर दे दिया गया है.
द ग्रेट लीप फॉरवर्ड सेक्शन को भी छोटा कर दिया गया है और इससे सिर्फ 'आर्थिक कठिनाइयां' होने का जिक्र किया गया है. इसकी तुलना में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की 90वीं सालगिरह की किताब में अब भी 'अकाल' और 'अकाल में हुई मौतों' जैसे शब्दों का प्रयोग है. महान चीनी अकाल के दौरान माओ की आर्थिक नीतियों के चलते लाखों लोग मारे गए थे. इसका उल्लेख नई किताब में सिर्फ एक बार 'प्राकृतिक आपदा' के तौर पर किया गया है.
पार्टी के बदले शी जिनपिंग पर जोर
कोलोन विश्वविद्यालय में चीनी विशेषज्ञ फेलिक्स वेमहॉयर कहते हैं, "पार्टी और इसकी विरासत को 'वैधता' दिलाने की कोशिशों में इतिहासलेखन की परंपरागत रूप से एक महत्वपूर्ण भूमिका रही है. माओ ने भी 'विचारों में एकजुटता' लाने के लिए पार्टी के इतिहासलेखन का इस्तेमाल किया था. वेमहॉयर ने डीडब्ल्यू से कहा, "1989 के तियानमेन स्क्वायर के विरोध को "बहुत संक्षेप में समेट दिया गया है" और इसे समाजवादी व्यवस्था को खत्म करने की मांग करने वाला एक क्रांतिकारी विद्रोह बताया गया है और कहा गया है इसे "सरकार द्वारा दबाया ही जाना था."
वेमहॉयर की राय में, "इस तरह लिखने का उद्देश्य यह संदेश देना है कि "भले ही संकट रहे हों ... पार्टी हमेशा खुद को फिर से खड़ा करने और चीन को समृद्धि की राह पर ले जाने में सक्षम रही है." वेमहॉयर कहते हैं, "यह चौंकाने वाली बात है कि शी जिनपिंग पर लिखा हिस्सा पूरी किताब का लगभग एक-चौथाई है, जबकि पार्टी के 100 साल के इतिहास के मुकाबले देखें तो वे केवल आठ साल के लिए सत्ता में रहे हैं." संशोधित किताब विश्वविद्यालय की परीक्षाओं का हिस्सा भी बनेगी. ऐसे में किताब पर आधारित सवालों और उत्तरों को याद करने के लिए लाखों चीनी लोगों से अपेक्षा की जाएगी.
चीन की वैश्विक छवि संवारने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषक टैन का मानना है कि शी जिनपिंग का मुख्य मकसद इतिहास में संशोधन कर दुनिया के सामने चीन को ऐसे पेश करना है कि चीन की कहानी ठीक से कही जाए. हाल में एक पार्टी सम्मेलन में शी जिनपिंग ने "चीन की विश्वसनीय, प्यारी और सम्मानजनक छवि" बनाने के प्रयासों पर जोर दिया. टैन कहती हैं, "लक्ष्य है चीन की नकारात्मक व्याख्या को प्रतिकार करना, खासकर जो पश्चिम की ओर से की जा रही है."
ये सब ऐसे समय में हो रहा है जब चीन ने मेड इन चाइना 2025 प्लान में महत्वपूर्ण तकनीकी सेक्टर में आत्मनिर्भरता हासिल करने का फौरी लक्ष्य रखा है. टैन कहती हैं, "इसका समर्थन करने के प्रयास बढ़ाए जाएंगे, चाहे वह ट्विटर पर अभियानों के जरिए हो, वायरल डिजीटल प्रोपेगैंडा हो या चीन के प्रति दोस्ताना रवैया रखने वाले पत्रकारों का समर्थन हो." शी ने 2021 तक चीन को भरी गरीबी खत्म कर खुशहाल देश बनाने की घोषणा की है.
कब तक रहेंगे शी सत्ता में
अब सब यही सवाल पूछ रहे हैं कि 2012 में सत्ता पर काबिज शी जिनपिंग कब तक सत्ता में रहेंगे. उन्होंने अपने शासन की समय सीमा को खत्म कर दिया है और अभी तक कोई उत्तराधिकारी भी नहीं चुना है. 2022 में कम्युनिस्ट पार्टी के पॉलितब्यूरो की मौजूदा स्थायी समिति के इस्तीफा देने और नए नेताओं का चुनाव करने की संभावना है. अब सबकी नजर इस बात पर है कि क्या अगले साल होने वाले पार्टी कांग्रेस में शी पद छोड़ेंगे, उत्तराधिकारी की घोषणा करेंगे या पार्टी चेयरमैन वाले माओ के टाइटिल को फिर से ले आएंगे.
राजनीतिक विश्लेषक टैन कहती हैं, "अगला साल ये देखने के लिए महत्वपूर्ण होगा कि चीन में नेतृत्व परिवर्तन क्या रूप लेता है." अभी बहुत कुछ साफ नहीं है. ये भी नहीं कि शी जिनपिंग सत्ता में बने रहेंगे या रिटायर कर जाएंगे. (dw.com)
बीजिंग, 1 जुलाई | एलोन मस्क की ईवी निर्माता टेस्ला चीन में अपनी लगभग 285,000 कारों में ऑटोपायलट सॉफ्टवेयर को दूरस्थ रूप से अपडेट करेगी, ताकि वाहन चलाते समय ड्राइवरों को गलती से ऑटोपायलट फीचर को सक्रिय करने से रोका जा सके। गिज्मोचाइना के अनुसार, देश की नियामक एजेंसी ने उन दावों की जांच के बाद कहा है कि वाहन चलाते समय ड्राइवर अनजाने में ऑटोपायलट पर स्विच कर लेते हैं।
समझा जाता है कि रिमोट अपडेट स्थानीय रूप से और विदेश से बनी कारों दोनों को प्रभावित करता है। स्टेट रेगुलेटर, चीन के स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन फॉर मार्केट रेगुलेशन का मानना है कि अगर ऑटोपायलट को मजबूत नहीं किया गया तो सुरक्षा संबंधी चिंताएं रहेंगी।
जब ऑटोपायलट गलती से चालू हो जाता है, तो वाहन तेजी से या तेजी से धीमा हो सकता है। अचानक त्वरण या धीमा होना, चरम मामलों में, टक्कर का कारण बन सकता है।
राज्य नियामक के अनुसार, टेस्ला ने शनिवार से ही सॉफ्टवेयर को अपडेट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
प्रभावित वाहनों में से अधिकांश स्थानीय रूप से निर्मित मॉडल 3 और मॉडल वाई मॉडल हैं, जबकि 35,000 से अधिक आयातित मॉडल 3 को भी अपडेट किया जाएगा।
टेस्ला के पास हाल के दिनों में अपने वाहनों में ऑटोपायलट से जुड़ी सुरक्षा से संबंधित कई मुद्दे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन और अमेरिका दोनों देशों में कुछ घातक टक्करों को भी दर्ज किया गया है।
हालांकि, टेस्ला ने ऑटोपायलट फीचर के अधिक से अधिक विकास को जारी रखा है, सुरक्षा चिंताओं को उनके विकास में शामिल किया गया है।(आईएएनएस)
वाशिंगटन, 1 जुलाई| कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 18.2 करोड़ हो गए हैं। वहीं इस महामारी से पूरे विश्व में 39.4 लाख लोगों की मौतो हो गई है। जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने यह जानकारी साझा की है। गुरुवार की सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामेल और मरने वालों की संख्या क्रमश: 182,136,238 और 3,945,551 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,664,909 और 604,71 के साथ अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 30,362,848 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे खराब देश ब्राजील (18,557,141), फ्रांस (5,837,261), रूस (5,449,594), तुर्की (5,425,652), यूके (4,817,236), अर्जेंटीना (4,470,374), इटली (4,259,909), कोलंबिया (4,240,982) हैं। , स्पेन (3,808,960), जर्मनी (3,736,205) और ईरान (3,204,557) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 518,066 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है।
भारत (398,454), मेक्सिको (232,803), पेरू (192,331), रूस (132,973), यूके (128,404), इटली (127,566), फ्रांस (111,244) और कोलंबिया (105,934) में 100,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है। (आईएएनएस)
-पद्मजा वेंकटरमण
पहली जुलाई को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) अपनी स्थापना के सौ वर्ष मना रही है. हाल के दिनों में सीसीपी ने युवाओं तक अपनी पहुंच बढ़ाने के प्रयास तेज़ किए हैं.
राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल के दिनों में पार्टी की कहानी से युवाओं को अवगत कराने और उन्हें सीसीपी से जुड़ी अहम जानकारियों को लेकर शिक्षित करने पर ज़ोर दिया है.
सोशल मीडिया पर प्रचार कार्यक्रम शुरू करने से लेकर, प्रमुख विश्वविद्यालयों में सीसीपी के बारे में पढ़ाई के लिए रिसर्च सेंटर स्थापित करने तक, ऐसा लगता है कि चीनी सरकार इस अहम पड़ाव से पहले, देश के एक ख़ास वर्ग को लुभाने की कोशिश में लगी है.
मीडिया संस्थानों ने भी अन्य पहलों के साथ-साथ राष्ट्रपति शी जिनपिंग की छात्रों के साथ बातचीत को प्रमुखता से छापा और दिखाया है. पार्टी का मानना है कि ये युवाओं के लिए बढ़िया उदाहरण हैं.
साइबरस्पेस में 'युवा आदर्श'
18 जून को "राइटिंग द यूथफुल चैप्टर ऑन द मदरलैंड" पहल शुरू की गई. जिसे चीन के शिक्षा मंत्रालय, चीन के सेंट्रल साइबरस्पेस एडमिनिस्ट्रेशन, कम्युनिस्ट यूथ लीग की केंद्रीय समिति और बीजिंग यूनिवर्सिटी ने संयुक्त रूप से प्रायोजित किया था.
जाने माने पोर्टल Sohu.com की 21 जून की रिपोर्ट के मुताबिक "राइटिंग द यूथफुल चैप्टर ऑन द मदरलैंड' पहल न्यू मीडिया उत्पादों को लॉन्च करेगी, वैचारिक और राजनीतिक शिक्षा के लिए एक ऑनलाइन प्रचार तंत्र तैयार करेगी और साइबर स्पेस में 'युवा आदर्शों' पर केंद्रित सेमिनार आयोजित करेगी."
पार्टी के 100 वर्ष के इस आयोजन से पहले मई के महीने में "ऐतिहासिक शून्यवाद" पर बीस लाख से अधिक पोस्ट हटाने के चीन के फ़ैसले को देखते हुए पार्टी के इस कदम को ख़ास तौर पर अहम माना जा रहा है.
बीते वर्ष जून में भारतीय सेना के साथ झड़प के दौरान मारे गए चीनी सैनिकों का अपमान करने के लिए इस साल फ़रवरी में चीन ने तीन ब्लॉगर्स को गिरफ़्तार किया था.
इन ब्लॉगर्स में से एक ने अपनी पोस्ट में उस झड़प के दौरान चीन के हताहत सैनिकों के सरकारी आंकड़े पर आपत्ति जताई थी.
संस्कृति की आड़ में प्रोपगैंडा
सरकारी मीडिया 'रेड टूरिज़्म' के बढ़ने की बात करता रहता है जिसके तहत चीन अपने क्रांतिकारी अतीत को गढ़ने में अहम किरदार निभाने वाले स्थानों में पर्यटन को बढ़ावा देता है.
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक 4 मई के दिन जब चीन युवा दिवस मना रहा था तब देश की क्रांतिकारी विरासत के सम्मान में इन ऐतिहासिक स्थलों का दौरा करने पहुंचे युवा पर्यटक 'रेड टूरिज़्म' की ताक़त बने और फ़िज़ा में देशभक्ति का माहौल दिखा.
शंघाई की एक वेब पत्रिका सिक्स्थ टोन के मुताबिक, "शताब्दी वर्ष की अगुवाई में रैप आर्टिस्टों ने "100%" की टाइटल से एक गाना भी रिलीज़ किया है जिसमें चीन की उपलब्धियों के गुण गाए गए हैं. इसमें 5जी टेक्नॉलॉजी और देश के हालिया अंतरिक्ष कार्यक्रम की प्रशंसा की गई है."
हॉन्गकॉन्ग के प्रमुख अख़बार साउथ चाइन मॉर्निंग पोस्ट के अनुसार, इस गाने में 100 रैपर्स में से एक रैपर मर्सी ने अमेरिका, कनाडा और जर्मनी समेत जी7 देशों की आलोचना भी की है. उन्होंने उन पर चीन का विरोध करने का आरोप लगाया है.
यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स पर फ़ोकस
शताब्दी वर्ष के इस आयोजन से पहले 22 जून को राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने पेकिंग यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे 32 विदेशी छात्रों के प्रतिनिधियों की चिट्ठियों का जवाब दिया. इसमें अपनी वैश्विक पहुंच को और मजबूत बनाने का शी का प्रयास दिखता है. अपनी प्रतिक्रिया में शी ने छात्रों से सभी देशों के बीच दोस्ती को बढ़ावा देने में सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह किया.
सरकारी मीडिया चाइना ग्लोबल टेलीविज़न नेटवर्क ने अनुसार, "शी जिनपिंग ने कहा कि इस साल सीसीपी की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ है. शी ने यह भी कहा कि 2021 समाजवाद के आधुनिकीकरण की दिशा में चीन की नई यात्रा के शुरुआत का वर्ष भी है."
मई में चीन के पेकिंग यूनिवर्सिटी ने सीसीपी के इतिहास की पढ़ाई के लिए एक नए ऐकडेमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट (शैक्षणिक अनुसंधान संस्थान) का उद्घाटन भी किया.
वहीं ग्लोबल टाइम्स ने 5 मई को अपनी रिपोर्ट में बीजिंग स्थित समीक्षकों के हवाले से लिखा कि "सीपीसी की स्थापना की 100वीं वर्षगांठ पर इस केंद्र की स्थापना से यह संकेत मिलता है पार्टी अपने इतिहास पर अनुसंधान और शिक्षा के मामले में मजबूत हो रही है."
युवाओं में असंतोष
युवा पीढ़ी को ध्यान में रख कर कम्युनिस्ट पार्टी की हाल की पहलों को देख कर थोड़ा आश्चर्य होता है.
युवा, ख़ास कर, यूनिवर्सिटी छात्रों ने सीसीपी के इतिहास को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इसके कई शुरुआती सदस्य 1919 के 'मे फोर्थ आंदोलन' से निकल कर आए थे.
पार्टी की युवा शाखा कम्युनिस्ट यूथ लीग इन दिनों गुटबाजी से त्रस्त है, इसके बावजूद पार्टी युवाओं के बीच अपनी पहुँच बनाने में कामयाब रही है.
राष्ट्रपति बनने के बाद शी जिनपिंग ने कम्युनिस्ट यूथ लीग के रैंक तक पहुँचे नेताओं के पर कतर दिए थे. ख़ास तौर पर इसमें सीसीपी यूथ लीग के प्रमुख किन यिझी का नाम आता है, जिनका 2017 में रैंक घटा दिया गया था.
चीन के युवाओं में वहां के कठोर वर्क कल्चर समेत अन्य कई मुद्दों पर असंतोष है. मई में सोशल मीडिया पर युवा यूज़र्स ने देश में कॉन्ट्रैक्ट नौकरी बाज़ार और घटते रोज़गार के अवसरों पर अपनी निराशा व्यक्त की. माना जाता है कि पहली बार इस पोस्ट को टिएबा पर देखा गया था, इसने तेज़ी से लोगों का ध्यान खींचा.
सिक्स्थ टोन ने 27 मई कि लिखा कि एक अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म डोबन पर लाइंग डाउन ग्रुप में क़रीब 6,000 सदस्य हैं.
इसके एक पॉपुलर पोस्ट में एक ख़ास किस्म के लाइफस्टाइल (टैंग पिंग) को अपनाने के लिए सात स्टेप्स बताए गए हैं. कार्यक्षेत्र में बढ़ते काम के दबाव के विरोध में युवाओं ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी.
सरकारी मीडिया इस तरह के चलन की आलोचना करती है. ग्वांगझु के अख़बार नानफैंग डेली ने इसे शर्मनाक तक बताया.
आधिकारिक चाइना डेली ने पहली जून को युवाओं की शिकायतों के प्रति सहानुभूति दिखाने का रुख अख़्तियार किया, लेकिन साथ ही 'निराशावाद' को बढ़ाचढ़ा कर पेश करने के ख़िलाफ़ आगाह भी किया.
इसमें लिखा गया, "ये अच्छा है कि सरकार रास्ता निकाल रही है, ताकि युवाओं की चिंताओं को दूर किया जा सके. हाल के वर्षों में, घरों की कीमतों को कम करने और युवाओं के लिए सार्वजनिक किराए के घरों की उपलब्धता बढ़ाने की दिशा में चीन ने अपने प्रयास बढ़ाए हैं." (bbc.com)
अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का काम जर्मनी ने पूरा कर लिया है. मंगलवार को आखिरी दस्ते ने मजार स्थित कैंप छोड़ दिया. इस तरह 20 साल लंबे अभियान का पटाक्षेप हो गया है.
डॉयचे वैले पर डार्को यान्येविच की रिपोर्ट
जर्मनी के 570 सैनिक अफगानिस्तान से निकल गए हैं. सुरक्षा के लिहाज से खराब होते हालात के बीच लगभग बीस साल चला यह अभियान खत्म हो गया है. पिछले हफ्ते जर्मन रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि 570 सैनिक बाकी हैं जो मजार में हैं. मंगलवार को वे भी वापस आ गए. इनमें स्पेशल केएसके फोर्स के वे सैनिक भी शामिल हैं जिन्हें कैंप की सुरक्षा में तैनात किया गया था.
मंगलवार को जर्मन रक्षा मंत्री आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर ने ट्विटर पर लिखा कि सैनिक घर वापसी के लिए निकल गए हैं. उन्होंने लिखा, "यह एक ऐतिहासिक अध्याय का अंत है – एक ऐसी तैनाती जिसने चुनौतियां पेश की और हमें बदला भी.”
क्रांप कारेनबावर ने अफगानिस्तान में अपने कर्तव्यों को ‘पेशवराना तरीके से और पूरी निष्ठा के साथ निभाने के लिए' सैनिकों का धन्यवाद किया. उन्होंने संकल्प लिया कि इस अभियान की समीक्षा होगी और इस बात पर विमर्श होगा कि "क्या अच्छा था, क्या अच्छा नहीं था और क्या सबक रहे.”
तस्वीरों मेंः सैन्य अभियानों में शामिल रहे ये मशहूर कुत्ते
मई में जर्मन सैनिकों की वापसी का काम शुरू हुआ था. तब मजार में 1,100 सैनिक थे. सुरक्षा कारणों से जर्मन सेना ने अपनी वापसी की सूचनाओं को स्पष्ट नहीं किया था. मंगलवार तक यह जाहिर नहीं था कि आखिरी दस्ते की वापसी कब होगी.
अब क्या होगा?
आधिकारिक पुष्टि से कुछ ही घंटे पहले क्रांप कारेनबावर ने कहा कि वापसी का काम व्यवस्थित तरीके से लेकिन पूरी तेजी से चल रहा है. बाद में जर्मन सेना ने कहा कि आखिरी सैनिक भी मजार छोड़ चुका है. उनका पुराना कैंप अफगान सैनिकों को दे दिया जाएगा.
जर्मन सैनिक बुधवार को तबिलिसी होते हुए स्वदेश पहुंचेंगे. जर्मनी पहुंचने के बाद सैनिकों को दो हफ्ते के अनिवार्य एकांतवास में रहना होगा ताकि कोरोनावायरस के बेहद संक्रामक डेल्टा वेरिएंट के खतरे को टाला जा सके. पत्रिका डेर श्पीगल के मुताबिक कम से कम एक जर्मन सैनिक को इस महीने की शुरुआत में कोविड हो गया था.
लगभग दो दशक
11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क के ट्विन टावर पर हुए आतंकवादी हमले के बाद जर्मनी ने अपनी फौजों को अफगानिस्तान में तैनात किया था. जर्मनी के सैनिक पहली बार जनवरी 2002 में काबुल पहुंचे थे. शुरुआत में उनसे कहा गया था कि उनकी जिम्मेदारी देश में स्थिरता बनाए रखना है ना कि तालीबान से लड़ना.
इन दो दशकों में एक लाख 50 हजार से ज्यादा जर्मन सैनिक अफगानिस्तान का दौरा कर चुके हैं. बहुत से तो एक से ज्यादा बार अफगानिस्तान में तैनात रहे. 2020 के आखिर तक जर्मन फौज की इस तैनाती पर लगभग 12.5 अरब यूरो यानी करीब 11 खरब रुपये से ज्यादा खर्च हो चुके थे.
तस्वीरों मेंः ऐसे होते हैं अफगान
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जर्मनी का यह सबसे लंबा और घातक सैन्य अभियान था. इस दौरान 59 जर्मन सैनिकों की जान गई. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक 2009 से अफगानिस्तान में 39 हजार लोगों की जानें गई हैं. ज्यादातर नागरिक तालीबान द्वारा मारे गए लेकिन अंतरराष्ट्रीय फौजों ने भी नागरिकों की जान ली है, खासकर हवाई हमलों में. अमेरिका ने इस अभियान में अपने 2,442 सैनिक खोए हैं.
अफगानिस्तान में हालात
जर्मन सेना का यह अभियान ऐसे वक्त में खत्म हुआ है जबकि अफगानिस्तान में तालीबान का कब्जा एक बार फिर तेजी से बढ़ रहा है. अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत डेबरा ल्योन्स का कहना है कि मई से अब तक देश के 370 में से 50 जिलों पर तालिबान का कब्जा हो चुका है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को उन्होंने बताया, "जो जिले उन्होंने कब्जाए हैं वे प्रांतों की राजधानियों के इर्द गिर्द हैं. इससे संकेत मिलता है कि तालिबान रणनीतिक जगह बना रहा है और विदेशी फौजों के पूरी तरह चले जाने के बाद इन राजधानियों पर कब्जा करने की कोशिश कर सकता है.'
नाटो सेनाओं की 11 सितंबर तक अफगानिस्तान छोड़ देने की योजना है. इसका अर्थ यह होगा कि देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्थानीय सेना के हाथ में होगी. (dw.com)
अमेरिका के एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर ने कहा है कि अमेरिकी सेना के लौटने के बाद, अफ़ग़ानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ जाने का ख़तरा होगा.
दरअसल, पिछले महीने से अमेरिकी सैनिकों ने अपने देश वापस लौटना शुरू कर दिया है. इसी बीच तालिबान लड़ाकों ने भी अफ़ग़ानिस्तान के कई ज़िलों पर फिर से अपना कब्ज़ा जमा लिया है. ऐसे में इस तरह की कई चिंताएं पैदा हो गई है.
बताया गया है कि 11 सितंबर तक सभी अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान से वापस लौट जायेंगे.
मौजूदा परिस्थिति पर बात करते हुए अमेरिकी जनरल स्कॉट मिलर ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान का राजनैतिक नेतृत्व अगर लोगों को एकजुट नहीं कर पाया, तो देश को आने वाले समय में बहुत मुश्किल दौर का सामना करना पड़ सकता है.
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र ने भी तालिबान के बढ़ते प्रभाव पर चिंता ज़ाहिर की थी. संयुक्त राष्ट्र ने कहा था कि अभी अमेरिकी सैनिक पूरी तरह से लौटे भी नहीं हैं और तालिबान ने कई ज़िलों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है.
बताया गया है कि तालिबान लड़ाकों ने 370 में से क़रीब 50 ज़िलों पर अपना कब्ज़ा जमा लिया है और वो धीरे-धीरे राजधानी काबुल की ओर बढ़ रहे हैं. तालिबान दावा कर रहा है कि क़रीब 100 ज़िले अब उसके कब्ज़े में हैं.
इस पर मिलर ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में परिस्थिति ठीक नहीं लग रही. गृह युद्ध का ख़तरा सिर पर है. और अगर तालिबान इसी तरह बढ़ता रहा, तो ऐसा होने की संभावना और बढ़ती जायेगी.
लेकिन मिलर ने इस बात से भी इनकार नहीं किया कि अमेरिका अब भी तालिबान पर हवाई हमले कर रहा है.
उन्होंने कहा, “मैं चाहूँगा कि हमें हवाई हमले देखने को ना मिलें. लेकिन पहले हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि कहीं हिंसा भी ना हो. आपको ये सब बंद करना होगा.”
कुछ दिन पहले ही, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि “अफ़ग़ानिस्तान के लोगों को ख़ुद ही अपना भविष्य तय करना होगा.” (bbc.com)
ब्राज़ील के स्वास्थ्य मंत्री ने कहा है कि राष्ट्रपति ज़ाएर बोलसोनारो पर वैक्सीन सौदे में अनियमितताओं के आरोप लगने के बाद, मंत्रालय ने भारत के साथ हुए 324 मिलियन डॉलर के वैक्सीन अनुबंध को मुअत्तल करने का निर्णय लिया है.
इस अनुबंध के तहत ब्राज़ील, भारत से दो करोड़ वैक्सीन डोज़ खरीदने वाला था.
हालांकि, राष्ट्रपति बोलसोनारो अनियमितताओं के सभी आरोपों से इनकार करते रहे हैं.
स्थानीय मीडिया के अनुसार, कुछ लोगों ने राष्ट्रपति पर सार्वजनिक रूप से अनियमितता के आरोप लगाये थे. तभी से यह डील बोलसोनारो के लिए सिर का दर्द बनी हुई है.
बताया गया है कि स्वास्थ्य मंत्रालय की एक टीम सौदे के निलंबन के दौरान राष्ट्रपति पर लगे आरोपों की जाँच करेगी.
मंत्रालय के अनुसार, सीजीयू के शुरुआती विश्लेषण में कोई भी अनियमितता नहीं पाई गई है, लेकिन अनुपालन के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने ये अनुबंध निलंबित करने का निर्णय लिया है.
ब्राज़ील में बढ़ी क़ीमतों, जल्दी बातचीत और नियामकों की तरफ से अटकी हुई मंज़ूरियों का हवाला देते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस सौदे की जाँच शुरू कर दी है.
इसके अलावा सरकार के महामारी से निपटने के तरीक़ों की जाँच में जुटा सीनेट पैनल भी इस मामले की जाँच कर रहा है. (bbc.com)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने चीन के सरकारी टीवी सीजीटीएन से बात करते हुए कहा है कि अमेरिका और पश्चिमी ताक़तों का पाकिस्तान जैसे देशों में पर चीन की ओर झुकाव कम करने का दबाव डालना बहुत अनुचित है.
इमरान ख़ान ने यह बात चीन के सरकारी अंग्रेज़ी चैनल सीजीटीएन से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल और चीन-पाकिस्तान संबंधों के 70 साल पूरे होने पर कही है.
इस बातचीत का वीडियो उन्होंने इंस्टाग्राम पर भी पोस्ट किया है.
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान चीन के साथ अपने रिश्तों को कभी भी निचले दर्जे पर नहीं ले जाएगा क्योंकि उनके संबंध बहुत गहरे हैं.
इमरान ख़ान ने कहा, "चीन और पाकिस्तान के रिश्ते 70 साल पहले शुरू हुए थे और यह बहुत ख़ास हैं. पाकिस्तान जब भी मुश्किलों में रहा, चाहे वो राजनीतिक रूप से हो, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो या फिर पड़ोसियों से संघर्ष के दौरान हो, चीन हमेशा हमारे साथ खड़ा रहा. पाकिस्तान के लोगों के दिलों में चीन के लोगों के लिए ख़ास जगह है."
"अच्छे वक़्त में हर कोई आपके साथ खड़ा होता है लेकिन बुरे वक़्त में जो आपके साथ होता है उससे ही उसकी पहचान होती है और चीन के बारे में पाकिस्तान के लोग यह जानते हैं कि वो मुश्किल वक़्त में हमारे साथ था इसलिए यहां के लोगों के दिलों में आप चीन के लिए मोहब्बत पाएंगे.'
इमरान ख़ान ने कहा कि क्षेत्रीय स्तर पर देखें तो बड़ी ताक़तों के बीच मुक़ाबला चल रहा है. अमेरिका चीन के सामने बेहद चौकन्ना है और यह सब जानते हैं क्योंकि यह सबके सामने है.
इसके साथ ही इमरान ख़ान ने कहा कि अमेरिका क्षेत्रीय गठबंधन बना रहा है जिसका नाम क्वॉड है जिसमें अमेरिका, भारत और दूसरे देश भी हैं.
"इन सबको देखते हुए पाकिस्तान के लिहाज़ से अमेरिका और पश्चिमी देशों का यह सोचना अनुचित होगा कि पाकिस्तान जैसा देश किसी का पक्ष ले. हमें किसी का पक्ष लेने की क्या ज़रूरत है, हमें हर किसी से संबंध बनाए रखने की ज़रूरत है."
यह भी पढ़ें: इमरान ख़ान यौन अपराधों पर विवादित बयान क्यों देते हैं?
"पाकिस्तान पर यह दबाव डाला जाता है कि वो चीन के साथ रिश्तों में झुकाव को कम करे या बदले, तो यह कभी नहीं होगा. चीन और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत गहरे हैं और यह सिर्फ़ सरकार की वजह से नहीं बल्कि लोगों से लोगों के संबंध के कारण हैं."
इसके बाद इमरान ख़ान से पूछा गया कि वो चीन के साथ और रिश्ते मज़बूत करने के लिए क्या करेंगे?
इस पर उन्होंने कहा कि 'पहले तो वो व्यापार पर ध्यान देंगे क्योंकि CPEC हमारे सामने हो रहा है और यह पाकिस्तान में बहुत बड़ी चीज़ हो रही है. आर्थिक भविष्य पाकिस्तान के आगे है और राजनीतिक संबंध बेहद मज़बूत हो रहे हैं क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमेशा पाकिस्तान चीन के साथ खड़ा रहता है.'
बीते महीने पाकिस्तान और चीन के बीच रिश्तों को 70 साल पूरे होने के मौक़े पर इमरान ख़ान और चीनी प्रधानमंत्री ली केजेन ने एक दूसरे को पत्र लिखे थे और दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करने का वादा किया था.
प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने लिखा था, "पाकिस्तान की सरकार और लोगों की ओर से और मैं ख़ुद की ओर से आपको चीन और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक रिश्तों की 70वीं सालगिरह पर दिल से बधाई देता हूं."
"21 मई 1951 के दिन हमारे संबंध आधिकारिक रूप से बने थे जो कि ऐतिहासिक क्षण था. हमारे दो लोगों और लगातार नेतृत्व और सरकारों ने हमारे संबंधों को बढ़ावा देने और मज़बूत करने के लिए अथक प्रयास किए हैं. आपसी सम्मान, आपसी विश्वास और आपसी समझ के स्थायी मूल्यों के इर्द-गिर्द हमारे संबंध बने हैं."
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय के अनुसार, चीनी प्रधानमंत्री के इमरान ख़ान को लिखे पत्र मे कहा गया था कि चीन और पाकिस्तान पड़ोसी दोस्त हैं जो पहाड़ों और पानी से जुड़े हुए हैं. (bbc.com)
वाशिंगटन, 30 जून | कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 18.17 करोड़ हो गए, जबकि इस महामारी से मरने वालों की संख्या बढ़कर 39.3 लाख हो गई। जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने यह जानकारी दी। बुधवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने बताया कि वर्तमान वैश्विक मामले और मौतों की संख्या बढ़कर क्रमश: 181,750,422 और 3,936,463 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,651,870 और 604,457 के साथ अमेरिका सबसे ज्यादा प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 30,316,897 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
3 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश ब्राजील (18,513,305), फ्रांस (5,835,885), रूस (5,428,961), तुर्की (5,420,156), यूके (4,791,628), अर्जेंटीना (4,447,701), इटली (4,259,133), कोलंबिया (4,213,074) हैं। , स्पेन (3,799,733), जर्मनी (3,735,399) और ईरान (3,192,809) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 515,985 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (397,637), मैक्सिको (232,608), पेरू (191,899), रूस (132,314), यूके (128,390), इटली (127,542), फ्रांस (111,230) और कोलंबिया (105,934) में 100,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है। (आईएएनएस)
दुनियाभर में फैले रेलवे के जाल ने आवागमन तो आसान किया लेकिन इसके साथ ही कथित तौर पर कई रहस्यमयी हादसे होते रहे. जैसे कई रेलवे स्टेशनों पर पारलौकिक ताकतों का बसेरा होने जैसी मान्यता है. लेकिन इटली की एक ट्रेन रहस्यों में सबसे ऊपर है. साल 1911 में जेनेटी नाम की कंपनी की ट्रेन अपने गंतव्य तक पहुंचने से पहले एक सुरंग में गायब हो गई. इसमें सौ से ज्यादा यात्री थे. बाद में जहां-तहां ट्रेन के दिखने के दावे आने लगे. इसका सच आज तक पता नहीं लग सका है.
पहले विश्व युद्ध से पहले की घटना
बात शुरू होती है जून 1911 से. उसी साल जून में एक इटालियन रेलवे कंपनी Zanetti ने अपनी ट्रेन के नए मॉडल के लिए एक फ्री राइड देने का एलान किया. इसके लिए 100 यात्रियों समेत 4 रेलवे कर्मचारी थे. ट्रेन में खाने-पीने का अच्छा बंदोबस्त था और यात्री आराम से गंतव्य तक पहुंचने का इंतजार कर रहे थे. इसी दौरान एक सुरंग में पहुंचते के बाद ट्रेन गायब हो गई. उसके बारे में काफी सारी खोजबीन हुई लेकिन ट्रेन का कोई पता नहीं चला.
आगे की कहानी बाद में सामने आई
दरअसल ट्रेन के 104 लोगों में से 2 यात्री सुरक्षित बाहर आ गए. वे मानसिक तौर पर काफी परेशान थे और काफी बुरी हालत में थे. काफी इलाज और मानसिक सेहत के इलाज के बाद यात्री आखिरकार सामान्य हो सके. हालांकि वे इस घटना के बारे में कुछ भी कहने को तैयार नहीं थे. आखिरकार उनमें से एक यात्री ने बताया कि उस रोज जैसे ही वे सुरंग तक पहुंचे थे, ट्रेन में गाढ़े सफेद रंग का धुआं भरने लगा था. लोग एकाएक घबरा गए और चीखने-चिल्लाने लगे. लगभग सबको लगा कि ट्रेन के साथ कोई बड़ा हादसा हो गया है.
पारलौकिक ताकतों की बात कही गई
इसी अफरातफरी में दो यात्री ट्रेन से किसी तरह बाहर निकल आए. वे किस तरह से बंद ट्रेन से बाहर आ सके, इसके बारे में भी खुद वे भी नहीं जानते थे. बाद में उस सुरंग को पूरी तरह से बंद कर दिया गया. इस हैरतअंगेज घटना के बाद भी ट्रेन का रहस्य और गहराता चला गया. कई लोगों के मुताबिक ट्रेन को किसी पारलौकिक ताकत ने जकड़ लिया और वे टाइम ट्रैवल करते हुए भूतकाल में पहुंच गई. कई मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ये 1840 के मैक्सिको में पहुंच गई थी.
दशकों बाद मैक्सिको की एक डॉक्टर ने दावा किया था कि वो जिस अस्पताल में काम करती है, वहां 104 लोगों को भर्ती कराया गया था, लेकिन वे सारे लोग मानसिक तौर पर विक्षिप्त हो चुके थे. वे यह कहते जा रहे थे कि वे किसी ट्रेन से आए हैं लेकिन कोई डीटेल नहीं दे पा रहे थे.
कई देशों में ट्रेन के दिखने के दावे
यहां तक कि इटली, रूस, जर्मनी और रोमानिया के कई हिस्सों में इस ट्रेन को देखे जाने का दावा किया जा चुका है. हर बार जिस ट्रेन को देखे जाने का लोगों ने जिक्र किया, वो ठीक वैसी ही थी जैसी ट्रेन 1911 में गायब हो गई थी.
नहीं मिलते हैं प्रमाण
वैसे इस भुतहा ट्रेन के बारे में कोई खास प्रमाण नहीं मिलते हैं. उस दौर में इटली के कई सम्मानित स्थानीय लोगों को लेकर यात्रा करती और गायब हुई ट्रेन के बारे में स्थानीय स्तर पर खबरें आईं और बाद में वे भी एकाएक हटा ली गईं. इसका घटना का नामोनिशान तक मिट रहा था लेकिन बीच-बीच में ऐसी चीजें आ जाती हैं, जो इस गायब हुई ट्रेन के यात्रियों से जुड़ी होती हैं.
देश में हैं ऐसे कई रहस्य
दूसरे देश ही नहीं, बल्कि खुद हमारे देश में भी कई रेलवे स्टेशनों को रहस्यमयी माना जाता है. जैसे पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में बेगुनकोडोर रेलवे स्टेशन देश का सबसे हॉन्टेड स्टेशन कहा जाता रहा. इस स्टेशन का उद्घाटन 1960 में हुआ था. कहा जाता है कि एक संथाल रानी ने इसे खुलवाने में अहम भूमिका निभाई थी.
कहा गया हॉन्टेड स्टेशन
स्टेशन की शुरुआत में तो सब ठीक चलता रहा लेकिन अचानक 7 सालों बाद रहस्यमयी हादसे होने लगे. खौफ बढ़ने लगा और हालत ये हो गई कि यहां पर काम करने से रेलवे के लोग इनकार करने लगे और स्टेशन पर ताला लग गया. सालों तक यहां कोई भी ट्रेन नहीं रुकी थी. ट्रेनें गुजरती भीं तो इस रूट पर लोको पायलट ट्रेन की रफ्तार तेज कर देते ताकि कोई हादसा न हो.
नहीं हुआ कोई हादसा
साल 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने बेगुनकोडोर स्टेशन को एक बार फिर चालू करवाया. अब यहां पर घूमने-फिरने के लिए विदेशी सैलानी आते हैं, जिन्हें हॉन्टेड टूरिज्म में दिलचस्पी है. स्टेशन के दोबारा शुरू होने के बाद यहां पर किसी भी तरह की रहस्यमयी एक्टिविटी नहीं देखी गई.
ऑकलैंड, 29 जून | न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियम्सन ने कहा है कि वह भारतीय कप्तान विराट कोहली के साथ अच्छी दोस्ती का आनंद लेते हैं।
न्यूजीलैंड ने हाल ही में कोहली की कप्तानी वाली टीम इंडिया को विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (डब्ल्यूटीसी) के फाइनल में आठ विकेट से हराया था।
कोहली और विलियम्सन पहली बार 2008 में आईसीसी अंडर-19 विश्व कप के दौरान मिले थे जहां भारत ने सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड को तीन विकेट से हराया था।
विलियम्सन ने इंडिया टुडे से कहा, "कोहली और मैं लंबे समय से एक दूसरे को जानते हैं और काफी अच्छे दोस्त हैं। ऐसे में हमारी कुछ अपनी समान रूचि भी होती है।"
कोहली ने भी हाल ही में कहा था कि न्यूजीलैंड ने इस खिताब को जीतने के लिए निरंतरता और दिल दिखाया था।
कोहली ने कीवी टीम की जीत के बाद कहा था, "विलियम्सन और उनकी पूरी टीम को बधाई। इन्होंने इस खिताब को जीतने और हमारे ऊपर दबाव डालने के लिए निरंतरता दिखाई। वह जीत के हकदार थे।"(आईएएनएस)
बाइडेन इस्राएल को आश्वस्त करना चाहते हैं कि उनका प्रशासन परमाणु समझौते में फिर से शामिल होना चाहता है, लेकिन वह परमाणु-सशस्त्र ईरान को बर्दाश्त नहीं करेगा. उन्होंने मध्य पूर्व में हवाई हमले का भी बचाव किया है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने सोमवार, 28 जून को व्हाइट हाउस में इस्राएल के राष्ट्रपति रूवेन रिवलिन से मुलाकात की और ईरान पर अपना कड़ा रुख दोहराते हुए कहा कि हालांकि उनका प्रशासन 2015 के परमाणु समझौते में शामिल होने की मांग कर रहा है, लेकिन वे परमाणु हथियारों को लेकर सख्त हैं. ओवल ऑफिस में इस्राएल के राष्ट्रपति रिवलिन के बगल में बैठे अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा, "मैं आपको केवल इतना बता सकता हूं कि ईरान को मेरी देखरेख में कभी भी परमाणु हथियार नहीं मिल सकता है."
ईरान के साथ परमाणु समझौते पर बातचीत का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है." 2018 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका को परमाणु समझौते से अलग कर लिया था. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने समझौते को बहाल करने के लिए ईरान समेत छह देशों के समूह के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का ऐलान किया है. अब, यूरोपीय देशों की मदद से अमेरिका समझौते में फिर से शामिल होने की कोशिश कर रहा है. परमाणु कार्यक्रम के लिए संयुक्त समग्र कार्ययोजना (जेसीपीओए) के खिलाफ इस्राएल जोरदार तरीके से सामने आया है.
बाइडेन से मुलाकात के बाद इस्राएल के राष्ट्रपति ने संवाददाताओं से कहा कि वह ईरान पर अमेरिकी राष्ट्रपति के बयान से "संतुष्ट" हैं और दोनों देशों को "सहयोग करने की जरूरत है." यह रिवलिन की इस्राएल के राष्ट्रपति के रूप में अमेरिका की अंतिम यात्रा है, क्योंकि यहूदी एजेंसी के अध्यक्ष इसाक हेर्जोग 9 जुलाई से नए राष्ट्रपति का पद संभालने जा रहे हैं.
बाइडेन-बेनेट की मुलाकात पर नजर
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें जल्द ही इस्राएल के नए प्रधानमंत्री नफताली बेनेट से मिलने की उम्मीद है. इससे पहले व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि दोनों पक्ष बैठक के लिए उपयुक्त तारीख पर चर्चा कर रहे हैं. बेनेट ने इस्राएल के नए प्रधानमंत्री के रूप में 13 जून को शपथ ली थी. गठबंधन सरकार अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं वाली आठ पार्टियों से बनी है, जिनमें दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी यामिना पार्टी से लेकर अरब इस्लामिक कंजर्वेटिव राम पार्टी तक शामिल हैं. 120 सदस्यीय संसद में गठबंधन दलों के कुल 61 सदस्य हैं. गठबंधन सरकार में कुल तीन दक्षिणपंथी, दो मध्यमार्गी, दो वामपंथी और एक अरब दल शामिल हैं.
सीरिया-इराक सीमा पर हवाई हमले का बचाव
रविवार को सीरियाई-इराकी सीमा पर ईरान समर्थित आतंकवादियों पर अमेरिका ने हवाई हमले किए थे. बाइडेन ने इस हमले का बचाव किया है. अमेरिकी प्रतिनिधि सभा के कुछ सदस्यों का विचार है कि इस तरह के हवाई हमले कांग्रेस की औपचारिक स्वीकृति के बिना अवैध हैं. हालांकि बाइडेन ने रिवलिन के साथ बैठक के दौरान कहा, "मेरे पास वह अधिकार है."
अमेरिकी सेना पर रॉकेट हमले
अमेरिका ने इराक और सीरिया के सीमावर्ती क्षेत्रों में ईरानी समर्थित आतंकवादी समूहों के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किया है. अधिकारियों का कहना है कि क्षेत्र में सक्रिय आतंकवादी इराक में अमेरिकी कर्मियों और प्रतिष्ठानों के खिलाफ ड्रोन हमलों में शामिल रहे हैं, जिस कारण हवाई हमले हुए हैं. सोमवार को पूर्वी सीरिया में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर एक रॉकेट हमला हुआ था. अधिकारियों के मुताबिक रॉकेट हमले ईरानी समर्थित मिलिशिया द्वारा किए जाने की संभावना है. अमेरिकी सेना ने भी हमलों का जवाब दिया है.
इस साल जनवरी में बाइडेन के सत्ता संभालने के बाद से क्षेत्र में ईरानी समर्थित सशस्त्र समूहों के खिलाफ यह अपनी तरह का दूसरा बड़ा अभियान है. इस तरह का पहला ऑपरेशन फरवरी में हुआ था, जिसमें करीब 20 आतंकियों के मारे जाने की खबर थी. सीरिया में भी समय-समय पर इस्राएल इन ठिकानों पर हमले करता आया है.
एए/सीके (एपी, एएफपी)
इस हफ्ते एक ऐसी फिल्म रिलीज हो रही है जो सोशल मीडिया साइट ट्विटर पर किए गए कई ट्वीट्स पर आधारित है. 148 ट्वीट्स में एक यौनकर्मी द्वारा बताए गए अनुभवों को फिल्म का रूप दिया गया है.
एक महिला ने 2015 में अमेरिका के फ्लोरिडा में यौन तस्करी को लेकर अपने अनुभवों को ट्विटर पर लिखा था, जिसे अब एक फिल्म का रूप दिया गया है. इस फिल्म का नाम है जोला.
जोला की कहानी आजिया जोला किंग के 148 ट्वीट्स की एक सीरीज पर आधारित है. ये ट्वीट बाद में एक लेख के रूप में रोलिंग स्टोन पत्रिका में भी छपे थे. कहानी डेट्रॉयट में रेस्तरां में काम करने के साथ-साथ उत्तेजक डांस करने वाली जोला की है, जिसका ग्राहक स्टेफनी उसे एक सप्ताहांत के लिए फ्लोरिडा घूमने जाने को तैयार कर लेता है.
लेकिन यह यात्रा उसके लिए एक भयानक अनुभव साबित हुई क्योंकि जोला को पता चला कि वह महिलाओं की दलाली करने वाले व्यक्ति के साथ यात्रा कर रही है, जिसकी मंशाएं खतरनाक हैं.
एक इंटरव्यू में किंग ने बताया, "मैं यौन कर्म करती हूं और ऐसा करने में मुझे पूरा अत्मविश्वास है. लेकिन यहां फर्क ये था कि मुझे ऐसे हालात में धकेला जा रहा था जहां बात यौनकर्म के लिए तस्करी में बदल गई थी.”
ऐसे बनी कहानी
किंग ने अपने उस अनुभव को एक सिलसिले के रूप में ट्विटर पर लिखा. ट्वीट्स के उस सिलसिले ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया और #TheStory नाम से एक हैश टैग ट्रेंड होने लगा. किंग ने अपने ट्वीट्स में कुछ लोगों के नाम भी लिए थे, जिन्होंने घटनाओं के ब्यौरे पर असहमति जताई.
बड़े पर्दे पर अपनी जिंदगी को दोहराया जाता देखने के बाद फिल्म की निर्माता किंग कहती हैं, "उस अनुभव पर अब मुझे कुछ भी महसूस नहीं होता. अब मैं एकदम अलग इन्सान हूं. एक अलग मुकाम पर हूं. अब जब मैं वह फिल्म देखती हूं तो मैं इसके कलात्मक पक्ष का आनंद लेती हूं, जो बहुत अलग-अलग मुद्दों पर बात करती है. यह यौनकर्म पर बात करती है, नस्लवाद पर बात करती है, नारीवाद पर बात करती है.”
फिल्म में जोला का किरदार अदाकारा टाइलर पेज ने निभाया है जो इससे पहले ‘मा रेनीज ब्लैक बॉटम' जैसी चर्चित फिल्म कर चुकी हैं. दलाल के रूप में स्टेफानी का किरदार मैड मैक्स और अर्थक्वेक बर्ड में नजर आ चुके राइली कीफ ने निभाया है.
पेज कहती हैं कि वह फिल्म में अपने किरदार को लेकर शुरुआत में कुछ तनाव में थीं. उन्होंने कहा, "मुझे कुछ तनाव तो था क्योंकि मुझे जोला के साथ ज्यादा वक्त बिताने का मौका नहीं मिला था. लेकिन (निर्देशक) यानित्सा (ब्रावो) ने मुझसे कहा कि यह घटनाओं का बढ़ा-चढ़ाकर किया हुआ वर्णन है. यह एक अवधारणा की व्याख्या की भी व्याख्या है.”
यौन तस्करी की गंभीरता
पूरी दुनिया में यौनकर्म के लिए महिलाओं की तस्करी एक गंभीर समस्या बनी हुई है. संयुक्त राष्ट्र ने 2019 की एक रिपोर्ट में कहा था, "तस्करों और अपराधियों द्वारा प्रवासन मार्गों, हिरासत केंद्रों, जेलों और शहरी प्रवासियों के खिलाफ उग्रवादियों और सशस्त्र समूहों द्वारा यौन हिंसा जारी है." संयुक्त राष्ट्र ने पिछले साल यौन अपराधों से निपटने के लिए सुरक्षा अधिकारियों को तैनात करने का फैसला किया था. लेकिन उन्हें अभी तक भर्ती भी नहीं किया गया है.
हाल ही में पकड़े गए कई मामलों से आशंका जन्मी है कि एशिया महिलाओं की यौनकर्म के लिए तस्करी का केंद्र बनता जा रहा है. हाल के दिनों में पुलिस ने कई ऐसे मामले पकड़े हैं जबकि महिलाओं की तस्करी करने वाले गिरोह एशिया के विभिन्न हिस्सों में सक्रिय थे. मार्च में फिलीपींस में आप्रवासन अधिकारियों पर 44 महिलाओं को सीरिया में बेच देने के आरोप लगे थे. संसद की सीनेट द्वारा की गई जांच में पता चला था कि नौकरी का झूठा वादा कर महिलाओं को पर्यटक वीजा पर फिलीपींस से दुबई भेजा गया. 30 दिनों के बाद जब वीजा की समय-सीमा खत्म हो गई तब उन्हें जबरन सीरिया की राजधानी दमिश्क भेज दिया गया. वहां उन्हें 10,000 डॉलर तक की कीमत में बेच दिया गया.
हाल ही में नेपाल की सरकार ने महिलाओं को तस्करी से बचाने के लिए एक नए कानून का प्रस्ताव पेश किया था जिसमें 40 साल से कम उम्र की विदेश जाने वाली इन महिलाओं को अपने परिवार और स्थानीय वॉर्ड कार्यालय से सहमति लेनी होगी. अधिकारियों का कहना है कि कमजोर तबके की नेपाली महिलाओं को मानव तस्करी का शिकार होने से बचाने के लिए इस कानून की जरूरत है.
वीके/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पता चला है कि एस्ट्राजेनेका वैक्सीन की दूसरी और तीसरी खुराक में देर होने के बावजूद इसकी वायरस से बचाने की क्षमता बनी रहती है. शोध पर अभी अन्य वैज्ञानिकों की टिप्पणियां आनी बाकी हैं.
सोमवार को जारी हुई ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि पहली और दूसरी खुराक के बीच 45 हफ्ते का अंतराल भी इम्यूनिटी बनाए रखने में कामयाब रहा. मुख्य शोधकर्ता ऐंड्रयू पोलार्ड कहते हैं, "जिन देशों में वैक्सीन की सप्लाई कम है, उनके लिए यह सूचना राहत देने वाली होनी चाहिए क्योंकि उन्हें शायद इस बात की फिक्र है कि वे अपनी जनता को दूसरी खुराक नहीं दे पा रहे हैं.”
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा है कि तीसरी खुराक को बूस्टर डोज के तौर पर इस्तेमाल करने के नतीजे भी सकारात्मक मिले हैं. शोध से जुड़ीं टेरेसा लाम्बे बताती हैं, "अभी यह नहीं पता है कि इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए या वायरस के विभिन्न स्वरूपों के खिलाफ इम्यूनिटी के लिए तीसरी खुराक की जरूरत होगी या नहीं लेकिन जरूरत पड़ती है तो नतीजे सकारात्मक रहे हैं.”
फिलहाल 160 देश एस्ट्राजेनेका वैक्सीन का ही इस्तेमाल कर रहे हैं. कम दाम और लाने-ले जाने में सुगमता के कारण इस वैक्सीन को प्राथमिकता दी गई है. हालांकि कुछ कारणों से इस वैक्सीन पर लोगों का भरोसा गिर गया था. बहुत कम संख्या में ही सही, लेकिन ऐसे मामले सामने आए थे जिनमें एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के बाद मरीजों में खून के थक्के बने.
मिला-जुलाकर वैक्सीन देना भी कारगर
ऑक्सफर्ड की ही एक अन्य रिसर्च में यह पाया गया है कि फाइजर-बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को मिलाकर देना भी कारगर है. शोधकर्ताओं ने पाया कि दो खुराकों के मिश्रण ने वायरस के खिलाफ ज्यादा एंटीबॉडी बनाए.
वैज्ञानिकों ने मरीजों को फाइजर-बायोएनटेक और एस्ट्राजेनेका की दो खुराकों का अलग-अलग मिश्रण दिया. यानी कुछ मरीजों को दोनों खुराक एक ही वैक्सीन की दी गईं जबकि कुछ को पहली खुराक फाइजर और दूसरी एस्ट्राजेनेका की, जबकि कुछ को पहली खुराक एस्ट्राजेनेका और दूसरी फाइजर की दी गई.
शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी और टी-सेल की प्रतिक्रिया दोनों का ही अध्ययन किया. एंटीबॉडी वायरस को कोशिकाओं को संक्रमित करने से रोकते हैं जबकि टी-सेल पहले से ही संक्रमित हो चुकीं कोशिकाओं को खोजकर उन्हें नष्ट कर देते हैं.
रिसर्च में पाया गया कि फाइजर-बायोएनटेक की दो खुराकों ने एंटीबॉडी बनाने में सबसे जोरदार प्रतिक्रिया दी. लेकिन जब फाइजर और एस्ट्राजेनेका की एक-एक खुराक दी गई, तो एस्ट्रेजेनेका की ही दोनों खुराकों के मुकाबले यह ज्यादा असरदार साबित हुई. फाइजर की पहली और एस्ट्राजेनेका की दूसरी खुराक देने पर टी-सेल की प्रतिक्रिया सबसे अच्छी रही.
नतीजे बहुत अहम नहीं
यह परीक्षण 830 लोगों पर किया गया, जिन्हें चार हफ्ते के अंतराल पर खुराक दी गई थीं. इस अध्ययन पर भी अन्य वैज्ञानिकों की टिप्पणियां आनी बाकी हैं.
एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एस्ट्राजेनेका फार्मा कंपनी के साथ मिलकर विकसित किया है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि इस अध्ययन के नतीजे टीकाकरण में लचीलापन ला सकते हैं. हालांकि उन्होंने चेतावनी दी है कि ये नतीजे इतने अहम नहीं हैं कि इनके आधार पर टीकाकरण के बारे में पहले से दिए गए निर्देशों का पालन ही ना किया जाए.
वैक्सीन के परीक्षणों में शामिल रहे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैथ्यू स्नेप ने कहा, "यह उत्साहजनक है कि खुराकों को मिला-जुलाकर देने से एंटीबॉडी और टी-सेल की सकारात्मक प्रतिक्रिया रही है. लेकिन जब तक कि बहुत बड़ी वजह ना हो, वैसा ही करते रहना चाहिए जो साबित हो चुका है कि वाकई काम करता है.”
वीके/एए (एएफपी, रॉयटर्स)
अमेरिका और उसके कई यूरोपीय सहयोगियों ने अफ्रीका में इस्लामिक स्टेट के बढ़ते खतरे पर चिंता जताई है. इटली की राजधानी रोम में एक सम्मेलन में आतंकवाद से लड़ने की रणनीतियों पर चर्चा हुई.
83 देशों के विदेश मंत्रियों के एक सम्मेलन में अमेरिका और जर्मनी ने चेतावनी दी है कि अफ्रीका में इस्लामिक स्टेट अपने पांव पसार रहा है. जर्मनी के विदेश मंत्री हाइको मास ने कहा कि इस उग्रवादी संगठन को अभी हराया नहीं जा सका है.
मास ने कहा कि अपने जन्मस्थल सीरिया और इराक के बाहर इस संगठन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. उन्होंने कहा, "इराक और सीरिया में आईएस को पीछे धकेल दिया गया है लेकिन हराया नहीं जा सका है.” उन्होंने अफगानिस्तान में आईएस के बढ़ते प्रभाव पर भी चिंता जताई.
मास ने हालांकि माली से तुरंत फौजें वापस बुलाने की संभावना को खारिज कर दिया. माली में पिछले हफ्ते ही एक आतंकी हमले में 12 सैनिक घायल हो गए थे. उन्होंने कहा, "हमें यह समझना होगा कि इस क्षेत्र में आतंक का गढ़ बनने का खतरा बढ़ रहा है. इसलिए यहां सहयोगियों के साथ लगातार वाद-संवाद बनाए रखना जरूरी है.” जर्मनी के करीब 250 सैनिक इराकी फौजों को ट्रेनिंग दे रहे हैं.
अफ्रीका पर ध्यान
सम्मेलन के आयोजक इटली ने कहा कि अफ्रीका में अतिवादियों के खतरे से निपटने के लिए वह एक टास्क फोर्स बनाना चाहता है. हालांकि विदेश मंत्री लुइजी डी मायो ने इस योजना पर विस्तार से कुछ नहीं बताया. उन्होंने मीडिया से कहा कि इस महाद्वीप में आईएस के खतरों को पहचानना और रोकना जरूरी है.
अमेरिका विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन भी इस सम्मेलन में मौजूद रहे. उन्होंने अफ्रीका महाद्वीप में आतंकवाद के खतरों से निपटने में इटली की मदद करने का वादा किया. उन्होंने कहा, "हम इटली की पहल का पूरी मजबूती से समर्थन करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दाएश के विरुद्ध गठबंधन का ध्यान अफ्रीका पर केंद्रित रहे, जबकि सीरिया और इराक पर करीबी नजर बनी रहे.”
पिछले हफ्ते ही जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने पश्चिमी अफ्रीका में आतंकवाद से लड़ने के लिए और ज्यादा अंतरराष्ट्रीय सहयोग की अपील की थी. शुक्रवार को माली में हुए हमले के बाद फ्रांस और जर्मनी की संसदों के संयुक्त सत्र में उन्होंने कहा, "आने वाले दिनों में हमें इन सारे अभियानों को एक साथ लाना होगा और उनके बीच तालमेल बढ़ाना होगा.”
सीरिया पर अमेरिका की चेतावनी
अमेरिकी विदेश मंत्री ने गठबंधन के साझीदारों से सीरिया के शिविरों में रह रहे अपने-अपने नागरिकों को वापस लाने का आग्रह किया. ब्लिंकेन ने कहा कि कुर्द फौज सीरियन डेमोक्रैटिक फोर्सेस की अगुआई में चलाए जा रहे शिविरों में दस हजार ऐसे संदिग्ध आईएस लड़ाके रह रहे हैं, जिन्हें युद्ध के दौरान गिरफ्तार किया गया था. इस स्थिति को अस्थिर बताते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा अनिश्चित काल तक नहीं चल सकता.
2019 में इस्लामिक स्टेट पूर्वी सीरिया में अपना आखिरी कब्जा भी हार गया था. हालांकि सीरिया और इराक में यह संगठन आज भी सक्रिय है और यदा कदा आतंकवादी हमलों को अंजाम देता रहता है. इस साल जनवरी में इराक की राजधानी बगदाद में हुए एक हमले में कम से कम 30 लोग मारे गए थे. इसी महीने की शुरुआत में आईएस ने अफगानिस्तान में हुए एक आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें 10 लोगों की जान चली गई थी.
इस संगठन से जुड़े लोग दुनिया के कई हिस्सों में सक्रिय माने जाते हैं, जिनमें अफगानिस्तान, यमन, मिस्र का उत्तरी सिनाई और पश्चिमी अफ्रीका शामिल हैं.
वीके/एए (एएफपी, डीपीए)
वाशिंगटन, 29 जून| कोरोना के वैश्विक मामले बढ़कर 18.13 करोड़ हो गए, जबकि इससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़कर 39.3 लाख हो गई है। जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय ने यह जानकारी दी।
मंगलवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में, यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामले और इस महामारी से मरने वालों की संख्या क्रमश: 181,374,710 और 3,928,409 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दुनिया के सबसे अधिक मामलों और मौतों की संख्या क्रमश: 33,639,971 और 604,114 के साथ अमेरिका सबसे अधिक प्रभावित देश बना हुआ है।
संक्रमण के मामले में भारत 30,279,331 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
30 लाख से अधिक मामलों वाले अन्य सबसे प्रभावित देश ब्राजील (18,448,402), फ्रांस (5,832,490), तुर्की (5,414,310), रूस (5,408,744), यूके (4,771,289), अर्जेंटीना (4,423,636), इटली (4,258,456), कोलंबिया (4,187,194) हैं। , स्पेन (3,792,642), जर्मनी (3,734,830) और ईरान (3,180,092) हैं।
मौतों के मामले में ब्राजील 514,092 मौतों के साथ दूसरे नंबर पर है।
भारत (396,730), मेक्सिको (232,564), पेरू (191,899), रूस (131,671), यूके (128,367), इटली (127,500), फ्रांस (111,174) और कोलंबिया (105,326) में 100,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है। (आईएएनएस)