लुइस बारुको
दक्षिण अमेरिका के इकलौते अंग्रेजी भाषी देश गुयाना को ब्रिटेन ने उपनिवेश के तौर पर बसाया था.
गुलाम प्रथा की समाप्ति के बाद, ब्रिटेन के औपनिवेशिक देशों में सबसे ज़्यादा भारतीय नागरिक अप्रवासी बनकर गुयाना में ही बसे.
यही वजह है कि ब्राज़ील की सीमा से सटे और शताब्दियों से वेनेजुएला के साथ सीमा विवाद वाले देश गुयाना में हर दस नागरिकों में चार मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप से जुड़े हैं.
इनमें भारत के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश के नागरिक भी शामिल हैं.
1947 से पाकिस्तान और बांग्लादेश आज़ाद नहीं हुए थे, ये दोनों भारत के हिस्से के तौर पर ब्रिटिश शासन के अधीन थे.
गुयाना के मौजूदा राष्ट्रपति इरफ़ान अली भी इन्हीं लोगों में शामिल हैं. अली गुयाना के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, गुयाना की बाक़ी की आबादी में 30 प्रतिशत अफ्रीकी मूल के हैं, जबकि 17 प्रतिशत आबादी मिश्रित समूह की है. जबकि नौ प्रतिशत लोग अमेरिकी मूल के हैं.
हालांकि लोगों के लिए ये कौतूहल का ही विषय है कि किस तरह से आंध्र प्रदेश जितने क्षेत्रफल वाले इस छोटे से सुदूर दक्षिण अमेरिकी देश में भारतीय नागरिक आकर बसे होंगे.
गुयाना का क्षेत्रफल एक लाख 60 हज़ार वर्ग किलोमीटर है.
भारत से पहुंचे प्रवासी
दरअसल 1814 में ब्रिटेन ने नेपोलियन के साथ युद्ध के दौरान गुयाना पर कब्ज़ा किया और बाद में इसे उपनिवेश के तौर पर ब्रिटिश गुयाना के तौर पर बदल दिया.
इससे पहले इस देश पर फ्रेंच और डच नागरिकों का प्रभुत्व था.
महज 20 साल बाद 1834 में दुनिया भर के ब्रिटिश उपनिवेशों में गुलामी प्रथा या बंधुआ मजदूरी का अंत हुआ. गुयाना में भी बंधुआ मजदूरी के ख़त्म होने के बाद मजदूरों की भारी मांग होने लगी थी.
ऐसे समय में ही भारतीय नागरिकों का दल गुयाना पहुंचा था. ऐसा केवल गुयाना में ही नहीं हुआ बल्कि जमैका, त्रिनिडाड, कीनिया और यूगांडा जैसे देशों में भी हुआ.
गुयाना पहुंचने वाले प्रवासी भारतीयों के दल में 396 लोग शामिल थे. इन लोगों को ग्लैडस्टोन कुलीज के तौर पर जाना गया क्योंकि ये लोग ब्रिटिश गुयाना में गन्ने की खेती कराने वाले जॉन ग्लैडस्टोन के मज़दूर थे.
एशिया, ख़ासकर भारत और चीन में 19वीं एवं 20वीं शताब्दी में हाथों से काम करने वाले मज़दूरों को ऐतिहासिक तौर पर 'कुली' कहा जाता था.
आज भी विकसित देशों में एशिया मूल के लोगों के लिए अपमानजनक और नस्लीय टिप्पणी करने के लिए 'कुली' शब्द का इस्तेमाल होता है.
ये प्रवासी शुरू में दो जहाजों, एमवी व्हिटबी और एमवी हेस्परस के ज़रिए आए थे.
गुयाना पहुंचने के लिए इन मज़दूरों ने पहले हिंद महासागर और फिर अटलांटिक महासागर को पार किया था.
इन मज़दूरों को एक समझौते के तहत लाया गया था, जिसमें थोड़ी सी रकम के बदले उन्हें गन्ने के खेतों में कई सालों तक काम करना था.
भारत से कितने गिरमिटिया मज़दूर गए?
गुयाना शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक यह व्यवस्था 75 वर्षों से अधिक समय तक चलन में रही और इसमें 'गुलामी प्रथा की याद दिलाने वाली' ख़ासियत मौजूद थी.
एक दशक के अंदर ही भारतीय अप्रवासी मज़दूरों की मेहनत के चलते ब्रिटिश गुयाना की अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का वर्चस्व दिखने लगा है.
इसे क्रांतिकारी बदलाव माना गया और इससे उपनिवेश में काफ़ी हद तक आर्थिक उन्नति देखने को मिली.
अनुबंध की समाप्ति के बाद कुछ लोग भारत लौट आए जबकि अन्य लोग तत्कालीन ब्रिटिश गुयाना में ही बस गए.
आंकड़ों के मुताबिक 1838 से 1917 के बीच करीब 500 जहाजों के ज़रिए 2,38,909 भारतीयों को गिरमिटिया मजदूरों के रूप में ब्रिटिश गुयाना लाया गया था.
अंग्रेजी भाषी उपनिवेशों में, गुयाना एक ऐसी जगह थी, जहां भारत से सबसे अधिक गिरमिटिया मज़दूरों को लाया गया था.
आज तक गुयाना पहले भारतीयों के आगमन के दिन यानी 5 मई को राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाता है.
1966 में गुयाना ब्रिटिश उपनिवेश से आज़ाद हुआ, लेकिन भारतीय मूल के लोगों की उपस्थिति यहां हर तरफ दिखती है.
यही वजह है कि दिवाली और होली जैसे प्रसिद्ध भारतीय उत्सव भी गुयाना कैलेंडर में मौजूद हैं. (bbc.com)