राजनीति
पटना, 16 अक्टूबर| बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने शुक्रवार को दावा करते हुए कहा कि लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) स्वयं निर्णय लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से अलग हुई है। उन्होंने लोजपा के सरकार बनाने के दावे पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जो पार्टी बिहार में एक सीट भी नहीं जीत सकती है, वह सरकार बनाने का दावा कर भ्रम फैला रही है। पटना में मोदी ने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि लोजपा के नेता झूठ बोल रहे हैं। उन्होंने लोजपा नेता के दावे को झूठा व बेबुनियाद करार देते हुए कहा कि गृह मंत्री अमित शाह से टेलीफोन पर मेरी बातें हुई हंै, लोजपा नेता और गृह मंत्री के बीच चुनाव को लेकर कभी कोई बात नहीं हुई।
मोदी ने कहा, "सीटों की संख्या को लेकर विवाद था, भाजपा जितनी सीटें दे रही थी, लोजपा उससे काफी अधिक सीटें मांग रही थी, जिसके कारण वार्ता टूटी और लोजपा स्वयं निर्णय लेकर गठबंधन से अलग हुई। जो पार्टी बिहार में एक सीट भी नहीं जीत सकती है, वह सरकार बनाने का दावा कर भ्रम फैला रही है।"
मोदी ने कहा कि, "लोजपा नेता कहते हैं कि वह नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे। इसका सीधा मतलब है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के निर्णय का विरोध कर बिहार में भाजपा की सरकार बनने देना नहीं चाहते हैं।"
भाजपा नेता ने सवालिया लहजे में कहा कि, "आखिर यह कैसी राजनीति है कि एक तरफ तो प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ करते हैं और दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा समर्थित नीतीश कुमार का विरोध करते हैं।"
मोदी ने स्पष्ट किया कि लोजपा वोट कटवा है और उसका एक ही मकसद है कि बिहार में राजग की सरकार नहीं बने। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि बिहार में राजग की बहुमत की सरकार बनेगी। (आईएएनएस)
भोपाल, 16 अक्टूबर| मध्य प्रदेश के 28 विधानसभा क्षेत्रों में होने वाले उप-चुनाव के लिए शुक्रवार को नामांकन भरने का अंतिम दिन है। यहां मतदान तीन नवंबर को होना है। गुरुवार तक राज्य में 216 उम्मीदवारों ने 282 नामांकन पर्चे दाखिल किए थे। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, प्रदेश के 19 जिलों के 28 विधानसभा क्षेत्रों में गुरुवार को 92 अभ्यर्थियों के 122 नाम निर्देशन-पत्र जमा किए गए। इस प्रकार अब तक कुल 216 अभ्यर्थियों ने 282 नाम निर्देशन-पत्र जमा किये हैं। शुक्रवार को नामांकन जमा करने की आखिरी तारीख है।
निर्वाचन के तय कार्यक्रम के अनुसार, नाम निर्देशन-पत्र 16 अक्टूबर तक जमा होंगे। नाम निर्देशन-पत्रों की जांच (स्क्रूटनी) 17 अक्टूबर को की जाएगी। नाम वापसी की प्रक्रिया 19 अक्टूबर तक होगी। मतदान तीन नवम्बर और मतगणना 10 नवम्बर को होगी।
राज्य में भाजपा, कांग्रेस और बसपा ने सभी 28 क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे है। वहीं सपाक्स और सपा भी कुछ स्थानों पर उम्मीदवार उतार रही है। कुल मिलाकर इस उप-चुनाव में कई स्थानों पर सीधे मुकाबले की बजाय त्रिकोणीय होने के आसार बन रहे है। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 16 अक्टूबर| बिहार का चुनाव यूं तो जाति और मजहब के नाम पर होता रहा है, लेकिन इस विधानसभा चुनाव में यहां 'राम' और 'रावण' की भी एंट्री हो गई है। बिहार में सत्तारूढ़ पार्टी जनता दल (युनाइटेड) ने पटना के मोकामा विधानसभा क्षेत्र में चुनाव को राम और रावण के बीच का बताया है। इसे लेकर अब सियासी बयानबाजी भी तेज हो गई है।
मोकामा विधानसभा क्षेत्र में मुख्य मुकाबला बाहुबली विधायक अनंत सिंह और साफ सुथरी छवि के राजीव लोचन के बीच माना जा रहा है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी माने जाने वाले मुंगेर के सांसद और जदयू के नेता ललन सिंह ने चुनावी प्रचार के दौरान कहा कि मोकामा विधानसभा सीट पर राम बनाम रावण की लड़ाई है।
उन्होंने महागठबंधन समर्थित राजद के प्रत्याशी अनंत सिंह को रावण का प्रतीक बताया, जबकि जदयू के प्रत्याशी राजीव लोचन सिंह को राम का प्रतीक कहा। जीत के संदर्भ में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, जब भी राम और रावण का मुकाबला होता है तो किसकी जीत होती है यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है।
अनंत सिंह पहली बार विधायक जदयू की टिकट पर ही बने थे। जब इसकी याद सांसद को दिलाई गई तब उन्होंने कहा, वह रावण हैं इसलिए वे रावण की पार्टी में चले गए। अब ठीक हो गया।
उल्लेखनीय है कि अनंत सिंह की पहचान दबंग की रही है। इनकी पहचान उनके क्षेत्र में 'छोटे सरकार' की रही है। पिछले वर्ष अनंत के नदवां गांव स्थित घर से एके-47 राइफल बरामद की गई थी और इसी मामले में वे पटना के बेउर जेल में बंद हैं। यही कारण है कि अनंत सिंह सात अक्टूबर को नामांकन भरने भी कैदी वैन पर सवार होकर जेल से आए थे।
इधर, जदयू के प्रवक्ता राजीव रंजन भी कहते हैं कि 2005 के बाद से बिहार में जंगल राज का सफाया किया जा रहा है। जो कुछ चीजें बच गई हैं, उनका भी इस चुनाव में सफाया तय है। उन्होंने कहा कि राम सदाचार के प्रतीक हैं जबकि रावण अनाचार, भ्रष्टाचार का प्रतीक रहा है।
उल्लेखनीय है कि 2005 से 2015 तक अनंत सिंह जदयू के टिकट पर मोकामा से तीन बार विधानसभा का चुनाव जीते। 2015 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अनंत सिंह पर हत्या के आरोप लगने पर जदयू ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था। वहीं राजीव लोचन की छवि साफ सुथरी रही है। कहा जाता है कि प्रत्येक चुनाव में वे पर्दे के पीछे रहकर राजग प्रत्याशी की यहां मदद करते रहे हैं।
इधर, राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कटाक्ष करते हुए कहा, जब तक अनंत सिंह जदयू में थे तब तक वह राम थे, जैसे ही राजद में आए तो वे रावण हो गए। जिनके घर खुद शीशे के हैं उन्हें किसी दूसरे के घर पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए।
उन्होंने कहा कि 10 नवंबर को पता चल जाएगा कि कौन रावण है, कौन राम। उन्होंने कहा कि रावण सरकार का अब अंत निकट आ गया है। (आईएएनएस)
भोपाल, 16 अक्टूबर| मध्य प्रदेश के उज्जैन में कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से हुई 14 लोगों की मौत और अन्य अपराधों को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा है कि, शिवराज आए और माफिया राज वापस लाए। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कहा प्रदेश में शिवराज सरकार के आते ही शराब माफिया, अपहरण माफिया, अपराध माफिया, भूमाफिया, ड्रग माफिया, सारे तरह के माफिया फिर से सक्रिय हो गए।
उन्होंने आगे कहा कि, उज्जैन में शराब माफिया द्वारा 14 लोगों की जान लेने के बाद अब जबलपुर में एक 12 वर्ष के बालक का अपहरण। अब अपहरण माफिया भी सक्रिय। पूरी सरकार चुनावों में लगी, अभियानों, केम्पेन में लगी हुई है, प्रदेश में सरकार नाम की चीज नहीं, कानून व्यवस्था की स्थिति बदतर, बहन-बेटियां भी असुरक्षित, जनता भगवान भरोसे।
मुख्यमंत्री चौहान द्वारा खुद को जनता का पुजारी बताए जाने वाले बयान पर तंज कसते हुए कमल नाथ ने कहा कि जनता को भगवान व खुद को पुजारी बताने वालों के असली भगवान माफिया-मिलावटखोर बन चुके हैं। (आईएएनएस)
पटना, 16 अक्टूबर| केंद्रीय मंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद ने शुक्रवार को यहां विपक्षी दलों के महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव पर जोरदार निशाना साधा। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि राजद का जन्म ही भ्रष्टाचार के आरोपियों को बचाने के लिए हुआ है। पटना में एक संवाददाता सम्म्ेालन को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री ने राजद और तेजस्वी यादव पर कटाक्ष करते हुए कहा, उन्हें अपनी विरासत दिखाने में शर्म आ रही है, क्योंकि विरासत दिखाएंगे तो खौफ, अपराध, लूट और भ्रष्टाचार की याद आएगी। लेकिन क्या तस्वीर छिपाकर विरासत को भूला जा सकता है?
उल्लेखनीय है कि राजद के कई पोस्टरों से पार्टी के अध्यक्ष लालू प्रसाद और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी की तस्वीर नहीं लगाई गई है।
उन्होंने कहा कि इस चुनाव में मुद्दे स्पष्ट हैं। एक ओर बिहार के विकास की सोच है, एक तरफ जनता के विकास की भागीदारी की सोच, दूसरी तरफ परिवार के जागीर के विस्तार की सोच है।
रविशंकर प्रसाद ने बिना किसी के नाम लिए कहा कि वो राजद के जन्म के कारणों की बात करते हैं। घोटाले में जेल जाने की नौबत आई, इस्तीफे का दबाव बढ़ा, तब जनता दल के मुख्यमंत्री रहे नेता ने राजद बनाई।
उन्होंने एक संस्मरण की चर्चा करते हुए कहा, राजद राज में मुझे गोली लगी थी। प्रमोद महाजन भी थे। प्रमोद महाजन केंद्रीय मंत्री थे। इसके बावजूद दो महीने तक कोई पुलिसवाला हमारा बयान लेने नहीं आया। जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तब जाकर एक इंस्पेक्टर हमारा बयान लेने आया।
इस मौके पर भाजपा नेताओं ने बिहार सरकार के 15 साल के विकास का लेखा-जोखा भी प्रस्तुत किया।
प्रसाद ने राजग सरकार की उपलब्धियांे की चर्चा करते हुए कहा कि, नीतीश कुमार की सरकार बेटियों को साइकिल दे रही है तो केंद्र की राजग सरकार बेटियों को एयरफोर्स का फाइटर प्लेन दे रही है। यह है महिलाओं के प्रति हमारी सोच।
उन्होंने कहा कि, यह गर्व की बात है कि देश की तीन पहली फाइटर पायलटों में से एक दरभंगा की बेटी है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार जल्द ही बिहार के 40 हजार गांवों तक आप्टिकल फाइबर पहुंचाएगी।
इस मौके पर जदयू और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के नेता भी उपस्थित थे। (आईएएनएस)
संदीप पौराणिक
भोपाल, 16 अक्टूबर| मध्य प्रदेश में होने वाले उप-चुनाव का प्रचार जोर पकड़ चुका है और कांग्रेस उम्मीदवारों में सबसे ज्यादा मांग प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और सचिन पायलट की है। पार्टी अभी तक इन नेताओं के दौरों का कार्यक्रम तय नहीं कर पाई है और असमंजस में है कि आखिर इन नेताओं को प्रचार में उतारा जाए या नहीं।
राज्य में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं इनमें 25 सीटें ऐसी हैं जहां के कांग्रेस विधायकों ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थामा था और अब वे भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में है। वहीं तीन स्थानों पर विधायकों के निधन के कारण उपचुनाव हो रहा है।
यह उप-चुनाव दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण है और कांग्रेस बड़ी जीत दर्ज कर सत्ता में वापसी का सपना संजोए हुए है। पार्टी ने स्टार प्रचारकों की जो सूची जारी की है उसमें प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और सचिन पायलट के नाम हैं। इन तीनों नेताओं की राज्य में सबसे ज्यादा मांग कांग्रेस के उम्मीदवार कर रहे हैं। अब से पहले तक राहुल गांधी मध्य प्रदेश के चुनाव में सक्रिय भागीदारी निभा चुके हैं जबकि प्रियंका गांधी की सक्रियता कम ही रही है और सचिन पायलट के सीमित दौरे हुए हैं, मगर इस उपचुनाव में तीनों की मांग सबसे ज्यादा है।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में तीनों नेताओं के नाम हैं और उम्मीदवार भी इनकी मांग कर रहे हैं। राज्य में ग्वालियर-चंबल इलाके की कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां गुर्जर मतदाताओं का प्रभाव है इसीलिए सचिन पायलट की भी मांग है। पार्टी राहुल गांधी और सचिन पायलट के प्रचार में उतारने पर किसी भी तरह के असमंजस में नहीं है, मगर प्रियंका गांधी को लेकर असमंजस बना हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर चुनाव में हार होती है तो विपक्षी दल इसे प्रियंका की लोकप्रियता से जोड़कर प्रचारित करेगा।
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि कांग्रेस के तीनों युवा नेताओं की उप-चुनाव में ज्यादा सक्रियता नजर नहीं आने वाली क्योंकि ज्योतिरादित्य सिंधिया भले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए हों, इन नेताओं की सिंधिया से राजनीतिक तौर पर दूरी बढ़ गई हो, मगर खुले तौर पर सभी एक दूसरे के खिलाफ मोर्चा नहीं खोलना चाहते। इसलिए इन नेताओं के दौरों के कार्यकम को अंतिम रुप नहीं दिया जा रहा है। बीते छह माह के सियासी हाल पर गौर करें तो सिंधिया ने भी कांग्रेस के तीनों नेताओं और तीनों नेताओं ने सिंधिया पर हमला नहीं बोला है।
राजनीतिक विश्लेषक शिव अनुराग पटेरिया का मानना है कि कांग्रेस कभी भी गांधी परिवार के मामले में जोखिम नहीं लेती, इस परिवार के प्रतिनिधियों को उन्हीं क्षेत्रों में प्रचार के लिए भेजा जाता है जहां जीत की संभावना ज्यादा होती है। इसलिए राहुल व प्रियंका को लेकर असमंजस है। दूसरी ओर सचिन पायलट और सिंधिया की दोस्ती जग जाहिर है। इस स्थिति में कांग्रेस ग्वालियर-चंबल इलाके में पायलट का उपयोग करने के साथ यह कोशिश करेगी कि दोनों में दूरी बढ़े और पायलट उनके ही गढ़ में आकर सिंधिया को ललकारें। (आईएएनएस)
पंकज मुकाती
इंदौर, 15 अगस्त (‘छत्तीसगढ़’)। पैसा कैसा सिर चढक़र बोलता है, ये नारायण पटेल ने साबित कर दिया। कांग्रेस छोडक़र भाजपा में गए मान्धाता विधायक ने आज खुलकर बिकने-खरीदने की बात मान ली। उनकी नामांकन रैली में कांग्रेसियों के बिकाऊ नहीं टिकाऊ नारे लगाए। इस पर भडक़े नारायण पटेल बोले ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास इतना पैसा है कि पूरी कांग्रेस खरीद ले।
विश्लेषकों का कहना है कि इस बयान ने जरिये नारायण पटेल ने ये भी बता दिया कि जो भी विधायक भाजपा में गये हैं सबको महाराज के पैसों से खरीदा गया है। भाजपा प्रत्याशी नारायण पटेल की भड़ास निकाली। पटेल ने कहा- ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास इतनी संपत्ति है कि आधी कांग्रेस क्या, पूरी कांग्रेस ही खरीद लें।
बुधवार को नामांकन रैली जब कांग्रेस कार्यालय के सामने से गुजरी तो कांग्रेसियों ने नारेबाजी कर दी। माहौल बिगड़ता देखकर भाजपा के वरिष्ठ नेता कांग्रेस कार्यालय के सामने पहुंचे और कार्यकर्ताओं को समझाने लगे। हालांकि, भाजपा कार्यकर्ता भी पार्टी के नारे लगाते हुए कार्यक्रम स्थल की ओर बढ़ गए थे।
मांधाता सीट से कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधायक नारायण पटेल ने कहा कि यह तो घिसी-पिटी बात हो गई है। इनके पास कोई मुद्दा नहीं है। इनके खिलाफ हमारे 25 विधायकों ने इस्तीफा दिया। हमारे सिंधिया के पास इतनी संपत्ति है कि आधी क्या वे पूरी कांग्रेस खरीद लें।
इतनी बड़ी स्टेट है उनकी। ऐसे लोगों के लिए इनके पास इतने ही शब्द रह गए हैं। 15 माह में कोई विकास तो नहीं किया। अब कांग्रेसियों के पास कोई मुद्दा नहीं है तो ये ऐसी बातें कर रहे हैं।
सांसद नंद कुमार सिंह चौहान ने कहा कि कांग्रेस के 25 विधायकों ने जनहित में इस्तीफे दिए यह उनका त्याग है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के पास विधायकों को सुनने, समझने के लिए टाइम तक नहीं था जब सरकार गिरी तो आरोप लगा रहे हैं। वहीं, कालसन माता मंदिर परिसर की चुनावी सभा में कृषि मंत्री कमल पटेल ने कहा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान गांव, गरीब किसानों के लिए योजना बनाते हैं। इसलिए वे प्रदेश के नायक है। दूसरी तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री खलनायक और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी सिर्फ कार्टून है।
राजनीति के पोस्टर ब्यॉय पोस्टर से भी बाहर ... भाजपा ने समझ लिया कि सिंधिया एक बड़ी भूल है, उनके खिलाफ उठ रही गद्दार की आवाजों के बाद पार्टी ने चुनाव अभियान से सिंधिया को दूर कर दिया, बड़े आयोजन में तो वे पहले भी किनारे कर दिए गए
इंदौर से पंकज मुकाती की विशेष रिपोर्ट
इंदौर, 14 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’)। ज्योतिरादित्य सिंधिया। महाराज सिंधिया। अब किसी काम के नहीं रहे। भाजपा ने तो अब सार्वजनिक रूप से से स्वीकार ही लिया। जो कुछ अंदरखाने चल रहा था, वो अब सामने आ गया। भाजपा ने सिंधिया को अपने चुनावी रथ से उतार ही दिया। गद्दार और महाराज दोनों ही तमगे भाजपा नेताओं को नहीं सुहाए। अंतत: भाजपा ने अपने चुनाव अभियान रथ से इस पोस्टर बॉय को निकाल दिया। रथ से तो उतारे ही गए, स्टार प्रचारकों की सूची में भी उन्हें दसवें नंबर पर रखा गया है।
भारतीय जनता पार्टी ने 2018 का विधानसभा चुनाव ‘माफ करो महाराज’ के नारे पर लड़ा। अब सिंधिया भाजपा में आ गए हैं। पर भाजपा ने अपना नारा वही रखा-हमारा नेता शिवराज, माफ करो महाराज। स्टार प्रचारकों की सूची में सिंधिया से उपर कैलाश विजयवर्गीय भी है। जबकि पार्टी ने विजयवर्गीय को प्रदेश के मामलों से लगभग किनारे कर दिया है। यानी भाजपा के किनारे कर दिए गए नेता से भी नीचे हैं सिंधिया।
सूत्रों के मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारी विरोध को देखते हुए भाजपा ने उन्हें चुनाव अभियान से दूर रखने का फैसला लिया। शिवराज के साथ ग्वालियर के सदस्यता अभियान में जिस तरह से महल के खिलाफ और सिंधिया गद्दार के नारे गूंजे, उसी दिन भाजपा ने समझ लिया कि भूल हो गई। जिसे जनता का नेता समझा वो तो पोस्टर बॉय भी नहीं निकला।
ग्वालियर के बाद इंदौर, सांवेर, बदनावर कई जगह गद्दार वाले नारे लगे। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने जितने भी भूमिपूजन और शिलान्यास किये उसे सिंधिया को नहीं बुलाया गया। भाजपा को अब ये भरोसा हो गया है कि सिंधिया का साथ हार की गारंटी है।
ग्वालियर से जुड़े रहे प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक का भी मानना है कि गद्दारी के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया की सामंती ठसक भी भाजपा कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रही है। सिंधिया अक्सर सभाओं में कहते हैं, आप महाराज को वोट दे रहे हैं।
भाजपा जो पूरी जि़ंदगी सामंतशाही से लड़ती रही उसके मंच पर ऐसा प्रदर्शन वो कैसे बर्दाश्त करेगी। ग्वालियर से जुड़े प्रभात झा और जयभान सिंह पवैया भी इससे नाराज चल रहे हैं।
सिंधिया खेमे के मंत्रियों की जासूसी के बाद तरीके से संगठन से सिंधिया को किया किनारे
सिंधिया के समर्थकों को भी अब लगने लगा है कि उन्होंने गलती कर दी। यदि वे इस बार हार गए तो पूरी राजनीति खत्म। कांग्रेस में लौटकर भी कुछ हासिल होना नहीं है। शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया समर्थकों को मंत्री जरूर बनाया। पर पूरे सूत्र अपने हाथ रखे। मंत्रियों के विभाग में शिवराज ने बड़ी चालाकी से अपने अफसरों को नियुक्त किया। एक तरह से मंत्रियों के हाथ बाँध दिए गए। साथ ही उनकी जासूसी भी करवाई गई।
सिंधिया कभी ग्वालियर-चबल में जीताऊ चेहरा नहीं रहे ये सच भी सामने आ गया
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में मध्यप्रदेश के दूसरे हिस्सों में ये माना जाता है कि ग्वालियर और गुना में उनकी चलती है। पर हकीकत में ऐसा नहीं है। गुना की चार में से तीन सीटें काँग्रेस के पास है इसमें से भी दो दिगिवजय सिंह के परिवार के पास है। यानी गुना में सिंधिया का कोई वजूद नहीं। वे खुद यहाँ से लोकसभा हार चुके हैं। ग्वालियर में पिछले बीस साल से कोई कांग्रेसी लोकसभा चुनाव नहीं जीता। यदि इस इलाके में सिंधिया की इतना ही वजूद होता तो 2018 के विधानसभा चुनाव के ठीक बाद वे सवा लाख मतों से लोकसभा नहीं हारते।
राजनीति के पोस्टर ब्यॉय पोस्टर से भी बाहर ... भाजपा ने समझ लिया कि सिंधिया एक बड़ी भूल है, उनके खिलाफ उठ रही गद्दार की आवाजों के बाद पार्टी ने चुनाव अभियान से सिंधिया को दूर कर दिया, बड़े आयोजन में तो वे पहले भी किनारे कर दिए गए
इंदौर से पंकज मुकाती की विशेष रिपोर्ट
इंदौर, 14 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’)। ज्योतिरादित्य सिंधिया। महाराज सिंधिया। अब किसी काम के नहीं रहे। भाजपा ने तो अब सार्वजनिक रूप से से स्वीकार ही लिया। जो कुछ अंदरखाने चल रहा था, वो अब सामने आ गया। भाजपा ने सिंधिया को अपने चुनावी रथ से उतार ही दिया। गद्दार और महाराज दोनों ही तमगे भाजपा नेताओं को नहीं सुहाए। अंतत: भाजपा ने अपने चुनाव अभियान रथ से इस पोस्टर बॉय को निकाल दिया। रथ से तो उतारे ही गए, स्टार प्रचारकों की सूची में भी उन्हें दसवें नंबर पर रखा गया है।
भारतीय जनता पार्टी ने 2018 का विधानसभा चुनाव ‘माफ करो महाराज’ के नारे पर लड़ा। अब सिंधिया भाजपा में आ गए हैं। पर भाजपा ने अपना नारा वही रखा-हमारा नेता शिवराज, माफ करो महाराज। स्टार प्रचारकों की सूची में सिंधिया से उपर कैलाश विजयवर्गीय भी है। जबकि पार्टी ने विजयवर्गीय को प्रदेश के मामलों से लगभग किनारे कर दिया है। यानी भाजपा के किनारे कर दिए गए नेता से भी नीचे हैं सिंधिया।
सूत्रों के मुताबिक ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारी विरोध को देखते हुए भाजपा ने उन्हें चुनाव अभियान से दूर रखने का फैसला लिया। शिवराज के साथ ग्वालियर के सदस्यता अभियान में जिस तरह से महल के खिलाफ और सिंधिया गद्दार के नारे गूंजे, उसी दिन भाजपा ने समझ लिया कि भूल हो गई। जिसे जनता का नेता समझा वो तो पोस्टर बॉय भी नहीं निकला।
ग्वालियर के बाद इंदौर, सांवेर, बदनावर कई जगह गद्दार वाले नारे लगे। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान ने जितने भी भूमिपूजन और शिलान्यास किये उसे सिंधिया को नहीं बुलाया गया। भाजपा को अब ये भरोसा हो गया है कि सिंधिया का साथ हार की गारंटी है।
ग्वालियर से जुड़े रहे प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार राकेश पाठक का भी मानना है कि गद्दारी के अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया की सामंती ठसक भी भाजपा कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रही है। सिंधिया अक्सर सभाओं में कहते हैं, आप महाराज को वोट दे रहे हैं।
भाजपा जो पूरी जि़ंदगी सामंतशाही से लड़ती रही उसके मंच पर ऐसा प्रदर्शन वो कैसे बर्दाश्त करेगी। ग्वालियर से जुड़े प्रभात झा और जयभान सिंह पवैया भी इससे नाराज चल रहे हैं।
सिंधिया खेमे के मंत्रियों की जासूसी के बाद तरीके से संगठन से सिंधिया को किया किनारे
सिंधिया के समर्थकों को भी अब लगने लगा है कि उन्होंने गलती कर दी। यदि वे इस बार हार गए तो पूरी राजनीति खत्म। कांग्रेस में लौटकर भी कुछ हासिल होना नहीं है। शिवराज सिंह चौहान ने सिंधिया समर्थकों को मंत्री जरूर बनाया। पर पूरे सूत्र अपने हाथ रखे। मंत्रियों के विभाग में शिवराज ने बड़ी चालाकी से अपने अफसरों को नियुक्त किया। एक तरह से मंत्रियों के हाथ बाँध दिए गए। साथ ही उनकी जासूसी भी करवाई गई।
सिंधिया कभी ग्वालियर-चबल में जीताऊ चेहरा नहीं रहे ये सच भी सामने आ गया
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में मध्यप्रदेश के दूसरे हिस्सों में ये माना जाता है कि ग्वालियर और गुना में उनकी चलती है। पर हकीकत में ऐसा नहीं है। गुना की चार में से तीन सीटें काँग्रेस के पास है इसमें से भी दो दिगिवजय सिंह के परिवार के पास है। यानी गुना में सिंधिया का कोई वजूद नहीं। वे खुद यहाँ से लोकसभा हार चुके हैं। ग्वालियर में पिछले बीस साल से कोई कांग्रेसी लोकसभा चुनाव नहीं जीता। यदि इस इलाके में सिंधिया की इतना ही वजूद होता तो 2018 के विधानसभा चुनाव के ठीक बाद वे सवा लाख मतों से लोकसभा नहीं हारते।
हाजीपुर, 14 अक्टूबर| राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव बुधवार को राघोपुर विधानसभा क्षेत्र से नामांकन पर्चा दाखिल किया। पटना से तेजस्वी हाजीपुर पहुंचे और हाजीपुर अनुमंडल कार्यालय में राघोपुर क्षेत्र के लिए नामांकन पर्चा दाखिल किया। इस दौरान उनके साथ राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के 'हनुमान' कहे जाने वाले विधायक भोला यादव भी साथ थे।
नामांकन दाखिल करने के बाद तेजस्वी यादव ने एक बार फिर नीतीश सरकार पर निशना साधा। उन्होंने अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव (जो न्यायिक हिरासत में हैं) को याद करते हुए कहा कि आज उनकी कमी सबको खल रही थी। बिहार के लोग उन्हें याद कर रहे हैं।
तेजस्वी ने कहा कि राघोपुर की जनता ने उन्हें पहली बार विधायक बनाया, तो उपमुख्यमंत्री बने। उन्होंने कहा कि बिहार की जनता नीतीश सरकार को उखाड़ फेंकेगी और अब एक नई सरकार बिहार में बनेगी।
नीतीश कुमार द्वारा बिना अनुभव के नेता बताए जाने पर तेजस्वी यादव ने कहा कि उन्होंने (नीतीश कुमार) ही ने तो उपमुख्यमंत्री बनाया था।
इससे पहले पटना आवास से हाजीपुर निकलने से पहले तेजस्वी ने अपनी मां और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और अपने बड़े भाई तेजप्रताप यादव के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।
उल्लेखनीय है कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव फिर से राघोपुर से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनके भाई और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेजप्रताप इस चुनाव में समस्तीपुर जिले के हसनपुर से नामांकन का पर्चा दाखिल किया है। पिछले चुनाव में वे महुआ क्षेत्र से विधायक थे।
राजद, कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है। राघोपुर में मतदान दूसरे चरण में होना है। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 14 अक्टूबर. बिहार विधानसभा चुनाव में ऐसे तो करीब सभी प्रमुख राजनीतिक दल के योद्धा चुनावी अखाड़े में उतरकर ताल ठोंक रहे हैं, लेकिन इस अखाड़े में एक ऐसा योद्धा भी है, जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर चुका है, लेकिन उनके अपने क्षेत्र में कुछ करने की तमन्ना उसे फिर से पटना ले आई और वो चुनावी मैदान में उतर आए।
पटना के रहने वाले मनीष बरि यार आज चुनावी मैदान में सियासत का पाठ पढ़ रहे हैं। मनीष बरियार वाणिज्य मंत्रालय में ए ग्रेड की नौकरी छोड़कर इस चुनाव में बांकीपुर से चुनावी मैदान में हैं और लोगांे के बीच पहुंचकर वोट मांग रहे हैं।
मनीष का दावा है कि उनको लोगों का समर्थन भी मिल रहा है। वे कहते है कि लोग सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों से किसी न किसी कारण से नाराज हैं, यही कारण है कि वे ऐसे विकल्प की तलाश में हैं जो राजनीति से नहीं अपने बीच से आया व्यक्ति हो।
मनीष कहते हैं, पिछले काफी दिनों से वे शिक्षक का काम कर रहे हैं। वे कहते हैं कि उन्हें नौकरी में कभी मन नहीं लगा। प्रारंभ से ही उनकी तमन्ना अपनी जन्मभूमि की सेवा करने की रही है। और जब वह स्थल गंगा के किनारे हो तो कोई भी चाहेगा उनकी अंतिम यात्रा भी इसी स्थान से निकले।
पटना के ए एन कॉलेज से स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर मनीष ने कैट की परीक्षा दी और उनका चयन भारतीय विदेश व्यापार संस्थान में हो गया। इसके बाद उनका चयन ऑगेर्नाइजेशन लीडरशिप प्रोग्राम के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी (यूके) में हो गया। मनीष भारत सरकार के वाणिज्य मंत्रालय में ए ग्रेड अधिकारी की नौकरी भी की, लेकिन यहां उनका मन नहीं लगा और वे पटना लौट आए। यहां वे शिक्षक की भूिमका में उतर आए छात्रों को प्रबंधन की शिक्षा देने लगे।
उन्होंने आईएनएस से कहा, मैं यहां वोट की राजनीति में नहीं आया हूं। मैं यहीं का जन्मा हूं। मेरी कर्मभूमि भी बांकीपुर रही है। मैं लोगों के बीच पहुंच रहा हूं और लोगों तक अपनी बात पहुंचा रहा हूं। मैं निर्दलीय खड़ा हूं।
उन्होंने बताया कि उनकी पृष्ठभूमि मध्यम वर्ग की रही है। उन्होंने कहा कि आज राजनीति में लोग पैसे कमाने के लालच में पहुंच रहे है, जो कहीं से समाजवाद नहीं है। वे तर्क देते हुए कहते हैं कि लोगों को कुछ पैसा कमाकर राजनीति में आना चाहिए, जिससे उनकी स्वयं की जरूरतें पूरी हो सके और जनप्रतिनिधि बनकर लोगों की सेवा करते रहें।
राजनीति पुष्ठभूमि के संदर्भ में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि वे कॉलेज में छात्र संगठन का चुनाव लड़ चुके हैं। समाजसेवा और लोगों को शिक्षित करना उनका उद्देश्य है।
मनीष बरियार को बिहारी होना गर्व है। उन्होंने कहा, बिहार राज्य भारत का सच्चे मायनों में प्रतिनिधित्व करता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिहार के लोगों ने बहुत कुछ हासिल किया है। हालांकि, बिहार को उतना खास हासिल नहीं हुआ, जितनी उम्मीद की जाती है। बिहार में बदलाव लाने के लिए लोगों को आगे आने होगा।
वे कहते है कि बिहार जैसे राज्य में विकास की अपार संभावनाएं है और इसके लिए बिहार के लोगों को पहल करनी होगी।
बहरहाल, मनीष देश की राजनीति का पाठशाला कहे जाने वाले बिहार की राजनीति से अपने सियासी सफर की शुरूआत की है, लेकिन राजनीति के धुरंधरों के बीच मनीष नेताओं के दांव-पेंच से कैसे पार पाएंगें, यह देखने वाली बात होगी। (आईएएनएस)
पटना, 13 अक्टूबर। बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में बागी तेवर दिखाने वाले नेताओं पर जेडीयू ने कार्रवाई शुरू कर दी है। पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने वाले 15 नेताओं को जेडीयू ने 6 साल के लिए निष्काषित कर दिया है। पार्टी लाइन का मानना है कि ये नेता पार्टी से बगावत कर दूसरे पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। साथ ही कई दूसरी पार्टियों की मदद भी कर रहे हैं। जेडीयू ने रामेश्वर पासवान, प्रमोद चंद्रवंशी, अरुण कुमार, तजम्मल खां, अमरेश चौधरी, शिवशंकर चौधरी, सिंधु पासवान, करतार सिंह, राकेश रंजन, ददन पहलवान, सुमित सिंह, भगवान सिंह कुशवाहा, रणविजय सिंह, कंचन गुप्ता और मुंग़ेरी पासवान को 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया है।
इधर, बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर प्रचार का दौर शुरू हो चुका है। महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने भी अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। राजद ने इस सूची में 30 नेताओं को जगह दी है, जिनको बिहार की 243 सीटों पर महागठबंधन और राजद के लिए प्रचार करना है। स्टार प्रचारकों की लिस्ट में सबसे पहला नाम बिहार के पूर्व सीएम और लालू प्रसाद यादव की पत्नी राबड़ी देवी का है। इसके अलावा उनके परिवार से दोनों बेटे तेजस्वी प्रसाद यादव और तेज प्रताप यादव समेत डॉक्टर मीसा भारती को भी स्टार प्रचारकों की सूची में जगह मिली है।
बिहार चुनाव 2020 अब बेहद करीब है. ऐसे में सभी पार्टियां जोर शोर से मतदाताओं तक पहुंच कर उन्हें लुभाने में जुटी हैं। प्रत्याशियों का ऐलान हो रहा है। साथ ही अब राजनीतिक दल डिजिटल माध्यम से भी चुनाव प्रचार करने लगे हैं। ऐसा ही एक वीडियो सॉन्ग बनाकर बीजेपी ने ट्विटर पर शेयर किया। इसका टाइटल रखा बिहार में ई बा मतलब बिहार में यह हुआ। इसमें बिहार में अब तक एनडीए सरकार में हुए विकास कार्यों का दावा किया गया है। लेकिन कुछ देर में ही बिहार में ई बा वीडियो ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा। कुछ लोग इसके समर्थन में आए तो कुछ नीतीश कुमार सरकार को घेर रहे हैं। उनके साथ ही तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव भी लोगों के निशाने पर हैं। बिहार में ई बा ट्रेंड पर एक यूजर ने लॉकडाउन के दौरान घर लौट रहे बिहार के लोगों की फोटो शेयर कर सरकार पर निशाना साधा।
बिहार चुनाव इस बार तीन चरणों में होने हैं। इनकी शुरुआत 28 अक्टूबर से हो रही है। साथ ही 10 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे।
पटना, 13 अक्टूबर| बिहार चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के लिए नामांकन की प्रक्रिया अब तेज हो गई है। दूसरे चरण के लिए मंगलवार को बिहार के पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव ने पटना साहिब से जबकि पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और राजद के तेजप्रताप यादव ने समस्तीपुर जिले के हसनपुर से नामांकन का पर्चा दाखिल किया। मंत्री नंदकिशोर पटना साहिब से सातवीं बार राजग प्रत्याशी के रूप में नामाकंन का पर्चा दाखिल किया। पर्चा दाखिल करने के बाद उन्होंने कहा कि पटना साहिब से वे सातवीं बार नामांकन का पर्चा दाखिल कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, "मेरे लिए पटना साहिब सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र का नाम नहीं, अपितु यह मेरा घर है। इस क्षेत्र के सभी लोग मेरे परिवार के लोग हैं। इनके सुख-दुख में साथ रहना मेरा पारिवारिक और नैतिक दायित्व है।"
इधर, तेजप्रताप यादव भी हसनपुर से नामांकन का पर्चा दाखिल किया, उनके साथ राजद के नेता और उनके भाई तेजस्वी यादव भी थे। तेजप्रताप यादव के नामांकन दाखिल करने के बाद तेजस्वी यादव ने कहा कि, "हमें हसनपुर की जनता पर पूरा विश्वास है कि भारी मतों से इनको जीत मिलेगी और हम सरकार बनाने जा रहे हैं।"
उन्होंने कहा कि, "सरकार बनी तो पहली कैबिनेट की बैठक में सरकार 10 लाख बेरोजगार नौजवानों को रोजगार और स्थायी सरकारी नौकरी देगी।"
इधर, तेजप्रताप ने भी कहा कि, "हसनपुर की जनता उनके साथ है और उनकी जीत पक्की है।" उन्होंने अपने अंदाज में कहा कि, "तेजस्वी सरकार तय है।"
उल्लेखनीय है कि पिछले चुनाव में तेजप्रताप महुआ विधानसभा क्षेत्र से जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे थे, लेकिन इस चुनाव में उन्होंने अपना क्षेत्र बदल लिया है।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए तीन चरणों में होने वाले चुनाव के लिए मतदान 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर होगा, जबकि मतगणना 10 नवंबर को होगी।
इस चुनाव में राजद जहां कांग्रेस और वमापंथी दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरा है, वहीं भाजपा और जदयू सहित चार दल मिलकर चुनावी मैदान में दम दिखा रहे हैं। (आईएएनएस)
संदीप पौराणिक
भोपाल, 12 अक्टूबर| मध्यप्रदेश में हो रहे विधानसभा उप-चुनाव का नजारा पिछले चुनावों के मुकाबले कुछ जुदा है। इस बार चुनाव में बाबाओं की टोली और भगवाधारी भाजपा नहीं बल्कि कांग्रेस के प्रचार में लगे हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस ने तो बड़ा मलहरा विधानसभा क्षेत्र से भगवाधारी राम सिया को उम्मीदवार ही बना दिया है।
राज्य में विधानसभा की 28 सीटों पर उप-चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में दोनों ही राजनीतिक दल पूरा जोर लगाए हुए हैं, मगर एक मामले में इस चुनाव में भाजपा से कांग्रेस आगे नजर आ रही है और वह है साधुओं की टोली और भगवाधारियों का प्रचार में उपयोग करना। आमतौर पर यह माना जाता रहा है कि भाजपा चुनाव में साधु-संत और भगवाधारियोंका उपयोग करती है मगर मध्यप्रदेश में इससे उलट तस्वीर नजर आ रही है। वैसे राज्य में भाजपा के पास दो बड़े भगवाधारी नेता उमा भारती और प्रज्ञा ठाकुर हैं, मगर दोनों ही नेताओं की सक्रियता चुनाव में कम ही नजर आ रही है।
एक तरफ जहां भाजपा साधु-संत और भगवाधारियों को सामने लाने से परहेज कर रही है तो दूसरी ओर कांग्रेस के लिए कंप्यूटर बाबा की टोली 'लोकतंत्र बचाओ' यात्रा निकाल रही है और एक-एक विधानसभा क्षेत्र में पहुंचकर कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन करने का आव्हान कर रही है। इसी तरह मिर्ची वाले बाबा भी कांग्रेस के प्रचार में लगे हैं। इतना ही नहीं कांग्रेस ने तो भगवाधारी राम सिया भारती को बड़ा मलहरा विधानसभा से उम्मीदवार ही बना दिया है तो साधना भारती, जो कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं, वह भी पार्टी के प्रचार में लगी हैं।
कंग्रेस के प्रवक्ता अजय यादव का कहना है कि, भाजपा हमेशा राजनीति में धर्म का लाभ लेने की केाशिश करती रही है, वहीं कांग्रेस ने कभी भी धर्म का इस्तेमाल नहीं किया। अब कांग्रेस खुले तौर पर अपनी भावनाएं व्यक्त कर रही है, प्रदेश के कांग्रेस मुखिया कमल नाथ की धार्मिक आस्थाएं किसी से छुपी नहीं है। उन्होंने छिंदवाड़ा में हनुमान जी की भव्य प्रतिमा बनवाई है तो राममंदिर के शिलान्यास से पहले उनके आवास और पार्टी कार्यालय में कार्यक्रम हुए थे।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि, राज्य में दोनों ही राजनीतिक दलों के लिए चुनाव जीतना लक्ष्य है, कांग्रेस भी हर मोर्चे पर सक्रिय है, यही कारण है कि उसने भी भाजपा के उस अस्त्र को हथियार बनाने की केाशिश की है, जिसके सहारे भाजपा ने बड़ा जनाधार पाया है। कांग्रेस के लिए बाबाओं की टोली घूम रही है, भगवाधारी भी सक्रिय हैं। अब देखना होगा कि कांग्रेस के इस अस्त्र का चुनाव में कितना लाभ मिलता है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 12 अक्टूबर| तमिल, तेलुगू और मलयालम की 200 फिल्मों में काम करने वाली दक्षिण भारत की मशहूर अभिनेत्री खुशबू सुंदर ने सोमवार को भाजपा का दामन थाम लिया। राष्ट्रीय महासचिव सी.टी, रवि और तमिलनाडु के प्रदेश अध्यक्ष मुरुगुन की मौजूदगी में उन्होंने भाजपा मुख्यालय में पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। खुशबू सुंदर ने सोमवार को ही कांग्रेस के प्रवक्ता पद से इस्तीफा दिया था। राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि खुशबू सुंदर किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने डीएमके से अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत की और कांग्रेस में भी रहीं। अब वह भाजपा में शामिल हो रहीं हैं।
बता दें कि खुशबू सुंदर 2010 में द्रमुक पार्टी से जुड़ीं थीं। बाद में 2014 में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था। खुशबू सुंदर का कहना है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर भाजपा से जुड़ने का फैसला किया। (आईएएनएस)
विवेक त्रिपाठी
लखनऊ, 12 अक्टूबर| उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी (आाप) धीरे-धीरे अपने पांव जमाने में लग गयी है। पार्टी दिल्ली में सत्ता हासिल करने के बाद यूपी में जमीन तलाशने की पुरजोर प्रयास में लग गयी है। सोशल मीडिया के जरिए सरकार को घेरने में लगे सपा, बसपा और कांग्रेस को इसी के दबाव के चलते जमीन पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़ा है। आप के रणनीतिकारों का मानना है कि जब तक पार्टी यहां सत्ता पर काबिज नहीं होती है तब तक विपक्ष का विकल्प बनने की पूरी तैयारी कर रही है।
दिल्ली में सत्ता मिलने के बाद से ही पार्टी ने देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश की ओर अपनी विशेष निगाह डालनी शुरू कर दी। आम आदमी पार्टी यूपी में अपने संगठन के विस्तार के लिए तेजी से सदस्यता अभियान चला रही है। इसके अलावा सूबे में सियासी जमीन को मजबूत करने के लिए अरविंद केजरीवाल ने यूपी के प्रभारी संजय सिंह को मोर्चे पर लगाया है जो योगी सरकार को घेरने में तेजी से लग गए हैं।
आम आदमी पार्टी के प्रदेश प्रभारी संजय सिंह ने राजधानी लखनऊ में डेरा जमा लिया है। लगातार जनहित से जुड़े मुद्दे उठाकर वह सरकार की आंख में खटकने लगे हैं। इसका उनको खमियाजा भी भुगतना पड़ रहा है। उनके ऊपर उप्र के कई जिलों में एफआईआर दर्ज हुई है। लेकिन वो पीछे नहीं हटे हैं। संजय सिंह न सिर्फ जनहित के मुद्दों पर पार्टी को सड़क पर उतार रहे हैं बल्कि संगठन को मजबूती और विस्तार भी दे रहे हैं।
राज्य में चाहे ब्राह्मणों की हत्या से शुरू हुई ब्राह्मण प्रेम की राजनीति हो, कोरोना में उपकरणों की खरीद का मुद्दा हो या फिर लखीमपुर में पूर्व विधायक की हत्या या फिर हाथरस कांड, सब मुद्दों पर आप ने आन्दोलन से लेकर गिरफ्तारियां दी। पार्टी की ओर से यह दिखाने का प्रयास किया गया मानों वही मुख्य विपक्षी दल है।
आप पार्टी के मुख्य प्रवक्ता वैभव महेश्वरी ने आईएएनएस से बातचीत में बताया कि, आम आदमी पार्टी ने लगभग सभी जिलों में कमेटी बना ली है। इसके अलावा जो गतिविधियां तेज हुई है, उसके माध्यम से संगठन निर्माण को गति मिल रही है। 370 विधानसभाओं में 20 सदस्यों की कमेटी गठित की गयी है। ब्लाकों और गांवों में संगठन को पहुंचाने पर जोर है। यही कमेटी के सदस्य ही पंचायत चुनाव के अच्छे प्रत्याशी तलाश कर चुनावी मैदान में उतारेंगे। विधानसभा चुनाव में जाने से पहले पार्टी अपना आन्तरिक सर्वे करेगी इसके बाद जनता के बीच जाएंगे। अभी विधानसभा चुनाव लड़ने की कोई घोषणा नहीं की गयी है।
उन्होंने कहा कि, आम आदमी जातिवादी राजनीति को तोड़ रही है। हम लोग मुद्दों की राजनीति करते हैं। यूपी का विपक्षी दल सोया हुआ है। सड़क पर दिखाई नहीं दे रहा है। जिलों में कोई सक्रियता नहीं है। हम लोगों ने मुद्दों को उठाकर विपक्ष की जगह भरने का प्रयास किया है।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव का कहना है कि, यूपी में डेढ़ साल चुनाव को बचे हैं। ऐसे में सभी दल मजबूत विपक्ष के रूप में खड़े होंने की कवायद करेंगे। चुनाव जमीन पर जीता जाता है। मैनेजमेंट केवल परसेप्शन बनाता है। लेकिन इससे सफलता नहीं मिलती है। ऐसे में जमीन में संगठन खड़ा करना बहुत जरूरी है। यूपी में क्षेत्रीय पार्टियां और जातीय पार्टी तो बनी है। लेकिन राजनीतिक नहीं बन पायी है। आम आदमी पार्टी मुद्दों पर बनी है। यूपी में बहुत सफर करना है। पार्टी जगह जरूर बना सकती है। लेकिन वह स्पेस वोटों में कितना तब्दील होगा, ये अभी कहा नहीं जा सकता। (आईएएनएस)
शिवपुरी, 12 अक्टूबर| भारतीय जनता पार्टी के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय िंसंह पर हमला करते हुए कहा कि वो जितना दौरे और प्रचार करेंगे, भाजपा को उतना ही लाभ होगा। सिंधिया इन दिनों ग्वालियर-चंबल इलाके के दौरे पर हैं। सिंधिया ने रविवार को दिग्विजय सिंह पर बड़ा हमला बोला। उन्होंने दिनारा में कार्यकतार्ओं से चर्चा करते हुए कहा कि चुनाव आता है तो बड़ा भाई (दिग्विजय सिंह) पर्दे के पीछे हो जाते हैं, चुनाव संपन्न हो जाता है तो इसके बाद डोर बड़े भाई के हाथ में आ जाती है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भी यही हुआ था और अब 2020 में भी यही हो रहा है।
सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि हमारा कहना है कि दिग्विजय सिंह बहुत दौरा करें, जितना दौरा करेंगे उतना जनता हमारे साथ होगी।
गौरतलब है कि इस समय हो रहे उपचुनाव के दौरान कांग्रेस के प्रचार में दिग्विजय सिंह की दूरी चर्चा में है खासकर ग्वालियर-चंबल संभाग से। इसी पर सिंधिया ने चुटकी ली। (आईएएनएस)
लखनऊ, 12 अक्टूबर| बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने उत्तर प्रदेश के गोंडा में एक मंदिर के पुजारी पर जानलेवा हमले की कड़ी निंदा की है। उन्होंने प्रदेश सरकार से साधु-संतों की सुरक्षा बढ़ाने की मांग की है। मायावती ने सोमवार सुबह ट्वीट के माध्यम से प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि, राजस्थान की तरह यूपी के गोण्डा जिले में मन्दिर के पुजारी पर भू-माफियाओं द्वारा मन्दिर की जमीन पर कब्जा करने के इरादे से किया गया जानलेवा हमला अति-शर्मनाक अर्थात संत की सरकार में अब संत भी सुरक्षित नहीं। इससे खराब कानून-व्यवस्था की स्थिति और क्या हो सकती है।
उन्होंने आगे लिखा कि यूपी की सरकार इस मामले में सभी पहलुओं का गम्भीरता से संज्ञान लेकर दोषियों के विरूद्ध सख्त कानूनी कार्रवाई करे तथा इस घटना से जुड़े सभी भू-माफियाओं की सम्पत्ति भी जरूर जब्त की जाये। साथ ही, साधु-सन्तों की सुरक्षा भी बढ़ाई जाये।
ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के इटियाथोक कोतवाली के तर्िेमनोरमा मंदिर के पुजारी सम्राट दास को शनिवार करीब दो बजे गोली मार दी गई। गोली उनके बाएं कंधे पर लगकर निकल गई। गनीमत रही, गोली पुजारी के कंधे को छू कर निकल गई। मंदिर की जमीन को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। 150 बीघा जमीन का पूरा मामला है।(आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 12 अक्टूबर| कोरोना काल में बिहार में हो रहा यह विधानसभा चुनाव ऐसे तो कई मामलों में अलग होगा, लेकिन यह चुनाव इन मामलों में भी खास होगा कि प्रचार में न तो राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद का मजाकिया अंदाज दिखाई देगा और न ही लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के वरिष्ठ नेता रामविलास पासवान की सधी आवाज सुनाई दगी।
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के लिए करीब सभी प्रमुख दलों ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। राजद के स्टार प्रचारकों में खास गंवई अंदाज में वोट मांगने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह भी इस चुनाव में मतदाताओं को नहीं लुभाएंगें। वेसे कोरोना काल में हो रहे इस चुनाव में सोशल डिस्टेंसिंग के कारण बडी रैलियों पर रोक लगाई गई है, फिर भी छोटी रैलियों की मंजूरी दी गई है।
ऐसे में माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दलों का पूरा जोर छोटी रैलियों पर हेागा। राजद के लिए स्टार प्रचारकों की सूची में पहले नंबर पर रहने वाले और अपनी भाषण शैली के जरिए मतदाताओं को रूख मोड़ देने की प्रतिभा वाले लालू प्रसाद इस चुनाव में प्रचार करते नजर नहीं आएंगें।
चारा घोटाले के मामले में लालू प्रसाद इन दिनों रांची की एक जेल में सजा काट रहे हैं। लालू हालांकि स्वास्थ्य कारणों से अभी रांची रिम्स में भर्ती हैं, लेकिन बिना अदालत के आदेश के वे चुनाव प्रचार में हिस्सा नहीं ले सकेंगे।
लालू की अनुपस्थिति राजद नेताओं को भी खल रही है। राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते भी हैं कि लालू प्रसाद बिहार के ही नहीं देश के स्टार प्रचारकों में सबसे आगे हैं। उनपर मतदाताओं को विश्वास है। उन्होंने कहा कि उनकी रैलियों में अपार भीड़ होती थी और लोग उनकी बातों को आत्मसात करते थे।
इधर, लोजपा के अध्यक्ष रहे रामविलास पासवान और राजद के उपाध्यक्ष रहे रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन हो गया है, यही कारण है कि उनकी दमदार आवाज भी इस चुनाव में नहीं सुनाई देगी।
राजद के लिए चुनाव में लालू प्रसाद और रघुवंश प्रसाद सिंह की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने 170 से अधिक और रघुवंश प्रसाद सिंह ने 100 से अधिक रैलियां और रोडशो किए थे।
बिहार के इस चुनाव में समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव के भी पहुंचने की संभावना कम है। सूत्र बताते हैं कि स्वास्थ्य कारणों से वे भी इस चुनाव में प्रचार करने शायद ही नजर आएं।
वैसे, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह पार्टी के स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य कारणों से वे कम ही रैलियों में शामिल होंगे। पार्टी के नेता हालांकि कहते हैं वर्चुअल रूप से वे लोगों कों संबोधित करते नजर आएंगें। जदयू के स्टार प्रचारकों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले नंबर पर होंगे।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए तीन चरणों में होने वाले चुनाव के लिए मतदान 28 अक्टूबर, तीन नवंबर और सात नवंबर होगा जबकि मतगणना 10 नवंबर होगी। पहले चरण में 28 नवंबर को 71 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा जबकि दूसरे चरण में तीन नवंबर को 94 सीटों के लिए और आखिरी चरण में सात नवंबर को 78 सीटों के लिए मतदान होगा।
इस चुनाव में राजद जहां कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ चुनावी मैदान में उतरा है वहीं भाजपा और जदयू सहित चार दल मिलकर चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे हैं।(आईएएनएस)
अशोक नगर (मध्य प्रदेश), 11 अक्टूबर| मध्य प्रदेश में विधानसभा के उप-चुनाव मे बयानों की तल्खी बढ़ती जा रही है। कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव ने एक बार फिर भाजपा नेता व राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पर बड़ा हमला बोलते हुए कहा कि सिंधिया ने एक कुत्ते की समाधि को 13 करोड़ में बेच दिया। अशोकनगर में आयोजित कांग्रेस की सभा में रविवार को यादव ने आरोप लगाया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के परदादा के स्वर्गवास के दिन उनके एक वफादार कुत्ते की भी मौत हुई थी। उस कुत्ते की याद में एक समाधि ग्वालियर में बनवाई गई। उस वफादार कुत्ते की समाधि भी 13 करोड़ में बेचने का काम किया गया है।
यादव ने सिंधिया को एक बार फिर भूमाफिया करार दिया और जमीनों पर कब्जे के आरोप लगाए। इसके साथ ही कांग्रेस छेाड़कर जाने पर उन्हें गद्दार करार दिया। इस सभा में कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ भी मौजूद थे। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 10 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार में 2014 के बाद से होने वाले कोई भी चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम चर्चा में रहा है, लेकिन इस वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में मोदी का 'चेहरा' मुद्दा बना हुआ है। मोदी के चेहरे को लेकर दो दलों में 'चखचख' हो रही है।
केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) ने बिहार चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व को नकारते हुए अकेले चुनावी मैदान में उतरकर चुनाव को रोचक बना दिया है। पहले चरण में 71 विधानसभा सीटों पर होने वाले चुनाव में लोजपा ने भाजपा के खिलाफ तो उम्मीदवार नहीं उतारे, लेकिन उन सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं, जहां से जदयू चुनाव मैदान में उतरी है।
इस बीच, लोजपा स्पष्ट कह रही है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगेगी। इधर, भाजपा का कहना है कि बिहार राजग में शामिल दल ही प्रधानमंत्री के चेहरे का इस्तेमाल चुनाव में कर सकते हैं।
कहा जा रहा है कि लोजपा ने एक रणनीति के तहत बिहार में राजग में नहीं रहकर भी नरेंद्र मोदी के नाम का लाभ उठाने और प्रधनमंत्री के 'चेहरे' को मुद्दा बना दिया है। लोजपा के एक नेता ने नारा देते हुए कहा, ' मोदी से बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं।'
दीगर बात है कि इसे लेकर जदयू अब तक खुलकर सामने नहीं आई है। हालांकि, भाजपा इसे लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट कर चुकी है।
बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी तो स्पष्ट कर चुके हैं कि बिहार चुनाव में राजग में शामिल भाजपा, जदयू, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को छोड़कर कोई और पार्टी प्रधानमंत्री के चेहरे का इस्तेमाल नहीं कर सकते। अगर ऐसा कोई दल करेगा, तो इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की जाएगी।
इधर, लोजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के मीडिया पैनल में शामिल संजय सर्राफ ने आईएएनएस से कहा कि प्रधानमंत्री पूरे देश के होते हैं, कोई उनके चेहरे का इस्तेमाल से कैसे रोक सकता है। उन्होंने कहा कि लोजपा प्रधानमंत्री द्वारा किए गए विकास कार्यो और उनके उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कृतसंकल्पित है। ऐसे में उन्हें उनके तस्वीर के उपयोग करने से कोई कैसे रोक सकता है।
इधर, जदयू इस मामले को लेकर कभी खुलकर सामने नहीं आ रही है। जदयू के एक नेता नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहते हैं कि नीतीश कुमार के कार्यो की तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कई सार्वजनिक मंचों से कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जल-जीवन-हरियाली योजना की भी तारीफ कर चुके हैं, यहीं कारण जदयू का मानना है कि मोदी, नीतीश की जोड़ी ही बिहार को विकास के पथ पर आगे ले जाएगा।
इस बीच, हालांकि कार्यकर्ताओं में उलझन जरूर है। जदयू और भाजपा के कार्यकर्ता तो एकजुट हैं, लेकिन लोजपा को लेकर उलझन है। कार्यकर्ता लोजपा को राजग का हिस्सा मानते हैं, लेकिन उन्हें इस बात का भी डर सता रहा है कि लोजपा और जदयू की तनातनी में महागठबंधन को लाभ ना हो जाए। कार्यकर्ता तो यहां तक कहते हैं कि इस तनातनी को शीर्ष नेतृत्व को मिल बैठकर निपटाना चाहिए।
बहरहाल, केंद्र की सत्ता में भाजपा की सहयोगी पार्टी लोजपा के बिहार चुनाव में भाजपा की सहयोगी जदयू प्रत्याशियों के खिलाफ अपने उम्म्ीदवार उतारे जाने के बाद चुनाव रोचक हो गया है, लेकिन देखने वाली बात होगी कि प्रधानमंत्री के चेहरे को लेकर मतदाता किस पार्टी को पसंद करते हैं।
नई दिल्ली, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण को लेकर बढ़ती नाराजगी के बीच कांग्रेस एक अभियान की योजना बना रही है जिसमें राहुल गांधी इसके स्टार प्रचारक होंगे। पार्टी सूत्रों ने कहा कि तीन चरण के चुनावों के दौरान, राहुल गांधी प्रत्येक चरण में छह रैलियों को संबोधित कर सकते हैं - जिसमें महागठबंधन के सहयोगियों के साथ एक संयुक्त रैली शामिल है।
पार्टी की योजना डिजिटल रूप से मतदाताओं तक पहुंचने की भी है क्योंकि कोरोना काल में लोग कांग्रेस की रैलियों और अन्य सार्वजनिक बैठकों में बड़ी संख्या में शामिल नहीं होना चाहते।
बिहार में कांग्रेस पहले चरण में 21 सहित कुल 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
बुधवार को पहले चरण के टिकटों की घोषणा की गई, जिसके बाद टिकट पाने में असफल रहे नेताओं में काफी नाराजगी है। मुस्लिम नेता पहले चरण के टिकट बंटवारे से संतुष्ट नहीं हैं। किसी भी अल्पसंख्यक को एक भी टिकट नहीं दिया गया।
कांग्रेस के कार्यकर्ता दिल्ली में पार्टी मुख्यालय पर वरिष्ठ नेताओं द्वारा भाई-भतीजावाद का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ ने आरोप लगाया कि टिकट बेचे गए हैं।
कांग्रेस का नेतृत्व इस तरह के विरोध और आरोपों को खारिज कर रहा है। पार्टी का कहना है कि इसके पास अपने कोटे की सीमित संख्या है और इसलिए सभी को टिकट नहीं दिया जा सकता।
विवेक त्रिपाठी
लखनऊ , 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एक बार फिर ब्राम्हणों को अपने पाले में खींचने की मुहिम तेज कर दी है। पार्टी को लगता है कि ब्राम्हण और दलितों का गठजोड़ कर दें तो आने वाले समय में आराम से सत्ता पर काबिज हो सकते हैं। तमाम दलों से गठबंधन और संगठन में अनेक प्रयोगों के बाद बसपा मानती है कि 2007 में बनी रणनीति के अनुरूप ही सफलता मिल सकती है। लिहाजा पार्टी ने फिर एक बार सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से पुराने फॉर्मूले को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।
पार्टी सूत्रों की मानें तो नवरात्रि से इस पर काम तेजी से शुरू हो जाएगा। एक बार फिर बड़े पैमाने पर ब्राम्हणों को जोड़ने की कवायद की जाएगी। पार्टी के एक नेता ने बताया कि ब्राम्हणों की समस्याओं और उसके निराकरण की जिम्मेदारी इस समय खुद महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा ने ले रखी है। वो जिलेवार लोंगों से मिल रहे हैं। उन्हें पूरा एक्शन प्लान भी बता रहे हैं। इसके अलावा बड़े ब्राम्हण नेता में शुमार रहे रामवीर उपाध्याय और ब्रजेश पाठक में विकल्प तलाशा जा रहा है। दूसरे दलों के ब्राम्हणों में प्रभाव रखने वाले बसपा से जोड़े जा रहे हैं। सभी जिलों में पांच प्रमुख नेताओं की टीम बनायी जा रही है जिसमें ब्राम्हण रखा जाना अनिवार्य है। इसके साथ ही पार्टी का युवा ब्राम्हण नेताओं पर खास फोकस है।
उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से ब्राम्हण केन्द्र बिन्दु पर हैं। विपक्षी दलों ने खूब शोर मचाकर एक माहौल भी तैयार किया है। बसपा को लगता है ब्राम्हण अगर सत्तारूढ़ दल से कटेगा तो उसे आसानी से लपका जा सकता है। इसी कारण इन दिनों सोशल मीडिया पर इसके लिए तेजी से अभियान भी चलाए जा रहे हैं। इसी वोट के कारण मायावती 2007 में सत्ता पर काबिज हो चुकी है।
सतीश चन्द्र मिश्रा के नेतृत्व में पूर्व मंत्री नकुल दुबे, अनंत मिश्रा, परेश मिश्रा समेत कई लोग ब्राम्हणों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
पूर्व मंत्री नकुल दुबे ने कहा, इन दिनों ब्राम्हण समाज के साथ जो उत्पात बढ़ा है, वह कैसे दूर हो, उन्हें क्या-क्या दिक्कतें आ रही है। इसके लिए महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा लोगों से मिल खुद फीडबैक ले रहे हैं। अभी तक हजारों लोगों से भेंट हो चुकी है। करीब 80 बैठकें भी हो चुकी है। प्रदेश में ब्राम्हणों का उत्पीड़न हो रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। 2007 से 2012 के कार्यकाल को देंखें तो ब्राम्हण बसपा के साथ बहुत सुखी था।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पी.एन. द्विवेदी कहते हैं कि, पिछले कुछ दिनों से ब्राम्हण राजनीति के केन्द्र बिन्दु में घूम रहा है। हर पार्टी इसे अपने पाले में लाने के प्रयास में है। सपा ने परशुराम मंदिर बनवाने की बात कहकर अपना प्रेम दिखा रही है। लेकिन अभी चुनाव दूर है। ऊंट किस करवट बैठेगा यह वक्त बताएगा।
बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 12-13 प्रतिशत ब्राह्मण हैं, जिस पर सभी दलों की नजर है। बसपा भी इसे साधने की कोशिश में है।
मनोज पाठक
पटना, 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सहारे राज्य के सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) इस चुनाव में एक बार फिर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों में शामिल है। मांझी ने एक बार फिर सत्ता तक पहुंचने के लिए जदयू के साथ गठबंधन किया है। जदयू ने मांझी को सात सीटें दी हैं, जिसमें छह सीटों पर प्रथम चरण में ही चुनाव होना है।
मांझी ने सात सीटों पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है जिसमें दो ऐसी सीटें भी हैं, जिसमें उनके दामाद और समधिन चुनावी मुकाबले में ताल ठोंक रहे हैं। ऐसे में बिहार के 28 अक्टूबर को होने वाले प्रथम चरण का चुनाव काफी अहम माना जा रहा है।
इस चुनाव में राजग में शामिल चार दलों भाजपा, जदयू, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) और हम हैं। इसमें जदयू ने अपने हिस्से की 122 सीटों में से सात सीटें 'हम' को दी है, वहीं भाजपा ने अपने हिस्से आई 121 सीटों में से 11 सीटें वीआईपी को दी है।
'हम' के हिस्से आई सीटें टिकारी, इमामगंज, बाराचट्टी, मखदुमपुर, सिकंदरा, कसबा और कुटुंबा हैं। पिछले चुनाव में 'हम' को केवल एक सीटें मिली थी, जिसमें मांझी खुद इमामगंज से विधानसभा अध्यक्ष रहे उदय नाारायण चौधरी को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। इस चुनाव में भी मांझी एक बार फिर इमामगंज से चुनावी मैदान में हैं और उनका मुकाबला चौधरी से ही होगा।
इस चुनाव में मांझी ने बाराचट्टी सीट से अपनी समधिन ज्योति देवी और मखदुमपुर सीट से अपने दामाद देवेंद्र कुमार को उम्मीदवार बनाया है। पिछले चुनाव में मांझी मखदुमपुर से चुनाव हार गए थे। देवेंद्र कुमार के खिलाफ राजद से सतीश दास चुनावी मैदान में उतरे हैं जबकि लोजपा ने यहां रानी कुमारी को और बहुजन समाज पार्टी ब्यासमुनि दास को प्रत्याशी बनाया है।
'हम' के लिए प्रतिष्ठा की सीट बनी बाराचट्टी से मांझी ने अपनी समधिन ज्योति देवी को चुनाव मैदान में उतारा है। उनके खिलाफ राजद ने अपने निवर्तमान विधायक समता देवी को फिर से यहां का प्रत्ययाशी बनाया है। बाराचट्टी से लोजपा ने रेणुका देवी को जबकि बसपा ने रीता देवी को प्रत्याशी बनाया है।
इसके अलावे 'हम' ने कुटुंबा से श्रवण भुईंयां, कसबा से राजेंद्र यादव, सिकन्दरा से प्रफुल्ल मांझी, टेकारी से अनिल कुमार को प्रत्याशी बनाया है। 'हम' के हिस्से आई सात सीटों में से कसबा सीट को छोड़कर सभी छह सीटों पर प्रथम चरण में मतदान होना है, यही कारण है कि मांझी के लिए प्रथम चरण का मतदान काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बिहार की 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए तीन चरणों में होने वाले चुनाव के लिए मतदान 28 अक्टूबर, तीन नवंबर और सात नवंबर को होगा जबकि मतगणना 10 नवंबर को होगी। पहले चरण में 28 नवंबर को 71 विधानसभा सीटों के लिए मतदान होगा जबकि दूसरे चरण में तीन नवंबर को 94 सीटों के लिए और आखिरी चरण में सात नवंबर को 78 सीटों के लिए मतदान होगा।
लखनऊ , 9 अक्टूबर (आईएएनएस)| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ देश में जहां पर भी भाजपा या कांग्रेस की सरकार है, वहां दलितों और पिछड़ों पर अत्याचार हो रहा है। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर शुक्रवार को मीडिया को संबोधित कर रही थी। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस और भाजपा पर दलित की उपेक्षा को लेकर जमकर निशाना साधा। उन्होंने हाथरस केस के साथ ही उत्तर प्रदेश में अन्य मामलों में दलितों पर बढ़ते अत्याचार का सारा दोष भाजपा सरकार पर मढ़ा है।
मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश के साथ देश में जहां पर भी भाजपा या कांग्रेस की सरकार है, वहां दलितों तथा पिछड़ों पर अत्याचार हो रहा है। उत्तर प्रदेश का हाथरस इसका ताजा उदाहरण है। हर स्तर पर दलितों का शोषण हो रहा है। इस मामले में भाजपा तथा कांग्रेस के लोग एक जैसे हैं। दोनों ही पार्टी अंदर से एक है। यह दोनों देश तथा कई प्रदेशों में बारी-बारी से अपनी सरकार बनाकर अपना मिशन साधने का काम करती हैं।
बसपा मुखिया ने कहा कि सच्चाई यह है कि कांगेस हो या भाजपा दोनों के राज में दलित समाज का कोई उत्थान या विकास नहीं हुआ। इसके उलट उनके साथ बड़े पैमाने पर जुल्म और ज्यादती हुई है।
उन्होंने कहा कि विकास के उत्थान के मामले में दलित समाज की जमकर उपेक्षा की जाती है। इतना ही नहीं यह सभी पार्टियां राजनीतिक फायदे और स्वार्थ की पूर्ति के लिए इन वगोर्ं की बहन-बेटियों पर कोई भी जुल्म-ज्यादती होने पर राजनीतिक ड्रामा भी खूब करती हैं। इसके हाथरस जैसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं।
मायावती ने कहा कि सभी विरोधी पार्टियां अंदर-अंदर आपस में एक होकर हमारे वर्ग के इन लोगों का शोषण करती है। साथ ही ये हम लोगों को गुलाम बनाए रखना चाहती हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने अपने विरोधियों पर पार्टी के मूवमेंट को कमजोर करने की साजिश का आरोप भी लगाया।
बहुजन समाज पार्टी देश में किसी की भी पिछलग्गू नहीं है। हमारी पार्टी का अपना एक मिशन है और हम मिशन के तहत काम करते हैं। मायावती ने कहा कि ऐसे संगठनों के पास धन बसपा की तरह अपने लोगों से नहीं आता है। इनके कार्यकर्ता लोगों को गुमराह करते हैं कि बसपा तो आए दिन चंदा ही इकट्ठा करती रहती है। उन्होंने कहा कि बसपा कार्यकर्ताओं और बहुजन समाज को इन लोगों से सावधान रहने की जरूरत है।