राजनीति
मनोज पाठक
पटना, 8 अक्टूबर (आईएएनएस)| राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल (युनाइटेड) के अपने कोटे की सभी 115 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा के बाद बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गुप्तेश्वर पांडेय का चुनाव लड़ने का सपना एक बार फिर टूट गया है। इस बीच, उन्होंने अपने शुभचिंतकों के लिए सोशल मीडिया के जरिए एक संदेश देकर निराश नहीं होने की अपील की है।
बिहार के डीजीपी रहे पांडेय ने कुछ दिनों पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की उपस्थिति में जदयू की सदस्यता ग्रहण की थी, तब यह कयास लगाए जा रहे थे कि पांडेय इस चुनाव में बक्सर से जदयू के प्रत्याशी हो सकते हैं। लेकिन बक्सर सीट भाजपा के कोटे में चली गई।
इसके बाद यह भी बातें सियासी हवा में तैरने लगी कि पांडेय को भाजपा टिकट देकर विधानसभा पहुंचा देगी, लेकिन भाजपा ने यहां परशुराम चतुर्वेदी को टिकट थमाकर उनके सियासी सपनों को तोड़ दिया।
जदयू ने अपनी सभी 115 सीटों पर उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी, जिसमें गुप्तेश्वर पांडेय का नाम नहीं है।
इसके बाद पूर्व डीजीपी पांडेय का दर्द छलक गया। पांडेय ने सोशल मीडिया के आधिकारिक एकाउंट से पोस्ट किया, "अपने अनेक शुभचिंतकों के फोन से परेशान हूं, मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूं। मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूंगा लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा। हताश निराश होने की कोई बात नहीं है। धीरज रखें, मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है। मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूंगा। कृपया धीरज रखें और मुझे फोन नहीं करें। बिहार की जनता को मेरा जीवन समर्पित है।"
वैसे, यह कोई पहली बार नहीं है कि पांडेय का विधानसभा या लोकसभा पहुंचने का सपना टूटा है। इससे पहले करीब 11 साल पहले 2009 में भी पांडेय ने वीआरएस लिया था, तब चर्चा थी कि वे भाजपा के टिकट लेकर बक्सर लोकसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतरेंगें, लेकिन उस समय भी उन्हें पार्टी ने टिकट नहीं दिया।
वैसे, पांडेय की राजनीतिक पारी में भले ही अब तक गोटी सही सेट नहीं हो सकी है, लेकिन अभी भी कई विकल्प खुले हुए हैं। कहा जा रहा है कि बिहार में राज्यपाल कोटे के 12 विधान परिषद सदस्यों का मनोनयन होना है। चुनाव के बाद राजग की सत्ता में वापसी होती है तो जदयू के प्रमुख नीतीश कुमार के हाथ में होगा कि वो किसे विधान परिषद भेजते हैं। ऐसे में पांडेय अब इस कोटे के जरिए सदन पहुंचने के लिए राजनीतिक जुगाड़ कर अपने सपनों को पूरा कर सकते हैं।
मनोज पाठक
पटना, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनावी संग्राम में सियासत का संघर्ष बदलता नजर आ रहा है। टिकट कटने या सहयोगी दलों के हिस्से में सीट जाने के बाद बगावती तेवर अपनाए नेताओं के लिए सहारा के रूप में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) का ठिकाना मिल रहा है, जिससे चुनावी संघर्ष रोमांचक हो गया है।
केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल लोजपा बिहार चुनाव में भले ही राजग से अलग चुनावी मैदान में हो, लेकिन बगावती तेवर अपना चुके राजग नेताओं के लिए लोजपा बिहार में शरणस्थली बनी हुई है। लोजपा में जाने वाले नेताओं को लोजपा के रूप में 'अपनों' का साथ भले ही मिला हो लेकिन राजग के नेताओं ने स्पष्ट कर दिया है कि लोजपा अब राजग में नहीं है।
भाजपा की वरिष्ठ नेता उषा विद्यार्थी ने बुधवार को लोजपा का दामन थाम लिया विद्यार्थी बिहार भाजपा की उपाध्यक्ष और प्रदेश मंत्री भी रह चुकी हैं।
लोजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद विद्यार्थी कहती हैं कि चिराग का नीतीश पर लिए गए स्टैंड से प्रभावित हुई और बिहार को आगे ले जाने के लिए कुछ कठोर फैसले लेने की जरूरत थी। उन्होंने कहा कि 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' एक विचार है।
इससे पहले मंगलवार को भाजपा के दिग्गज नेता राजेंद्र सिंह लोजपा में शामिल हो गए थे।
सूत्रों के मुताबिक, वे दिनारा से विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। दिनारा से जदयू ने अपने मंत्री जयकुमार सिंह को टिकट दिया है।
इधर, बताया जाता है कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और नोखा से विधायक रह चुके रामेश्वर चौरसिया, सासाराम से पांच बार भाजपा विधायक रहे जवाहर प्रसाद भी पार्टी से नाराज हैं। सूत्रों का कहना है कि लोजपा ऐसे लोगों से संपर्क में है।
सूत्र बताते हैं कि भोजपुर के भाजपा नेता राम संजीवन सिंह, जहानाबाद के देवेश शर्मा, गया के रामावतार सिंह, जदयू के औरंगाबाद जिला के पूर्व उपाध्यक्ष आर एस सिंह तथा खगड़िया के पूर्व जदयू उपाध्यक्ष कपिलदेव सिंह समेत कई नेता लोजपा के संपर्क में हैं।
लोजपा के एक नेता कहते हैं, पार्टी अध्यक्ष चिराग पासवान के संपर्क में भाजपा, जदयू और राजद के दर्जनों दिग्गज नेता हैं जो चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। पार्टी द्वारा मजबूत वोट आधार वाले नेताओं को सिंबल देने में प्राथमिकता दी जा रही है। चिराग पासवान जल्द ही पहले चरण के उम्मीदवारों की सूची घोषित करेंगे।
लोजपा के वरिष्ठ नेता और पार्टी के मीडिया पैनल में शामिल संजय सर्राफ ने आईएएनएस से कहा कि अगर कोई पार्टी की सदस्यता ग्रहण करता है तो इसमें कोई बुराई है क्या?
उन्होंने कहा कि भाजपा, जदयू के कई मंत्री अभी पार्टी के संपर्क में है। उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा, "लोजपा 143 सीटों पर प्रत्याशियों की सूची तैयार कर रखी है, लेकिन हाल ही में पार्टी में शामिल हुए नेताओं में से कोई कद्दावर या मजबूत वोट आधार वाला नेता होंगे तो कार्यकर्ताओं की राय के बाद उसे भी टिकट दिया जा सकता है। प्रत्याशी चयन में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा नहीं की जाएगी।"
संदीप पौराणिक
भोपाल, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव के लिए भाजपा ने उम्मीदवारों की सूची जीरी कर संतुलन का संदेश दिया है। एक तरफ जहां 25 पूर्व विधायकों को उम्मीदवार बनाया गया है तो तीन स्थानों पर संगठन से जुड़े लोगों को जगह दी गई है।
राज्य में भाजपा की सरकार पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथ 22 तत्कालीन विधायकों द्वारा इस्तीफा देने से बनी थी। उसके बाद तीन और तत्कालीन विधायकों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। इस तरह कांग्रेस से भाजपा में आने वाले पूर्व विधायकों की कुल संख्या 25 हो गई।
भाजपा ने सभी 28 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है। इस सूची में 25 उम्मीदवार वही हैं, जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे, वहीं पार्टी ने तीन अन्य उम्मीदवारों के जरिए संतुलन का संदेश दिया है़, इनमें सबसे महत्वपूर्ण मुरैना जिले की जौरा विधानसभा सीट है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया मुरैना से बनवारी लाल शर्मा के परिजनों को टिकट देने के पक्ष में थे। बनवारी लाल शर्मा की गिनती सिंधिया के करीबी में होती रही है और वे कांग्रेस के विधायक थे मगर उनका निधन होने से स्थान रिक्त है। पार्टी ने यहां से सूबेदार सिंह को उम्मीदवार बनाया है।
इसी तरह ब्यावरा में नारायण सिंह पवार को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया है, स्थानीय कुछ लोग पवार का विरोध कर रहे थे मगर संगठन ने उस विरोध को दरकिनार कर दिया, वहीं आगर से पूर्व सांसद और तत्कालीन विधायक मनोहर ऊंटवाल के बेटे मनोज ऊंटवाल को उम्मीदवार बनाया गया है, यह सीट मनोहर ऊंटवाल के निधन से खाली हुई है।
भाजपा के एक नेता का कहना है कि पार्टी ने जहां कांग्रेस छोड़कर आए पूर्व विधायकों को उम्मीदवार बनाने का वादा किया था, उन नेताओं ने त्याग किया है, इसलिए पार्टी ने सभी 25 पूर्व विधायकों को उम्मीदवार बनाकर अपना वादा निभाया है। वहीं पार्टी के तीन निष्ठावान कार्यकर्ताओं का ध्यान रखकर उनको उम्मीदवार बनाया गया है।
राजनीतिक विश्लेषक भारत शर्मा का कहना है कि भाजपा ने भले ही अपना वादा निभाया हो, मगर इससे पार्टी में असंतोष तो पनपा ही है। वहीं तीन उन नेताओं को उम्मीदवार बनाया है जो पुराने और समर्पित कार्यकर्ता हैं। इस तरह पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनके लिए समर्पित कार्यकर्ताओं की अहमियत कम नहीं हुई है।
चेन्नई, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| तमिलनाडु की सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने बुधवार को घोषणा की है कि मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी ही 2021 विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। पार्टी के समन्वयक और उपमुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम द्वारा पार्टी मुख्यालय में यह घोषणा की गई।
पन्नीरसेल्वम की मांग को स्वीकार करते हुए पार्टी ने पार्टी का मार्गदर्शन करने के लिए 11 सदस्यीय स्टीयरिंग कमेटी (संचालन समिति) की स्थापना की भी घोषणा की है।
स्टीयरिंग कमेटी के गठन की घोषणा पार्टी के संयुक्त समन्वयक और मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने की।
स्टीयरिंग कमेटी के सदस्य हैं : डिंडीगुल सी. श्रीनिवासन, एस.पी. वेलुमणि, पी. थंगमणि, सी.वी. शनमुगम, डी. जयकुमार, आर. कामराज, मनोज पांडियन, जे.सी.डी. प्रभाकर, पी.मोहन, गोपालकृष्णन और मणिकम।
घोषणा का स्वागत करते हुए पार्टी के कार्यकर्ताओं ने खुशी में मुख्यालय में पटाखे फोड़े और मिठाइयां बांटी।
पार्टी की कार्यकारी समिति की हालिया बैठक में, 2021 विधानसभा चुनावों के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा का मुद्दा उठाया गया था।
पन्नीरसेल्वम और पलानीस्वामी के समर्थकों के बीच जुबानीजंग भी हुई थी।
पन्नीरसेल्वम की मांग रही है कि पहले के समझौते के अनुसार पार्टी का मार्गदर्शन करने के लिए एक स्टीयरिंग कमेटी का गठन किया जाए।
इतने वर्षो में पलानीस्वामी स्टीयरिंग समिति के लिए सहमत नहीं थे और पन्नीरसेल्वम चुप रहे।
पार्टी की कार्यकारी समिति की बैठक के बाद, उप समन्वयक के.पी. मुनुसामी ने संवाददाताओं से कहा कि पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा 7 अक्टूबर को पन्नीरसेल्वम और पलानीसामी द्वारा की जाएगी।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने पहचान उजागर नहीं करने की शर्त पर आईएएनएस को बताया, "मौजूदा धड़े में कोई बदलाव नहीं होगा। यथास्थिति यही रहेगी। पलानीस्वामी की अगुवाई में पार्टी चुनाव लड़ेगी जबकि पन्नीरसेल्वम पार्टी के समन्वयक बने रहेंगे।"
मनोज पाठक
पटना, 7 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार चुनाव में सियासत का अजब खेल दिख रहा है। सियासत के रंग में राजनीतिक दल कहीं आपस में गहरे दोस्त हैं, लेकिन बिहार के इस चुनावी मैदान में आमने-सामने खड़े हो कर ताल ठोंक रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि सब सत्ता के नजदीक पहुंचने का खेल है।
केंद्र में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के साथ खड़ी लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नेतृत्व खराब लगने लगता है जबकि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के गलबहिया कर सत्ता का स्वाद चख रहे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को यहां अपने हिस्से की झामुमो को टिकट देना घाटे का सौदा दिखाई देने लगा।
ऐसे में बिहार चुनाव में लोजपा और जदयू तथा राजद और झामुमो आमने-सामने खड़े हैं।
झारखंड विधानसभा चुनाव में राजद सिर्फ अपना खाता खोल सकी थी लेकिन इसके बावजूद उसके एक मात्र विधायक को मंत्री बनाकर सत्ता में शामिल किया गया। इसके बाद जब बिहार चुनाव की बारी आई तो बिहार में राजद को झामुमो का साथ गंवारा नहीं हुआ और झामुमो ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
झामुमो के महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि झामुमो सम्मान के साथ समझौता नहीं कर सकता है। साथ ही उन्होंने कहा कि राजद ने राजनीतिक मक्कारी की है, जिसके खिलाफ हम बोलने को मजबूर हैं।
भट्टाचार्य ने तो राजद को उसकी हैसियत तक याद करा दिया। उन्होंने कहा कि राजद की हैसियत झारखंड में क्या थी? झामुमो के कारण झारखंड में उनका दीया टिमटिमा रहा है।
उन्होंने राजद को याद दिलाते हुए कहा कि राजद को लोकसभा और विधानसभा में उनकी हैसियत से ज्यादा दिया। उन्होंने कहा कि अपने संगठन के बूते बिहार में निर्णायक सीटों पर हम लड़ेंगे।
उन्होंने कहा कि झामुमो ने झारखंड को संघर्ष करके हासिल किया है, खैरात में नहीं पाया है।
पार्टी ने झाझा, चकाई, कटोरिया, धमदाहा, मनिहारी, पिरपैती और नाथनगर से प्रत्याशी उतारने का फैसला किया है।
कमोबेश यही हाल लोजपा का है। लोजपा के प्रमुख चिराग पासवान को केंद्र में राजग के साथ तो अच्छा लगता है, लेकिन बिहार चुनाव में उनको राजग का साथ नहीं भाया और चुनावी मैदान में राजग के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी।
केंद्र में लोजपा के पूर्व अध्यक्ष रामविलास पासववान मंत्री हैं। लोजपा के प्रमुख चिराग कहते भी हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके आदर्श हैं और उन्हीं से वे संघर्ष करना सीखे हैं, लेकिन बिहार में भाजपा नेतृत्व वाला राजग उनको पसंद नहीं आता।
उल्लेखनीय है कि राजग यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव मैदान में है।
वैसे, राजग के संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में मंगलवार को भाजपा नेताओं ने भी स्पष्ट कर दिया कि बिहार में नीतीश कुमार का नेतृत्व जिन्हें नहीं पसंद है वह राजग के साथ नहीं हो सकता है।
बहरहाल, बिहार के इस चुनाव में सियासत का अजब खेल दिख रहा है, जिससे चुनावी मैदान में मुकाबला रोचक हो गया है। वैसे, अब देखना होगा कि चुनाव मैदान में कहीं और की दोस्ती और यहां पर मुकाबला मतदाताओं को कितना रास आता है।
इंदौर से पंकज मुकाती की विशेष रिपोर्ट
इंदौर, 6 अक्टूबर (‘छत्तीसगढ़’)। बदनावर के प्रत्याशी का बदलाव प्रदेश में सियासत के बदलाव की निशानी है। कांग्रेस ने अपने घोषित प्रत्याशी अभिषेक सिंह टिंकू बना का टिकट अब कमलसिंह पटेल को दे दिया है। यानी अब यहां कमलसिंह पटेल और भाजपा के राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के बीच मुकाबला होगा। अभिषेक सिंह के प्रत्याशी बनते ही ये बदलाव तय माना जा रहा था।
प्रत्याशी बदलना राजनीतिक दलों में सामान्य चलन है। बदनावर के टिकट का बदलाव भविष्य की पूरी राजनीति की दिशा तय करता है। अभिषेक सिंह का टिकट दिग्विजय सिंह की पसंद का बताया जा रहा है। उनकी टिकट वापसी का मतलब दिग्विजय की खींची लकीर मिटाना भी भी है। अब तक ये माना जाता रहा है कि दिग्विजय मध्यप्रदेश कांग्रेस पर एकछत्र राज करते हैं। वे जो कहते हैं, उसकी कोई काट नहीं।
अभिषेक सिंह के टिकट के कटने का कारण संगठन में विरोध जनता का सही फीडबैक न होने जैसा बताया जा रहा है। यही हमेशा कहा भी जाता है। पर मामला इतना आसान है नहीं। बदनावर टिकट में वही हुआ जो दिग्विजय की पुराना स्टाइल रहा है। इस राजा ने भी कई बार ऐसे टिकट दिए और फिर फीडबैक के नाम पर अपने आदमी को टिकट दिया। आज वही अंदाज उन पर लागू हो गया।
राजवर्धन सिंह सिंधिया के खास हैं, वे सिंधिया के साथ ही भाजपा में आये हैं। उनके पिता प्रेमसिंह दत्तीगांव की राजनीति को खत्म करने का जिम्मेदार राजवर्धन सिंह दिग्विजय को ही मानते हैं। वे कभी दिग्विजय के बारे में बात तक करना पसंद नहीं करते। उनके सामने दिग्विजय भी अपनी पसंद के प्रत्याशी को ही चाहते थे।
कमलसिंह पटेल का नाम घोषित करवा कर उमंग सिंगार ने दिग्विजय खेमे को क्षेत्र में अपनी ताकत का अहसास भी करा दिया है। सिंगर संकेत दे चुके थे कि कमल पटेल को टिकट नहीं दिया गया तो वे चुनाव तक बदनावर से दूरी बना लेंगे। सिंगार पहले भी इस इलाके में दिग्विजय की घुसपैठ के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। सिंगार ने पहले भी दिग्विजय को खुली चुनौती दी है।
कांग्रेस ने जिस टिंकू बना का पहले नाम घोषित किया था उनके खाते में बड़ी उपलब्धि के नाम पर शिवराज-सिंधिया की हाल की बदनावर यात्रा में समर्थकों के साथ उन्हें काले झंडे दिखाना ही है। दत्तीगांव ने विधायक रहते टिंकू बना परिवार को कांग्रेस सदस्यता से निष्कासित कराने जैसी कार्रवाई की थी, इसके बाद भी उन्हें प्रत्याशी घोषित किए जाने का क्षेत्र के कांग्रेसजन खुल कर विरोध कर रहे थे।
टिंकू बना के पिता एडवोकेट जीपी सिंह का बदनावर में दबदबा तो रहा लेकिन दत्तीगांव के पावर में आने के बाद इसी परिवार को दलगत स्तर पर परेशानियों से भी जूझना पड़ा है। अब जब उनकी जगह पटेल को टिकट दे दिया है तब भी टिंकू बना की मजबूरी होगी कांग्रेस के लिए काम करना क्योंकि उन्हें दत्तीगांव से पुराने हिसाब चुकते करना है।
कमलसिंह पटेल राजवर्धन और उनके पिता की सियासत के स्तम्भ रहे कमल पटेल परिवार का प्रेम सिंह दत्तीगांव से लेकर राज्यवद्र्धन सिंह को राजनीतिक रूप से मजबूत करने में योगदान रहा है इस वजह से भी अब जब कमल पटेल को मौका दिया है तो आम कांग्रेसजन अधिक खुश है। दावेदारी में जिला कांग्रेस अध्यक्ष बीके गौतम के पुत्र मनोज का भी नाम था लेकिन कमल पटेल का नाम घोषित कर कांग्रेस ने स्थानीय प्रत्याशी वाली मांग का सम्मान किया है।
बदनावर की कुल जनसंख्या, जातिगत मतदाता 1135 हजार के करीब राजपूत, इतने ही 35 पाटीदार मतदाता है। सत्रह हजार के करीब जैन समाज, 19 हजार के करीब मुस्लिम, 65 हजार के करीब आदिवासी व अन्य समाज के लोग विधानसभा में हैं। कुल जनसंख्या दो लाख के आसपास है।
पटना, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार चुनाव को लेकर महागठबंधन में सीट बंटवारे के बाद भाकपा (माले) ने सोमवार को यहां प्रत्याशियों की अपनी सूची जारी कर दी। महागठबंधन में सीट बंटवारे के बाद भाकपा (माले) के हिस्सें में 19 सीटें आई हैं। भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने प्रत्याशियों की सूची जारी करते हुए कहा कि, "तीनों निवर्तमान विधायक महबूब आलम, सुदामा प्रसाद और सत्यदेव राम को फिर से प्रत्याशी बनाया गया है।"
आलम को बलरामपुर से पार्टी ने प्रत्याशी बनाया है, जबकि सुदामा प्रसाद तरारी से और सत्यदेव राम दरौली से चुनाव लड़ेंगे। इसके अलावा संदीप सौरभ को पालीगंज, कयामुद्दीन अंसारी को आरा, मनोज मंजिल को अगिआंव, अजीत कुमार सिंह को डुमरांव, अरूण सिंह को काराकाट, महानंद प्रसाद को अरवल तथा रामबलि सिंह यादव को घोसी से प्रत्याशी बनाया गया है।
भट्टाचार्य ने आगे बताया कि पहले चरण में 28 अक्टूबर को होने वाले 71 विधानसभा क्षेत्रों में मतदान होना है, इसमें आठ क्षेत्र पर भाकपा (माले) के प्रत्याशी उतारे हैं।
उन्होंने कहा कि, "भोरे क्षेत्र से जितेंद्र पासववान को, जीरादेई से अमरजीत कुशवाहा, दरौंदा से अमरनाथ यादव, दीघा से शशि यादव, फुलवारी से गोपाल रविदास को टिकट दिया गया है।"
उन्होंने कहा कि इसके अलावा वीरेंद्र गुप्ता सिकटा से, अफताब आलम औराई से, रंजीत राम कल्याणपुर से तथा फुलबाबू सिंह वारिसनगर से पार्टी के प्रत्याशी होंगे।
उल्लेखनीय है कि बिहार के 243 विधानसभा सीटों में से महागठबंधन में 144 पर राष्ट्रीय जनता दल, 70 पर कांग्रेस और 29 सीटों पर वामपंथी दल अपने प्रत्याशी उतारेंगे। वामपंथी दलों में भाकपा माले को 19 सीटें दी गई हैं।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी की मध्य प्रदेश इकाई के चुनाव प्रबंधन समिति के संयोजक और शिवराज सरकार में नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह का कहना है कि राज्य में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव 'विकास' बनाम 'विश्वासघात' के बीच होने वाले हैं। भाजपा का लक्ष्य विकास और स्थायित्व है तो दूसरी ओर कांग्रेस विश्वासघात और धोखे की राजनीति करती है।
नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, कांग्रेस पिछले चुनाव में किसानों की कर्जमाफी और बेरोजगारों को भत्ता देने का वादा करके सत्ता में आई थी और उसने लगभग 100 पेज का वचन पत्र भी जारी किया था, मगर हुआ क्या, यह सबके सामने है। यही कारण रहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके साथियों ने वादा खिलाफी करने वाली कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और वे भाजपा में शामिल हो गए।
राज्य में 28 विधानसभा क्षेत्रों में 3 नवंबर को उप चुनाव होने वाले हैं। इस चुनाव में भाजपा को आखिर मतदाता क्यों वोट दें, इस सवाल पर भूपेंद्र सिंह का कहना है कि, प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के 15 महीने का शासन देखा है, कांग्रेस चुनाव में जो वादा करके सत्ता में आई थी, उसे सत्ता में आते ही कांग्रेस ने भुला दिया। जनता के साथ कांग्रेस ने धोखा किया, वहीं दूसरी ओर भाजपा विकास की राजनीति करती है और स्थायित्व वाली सरकार देने में सक्षम है। यही दो ऐसे मुद्दे हैं जिन पर जनता का भाजपा को साथ मिलेगा।
भाजपा द्वारा दलबदल कराने वाले नेताओं को उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर कांग्रेस हमलावर है और सवाल उठा रही है कि आखिर दलबदल करने वालों पर भरोसा कैसे किया जाए। इस सवाल पर भूपेंद्र सिंह ने कहा, जिन नेताओं ने दलबदल किया है उन्होंने जनता की खातिर ही कांग्रेस छोड़ी और भाजपा में आए हैं क्योंकि कांग्रेस की सरकार ने जनता के साथ धोखा किया था। कांग्रेस की सरकार ने वचन पूरे नहीं किए, तभी तो उन नेताओं ने पार्टी छोड़ी। वास्तव में उन नेताओं ने तो जनता के लिए त्याग किया है, वे विधायक थे, मंत्री थे, उन्हें किसी चीज की कमी नहीं थी, मगर कांग्रेस ने जनता के साथ धोखेबाजी की तो उन नेताओं ने सत्ता ही त्याग दी।
भूपेंद्र सिंह ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, यह चुनाव प्रत्याशी आधारित नहीं है बल्कि भाजपा विकास के मुद्दे पर लड़ रही है। यह चुनाव शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के राजनीतिक प्रभाव को लेकर पूछे गए सवाल पर भूपेंद्र सिंह ने कहा कि, सिंधिया के भाजपा में आने से पार्टी को लाभ मिलेगा। सिंधिया बड़ी ताकत हैं, राज्य के बड़े नेता हैं, कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा था। ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में तो कांग्रेस सिंधिया पर ही आधारित थी। उनके कांग्रेस छोड़ने से पार्टी लगभग समाप्त होने की स्थिति में आ गई है। इसका भाजपा को लाभ मिलेगा।
किसान कर्ज माफी को लेकर भाजपा और कांग्रेस के अपने-अपने तर्क हैं। सिंह का कहना है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में 10 दिन में किसान कर्जमाफी की बात कही थी, अगर वास्तव में कर्जमाफी हुई हेाती तो लोकसभा के चुनाव में राज्य से कांग्रेस का सफाया नहीं हुआ होता। सब साफ है, कांग्रेस ने जनता के साथ सिर्फ विश्वासघात ही किया है।
बेंगलुरु, 5 अक्टूबर (आईएएनएस)| दिवंगत आईएएस अधिकारी डी.के. रवि की विधवा पत्नी कुसुमा एच. ने कर्नाटक की दो विधानसभा सीटों के लिए 3 नवंबर को होने वाले उपचुनाव से पहले रविवार को कांग्रेस का दामन थाम लिया। पार्टी के एक नेता ने यहां आईएएनएस को बताया, "31 साल की कुसुमा औपचारिक रूप से हमारी पार्टी में एक प्राथमिक सदस्य के रूप में शामिल हुईं।"
2009 बैच के कर्नाटक कैडर के आईएएस अधिकारी 35 वर्षीय रवि ने 16 मार्च, 2015 को 'व्यक्तिगत कारणों' से आत्महत्या कर ली थी।
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने कहा, "पार्टी कुसुमा को आरआर नगर से उपचुनाव के लिए उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही है, क्योंकि वह शिक्षित और युवा हैं और युवाओं से सहजता से जुड़ सकती हैं।"
2019 में भाजपा में शामिल हुए कांग्रेस विधायक मुनिरत्ना के इस्तीफे से आरआर नगर में उपचुनाव कराने की जरूरत आ पड़ी।
एक और उपचुनाव तुमकुरु जिले में सिरा विधानसभा क्षेत्र में होना है। 5 अगस्त को लंबी बीमारी के बाद जेडी-एस के विधायक बी. सत्यनारायण के निधन के कारण यह सीट खाली हो गई।
कुसुमा के पिता हनुमंतरायप्पा आरआर नगर जोन से कांग्रेस काउंसिल के पूर्व सदस्य और मैसूर योजना समिति के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं।
पटना, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान महागठबंधन से बाहर होने के बाद रविवार को विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने राजद नेता तेजस्वी यादव पर अंधेरे में पीठ पर छूा घोंपने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि कई अन्य पार्टियों से उनकी बात हो रही है। पटना में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान उन्होंने तेजस्वी पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि उनकी कथनी और करनी में फर्क है। उन्होंने कहा, "जब बात सीटों की हो चुकी थी, तब उन्हें इसकी घोषणा करने में दिक्कत क्यों हुई, जबकि दो दिन पहले उनके पास आई पार्टी के सीटों की घोषणा करने में देर नहीं की।"
सहनी ने साफ-साफ कहा, "वे भविष्य में कभी तेजस्वी यादव के साथ राजनीति नहीं करेंगे। हम अपनी शतोर्ं पर चुनाव लड़ेंगे। अभी कुछ लोगों से बात चल रही है। फिलहाल हमने पार्टी के सभी पदाधिकारियों के साथ विमर्श के बाद 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया है। प्रथम सूची की घोषणा पांच अक्टूबर को कर दी जाएगी।"
इससे पहले मुकेश सहनी ने तेजस्वी पर ताबड़तोड़ कई आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद के विचारों से प्रभावित होकर हमने उनसे समझौता किया था और महागठबंधन में शामिल हुए थे। उन्होंने कहा कि तेजस्वी ने लोकसभा चुनाव में भी धोखा दिया था।
उन्होंने तेजस्वी पर आरोप लगाते हुए कहा कि उनसे एक पार्टी नहीं संभल रही है, तो वे बिहार क्या संभालेंगे। उन्होंने कहा कि तेजस्वी बिहार के युवा की बात करते हैं, लेकिन वामपंथी नेता कन्हैया कुमार और लोजपा नेता चिराग पासवान से उनको परेशानी है।
उल्लेखनीय है कि वीआईपी के मुकेश सहनी शनिवार को महागठबंधन में सीट बंटवारे से नाराज होकर प्रेस कांफ्रेंस से बाहर निकल गए थे।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 4 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव के कई क्षेत्रों में मुकाबला त्रिकोणीय होने के आसार बनने लगे हैं, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी ने अपने उम्मीदवार तय कर दिए हैं।
राज्य के 28 विधानसभा क्षेत्रों में तीन नवंबर को उप-चुनाव के लिए मतदान होना है और नतीजे 10 नवंबर को आएंगे। कांग्रेस 24 क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है, वहीं भाजपा के उम्मीदवारों का आधिकारिक ऐलान बाकी है तो बहुजन समाज पार्टी ने 18 उम्मीदवारों की दो सूची जारी कर चुकी है।
राज्य के जिन 28 विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव होने वाले हैं उनमें से 16 सीटें ग्वालियर चंबल इलाके से आती हैं। यह ऐसा क्षेत्र है जहां बसपा का अपना वोट बैंक है। इस इलाके की नौ विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां बसपा के उम्मीदवार पहले जीत चुके हैं। इनमें मेहगांव, करैरा, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, भांडेर व अशोकनगर शामिल है। पिछले विधानसभा क्षेत्रों में भी इन इलाकों में बसपा को काफी वोट मिले थे।
इस अंचल की राजनीति का अंदाजा आरक्षण को लेकर वर्ष 2018 में भड़की हिंसा से लगाया जा सकता है। प्रदेश में लगभग 16 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी है और इसमें सबसे ज्यादा ग्वालियर-चंबल इलाके से आती है। यही कारण है कि यह इलाका ऐसा है जिसे बसपा अपना गढ़ मानती है।
वैसे बसपा ने अब से पहले उप-चुनाव लड़ने में कभी भी दिलचस्पी नहीं दिखाई, मगर इस बार वह पूरी ताकत से चुनाव लड़ने की तैयारी में है। उसकी वजह कांग्रेस द्वारा बसपा में सेंध लगाना माना जा रहा हैं। कांग्रेस ने अब तक जिन उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है, उनमें कई नेता ऐसे है जो बसपा के प्रमुख स्तंभ रहे है या उन्होंने बसपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा है। इनमें फूल सिंह बरैया, सत्यप्रकाश संखवार, प्रागी लाल जाटव, रविंद तोमर प्रमुख हैं।
बसपा के नेता यही मानकर चल रहे हैं कि इस उप-चुनाव से उनकी ताकत और मजबूत हेागी, क्योंकि वे यह चुनाव पूरी ताकत और क्षमता से लड़ने वाले हैं। साथ ही भाजपा और कांग्रेस ने बहुजन वर्ग की उपेक्षा की है, यह वर्ग देानों राजनीतिक दलों से नाराज है।
राजनीतिक विश्लेषक देव श्रीमाली का मानना है कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की एक तिहाई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है। यह त्रिकोणीय मुकाबला बसपा के कारण नहीं बल्कि उम्मीदवार की जाति, संगठन क्षमता के कारण होगा। वैसे इस क्षेत्र में बसपा की ताकत लगातार कम हुई है, पिछले विधानसभा के दो चुनाव के आंकड़े यही बताते हैं।
पटना, 3 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार चुनाव के मद्देनजर नेताओं के दलबदल का सिलसिला अब जोर पकड़ने लिया है। इसी क्रम में शनिवार को जन अधिकार पार्टी (जाप) के राष्ट्रीय महासचिव अकबर अली परवेज, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय चौबे सहित कई नेताओं ने शनिवार को राष्ट्रीय जन जन पार्टी (राजजपा) की सदस्यता ग्रहण कर ली। राजजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आशुतोष कुमार ने आए करीब दो दर्जन नेताओं का स्वागत किया और पार्टी की सदस्यता ग्रहण करवाई।
इस मौके पर उन्होंने राजजपा को बिहार को मजबूत और स्वच्छ विकल्प देने वाली पार्टी बताते हुए कहा कि पार्टी की विचारधारा से प्रभावित होकर विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं की बदौलत बिहार में बदलाव को अब चंद दिन ही रह गए हैं।
उन्होंने कहा, "हमने जो बिहार में विकल्पहीनता को समाप्त करने का संकल्प लिया है, उस विचारधारा से प्रभावित होकर स्वच्छ राजनीति के लिए आज कई दलों के नेता हमारे साथ आए हैं।"
कुमार ने पहले चरण की अधिसूचना जारी होने के बाद भी प्रदेश की तमाम दलों द्वारा सीटों पर उम्मीदवारों के नाम पर जिच को लेकर निशाना साधते हुए कहा कि सीटों को लेकर यह खींचतान बताता है कि उनकी लड़ाई विचारधारा की नहीं, सीटों की है। इन लोगों से जनता से ज्यादा कुर्सी से मतलब है।
नई दिल्ली, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) द्वारा लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को ऑफर की गई सीटों को लेकर बैचेनी के बीच पार्टी के प्रमुख चिराग पासवान द्वारा शनिवार को पार्टी के संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई गई है, जिसमें यह तय होगा कि बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी राजग के साथ मिलकर चुनाव लड़े या अकेले लड़े। पासवान द्वारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात के एक दिन बाद मामले में यह प्रगति देखने को मिली है।
लोजपा के एक नेता ने कहा कि बैठक शाम 5 बजे होगी जिसमें सीट बंटवारे के फार्मूले पर चर्चा होगी और यह भी तय होगा कि पार्टी को अपने दम पर लड़ना चाहिए या गठबंधन में चुनाव लड़ना चाहिए।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, लोजपा राज्य में 36 विधानसभा और दो एमएलसी सीटों की मांग कर रही है। हालांकि, जनता दल-यूनाइटेड लोजपा को 20 से अधिक सीटें देने की इच्छुक नहीं है।
पिछले महीने, संसदीय बोर्ड की बैठक के दौरान, एलजेपी ने अपने नेताओं को बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों में से 143 के लिए उम्मीदवारों की एक सूची तैयार करने के लिए कहा था।
लोजपा राज्य में कई मुद्दों को लेकर नीतीश कुमार सरकार की आलोचना करती रही है, जिसमें कोविड-19 महामारी, प्रवासी श्रमिकों और बाढ़ के मुद्दों से निपटने जैसे मुद्दे शामिल हैं।
लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने कई मौकों पर नीतीश कुमार को लिखा, लेकिन मुख्यमंत्री ने एक बार भी जवाब नहीं दिया।
बिहार विधानसभा चुनाव 28 अक्टूबर, 3 नवंबर और 7 नवंबर को होंगे। वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी।
2015 के विधानसभा चुनावों में एलजेपी ने केवल 2 सीटें जीती थीं।
संदीप पौराणिक
भोपाल, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में 3 नवंबर को होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव में ग्वालियर-चंबल इलाके के कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। यही कारण है कि तमाम नेता अपनी प्रतिष्ठा को बचाने सारा जोर लगाए हुए हैं।
राज्य में होने वाले विधानसभा के 28 क्षेत्रों में से 16 क्षेत्र ग्वालियर चंबल इलाके से आते हैं। इस क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं में भाजपा के केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया, पूर्व राज्यसभा सदस्य प्रभात झा, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा और मंत्री नरोत्तम मिश्रा आते हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की सारी कमान पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष कमल नाथ ने संभाल रखी है। इसके अलावा बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए फूल सिंह बरैया और सत्यप्रकाश संखवार भी चुनाव मैदान में है।
यह चुनाव कांग्रेस के लिए 'करो या मरो' की स्थिति में लड़ना पड़ रहा है और यही कारण है कि कमल नाथ ने चुनाव की कमान खुद संभाल रखी है और अपने करीबियों की इस इलाके में तैनाती भी की है। कांग्रेस की ओर से यह चुनाव सीधे तौर पर कमल नाथ की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ है। वहीं दूसरी ओर भाजपा के आधा दर्जन नेताओं की प्रतिष्ठा इन उप-चुनावों से जुड़ी हुई है। यही कारण है कि दोनों दलों के नेताओं ने अपने अपने स्तर पर जमावट तेज कर दी है। साथ ही सीधे तौर पर खुद हालात पर नजर रखे हुए हैं।
कंग्रेस के प्रवक्ता दुर्गेश शर्मा भी मानते हैं कि, यह उप-चुनाव राज्य और नेताओं के लिहाज से अहम है। कांग्रेस पूरी तरह प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही है, वहीं भाजपा को अपने ही नेताओं पर भरोसा नहीं रहा है। यही कारण है कि उन्हें उमा भारती आदि को भेजना पड़ रहा है। यह चुनाव ऐतिहासिक होगा और इस चुनाव से साबित हो जाएगा कि जनतंत्र जीतता है या धनतंत्र।
भाजपा के मुख्य प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि, यह उप-चुनाव विकास के मुददे पर लड़ा जा रहा है, भाजपा के शासनकाल को जनता ने देखा है, वहीं कांग्रेस के पंद्रह माह के कुशासन को भी। जहां तक पार्टी के नेताओं की बात है तो भाजपा ऐसा राजनीतिक दल है जहां कार्यकर्ता से नेता बनने की प्रक्रिया चलती है, यह हमारे लिए गर्व की बात है कि कई बड़े नाम उस अंचल के हमारे पास हैं।
वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह चुनाव भाजपा के कई प्रमुख नेताओं की भविष्य की राजनीति को निर्धारित करने वाले होंगे। सिंधिया जहां भाजपा में अभी आए हैं और यह क्षेत्र उनके प्रभाव का माना जाता है, वहीं केंद्रीय मंत्री तोमर को भी अपने प्रभाव को साबित करना हेागा। कुल मिलाकर कांग्रेस की ओर से अकेले कमल नाथ हैं तो भाजपा की ओर से कई चेहरे इस क्षेत्र में दांव पर लगे हैं।
हाथरस (उत्तर प्रदेश), 2 अक्टूबर (आईएएनएस)। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ' ब्रायन और पार्टी के अन्य नेताओं को पुलिस ने शुक्रवार को हाथरस जाने से रोक दिया। वे सभी 19 वर्षीय पीड़िता के परिवार से मिलने के लिए हाथरस जा रहे थे। गौरतलब है कि सामूहिक दुष्कर्म का शिकार हुई पीड़िता की मौत हो चुकी है। पार्टी ने अपने बयान में कहा, "दिल्ली से करीब 200 किलोमीटर की यात्रा करने वाले तृणमूल सांसदों के एक प्रतिनिधिमंडल को उप्र पुलिस ने हाथरस में प्रवेश करने से रोक दिया है।" बयान में आगे कहा गया, "वे पीड़िता के परिवार के साथ एकजुटता व्यक्त करने और अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए अलग-अलग यात्रा कर रहे थे।"
हाथरस जाने से रोके गए नेताओं में तृणमूल सांसद डेरेक ओ ब्रायन, डॉ. काकोली घोष दस्तीदार, प्रतिमा मंडल और पूर्व सांसद ममता ठाकुर शामिल थे।
बयान में कहा गया, "हम शांतिपूर्वक हाथरस में परिवार से मिलने और अपनी संवेदना व्यक्त करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। हम व्यक्तिगत रूप से यात्रा कर रहे हैं और सभी प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं। हमारे पास कोई शस्त्र नहीं हैं। हमें क्यों रोका जा रहा है? यह किस तरह का जंगल राज है, जिसमें निर्वाचित सांसदों को एक पीड़ित परिवार से मिलने से रोका जा रहा है? इस समय हम हाथरस में पीड़िता के घर से सिर्फ 1.5 किलोमीटर दूर हैं।"
पटना, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन में भले ही टिकट बंटवारे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है, लेकिन उसके पहले ही दोनों दलों के नेता अब आमने-सामने आ गए हैं। कांग्रेस के बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल ने जहां लालू प्रसाद के जेल में रहने पर अफसोस जताते हुए राजद नेता तेजस्वी यादव की समझ पर प्रश्नचिह्न खड़ा किया, तो राजद ने भी अब गोहिल को आईना दिखाते हुए उन्हें बिहार की वस्तुस्थिति से परिचित नहीं होने की बात तक कह डाली।
बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन को लेकर सीट बंटवारा का मुद्दा अब तक नहीं सुलझा है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के नेता 75 से 80 सीटों पर अड़े हुए हैं, जबकि राजद 58 सीट देने पर राजी है। ऐसे में दोनों के नेता अब आमने-सामने आ गए हैं।
गोहिल गुरुवार को दिल्ली में पार्टी की स्क्रीनिंग कमिटि की बैठक के बाद रात अचानक पटना पहुंच गए। पटना पहुंचने पर उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए राजद को सीट बंटवारे को लेकर आड़े हाथों लिया। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद होते तो इतनी देर नहीं होती। दुर्भाग्यवश वे जेल में हैें।
गोहिल ने कहा, वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव और 2010 के विधानसभा चुनाव में राजद देख चुकी है कि कांग्रेस से अलग लड़ने का नतीजा क्या हुआ है। 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद ने अपनी सूझबूझ दिखाते हुए, तुरंत कांग्रेस से गठबंधन कर लिया था। उसका परिणाम सभी लोगों के सामने हैं। अगर वह होते, तो आज ऐसी स्थिति नहीं होती।
उन्होंने आगे कहा, तेजस्वी युवा चेहरा हैं। वहीं, जो कम अनुभवी लोग होते हैं, उन्हें लोग गुमराह भी करते हैं। सीटों के बंटवारे को लेकर देर बहुत हो गई है। अब गेंद राजद के पाले में है। हमारे साथी भी चाहते हैं कि सीटों पर जल्द निर्णय हो जाए।
गोहिल ने आगे कहा कि कांग्रेस राजद को छोडना नहीं चाहती है, लेकिन अगर राजद ऐसी नौबत लाती है, तो कांग्रेस भी एक राजनीतिक पार्टी है और कांग्रेस इसके लिए 'एक्सरसाईज' कर रही है।
इधर, कांग्रेस के तेजस्वी की समझ पर उठाए गए प्रश्नों को लेकर अब राजद भडक गई है। राजद के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा, "कांग्रेस के प्रभारी गोहिल को बिहार की वस्तुस्थिति पता नहीं है। बिहार की 12 करोड़ जनता तेजस्वी के नाव पर सवार है, जो नाव में छेद करेगा उसे यहां की जनता डूबा देगी।"
उन्होंने कहा कि शक्ति सिंह यहां के विरोधी दल के नेता और मुख्यमंत्री के चेहरा तेजस्वी यादव पर सवाल उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राजद को अगर कोई छेड़ेगा उसे हम उसे भी नहीं छोड़ेंगे।
पटना, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव मैदान में इस बार कई गठबंधन देखने को मिलेंगे। इधर, सभी गठबंधन अपने आकार को बड़ा करने में भी जुट गए हैं। राजद नेतृत्व वाले महागठबंधन को छोड़कर निकली राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा की है और अब उसकी नजर गठबंधन के आकार को बढ़ाने की है। सूत्रों का दावा है कि रालोसपा के नेताओं की राष्ट्रीय जन-जन पार्टी (राजजपा) के नेताओं के साथ गठबंधन में आने की बात अंतिम दौर में पहुंच गई है।
राजजपा का भूमिहार और ब्राह्मणों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है। माना जाता है कि बिहार के मगध प्रमंडल सहित कई इलाके में राजजपा का अपना वोट बैंक है।
राजजपा के प्रमुख आशुतोष कुमार हालांकि किसी गठबंधन के साथ जाने को लेकर अभी कुछ स्पष्ट नहीं कहते हैं, लेकिन इतना जरूर कहा कि इस चुनाव में जात-पात को भूलकर बिहार के विकास की बात की जानी चाहिए।
इधर, रालोसपा के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा भी एक दिन पहले अचानक दिल्ली चले गए हैं। कहा जा रहा है कि वे कांग्रेस के कुछ नेताओं के साथ भी संपर्क में हैं और साथ मिलकर चुनाव लड़ने को लेकर बात हुई है। हालांकि इसकी पुष्टि कोई नहीं कर रहा है।
इधर, रालोसपा के प्रवक्ता भोला शर्मा कहते हैं कि गठबंधन के आकार को बड़ा करने को लेकर कई दलों के नेताओं से बात चल रही है। उन्होंने कहा कि सत्ता और मुख्य विपक्ष को लेकर यह गठबंधन लोगों को विकल्प देने की तैयारी में है।
उल्लेखनीय है कि 29 सितंबर को रालोसपा ने महागठबंधन से अलग होकर बहुजन समाज पार्टी के साथ एक गठबंधन बनाने की घोषणा की। इस गठबंधन में जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) भी शामिल है।
भोपाल, 2 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में 3 नवंबर को होने वाले विधानसभा के उप-चुनाव में बयानबाजी की तल्खी बढ़ रही है, अब तो चुनाव प्रचार में जातिवाद ने भी दस्तक दे दी है। दतिया जिले के आरक्षित भांडेर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस ने फूल सिंह बरैया को उम्मीदवार बनाया है। बरैया ने बीते रोज एक जनसभा में सवर्णो का जिक्र किए बिना हमला किया और कहा, वे सिर्फ पंद्रह फीसदी हैं और हम 85 प्रतिशत। अगर मुकाबला हो गया तो एक पर छह पडें़गे हम। पंद्रह प्रतिशत वाले तभी तक राज कर रहे हैं जब तक यह (85) सो रहे हैं। यह जाग गए तो एक पर छह-छह पडेंगे, वे कैसे मुकाबला करेंगे। इसलिए बराबरी का कानून लागू किया जाए।
बरैया बसपा के प्रदेशाध्यक्ष रहे हैं और पिछले दिनों ही भाजपा से होते हुए कांग्रेस में आए हैं। उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा का भी उम्मीदवार बनाया था। अब उन्हें भांडेर विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया है।
मनोज पाठक
पटना, 1 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर गुरुवार से नामांकन का पर्चा दाखिल करने का काम शुरू हो गया, लेकिन अब तक राज्य के दोनों प्रमुख गठबंधनों में सीट बंटवारे को लेकर लगी गांठ नहीं खुाल सकी है।
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में जहां लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के कारण सीट बंटवारे का पेंच फंसा हुआ है, वहीं महागठबंधन में राजद राष्ट्रीय दल, कांग्रेस की सीटों की मांग पूरी नहीं कर पा रही है।
इधर, देखा जाए तो पिछले तीन दशकों से बिहार की सत्ता तक राष्ट्रीय दल को पहुंचने के लिए क्षेत्रीय दलों का सहारा रहा है, ऐसे में माना जा रहा है कि राष्ट्रीय दल किसी भी परिस्थिति में छोटे और क्षेत्रीय दलों को नाखुश करना नहीं चाह रहे हैं।
माना जा रहा है कि यही कारण है कि क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय स्तर के दलों को आंखें भी दिखाते रहते हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो भाजपा और कांग्रेस दोनों राष्ट्रीय पार्टियां वर्ष 1990 से अब तक किसी भी विधानसभा चुनाव में 100 के आंकड़े को पार नहीं कर सकी है।
पिछले चुनाव पर गौर करें तो पिछले चुनाव में जदयू और राजद के सहारे कांग्रेस सत्ता का स्वाद चख सकी थी, लेकिन जदयू के महागठबंधन से बाहर निकलने के बाद नीतीश कुमार की सरकार गिर गई थी और फि र नीतीश ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 27, जबकि भााजपा को 53 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।
इसके अलावा, 2010 के विधानसभा चुनाव पर गौर करें तो इस चुनाव में भी भाजपा को सत्ता तक पहुंचने के लिए जदयू का सहारा मिला था। इस चुनाव में भी जदयू को 115 सीटें मिली थी, जबकि भाजपा को 91 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।
यही स्थिति 2005 के चुनाव में भी देखने को मिली था जहां भाजपा सत्ता तक पहुंची जरूर, लेकिन उसे जदयू के सहारे चुनाव मैदान में उतरना पड़ा था।
वर्ष 2000 के चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में बिहार के 243 विधानसभा सीटों में से आधे से अधिक पर राजद ने अपना परचम लहरा कर सत्ता तक पहुंची थी। 1995 के चुनाव की बात करें तो उस चुनाव में भी राष्ट्रीय दल कांग्रेस को 29 सीटों पर संतोष करना पड़ा था जबकि भाजपा को 41 सीटें मिली थी। इससे पहले 1990 में भी दोनों राष्ट्रीय दलों को 100 से कम सीटों पर ही संतोष करना पडा था।
राजनीतिक समीक्षक संतोष सिंह कहते हैं कि वर्ष 1989 के भागलपुर दंगे के दौरान ही कांग्रेस के लिए अंतिम कील ठोंक दी गई थी जब अल्पसंख्यक इससे नाराज हो गए थे। उस समय बिहार में भाजपा का बिहार में उदय हो रहा था।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि कांग्रेस तो 'बैकफुट' पर चली गई लेकिन कलांतर में भाजपा केंद्र में सत्तारूढ़ हो गई, लेकिन बिहार में अब भी वह जदयू के पिछलग्गू बनी है।
सिंह कहते हैं, "पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में राजग ने 40 में से 39 सीटों पर विजयी हुई थी, जिसमें भाजपा के 17 उम्मीदवार उतारे थे और सभी विजयी हुए थे, उसके बावजूद भाजपा ने बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले चुनाव मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं की। इस चुनाव में भी वह जदयू के साथ है।"
वैसे उन्होंने यह भी कहा कि अगर इस चुनाव में राजग के घटक दल जदयू और भाजपा बराबर सीटों पर चुनाव लड़ती है, तब परिणाम देखने वाला होगा और यह भी देखना दिलचस्प होगा कि राष्ट्रीय स्तर पर रूतबा कायम करने वाली भाजपा बिहार में अपना रूतबा बना सकी या नहीं ?
पटना, 29 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले विपक्षी दलों को मंगलवार को एक और झटका लगा, जब राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) ने महागठबंधन से अलग होकर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ एक गठबंधन बनाने की घोषणा की। इस गठबंधन में जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) भी शामिल है। रालोसपा के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने मंगलवार को पटना में एक संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर जमकर निशाना साधा।
उन्होंने महागठबंधन को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि महगठंबधन की आज जो स्थिति में है, उसमें ऐसा लगा कि 15 सालों से जो नीतीश कुमार बिहार को रसातल में ले जा रहे हैं, उससे यह महागठबंधन बिहार को मुक्ति नहीं दिला पाएगा। यही कारण है कि उन्होंने यह फैसला लिया।
इस संवाददाता सम्मेलन में बसपा के बिहार प्रभारी रामजी सिंह गौतम और जनवादी पार्टी (सोशलिसट) के संजय सिंह चौहान भी उपस्थित थे।
कुशवाहा ने भ्रष्टाचार को लेकर भी नीतीश कुमार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार के पहले 15 साल की सरकार ने सरकारी संपत्ति को दोनों हाथों से लूटा। अब इस सरकार में केवल तरीका बदल गया, लूट जारी रही।
कुश्वाहा ने कहा कि राजग को भी पता है कि सरकार की साख लगातार गिरी है। इनका एक ही सहारा है, 15 साल बनाम 15 साल का नारा। बिहार की जनता बदलाव चाहती है, लेकिन पिछली सरकार की स्थिति में लौटना नहीं चाहती।
कुशवाहा ने कहा, "हमने बसपा के साथ मिलकर चुनाव मैदान में जाने का फैसला किया है। अन्य कई दल संपर्क में है। समान उद्देश्य के लिए जो भी साथ आएंगे उनका स्वागत है।"
मनोज पाठक
पटना, 29 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए दो दिन बाद नामांकन की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाएगी, लेकिन राज्य के दो प्रमुख गठबंधनों राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन में अभी भी सीटों को लेकर रार ठनी हुई है। इस बीच हालांकि छोटे दलों के छोटे गठबंधन आकार ले रहे हैं।
राजग के प्रमुख घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है। सूत्रों के मुताबिक जदयू और लोजपा के बीच चल रही तनातनी के बीच भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने लोजपा को 27 सीटों का ऑफर दिया है, लेकिन इस पर बात बनी नहीं है। लोजपा के अंदरखाने से अभी भी 143 सीटों पर लड़ने की बात कही जा रही है।
लोजपा और भाजपा के नेता इस मामले को लेकर खुलकर कुछ नहीं बोल रहे हैं, लेकिन अब तक जो स्थिति बनी है उसके मुताबिक इस चुनाव को लेकर लोजपा की स्थिति साफ नहीं ह,ै जबकि इस गठबंधन में भाजपा के साथ जदयू और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा मजबूती के साथ खड़ी है।
इधर, विपक्षी दलों के महागठबंधन की बात करें तो यहां भी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को लेकर ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है। रालोसपा में अब तक अधिकारिक रूप से महागठबंधन से अलग होने की घोषणा नहीं की है, लेकिन उसकी नाराजगी अब जगजाहिर हो गई है। रही सही कसर सोमवार को राजद ने रालोसपा के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व सांसद भूदेव चौधरी को अपनी पार्टी में मिलाकर पूरी कर दी।
वैसे, रालोसपा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने सोमवार को दिल्ली से तीन दिनों के प्रवास से लौटने के बाद कहा कि उनकी अभी किसी दल से बात नहीं हो रही है, जो भी कयास लगाए जा रहे हैं, वह सही नहीं है। उल्लेखनीय है कि कुशवाहा के राजग में जाने के कयास लगाए जा रहे थे।
इस बीच, सूत्रों का कहना है कि मंगलवार को कुशवाहा कुछ अंतिम निर्णय ले सकते हैं। सूत्र कहते हैं कि कुशवाहा अलग मोर्चा भी बना सकते हैं।
इधर, राजद और कांग्रेस में भी सीटों को लेकर गुत्थी नहीं सुलझी है। सूत्रों के मुताबिक, राजद कांग्रेस को 58 विधानसभा सीट और वाल्मीकिनगर लोकसभा सीट देने को तैयार है, लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने अब तक इस फॉमूर्ले को लेकर हरी झंडी नहीं दी है। कांग्रेस के स्क्रीनिंग कमिटि के प्रमुख अविनाश पांडेय सभी 243 सीटों पर तैयार रहने की बात कहकर अपने तेवर दिखा चुके हैं।
इस बीच छोटे दलों का गठबंधन आकार ले रहा है। जन अधिकार पार्टी (जाप) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने सोमवार को यहां प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन (पीडीए) बनाने की घोषणा की। इस गठबंधन में चंद्रशेखर आजाद की अध्यक्षता वाली आजाद समाज पार्टी, एम के फैजी के नेतृत्व वाली सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसटीपीआई) और बी.पी. एल. मातंग की बहुजन मुक्ति पार्टी (बीएमपी) शामिल हुई है। पप्पू यादव कहते है कि यह गठबंधन राज्य में 30 सालों के महापाप को अंत करने के लिए बना है।
इधर, जनता दल (राष्ट्रवादी) और भारतीय सबलोग पार्टी यूनियन डेमोक्रेटिक अलायंस (यूडीए) बनाकर चुनाव मैदान में है।
जनता दल राष्ट्रवादी के राष्ट्रीय संयोजक अशफाक रहमान कहते हैं कि आज गठबंधन की राजनीति के अलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है। क्षेत्र की समस्याओं को दिल्ली में बैठे लोग नहीं जान सकते, यही कारण है कि गठबंधन बन रहा है और सफल हो रहा है। उन्होंने कहा कि यूडीए आज लोगों के सत्ता और विपक्षी दलों के विकल्प के रूप में उभरा है।
पटना, 28 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार में विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद से ही विधायक बनने की चाहत संवारे नेताओं की भीड़ पार्टी के प्रदेश कार्यालयों में लगने लगी है। जिन्हें पार्टी के आलाकमान से टिकट देने का आश्वासन मिल जा रहा है, उनकी तो खुशी परवान पर दिख रही है और जिन्हें आशा नहीं दिखती वे पार्टी लाइन से हट कर अपने तरीके से टिकट की मांग कर रहे हैं। भाजपा के प्रदेश कार्यालय के समीप रविवार को लखीसराय के पार्टी कार्यकर्ताओं ने जमकर नारेबाजी की तो सोमवार को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) कार्यालय के बाहर एक महिला राजद कार्यकर्ता टिकट की मांग को लेकर धरने पर बैठ गई।
बेगूसराय जिला के तेघड़ा विधानसभा की नेत्री सुधा सिंह सोमवार को अनिश्चितकालीन धरना पर बैठ गई।
उन्होंने पत्रकारों से बताया, "तेजस्वी यादव और पार्टी के शीर्ष नेता से कई बार मिलने की कोशिश की, लेकिन मुलाकात नहीं हुई। वर्ष 2015 में ही लालू प्रसाद ने हमें टिकट देने का आश्वाशन दिया था, पर टिकट नहीं मिला था।"
उन्होंने कहा कि जब तक टिकट नहीं दिया जाता, वे यहीं बैठी रहेंगी।
इससे पहले रविवार को भाजपा कार्यालय में लखीसराय में उम्मीदवार बदलने को लेकर जमकर हंगामा हुआ। भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी की गाड़ी को कार्यालय में घुसने से कुछ देर तक रोक दिया। उपमुख्यमंत्री की गाड़ी को कार्यालय आने देने से रोक रहे कार्यकर्ताओं और कार्यालय में मौजूद पार्टी जनों के बीच हल्की झड़प भी हुई।
लखीसराय ये आए पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का आरोप था कि लखीसराय के मौजूदा विधायक और श्रम संसाधन मंत्री विजय कुमार सिन्हा मतदाताओं की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं।
मनोज पाठक
पटना, 28 सितम्बर (आईएएनएस)| बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के जरिए राज्य की सत्ता तक पहुंचने के लिए कोई भी राजनीतिक दल कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाह रही है। सभी दल मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह-तरह के वादे कर रहे हैं।
इसी क्रम में चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल (युनाइटेड) के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चुनावी वादों की झोली लेकर लोगों के सामने पहुंच गए, वहीं मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव भीे वादों को पूरी पोटली खोल दी। दोनों के चुनावी वादों से साफ है कि दोनों पार्टियों की नजर बेरोजगार युवाओं को आकर्षित करने की है।
उल्लेखनीय है कि दोनों दल 15-15 साल बिहार की सत्ता पर काबिज रह चुके हैं।
चुनावी की तारीखों की घोषणा के साथ ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लोगों से वादों की बौछार कर दी। मुख्यमंत्री ने जहां सत्ता में लौटने के बाद सात निश्चय पार्ट-2 के तहत काम करने का वादा किया, वहीं 'युवा शक्ति बिहार की प्रगति' के तहत युवाओं को नौकरी मिल सके इसके लिए उन्हें प्रशिक्षित करने का वादा किया।
उन्होंने कौशल विकास योजना पर ज्यादा से ज्यादा युवाओं को जोड़ने और प्रत्येक जिले में मेगा स्किल सेंटर बनाने के साथ ही स्किल एवं उद्यमिता के लिए एक नया विभाग भी बनाने का वादा किया। मुख्यमंत्री ने युवाओं को रिझाने के लिए उद्यमिता के लिए इस बार हर किसी को मदद देने का आश्वासन दिया।
इधर, नीतीश के वादों की लंबी फेहरिस्त के बाद राजद के नेता भी पीछे नहीं रहे। तेजस्वी भी रविवार को पत्रकारों के सामने आए और सत्ता में आने के बाद दो महीने के अंदर ही 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने का वादा कर इस चुनाव में बड़ा दांव चल दिया।
तेजस्वी ने सरकारी विभागों में आंकड़ों के जरिए रिक्त पदों का हवाला देते हुए कहा कि हमारी सरकार बनी तो कैबिनेट की पहली बैठक में 10 लाख युवाओं को रोजगार देने का फैसला किया जाएगा।
उन्होंने कहा, "अगर उनकी पार्टी को यहां के लोग मौका देते हैं तो इन सभी रिक्त पदों पर नियुक्ति की जाएगी।"
उन्होंने कहा कि यह वादा नहीं मजबूत इरादा है।
दीगर बात है कि दोनों पार्टियों के नेता के वादों को लेकर विरोधी प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। एक-दूसरे पर सत्ता में रहने पर काम क्यों नहीं करने को लेकर प्रश्न पूछ रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषक अजय कुमार कहते हैं कि राजनीतिक दलों का चुनाव से पहले घोषणाएं और वादा करना कोई नई बात नहीं है। यह प्रारंभ से होता आया है।
उन्होंने कहा, "कोरोना काल में कई प्रवासी मजदूर वापस लौट आए हैं, विपक्ष पिछले कुछ महीने से बेरोजगारी को मुद्दा बनाने में जुटा है। ऐसे में सत्ता पक्ष के पास भी रोजगार का वादा करना मजबूरी है।"
उन्होंने कहा कि दोनों दल 15-15 साल सत्ता में रह चुके हैं, अगर इस मामले को लेकर ईमानदारी से प्रयास किया जाता तो स्थिति बदली रहती। उन्होंने हालांकि सवालिया लहजे में कहा कि चुनावी घोषणाएं और वादे कितने पूरे होते हैं, ये सभी जानते हैं।
पटना, 27 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद टिकट की आस लगाए बैठी एक उम्मीदवार के समर्थकों और पार्टी के कुछ पदाधिकारियों के बीच हाथापाई हो गई। यह स्थिति तब बनी जब टिकट पाने की इच्छुक उम्मीदवार के 50 से अधिक समर्थकों ने उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के वाहन को बीजेपी के पटना कार्यालय में जाने से रोकते हुए लखीसराय निर्वाचन क्षेत्र के लिए मौजूदा विधायक विजय सिन्हा की उम्मीदवारी को रद्द करने की मांग की। समर्थक इस सीट से कुसुम देवी को टिकट दिए जाने की मांग कर रहे थे।
प्रदर्शनकारियों ने उप मुख्यमंत्री के वाहन को लगभग 10 मिनट तक रोके रखा तब पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें रास्ते से हटाने की कोशिश की। इसके बाद बहस हुई और फिर बात हाथापाई तक पहुंच गई।
प्रदर्शनकारियों में से एक मनीष कुमार ने आरोप लगाया, "विधायक पिछले 15 वर्षों से लखीसराय से चुने जा रहे हैं, लेकिन उन्होंने लोक कल्याण का कोई काम नहीं किया। मेरी नेता कुसुम देवी पिछले 25 वर्षों से भाजपा से जुड़ी हैं और उनसे बेहतर उम्मीदवार हैं। वह समाज के सभी वर्गों में बेहद लोकप्रिय भी हैं।"
बाद में प्रदर्शनकारियों को समझा-बुझाकर वहां से हटाया गया।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा, "उम्मीदवारों के समर्थक चुनाव में उनके समर्थन में आवाज बुलंद करते हैं। लेकिन हमने उम्मीदवारों के चयन के लिए प्रक्रिया निर्धारित की है। यदि वह पात्र हैं तो चयन समिति निश्चित रूप से उन पर विचार करेगी।"
बता दें कि कुछ समय पहले ही भाजपा समर्थकों का नाम कथित तौर पर जन अधिकार पार्टी के कार्यकतार्ओं के साथ मारपीट करने में सामने आया था, इस घटना में तीन लोग घायल हो गए थे।
पटना, 26 सितंबर (आईएएनएस)| बिहार में विपक्षी दलों के महागठबंधन में शामिल कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी के प्रमुख अविनाश पांडेय ने यहां शनिवार को कहा कि कांग्रेस बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि गठबंधन में सम्मानजनक सीटें मिलती हैं, तो साथ में चुनाव लड़ेंगे।
पटना में पत्रकारों से बात करते हुए पांडेय ने कहा है कि अगर हमारी राष्ट्रीय जनता दल के साथ एक 'सम्मानजनक' साझेदारी होती है, तो हम उनके साथ चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने कहा कि बिहार में चुनाव को लेकर भाजपा के खिलाफ सभी विरोधी दल कांग्रेस के साथ हैं।
इससे पहले बिहार चुनाव के लिए गठित कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडेय तथा दोनों सदस्य काजी निजामुद्दीन एवं देवेंद्र यादव पटना पहुंचे।
स्क्रीनिंग कमेटी की दो दिवसीय बिहार यात्रा में पहली बैठक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा सहित कार्यकारी अध्यक्ष समीर कुमार सिंह, श्याम सुंदर सिंह धीरज, विधायक डॉ. अशोक कुमार, कौकब कादरी, कांग्रेस विधानमंडल के नेता सदानन्द सिंह, चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष राज्यसभा सांसद डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह के साथ गोपनीय मंत्रणा हुई।
इसके बाद दूसरी बैठक कांग्रेस प्रदेश कार्यसमिति सदस्यों और सभी प्रकोष्ठों, विभागों के अध्यक्षों के साथ लम्बी बैठक हुई।
बैठक के बाद स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडेय ने कहा कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों में अपने कार्यकर्ताओं को चुनावी तैयारी में जुटने को कहा है। ससम्मान सीटों के बंटवारे के बाद महागठबंधन मजबूती से चुनाव में उतरेगा। उन्होंने कहा कि दो दिवसीय बिहार यात्रा में पार्टी सभी संभावित सीटों पर अपने उम्मीदवारों की स्क्रूटनी करेगी। साथ ही पार्टी के अधिक जनाधार वाली सीटों पर संभावनायें टटोलेगी।
प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा ने कहा कि बिहार क्रांति महासम्मेलन की वर्चुअल रैली में पार्टी ने डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी मजबूत उपस्थिति दिखाई।
हरियाणा से पार्टी के विधायक और बिहार स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य देवेंद्र यादव ने कहा कि बिहार के चुनावों की तिथि घोषित हो चुकी है और बिहार कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का जोश ये बताने को काफी है कि हमारे दल की स्थिति काफी मजबूत है।
बिहार चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि पार्टी के स्क्रीनिंग कमेटी के चेयरमैन और सदस्यों की यह पहली बैठक है। पार्टी ने बिहार विधानसभा चुनावों को लेकर अपनी तैयारियों की समीक्षा भी की।