राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 7 जुलाई। कोविड-19 वैक्सीन लॉन्च करने के लिए 15 अगस्त की समयसीमा निर्धारित कर विवादों के घेरे में आए आईसीएमआर के दावे पर देश की सबसे बड़ी विज्ञान अकादमी भारतीय विज्ञान अकादमी (आईएएससी) ने भी सवाल उठाया है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने कोविड-19 का स्वदेशी वैक्सीन चिकित्सकीय उपयोग के लिए 15 अगस्त तक उपलब्ध कराने के मकसद से चुनिंदा चिकित्सकीय संस्थाओं और अस्पतालों से कहा है कि वे भारत बॉयोटेक के सहयोग से विकसित किए जा रहे संभावित वैक्सीन ‘कोवैक्सीन’ को परीक्षण के लिए मंजूरी देने की प्रक्रिया तेज करें।
ऐसी किसी समयसीमा को निर्धारित किए जाने को अव्यावहारिक बताते हुए आईएएससी ने जोर देकर कहा कि मनुष्यों में उपयोग के लिए वैक्सीन के विकास के लिए चरणबद्ध तरीके से वैज्ञानिक रूप से निष्पादित क्लीनिकल ट्रायल्स की आवश्यकता होती है।
आईएएससी की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘संक्रमण से लडऩे के लिए मानव शरीर में एंटीबॉडी बनने में भी समय लगता है। इसके बाद इनका असर, डाटा रिपोर्टिंग इत्यादि में एक लंबा वक्त चाहिए होता है। हर चरण के परिणाम की समीक्षा के आधार पर ही उसे अगले दौर में प्रवेश दिया जाता है। अगर इसमें किसी भी तरह की कोताही बरती गई तो बड़ा नुकसान हो सकता है।’
आईएएससी ने आगे कहा, ‘अगर पहले या दूसरे चरण में परीक्षण का परिणाम संतोषजनक नहीं आता है तो उस अध्ययन को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। इन्हीं कारणों के चलते ऐसे परीक्षणों को समयसीमा में बांधना गलत है। इस तरह के आदेशों से देश के नागरिकों में उम्मीद जगेगी जो अगर पूरी नहीं हुई तो उनका विश्वास टूट सकता है।’
बता दें कि बीते 2 जुलाई को आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने 12 चुनिंदा संस्थानों को पत्र लिखकर कहा था कि वे भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोविड-19 वैक्सीन कोवैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू करें।
ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) द्वारा वैक्सीन को मानव परीक्षण के लिए दिए जाने के बाद भार्गव द्वारा वैक्सीन को जनस्वास्थ्य के लिए इस्तेमाल किए जाने के लिए तैयार करने की 15 अगस्त की समयसीमा निर्धारित करने पर वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं।
भार्गव की इस घोषणा को राजनीतिक दलों द्वारा इस तरह से देखा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वतंत्रता दिवस पर वैक्सीन लॉन्च कर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करेंगे।
हालांकि, वैज्ञानिकों और राजनीतिक दलों की आलोचनाओं के बाद शनिवार को आईसीएमआर ने बयान जारी कर कहा कि अनावश्यक लालफीताशाही से बचने के लिए बिना किसी आवश्यक प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए वैक्सीन के विकास में तेजी लाने का आदेश दिया गया है। (thewirehindi.com)
टुमकुरू (कर्नाटक), 7 जुलाई (एएनआई)। कोरोना वायरस संक्रमण के बीच कम्युनिटी ट्रांसमिशन की चर्चा लगातार होती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय लगातार इस बात का दावा कर रहा है कि भारत में अभी तक कम्युनिटी ट्रांसमिशन के मामले सामने नहीं आए हैं। वहीं, कर्नाटक के मंत्री जेसी मधुस्वामी ने सोमवार को कहा कि कर्नाटक में कोरोना का संक्रमण सामुदायिक स्तर पर फैलने लगा है।
टुमकुरू जिला के प्रभारी मंत्री मधुस्वामी ने मीडिया को बताया, टुमकूर के कोविड अस्पताल में भर्ती कोरोना वायरस के आठ मरीजों की स्वास्थ्य स्थिति काफी चिंताजनक है। जानकारी के मुताबिक उनके बचने की संभावना कम ही है। हम इस बात को महसूस कर रहे हैं साथ ही साथ डर भी रहे हैं कि कोरोना का संक्रमण कम्युनिटी स्तर पर हो रहा है।
उन्होंने कहा, हम एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं, जहां जिला अधिकारियों के लिए इसे रोकना मुश्किल है। भले ही हम इस पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहे हों, लेकिन कहीं न कहीं स्थिति हाथ से निकल रही है।
मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा, डिप्टी सीएम अश्वथ नारायण, चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. सुधाकर ने कर्नाटक में कोरोना वायरस के कम्युनिटी ट्रांसमिशन से इनकार किया है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार, कर्नाटक में 13,255 और 372 लोगों सहित 23,474 कोरोनो वायरस के मामले हैं।
किन्नौर/तवांग, 7 जुलाई। कोरोना संकट के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में भूकंप का आना जारी है। मंगलवार को उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में भूकंप के झटके महसूस किए गए। तीनों ही जगहों पर भूकंप की तीव्रता काफी कम रही। प्राकृतिक आपदा के बाद किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।
हिमाचल में रात 1 बजकर 3 मिनट पर भूकंप के झटके लगे। भूकंप का केंद्र किन्नौर के पूर्वोत्तर इलाके में 7 किमी धरती के नीचे था। वहीं, उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में मंगलवार को 5.0 तीव्रता का भूकंप आया। नैशनल सेंटर फॉर सिसमॉलजी के मुताबिक, यूपी की राजधानी लखनऊ से 59 किमी उत्तर-पूर्वोत्तर में धरती के 5 किमी नीचे भूकंप का केंद्र था। भूकंप के झटके सुबह 9 बजकर 55 पर महसूस किए गए।
देश-विदेश के कई इलाकों में बीते दिनों लगातार भूकंप के झटके महसूस किए गए। भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, पूर्वोत्तर के राज्यों और राष्ट्रीय राजधानी इलाके में भी हाल ही में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे। (navbharattimes.indiatimes.com)
परिवार चाहता है मामले की जांच
AIIMS सूत्र भी बताते हैं कि कहीं ना कहीं लापरवाही हुई है, यही वजह है कि परिवार और रिश्तेदार इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कमिटी बनाई है और जांच रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर देने को कहा है।
नई दिल्ली: कोरोना वायरस से संक्रमित दिल्ली के पत्रकार की सुइसाइड मामले में कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। एम्स प्रशासन की तरफ से पत्रकार तरुण सिसोदिया की मौत को लेकर बयान जारी किया गया है, लेकिन बयान के बाद भी सवाल बने हुए हैं, जिसके जवाब के लिए एम्स और एम्स ट्रॉमा सेंटर प्रशासन से लगातार प्रयास किया गया, लेकिन उनकी चुप्पी बनी हुई है।
एम्स सूत्र भी बताते हैं कि कहीं न कहीं लापरवाही हुई है, यही वजह है कि परिवार और रिश्तेदार इस मामले में जांच की मांग कर रहे हैं। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने एक कमिटी बनाई है और जांच रिपोर्ट 48 घंटे के भीतर देने को कहा गया है।
एम्स प्रशासन की तरफ से बयान जारी कर बताया गया है कि कोविड की वजह से तरुण को एम्स ट्रॉमा सेंटर में 24 जून को एडमिट किया गया था। वह फिलहाल टीसी-1 आईसीयू में था, जो पहली मंजिल पर है।
एम्स ने अपने बयान में कहा है कि तरुण की रिकवरी बेहतर थी और रूम एयर में सांस ले पा रहे थे। इसलिए सोमवार को तरुण को आईसीयू से वॉर्ड में शिफ्ट करने की योजना थी। एम्स ने अपने बयान में उनके ब्रेन ट्यूमर की सर्जरी का भी जिक्र किया है और यह भी बताने की कोशिश की है कि इसको लेकर न्यूरो और सायकायट्री के डॉक्टर को दिखाया गया था।
उनके फैमिली मेंबर को लगातार तरुण की सेहत को लेकर जानकारी दी जा रही थी लेकिन सूत्रों का कहना है कि यह पूरी तरह से सच नहीं है, क्योंकि तरुण के परिवार के लोग उनके जर्नलिस्ट दोस्तों से फोन करके अपडेट लेते थे। एक दिन ऑक्सीजन पाइप को लेकर दिक्कत आई थी तो उनके दोस्तों ने इसकी सूचना एम्स प्रशासन को दी थी, तब जाकर उसे ठीक किया गया था।
सूत्रों का कहना है कि अगर अस्पताल की तरफ से जानकारी दी जा रही थी तो परिवार के लोग अस्पताल के बजाय दूसरे को फोन क्यों करते? एम्स ने अपने बयान में आगे लिखा है कि दोपहर 1: 55 बजे तरुण आईसीयू से निकल कर भागे, बताया गया है कि उनके पीछे हॉस्पिटल अटेंडेंट भी भागे। तरुण चौथी मंजिल पर पहुंच गया, वहां विंडो तोड़कर छलांग लगा दी, जिसके बाद उन्हें आनन फानन में आईसीयू में एडमिट किया गया, लेकिन तमाम प्रयास के बाद भी बचा नहीं पाए।
एम्स के सूत्र का कहना है कि प्रशासन की यह यह थ्योरी भी थोड़ी अटपटी लग रही है, क्योंकि एक मरीज, जो पिछले कई दिनों से कोविड संक्रमण की वजह से आईसीयू में एडमिट है, जिसे सांस लेने में दिक्कत है, वह पहली मंजिल से चौथी मंजिल तक भाग कर पहुंच गया और हॉस्पिटल अटेंडेंट उस तक पहुंच नहीं पाया।
एक बीमार मरीज ने विंडो तोड़ दिया और हॉस्पिटल अटेंडेंट फिर भी वहां नहीं पहुंच सका। कहीं न कहीं सिक्यॉरिटी स्तर पर कमी दिख रही है। एक आईसीयू से मरीज निकल जाता है और उसे रोक नहीं पाता है। ऐसे और भी सवाल हैं, जिनके जवाब एम्स को देने चाहिए। एनबीटी ने ऐसे कई सवाल और भी एम्स प्रशासन से पूछे, लेकिन जवाब नहीं मिला। वॉर्ड बदलने का भी एम्स प्रशासन पर आरोप है, लेकिन एम्स की चुप्पी गंभीर सवाल खड़ा दिया है। (navbharattimes.indiatimes.com)
पणजी, 6 जुलाई । गोवा के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे ने कहा है कि प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर कोरोना जांच में नमूनों को एकत्रित करने के लिए नये कर्मियों की भर्ती की जाएगी।
श्री राणे ने अपने बयान में कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. प्रमोद सावंत के साथ विचार-विमर्श के बाद हमने संबंधित प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में अनुंबध के आधार पर शीघ्र नई टीमों की भर्ती का निर्णय लिया है, जो स्वास्थ्य अधिकारियों को संबंधित रिपोर्ट देंगे। इससे प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों के मौजूदा कर्मचारियों को नियमित कामकाज में लगाया जाएगा और यही समय की मांग है।
उन्होंने कहा कि हम खाद्य आपूर्ति सेवाओं को सुव्यवस्थित करेंगे ताकि कोविड केयर सेंटरों को इसकी आपूर्ति की जा सके। स्वास्थ्य सचिव इसकी समय समय पर निगरानी करेंगे। हमारा मुख्य उद्देश्य हर प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों से जुड़ी टीमों के साथ तेजी से समन्वय स्थापित कर परीक्षणों को बढ़ाना है और आईसीएमआर की ओर से दिए गए सुझावों के अनुसार कोरोना परीक्षण के दायरे को बढ़ाना है।(univarta.com)
देहरादून 5 जुलाई । उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के मसूरी में रविवार को बड़ा हादसा हो गया। देहरादन-मसूरी रोड पर हादसे में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी के समधी-समधन की मौत हो गई। बताया गया कि मरने वाले जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी के बहन और बहनोई भी थे। हादसे के बाद देहरादून से लेकर दिल्ली तक शोक है।
जानकारी के मुताबिक, राजीव प्रताप रूडी के समधी नीरज त्यागी और उनकी पत्नी शगुन त्यागी मसूरी गए थे। वहां से लौटते समय कार फिसल कर खाई में जा गिरी। इस हादसे में दोनों पति-पत्नी की मौत हो गई जबकि उनकी बेटी और कार चालक घायल हो गए। राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल के सूत्रों ने बताया कि हादसा मसूरी से करीब चार किलोमीटर दूर किमादी गांव के पास हुआ, जहां बारिश के कारण सड़क पर फिसलन होने से कार फिसलकर गहरी खाई में जा गिरी।
नोएडा में रहता था परिवार
उन्होंने कहा कि मृतकों की पहचान नोएडा निवासी कारोबारी नीरज त्यागी (55) और उनकी पत्नी पत्नी शगुन (52) के रूप में हुई। हादसे में उनकी बेटी आरुषि (27) और चालक अशोक कुमार (35) घायल हो गए और इन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि नोएडा के सेक्टर 40 में रहने वाले नीरज त्यागी बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी और जदयू नेता केसी त्यागी के रिश्तेदार थे।(navbharat times)
-आलोक प्रकाश पुतुल
रायपुर 5 जुलाई । छत्तीसगढ़ में अब गाय-भैंस पालने वालों के दिन फिरने वाले हैं क्योंकि राज्य सरकार ने अब किसानों से डेढ़ रुपये प्रति किलो के हिसाब से गोबर ख़रीदने का फ़ैसला किया है. गोबर ख़रीदने के लिये हाल ही में राज्य सरकार ने मंत्रिमंडलीय उपसमिति का गठन किया था, जिसने गोबर ख़रीदी की दर पर अंतिम मुहर लगा दी है.राज्य के कृषि मंत्री और समिति के अध्यक्ष रवींद्र चौबे ने शनिवार को इसकी घोषणा करते हुए कहा, "हमने डेढ़ रुपये प्रति किलो के हिसाब से गोबर ख़रीदने की अनुशंसा की है. इसे मंत्रिमंडल में पेश किया जायेगा. हमने गोबर ख़रीदने की पूरी तैयारी कर ली है और गांवों में 21 जुलाई, हरेली त्यौहार के दिन से गोबर ख़रीदी की शुरुआत की जायेगी."राज्य सरकार ने 'गोधन न्याय योजना' के नाम से गोबर ख़रीदने का फ़ैसला पिछले महीने लिया था. लेकिन गोबर ख़रीदी की दर क्या हो, इसे लेकर संशय था.
इसके अलावा गोबर प्रबंधन को लेकर भी कई सवाल थे. इसके बाद गोबर ख़रीदने के लिये मंत्रिमंडलीय उपसमिति बनाई गई थी.
इस योजना के बारे में प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना था कि पशु रखने के काम को व्यावसायिक रूप से फायदेमंद बनाने, सड़कों पर आवारा पशु की समस्या से निपटने और पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज़ से योजना महत्वपूर्ण है.
हालांकि सरकार ने अब तक ये स्पष्ट नहीं किया है कि वो एक दिन में कुल कितना गोबर खरीदेगी और इस पूरी योजना में कुल कितना खर्च होगा और ये खर्च आएगा कहां से.
गोबर की ख़रीदी को लेकर राज्य के मुख्य सचिव आरपी मंडल की अध्यक्षता में एक विशेष समिति गई है. ये समिति गोबर ख़रीदी के वित्तीय प्रबंधन पर रिपोर्ट तैयार कर रही है.
कैसे होगी गोबर की ख़रीद?
राज्य सरकार का दावा है कि गोबर ख़रीदी की पूरी की पूरी कार्य योजना बेहद महत्वाकांक्षी और ग्रामीण अर्थव्यव्था को मज़बूती प्रदान करने वाली साबित होगी. कृषि मंत्री रवींद्र चौबे का कहना है कि गांवों में बनाई गई गौठान समिति अथवा महिला स्व-सहायता समूह द्वारा घर-घर जाकर गोबर एकत्र किया जाएगा.इसके लिए ग्रामीणों का विशेष ख़रीदी कार्ड बनाया जाएगा, जिसमें हर दिन के गोबर की मात्रा और भुगतान का विवरण दर्ज़ होगा. मंत्रिमंडलीय उपसमिति ने किसानों और पशुपालकों से खरीदे गए गोबर के एवज़ में हर पखवाड़े यानी हर पंद्रह दिन में एक बार भुगतान किए जाने की बात कही है.नगरीय इलाक़ों में गोबर की ख़रीदी का काम नगरीय प्रशासन विभाग द्वारा तथा जंगल के इलाक़े में वन प्रबंधन समितियों द्वारा किया जाएगा.
रविंद्र चौबे ने कहा कि वर्मी कम्पोस्ट की आवश्यकता किसानों के साथ-साथ हार्टिकल्चर में, वन विभाग एवं नगरीय प्रशासन विभाग को भी होती है.
ऐसे में गोबर से तैयार वर्मी कम्पोस्ट की खपत और उसकी मार्केटिंग की चिंता सरकार को नहीं है. रवींद्र चौबे का कहना है कि गौठानों में पहले से ही गोबर से कंपोस्ट बनाया जा रहा है.
यहां बनने वाले वर्मी कम्पोस्ट को प्राथमिकता के आधार पर उसी गांव के कृषकों को निर्धारित मूल्य पर दिया जाएगा.
गोबर खरीद का पूरा गणित
अधिकारियों का कहना है कि फ़िलहाल, राज्य में पांच हज़ार गौठानों के ज़रिए गोबर ख़रीदी और खाद निर्माण का फ़ैसला लिया गया है और इसमें लगभग साढ़े चार लाख लोगों को रोज़गार मिलेगा.भारत सरकार के पशुपालन और डेयरी विभाग के 2019 के आरंभिक आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ में लगभग 1,11,58,676 गाय और भैंस हैं और पशु वैज्ञानिकों की मानें तो एक औसत गाय-भैंस प्रतिदिन लगभग 10 किलो गोबर देती है.लेकिन गली-मोहल्लों में अभी से गोबर के गणित की चर्चा शुरु हो गई है. किसान भी गोबर का गणित हल करने में जुट गये हैं. धमतरी के किसान राजेश देवांगन कहते हैं, "अगर राज्य सरकार एक करोड़ गाय-भैंस का गोबर भी ख़रीदती है तो दस किलो के हिसाब से भी हर दिन लगभग 10 करोड़ किलो गोबर ख़रीदना होगा, जिसकी क़ीमत 15 करोड़ रूपये होगी. इस हिसाब से महीने के 450 करोड़ रूपये और साल भर में 5400 करोड़ रूपये का भुगतान सरकार को केवल गोबर के लिये ही करना होगा."
लेकिन विपक्ष को संशय है कि राज्य सरकार अपनी इस योजना को अमली जामा पहना पाएगी.भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का कहना है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने जितने भी वादे किये थे, उसमें से एक भी वादा सरकार पूरा नहीं कर पाई.रमन सिंह कहते हैं, "धान तो ख़रीद नहीं सके. एक-एक दाना धान ख़रीदने की बात थी, किसानों को बोनस देने की भी बात थी. दो साल का बोनस अभी भी बचा हुआ है. जब बोनस की बात होती है, तो नवयुवकों की बेरोज़गारी भत्ता की बात भी होती है. लेकिन सरकार कहती है कि उसके पास पैसा नहीं है. सरकार गोबर भी ख़रीदे और धान भी ख़रीदे लेकिन इन बातों को लेकर बहानेबाज़ी नहीं होनी चाहिये."
गोबर और गोमूत्र
गाय, गोबर और गोमूत्र जैसे मुद्दे भारतीय जनता पार्टी के एजेंडे में दिखते रहे हैं.लेकिन छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की सरकार ने इन मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू किया है. "छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी, नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी" (छत्तीसगढ़ के चार चिन्ह- नाला, गोवंश, दिन फिरने का वक्त और घर का साथ की ज़मीन) - के नारे के साथ सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी ने जलप्रबंधन, गोधन, घरों से निकलने वाले जैविक कचरे से खाद निर्माण और घर से सटी हुई ज़मीन पर सब्जी-भाजी उगाने की अपनी योजना को पहले दिन से ही लागू करने की घोषणा की थी.सत्ता में आने के बाद से राज्य सरकार गाय और बैलों को एक जगह रखने के लिये गांव-गांव में गौठान का निर्माण कर रही है. अधिकारियों के अनुसार अब तक प्रदेश में 2200 गौठान बनाये जा चुके हैं, इसके अलावा 2800 गौठान जल्दी ही तैयार हो जायेंगे. सरकार का दावा है कि सभी ज़िलों के गौठानों में महिला समूहों द्वारा वर्मी कम्पोस्ट खाद भी बनाया जा रहा है.
अब सरकार द्वारा निर्धारित दर पर किसानों एवं पशुपालकों से गोबर की ख़रीदी की जाएगी, जिससे बड़े पैमाने पर वर्मी कम्पोस्ट खाद का उत्पादन किया जाएगा.राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि देश में पहली बार गोबर की ख़रीदी करने वाला छत्तीसगढ़ सरकार का यह फ़ैसला एक तरफ़ जहां सड़कों पर घूमने वाले पशुओं की रोकथाम करेगा, वहीं इस गोबर से बनने वाले खाद से राज्य में जैविक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा.
उनका कहना है कि इसके अलावा पशुपालकों को भी लाभ होगा और गांवों में रोज़गार और अतिरिक्त आय के अवसर भी बढ़ेंगे. भूपेश बघेल ने आने वाले दिनों में गोमूत्र ख़रीदी के भी संकेत दिये हैं. उनका कहना है कि सरकार के इस फ़ैसले से ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को लाभ होगा.(bbc)
मथुरा, 5 जुलाई (वार्ता)। कोरोना वायरस के कारण सावन की अद्भुत छटा के साथ मशहूर भारत विख्यात द्वारकाधीश मंदिर में श्रद्धालु इस बार सावन में सोने चांदी के विशालकाय झूले में ठाकुर के झूलन का मनोहारी ²श्य नहीं देख सकेंगे।
जिस प्रकार ब्रज और सावन एक दूसरे के पर्याय हैं, और ब्रज के बिना सावन की कल्पना नही की जा सकती, उसी प्रकार उसी प्रकार ब्रज का सावन ऐसे नये कलेवर के साथ आता है कि यहां आनेवाला श्रद्धालु भाव विभोर हो जाता है। द्वारकाधीश मंदिर का सावन तो निराला होता है। इस मंदिर के विशालकाय सेाने चांदी के हिंडोले, नित नयी बदलती घटाएं मंदिर के वातावरण को सावन की माला में ऐसा पिरो देते हैं कि व्रज में आनेवाला हर भक्त इस अदभुत छटा को देखने को लालायित रहता है।
कोरोना वायरस के संक्रमण में तेजी आने की आशंका से ब्रज के दो मंदिर द्वारकाधीश मंदिर एवं श्रीकृष्ण जन्मस्थान को छोडक़र बाकी सभी मंदिर तीन महीने से अधिक समय से बन्द हैं। सरकार द्वारा मंदिरों को खोलने की हरी झंडी देने के बावजूद ब्रज के बाकी मंदिर इसलिए बंद हैं कि इन मंदिरों के सेवायतों/व्यवस्थापकों ने मंदिर के अन्दर आनेवाली भीड़ को रोकने एवं सामाजिक दूरी को बनाये रखने में असमर्थता व्यक्त कर दी है।
राधारमण मंदिर की प्रबंध समिति के सचिव पद्मनाभ गोस्वामी का कहना है कि वे नही चाहते कि मंदिरों के कारण ही ब्रज में करोना का संक्रमण तेज हो।
द्वारकाधीश मंदिर के सावन का प्रमुख आकर्षण इसमें सवा महीने तक पडऩेवाले सोने चांदी के हिंडोले होते हैं। मंदिर के विधि एवं मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी एडवोकेट ने बताया कि तृतीय पीठाधीश्वर कांकरौली नरेश गोस्वामी ब्रजेश कुमार के आदेशानुसार मंदिर में इस बार सोने चांदी के हिंडोले नहीं डाले जाएंगे।
उन्होंने कहा कि एक सोने का तथा दो चांदी के हिंडोले इतने विशालकाय हैं कि तोषाखाने से इन्हे निकालने के लिए एक साथ कई लोगों की आवश्यकता होती है। अगर इन हिंडोलों को निकाला जाता है तो कोरोना के चलते सामाजिक दूरी बनाए रखने का नियम टूटता है। पिछले वर्षों में ये हिंडोले सावन के शुरू होते ही मंदिर में डाल दिए जाते थे और जन्माष्टमी तक पड़े रहते थे।
उनका यह भी कहना था कि सामाजिक दूरी को बनाये रखने के चलते हिंडोला और घटाओं का आयोजन तो अवश्य किया जाएगा किंतु उस प्रकार विस्तृत रूप में यह कार्यक्रम इस बार नही होंगे जिस प्रकार पिछले वर्षों में होते थे। प्रत्येक आयोजन में सामाजिक दूरी को बनाने का नियम सबसे पहले देखा जाएगा। इस बार हिंडोला उत्सव 7 जुलाई से प्रारंभ हो जाएगा।
मदनमोहन मंदिर जतीपुरा के मुखिया ब्रजेश जोशी ’’ब्रजवासी’’ ने बताया कि बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिरों में हिंडोला उत्सव का ंविशेष महत्व इसलिए होता है1 इन मंदिरों में यशोदा भाव से सेवा होती है। छोटे बच्चे को झूला बहुत अधिक पसन्द होता है, इसलिए उसके झूले को बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिर में आकर्षक स्वरूप देकर उसे हिंडोले का नाम दे देते हैं। बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिरों से प्रारंभ हुई यह परंपरा धीरे धीरे अन्य मंदिरों में भी शुरू हुई तो हिंडोले को आकर्षक बनाने की एक प्रकार से प्रतियोगिता हो गई। मां यशोदा कान्हा को हिंडोले में बैठाकर सुला जाती हैं तभी एक सखी आती है और हिंडोले को झुलाने लगती है। पर मां यशोदा का ध्यान जैसे ही उधर गया उन्होंने उसे हिदायत दे दी।
मेरो लाला झूलै पालना नेक हौले झोटा दीजौ।
द्वारकाधीश मंदिर में अलग अलग तिथियों में अलग अलग प्रकार का हिंडोला बनता है, कभी फिरोजी जरी का हिडोला बनता है तो कभी केसरी चित्रकाम का बनता है ,कभी गुलाबी मखमल का हिंडोला बनता है,तो कभी लाल सुनहरी हिंडोला बनता है।कभी कली का हिडोला बनता है तो कभी फूल पत्ती का हिंडोला बनता है। किंतु लहरिया घटा के दिन तो एक साथ नौ हिंडोले इसलिए डाले जाते हैं कि कान्हा को जो हिंडोला पसंन्द आ जाय वह उसमें झूूल सकता है।
सावन में इस मंदिर की दूसरी विशेषता घटा महोत्सव है। अलग अलग तिथियों में रंग बिरंगी घटाएं बनाई जाती हैं कभी केसरी घटा डाली जाती है तो कभी गुलाबी घटा, कभी आसमानी घटा डाली जाती है तो कभी लाल घटा।जिसमें कान्हा के गाय चराने जाने का प्रस्तुतीकरण के साथ साथ सावन का ²श्य प्रस्तुत किया जाता है। इस मंदिर की काली घटा को देखने के लिए तो जनसमूह एकत्र हो जाता है क्योंकि इसका इतना जीवन्त प्रस्तुतीकरण किया जाता है कि मंदिर के अन्दर ऐसा लगता है कि काली घटा छाई हुई है साथ में बारिश भी हो रही है और बिजली भी चमक रही है बादल भी गरज रहे हैं।
यह ²श्य इतना मनोहारी होता है कि दर्शक मंदिर से बाहर बड़ी मुश्किल से निकलता है। इस बार यह घटा 28 जुलाई को डाली जाएगी। मंदिर में घटाओं के मनोरथ भी होते हैं।चाहे हिंडोले का आयोजन हो या घटाओं का, सभी के केन्द्रबिन्दु श्रीकृष्ण होते हैं इसलिए सावन में इस मंदिर का कोना कोना कृष्णमय हो जाता है।
नई दिल्ली, 4 जुलाई । भारत में शॉर्ट विडियो मेकिंग ऐप टिकटॉक बैन किए जाने के बाद इसकी पैरंट कंपनी बाइटडांस को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा है। चाइनीज मीडिया ऑर्गनाइजेशन ग्लोबल टाइम्स की ओर से इस सप्ताह बताया गया कि टिकटॉक बैन के बाद बाइटडांस को 45 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हैलो और टिकटॉक जैसे ऐप्स बैन किए जाने का असर बाइटडांस के बिजनस पर पड़ सकता है।
इंडस्ट्री रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन से बाहर भारत टिकटॉक का सबसे बड़ा मार्केट था। भारत सरकार की ओर से इस सप्ताह की शुरुआत में 59 चाइनीज ऐप्स को बैन करने का फैसला किया गया, जिनमें टिकटॉक भी शामिल है। पब्लिकेशंस की मानें तो इसका असर चाइनीज ट्रेडर्स और इन्वेस्टर्स पर भी देखने को मिलेगा। एक्सपर्ट्स ने कहा, 'भारत सरकार के इस फैसले के बाद चाइनीज निवेशकों और बिजनसेज को भी झटका लगा है।'
भारत में हिट था टिकटॉक
बाइटडांस को ऐप पर ऐड्स दिखाने और और तरीकों से जो रेवन्यू होता था, बैन के चलते वह भी जीरो हो गया है। कंपनी के ऐप्स और खासकर टिकटॉक भारत के छोटे-बड़े शहरों में तेजी से पॉप्युलर हो गया था। आंकड़ों की मानें तो लॉन्च होने के बाद भारत में गूगल प्ले स्टोर से टिकटॉक को करीब 66 करोड़ बार डाउनलोड किया गया था। फिलहाल, ऐप को प्ले स्टोर और ऐप स्टोर से हटा दिया गया है और ऐक्सेस नहीं किया जा सकता।
डेटा सिक्यॉरिटी बनी वजह
भारत सरकार की ओर से चाइनीज ऐप्स पर बैन लगाने का फैसला देश के नागरिकों के डेटा की सिक्यॉरिटी को वजह बताते हुए लिया गया है। हालांकि, माना जा रहा है कि भारत-चीन सीमा पर देखने को मिले तनाव के चलते सरकार ने ऐसा किया है। गलवान घाटी में हुए संघर्ष में 20 जवानों के शहीद होने के बाद से ही सोशल मीडिया पर भी चीन के प्रोडक्ट्स और ऐप्स का बायकॉट करने की मांग तेज हो गई है। साथ ही टिकटॉक के कई क्लोन ऐप्स अब वायरल हो रहे हैं।(navbharat times)
पटना, 4 जुलाई । बिहार में बारिश और आकाशीय बिजली (वज्रपात) गिरने का सिलसिला जारी है। पिछले 24 घंटों के दौरान राज्य के अलग-अलग सात जिलों में आकाशीय बिजली गिरने (वज्रपात) से और 15 लोगों की मौत हो गई। आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी ने शनिवार को बताया कि राज्य में पिछले 24 घंटे के दौरान आसमान से बिजली गिरने से 15 लोगों की मौत हो गई।
इन जिलों में वज्रपात से हुई मौत
मिली जानकारी के मुताबिक, आकाशीय बिजली से आज मरने वालों में वैशाली में छह, लखीसराय में दो, समस्तीपुर में 3, गया, बांका, नालंदा और जमुई जिले में एक-एक व्यक्ति शामिल है। इन सभी की मौत वज्रपात की चपेट में आने से हो गई। मौसम विभाग ने राज्य के पटना, भोजपुर, वैशाली, नालंदा सहित एक दर्जन से ज्यादा जिलों में आकाशीय बिजली को लेकर अलर्ट जारी किया है।
सीएम ने की लोगों से ये अपील
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी लोगों से खराब मौसम में पूरी सतर्कता बरतने और खराब मौसम होने पर वज्रपात से बचाव के लिए आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी किए गए सुझावों का अनुपालन करने की अपील की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि खराब मौसम में घर के अंदर ही रहें और सुरक्षित रहें।
शुक्रवार को आकाशीय बिजली ने ले ली थी 8 लोगों की जान
बिहार में शुक्रवार को राज्य के अलग-अलग पांच जिलों में आकाशीय बिजली (वज्रपात) गिरने से आठ लोगों की मौत हो गई। आपदा प्रबंधन विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि जिलों से फोन पर मिली सूचना के मुताबिक, राज्य में शुक्रवार को आकाशीय बिजली गिरने से आठ लोगों की मौत हो गई। लखीसराय में दो, समस्तीपुर में तीन तथा गया, बांका और जमुई जिले में एक-एक व्यक्ति की मौत वज्रपात की चपेट में आने से हो गई।
गुरुवार को 26 लोगों की हुई थी मौत
इससे पहले, राज्य में गुरुवार को भी विभिन्न जिलों में वज्रपात की चपेट में आने से 26 लोगों की मौत हुई थी। पटना में छह, पूर्वी चंपारण में चार, समस्तीपुर में सात, कटिहार में तीन, शिवहर व मधेपुरा में दो-दो, पूर्णिया और पश्चिमी चंपारण जिले में एक-एक व्यक्ति की वज्रपात से मौत हो गई थी। इससे भी पहले, मंगलवार को बिहार के विभिन्न जिलों में वज्रपात से 11 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 26 जून को राज्य में वज्रपात की चपेट में आने से 96 लोगों की मौत हुई थी।(navbharat times)
नई दिल्ली, 4 जुलाई । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को लेह का दौरा कर सबको चौंका दिया. 3 जुलाई की सुबह भी वो अचानक लेह पहुँच गए. यहां उन्होंने सेना के अधिकारियों और जवानों से मुलाक़ात की और हालात का जायज़ा लिया.
15-16 जून की रात भारत-चीन सीमा पर गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवानों की मौत हो गई थी. उस घटना के 17 दिन बाद भारत के प्रधानमंत्री के इस तरह से अचानक उस क्षेत्र में जाने को बड़ी बात माना जा रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी ने सेना के अधिकारियों से मुलाक़ात के बाद घायल जवानों से भी मुलाक़ात की.
प्रधानमंत्री मोदी ने जवानों के बीच जाकर उनका हालचाल जाना और उनसे कुछ बातें भी साझा कीं. प्रधानमंत्री ने इस मुलाक़ात और बातचीत का वीडियो भी ट्विटर पर शेयर किया.
इस मुलाकात की तस्वीरों को बीजेपी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर भी शेयर किया गया है.
हालांकि जवानों को जिस जगह रखा गया है उस पर सवाल उठाते हुए सोशल मीडिया पर कई लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी की जवानों से इस मुलाक़ात को फोटो सेशन का मौक़ा करार दिया है.
बहुत से लोगों ने ट्वीट करके इस पर सवाल उठाए और शनिवार को #MunnaBhaiMBBS कुछ देर के ट्विटर पर टॉप ट्रेंड रहा. हालांकि जब यह मामला बढ़ता दिखा तो सेना ने बयान जारी कर स्थिति स्पष्ट की.
ट्विटर यूज़र @aartic02 ने लिखा, "देश से इतना बड़ा धोखा? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लेह यात्रा के दौरान महज फ़ोटो के लिए कॉन्फ़्रेंस रूम को अस्पताल में तब्दील कर दिया गया."
आरती वेरीफ़ाइड ट्विटर यूज़र हैं और उनके ट्विटर बायो में लिखा है कि वो आम आदमी पार्टी के नेशनल सोशल मीडिया टीम से जुड़ी हैं.
@DrJwalaG ने ट्वीट किया, "एक असली डॉक्टर बता रही है कि यहां क्या-क्या नहीं है. मरीज़ों का आईडी बैंड नहीं है. पल्स ऑक्सीमीटर नहीं है. ईसीजी के तार नहीं हैं. मॉनिटर नहीं है. आईवी कैनुला नहीं है. इमरजेंसी क्रैश कार्ट नहीं है. और भी बहुत कुछ. न ही कोई डॉक्टर मरीज़ों की स्थिति की जानकारी दे रहा है. इस तरह के फ़ोटो वाले मौकों से पहले डॉक्टर बुला लें."
@SECULARINDIAN72 ने ट्वीट में लिखा, "न दवाओं की टेबल है, न डॉक्टर, न बैंडेज, न कोई मरीज़ सो रहा, न किसी को ड्रिप लगी, न ऑक्सीजन सिलेंडर है, न वेंटिलेटर. ऐसा लगता है ये मुन्नाभाई एमबीबीएस का सीन है."
@Jijo_Joseph ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीरों को जोड़कर ट्वीट किया और लिखा, "सच का अस्पताल बनाम पीआर एक्सरसाइज़."
इन तस्वीरों में एक तरफ मोदी लेह में जवानों से मिल रहे हैं. दूसरी तस्वीरों में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अस्पताल में भर्ती लोगों से मिल रहे हैं.
अंजलि शर्मा ने ट्विटर पर लिखा, "एक क्रूर संघर्ष का इस तरह मज़ाक बनाया जा रहा है. कुछ दिनों पहले ही हमने 20 जवान खोए हैं. लेकिन यहां कुछ तस्वीरों के लिए अस्पताल का नकली सेटअप तैयार करवाया गया है और कुछ किराए के एक्टर को वहां बैठा दिया गया है. एक दिन सच सामने आएगा."
@ayyoramaa ने ट्वीट किया, "थेरेपी लेना, प्रोटोकॉल अपनाना, युद्ध जैसी स्थिति के सदमे से उबरने के लिए लगातार निगरानी में रहना, ताकि सेना के जवान फिर से सेवा में स्थिर दिमाग़ के साथ आ सकें, उसे आप मुन्ना भाई एमबीबीएस कह रहे हैं. सेना की कुछ तो इज्ज़त करो."
सेना ने जारी किया बयान
इस मामले में सेना ने एक बयान जारी कर कहा है, "तीन जुलाई को प्रधानमंत्री मोदी ने जिस अस्पताल का दौरा किया था उसे लेकर कई तरह की बातें चल रही हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे बहादुर जवानों का जिस तरह ख़याल रखा जा रहा है उस पर सवाल उठाए जा रहे हैं. यह स्पष्ट किया गया है कि जिस जगह का दौरा प्रधानमंत्री ने किया है वो जनरल हॉस्पिटल कॉम्प्लेक्स का क्राइसिस एक्सपैंशन है और इसमें 100 बेड हैं."
"कोविड-19 प्रोटोकॉल की वजह से अस्पताल के कुछ वार्ड को आइसोलेशन वार्ड में बदल दिया गया है. इसलिए यह हॉल जो आमतौर पर ऑडियो-वीडियो ट्रेनिंग हॉल के तौर पर इस्तेमाल होता था उसे एक वार्ड में बदल दिया गया है. जब से अस्पताल को कोविड ट्रीटमेंट के लिए अलग कर दिया गया. गलवान से आने के बाद से घायल सैनिक यहां रखे गए थे और क्वारंटीन किए गए थे. सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे और आर्मी कमांडर ने भी इसी जगह का दौरा किया था और जवानों से मुलाक़ात की थी."
सेना प्रमुख ने 23 जून को इसी जगह का दौरा किया था और जवानों से मुलाक़ात की थी. इसकी तस्वीर भी भारतीय सेना के आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर शेयर की गई थी.(bbc)
नई दिल्ली 3 जुलाई। पबजी गेम का क्रेज अभी भी बरकरार है।पबजी गेम को लेकर ऐसी ही चौंकाने वाली घटना सामने आई है। पंजाब में एक टीनएजर ने इस पॉप्युलर गेम को खेलने के दौरान इन-ऐप पर्चेजेस और अपग्रेडिंग के लिए 16 लाख रुपये खर्च कर डाले। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, 17 साल के एक टीनएजर के पास तीन बैंक अकाउंट का ऐक्सिस था। पबजी गेम के आदी बन चुके इस लड़के ने ऐप में पैसे खर्च करने के लिए इन अकाउंट्स का इस्तेमाल किया।
टीनएजर ने अपने माता-पिता को बताया था कि वह अपनी पढ़ाई के लिए मोबाइल को देर तक इस्तेमाल कर रहा है जबकि इसकी जगह वह घंटो तक पबजी खेलने में समय बिताता था। इन-ऐप पर्चेजेस के अलावा गेम खेलने के दौरान वह अपने टीममेट्स के लिए भी अपग्रेड खरीद रहा था। द ट्रिब्यून की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया।
पैसों के खर्च होने की जानकारी तब मिली जब लड़के के मां-बाप ने बैंक अकाउंट देखा और पाया कि करीब 16 लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, टीनएजर अपनी मां के फोन को पबजी खेलने के लिए इस्तेमाल करता था। बैंक ट्रांजैक्शन के पूरे होने के बाद अपनी मां के डिवाइस से सारे मेसेज डिलीट कर देता था। लड़के के पिता के मुताबिक, उन्होंने अपने बेटे के भविष्य और मेडिकल जरूरतों के लिए यह पैसा बचाया था।
टीनएजर के पिता एक सरकारी कर्मचारी हैं और जिस समय उनके बेटे ने पबजी गेम में पैसे उड़ाए, उनकी पोस्टिंग कहीं और थी। खबरों के मुताबिक, लड़के ने एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में पैसे ट्रांसफर करने भी किए ताकि उसे कोई पकड़ ना सके। पुलिस ने लड़के के माता-पिता को किसी तरह की मदद देने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके बेटे ने गेम पर जानबूझकर पैसे खर्च किए थे।(navbharat times)
नई दिल्ली, 3 जुलाई । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लद्दाख दौरे पर अब राजनीति शुरू हो चुकी है। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने अब इंदिरा गांधी के लेह दौरे की तस्वीर शेयर की है। और लिखा कि देखते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब क्या करते हैं। बता दें कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह दौरा चीन को संदेश के रूप में देखा जा रहा है। मोदी आज सुबह अचानक लद्दाख पहुंचे।
शेयर की गई तस्वीर में इंदिरा गांधी सेना जवानों को संबोधित करती नजर आ रही हैं। तस्वीर के साथ मनीष तिवारी ने लिखा, जब वह (इंदिरा) लेह गई थीं तो पाकिस्तान को दो भागों में बांट दिया गया था। देखते हैं वह (मोदी) क्या करेंगे? इंदिरा की यह तस्वीर 1971 के युद्ध से पहले की है, जिसमें उन्होंने लेह में सैनिकों को संबोधित किया था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रमुख रक्षा अध्यक्ष जनरल बिपिन रावत के साथ शुक्रवार को लेह पहुंचे। मोदी सुबह करीब साढ़े नौ बजे लेह पहुंचे। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री इस समय निमू में एक फॉरवर्ड पोस्ट पर हैं और थलसेना, वायुसेना एवं आईटीबीपी के कर्मियों से बात कर रहे हैं। सिंधु नदी के तट पर 11,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित निमू सबसे दुर्गम स्थानों में से एक है। यह जंस्कार पर्वत श्रृंखला से घिरा हुआ है।(navbharat times)
लखनऊ 3 जुलाई । वरिष्ठ भाजपा नेता उमा भारती अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में गुरुवार को विशेष सीबीआई अदालत में पेश हुईं.
वह इस मामले में अदालत में बयान दर्ज कराने वाली 19वीं आरोपी हैं. उन्होंने विशेष सीबीआई न्यायाधीश एसके यादव की अदालत में दिए गए अपने बयान में कहा कि 1992 में केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने राजनीतिक बदले की भावना से उन पर बाबरी विध्वंस का आरोप मढ़ा था. वह बिल्कुल निर्दोष हैं.
उन्होंने कहा कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने बाबरी विध्वंस मामले में अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए उनके तथा अन्य लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. सभी को राजनीतिक दबाव में गलत तरीके से फंसाया गया.
उमा भारती ने इस मामले में सीबीआई द्वारा पेश किए गए सबूतों पर कहा कि यह सब राजनीतिक दुश्मनी की वजह से किया गया है.
हालांकि अदालत के बाहर आकर उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि राम मंदिर अभियान से जुड़कर वह खुद को गौरवान्वित महसूस करती हैं.
उन्होंने कहा, ‘मैं तो राम भक्त हूं और राम भक्ति के भाव की वजह से मैंने इस पूर्ण अभियान में भाग लिया. इसके लिए मैं हमेशा खुद को गौरवशाली मानती हूं.’
उन्होंने कहा कि उन्हें गर्व है कि उसका जीवन ‘गंगा’, ‘तिरंगा’, ‘गऊ’, ‘गरीब’, ‘नारी’ और ‘राम’ को समर्पित है.
भारती ने अदालत में दिए गए बयान पर संवाददाताओं को कुछ भी बताने से इनकार करते हुए कहा, ‘मैं भारत के कानून को वेदों की तरह मानती हूं. अदालत एक मंदिर है और उसमें बैठे हुए न्यायाधीश को मैं भगवान की तरह मानती हूं. उनके सामने मैंने जो बातें कहीं हैं, उन पर मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकती, क्योंकि सारी बातों पर फैसले आने बाकी हैं. मैंने अदालत में जो भी कहा, उसके बारे में मैं आपको कुछ नहीं बताऊंगी.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन मैं यह जरूर कहूंगी कि यह 500 साल तक चली लंबी लड़ाई है. शायद ही संसार का कोई अभियान ऐसा रहा हो जिसने पांच शताब्दियां पार की हों और उन पांचों शताब्दियों में वह लगातार बढ़ता ही गया हो. अंत में उच्चतम न्यायालय का जो निर्णय आया है, उसे भारतवासियों ने जिस प्रकार स्वीकार किया उससे भारत की छवि दुनिया में बहुत उज्ज्वल हुई है.’
मालूम हो कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 40 दिनों की लंबी सुनवाई के बाद नौ नवंबर को बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि जमीन विवाद पर अपना फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का दावा ख़ारिज करते हुए हिंदू पक्ष को जमीन देने को कहा था.
भारती ने कहा, ‘क्योंकि भारत के बारे में यह माना जाता था कि यहां धार्मिक विभाजन मौजूद रहता है लेकिन उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद भारत ने जिस तरह एकजुट होकर उसे स्वीकार किया, उससे एक गौरवशाली परंपरा कायम हुई है.’
विवादित जमीन पर अदालत का फैसला आने और केंद्र सरकार द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट गठित करने के फैसले बाद उमा भारती ने कहा था कि अगर बाबरी मस्जिद का ढांचा नहीं हटाया जाता, तो सच लोगों के सामने न आता.
विशेष सीबीआई अदालत 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में 32 आरोपियों के बयान दर्ज कर रही है. उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार विशेष अदालत इस मामले की सुनवाई 31 अगस्त तक पूरी करने के लिए रोजाना काम कर रही है.
इस मामले में पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी का बयान दर्ज होना अभी बाकी है. उनके वकीलों ने अदालत को बताया है कि वे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपना बयान दर्ज कराना चाहते हैं.(thewire)
नई दिल्ली 3 जुलाई (भाषा)। बिजली मंत्री आर के सिंह ने शुक्रवार को कहा कि भारत अब चीन जैसे देशों से विद्युत उपकरणों का आयात नहीं करेगा. उन्होंने यह भी कहा कि वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनाना जरूरी है क्योंकि ऐसा नहीं होने पर क्षेत्र व्यावहारिक नहीं होगा.
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के बिजली और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रियों के सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही.
वीडियो कांफ्रेन्सिंग के जरिये आयोजित इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘प्रायर रेफरेंस कंट्री (पूर्व संदर्भित देशों) से उपकरणों की आयात की अनुमति नहीं होगी. इसके तहत हम देशों की सूची तैयार कर रहे हैं लेकिन इसमें मुख्य रूप से चीन और पाकिस्तान शामिल हैं.’
‘प्रायर रेफरेंस कंट्री’ की श्रेणी में उन्हें रखा जाता है जिनसे भारत को खतरा है या खतरे की आशंका है. मुख्य रूप से इसमें वे देश हैं जिनकी सीमाएं भारतीय सीमा से लगती हैं. इसमें मुख्य रूप से पाकिस्तान और चीन हैं.
उन्होंने राज्यों से भी इस दिशा में कदम उठाने को कहा.
सिंह ने यह बात ऐसे समय कही जब हाल में लद्दाख में सीमा विवाद के बीच भारत और चीन की सेना के बीच हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हो गये.
उन्होंने कहा, ‘काफी कुछ हमारे देश में बनता है लेकिन उसके बावजूद हम भारी मात्रा में बिजली उपकरणों का आयात कर रहे हैं. यह अब नहीं चलेगा. देश में 2018-19 में 71,000 करोड़ रुपये का बिजली उपकरणों का आयात हुआ जिसमें चीन की हिस्सेदारी 21,000 करोड़ रुपये है.’
मंत्री ने यह भी कहा, ‘दूसरे देशों से भी उपकरण आयात होंगे, उनका देश की प्रयोगशालाओं में गहन परीक्षण होगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि कहीं उसमें ‘मालवेयर’ और ‘ट्रोजन होर्स’ का उपयोग तो नहीं हुआ है. उसी के बाद उसके उपयोग की अनुमति होगी.’
मालवेयर ऐसा साफ्टवेयर या प्रोग्राम होता है जिससे फाइल या संबंधित उपकरणों को नुकसान पहुंच सकता है. वहीं ट्रोजन होर्स मालवेयर सॉफ्टवेयर है जो देखने में तो उपयुक्त लगेगा लेकिन यह कंप्यूटर या दूसरे सॉफ्टवेयर को नुकसान पहुंचा सकता है.
बिजली क्षेत्र में सुधारों का खाका रखते हुए उन्होंने कहा कि वितरण कंपनियां जबतक आर्थिक रूप से सुदृढ़ नहीं होंगी, तब तक यह क्षेत्र व्यावहारिक नहीं होगा.
उन्होंने राज्यों से बिजली संशोधन विधेयक, 2020 को लेकर कुछ तबकों द्वारा फैलायी जा रही भ्रांतियों को आधारहीन करार दिया.
कुछ तबकों में यह दावा किया जा रहा है कि इस संशोधित विधेयक के जरिये केंद्र सरकार राज्यों के अधिकारों को छीनना चाहती है.
सिंह ने स्पष्ट किया कि केंद्र का कोई ऐसा इरादा नहीं है बल्कि सुधारों का मकसद क्षेत्र को टिकाऊ और उपभोक्ता केंद्रित बनाना है.
सिंह ने यह भी कहा कि मंत्रालय दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना, एकीकृत बिजली विकास योजना (आईपीडीएस) और उदय को मिलाकर नई योजना ला रहा है.
उन्होंने कहा कि इस नई योजना में राज्य जितना चाहेंगे, उन्हें अनुदान और कर्ज के रूप में पैसा मिलेगा लेकिन उन्हें बिजली क्षेत्र में जरूरी सुधार करने होंगे ताकि वितरण कंपनियों की स्थिति मजबूत हो सके.
आठ साल पहले दो भारतीय मछुआरों की हत्या के मामले में इटली के दो नौसैनिकों पर अब भारत में मुकदमा नहीं चलेगा. परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने इस मामले में फैसला सुनाया. उन पर मुकदमा इटली में चलेगा.
अंतरराष्ट्रीय कानून की एक अदालत परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने गुरूवार को इस मामले में फैसला सुनाया. अदालत ने इतालवी नौसैनिकों को आरोपों से बरी नहीं किया और कहा कि उन पर मुकदमा इटली में चलेगा.
अदालत ने कहा कि उन पर भारत में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता लेकिन भारत को हर्जाना जरूर मिलना चाहिए और दोनों देश आपस में बातचीत कर हर्जाने की रकम तय कर सकते हैं.
घटना 2012 की है जब केरल के तट के पास भारतीय मछुआरों की एक नाव वहां से गुजर रहे इतालवी तेल के टैंकर एनरिका लेक्सी के पास पहुंच गई. टैंकर पर तैनात दो इतालवी नौसैनिकों के गोली चलाने से दो भारतीय मछुआरों की मौत हो गई. इटली का शुरू से दावा रहा है कि नौसैनिकों ने चेतावनी देने के इरादे से गोली चलाई थी, लेकिन भारतीय नौसेना ने इतालवी नौसैनिकों को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था.
दो साल तक दोनों को हिरासत में रखा गया लेकिन आधिकारिक रूप से कोई आरोप नहीं तय किए गए. इसके बाद सितंबर 2014 में इनमें से एक नौसैनिक और मई 2016 में दूसरा नौसैनिक सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई शर्तबंद जमानत पर इटली वापस लौट गए और फिर वापस नहीं आए.
2015 में इटली ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस के तहत आने वाले इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर द लॉ ऑफ द सी का दरवाजा खटखटाया. परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने जुलाई 2019 में मामले को सुना.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने मीडिया को बताया कि अदालत ने भारतीय एजेंसियों के कदमों को सही ठहराया और कहा कि इटली ने नौपरिवहन की आजादी का उल्लंघन किया है. उन्होंने यह भी बताया कि ट्रिब्यूनल ने नौसेनिकों को हिरासत में रखने के लिए हर्जाने की मांग को भी ठुकरा दिया.
हालांकि, ट्रिब्यूनल ने कहा कि सरकारी अधिकारी होने के नाते नौसैनिकों को कानूनी कार्रवाई से राजनयिक छूट प्राप्त है और उसकी वजह से भारतीय अदालतें उन पर सुनवाई नहीं कर सकती हैं.
इतालवी विदेश मंत्रालय ने कहा कि उनका देश सहयोग की भावना ध्यान में रखते हुए ट्रिब्यूनल के निर्देशों का पालन करने को तैयार है. उसने यह भी कहा कि इटली के सरकारी अभियोजक ने मामले में अपनी जांच शुरू भी कर दी है और नौसैनिकों पर कोई आरोप लगता है या नहीं, इसका फैसला अब इटली की एजेंसियां करेंगी.
यह मामला जब अपने चरम पर था तब इसका असर भारत और इटली के द्विपक्षीय रिश्तों पर भी पड़ा था. इसी बीच, मीडिया में आई खबरों के अनुसार 2012 में मारे गए दोनों मछुआरों में से एक की पत्नी ने इस फैसले का स्वागत किया है.(dw)
-समीरात्मज मिश्र
कानपुर में विकास दुबे को गिरफ़्तार करने गई पुलिस टीम पर हुए जबर्दस्त हमले में आठ पुलिसकर्मी मारे गए और सात पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए।
मरने वालों में बिल्हौर के पुलिस क्षेत्राधिकारी देवेंद्र मिश्र और एसओ शिवराजपुर महेश यादव भी शामिल हैं। जिस विकास दुबे को गिरफ्तार करने यह टीम गई थी, उन पर न सिर्फ अपराधों के संगीन आरोप हैं बल्कि दर्जनों मुकदमे भी दर्ज हैं। राजनीतिक दलों में भी उनकी अच्छी-खासी पहुंच बताई जाती है।
कानपुर के चौबेपुर थाने में विकास दुबे के ख़िलाफ़ कुल साठ मुकदमे दर्ज हैं। इनमें हत्या और हत्या के प्रयास जैसे कई गंभीर मुकदमे भी शामिल हैं।
कानपुर के पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल ने बीबीसी को बताया कि जिस मामले में पुलिस विकास दुबे के यहां दबिश डालने गई थी वह भी हत्या से जुड़ा मामला था और विकास दुबे उसमें नामज़द हैं।
चौबेपुर थाने में दर्ज मुकदमों के आधार पर कहा जा सकता है कि पिछले करीब तीन दशक से अपराध की दुनिया से विकास दुबे का नाम जुड़ा हुआ है। कई बार उनकी गिरफ्तारी भी हुई लेकिन अब तक किसी मामले में सजा नहीं मिल सकी है।
कानपुर में स्थानीय पत्रकार प्रवीण मोहता बताते हैं, साल 2001 में विकास दुबे पर थाने के अंदर घुसकर बीजेपी के दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या करने का आरोप लगा। संतोष शुक्ला की हत्या एक हाई प्रोफ़ाइल हत्या थी। इतनी बड़ी वारदात होने के बाद भी किसी पुलिस वाले ने विकास के ख़िलाफ़ गवाही नहीं दी। कोर्ट में विकास दुबे के ख़िलाफ़ कोई साक्ष्य नहीं पेश किया जा सका जिसकी वजह से उसे छोड़ दिया गया।
इसके अलावा साल 2000 में कानपुर के शिवली थाना क्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या के मामले में भी विकास दुबे को नामज़द किया गया था।
थाने में दर्ज रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 2000 में ही विकास दुबे के ऊपर रामबाबू यादव की हत्या के मामले में साजिश रचने का आरोप भी लगा था। बताया जा रहा है कि यह साजिश विकास ने जेल से ही रची थी।
साल 2004 में एक केबल व्यवसायी की हत्या में भी विकास दुबे का नाम सामने आया था। पुलिस के मुताबिक, इनमें से कई मामलों में विकास दुबे जेल जा चुके हैं लेकिन ज़मानत पर लगातार छूटते रहे। साल 2013 में भी विकास दुबे का नाम हत्या के एक मामले में सामने आया था। यही नहीं, साल 2018 में विकास दुबे पर अपने चचेरे भाई अनुराग पर भी जानलेवा हमला कराने का आरोप लगा था जिसमें अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी।
प्रवीण मोहता बताते हैं कि वो बताते हैं, हर राजनीतिक दल में विकास दुबे की पैठ है और यही वजह है कि आज तक उन्हें नहीं पकड़ा गया। पकड़ा भी गया तो कुछ ही दिनों में जेल से बाहर आ गया।
विकास दुबे मूल रूप से कानपुर में बिठूर के शिवली थाना क्षेत्र के बिकरू गांव के रहने वाले हैं। गांव में उन्होंने अपना घर किले जैसा बना रखा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक, बिना उनकी मजऱ्ी के घर के भीतर कोई जा नहीं सकता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि साल 2002 में जब राज्य में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी, उस वक़्त विकास दुबे की तूती बोलती थी। बिकरू गांव के ही रहने वाले एक शख्स नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने न सिर्फ अपराध की दुनिया में अपना दबदबा कायम किया बल्कि पैसा भी ख़ूब कमाया।
चौबेपुर थाने में दर्ज तमाम मामले अवैध तरीक़े से जमीन की खरीद-फरोख्त से भी जुड़े हैं। इन्हीं की बदौलत विकास दुबे ने कथित तौर पर ग़ैरकानूनी तरीके से करोड़ों रुपए की संपत्ति बनाई है। बिठूर में ही उनके कुछ स्कूल और कॉलेज भी चलते हैं।
बिकरू गांव के लोग बताते हैं कि न सिर्फ अपने गांव में बल्कि आस-पास के गांवों में भी विकास का दबदबा कायम था। जिला पंचायत और कई गांवों के ग्राम प्रधान के चुनाव में विकास दुबे की पसंद और नापसंद काफी मायने रखती रही है।
गांव के एक बुज़ुर्ग बताते हैं, बिकरू गांव में पिछले 15 साल से निर्विरोध प्रधान बन रहे हैं जबकि विकास दुबे के परिवार के ही लोग पिछले पंद्रह साल से जिला पंचायत सदस्य का भी चुनाव जीत रहे हैं।
गाँव वालों के मुताबिक़, विकास दुबे के पिता किसान हैं और ये कुल तीन भाई है जिनमें एक भाई की करीब आठ साल पहले हत्या कर दी गई थी। भाइयों में विकास दुबे सबसे बड़े हैं। विकास की पत्नी ऋचा दुबे फि़लहाल जिला पंचायत सदस्य हैं।
बकरू गांव के ही रहने वाले एक व्यक्ति नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि विकास दुबे के खिलाफ थाने में चाहे जितने मुकदमे दर्ज हों लेकिन गांव में उनकी बुराई करने वाला कोई नहीं मिलेगा और न ही उनके ख़िलाफ़ कोई गवाही देता है। उनके मुताबिक, साल 2000 के आस-पास शिवली के तत्कालीन नगर पंचायत के चेयरमैन लल्लन वाजपेयी से विवाद के बाद विकास दुबे ने अपराध की दुनिया में कदम रखा।
गाँव वालों के मुताबिक, विकास दुबे के दो बेटे हैं जिनमें से एक इंग्लैंड में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है जबकि दूसरा बेटा कानपुर में ही रहकर पढ़ाई कर रहा है। (bbc)
जितेंद्र भारद्वाज
नई दिल्ली, 3 जुलाई। केंद्र सरकार में बतौर प्रतिनियुक्ति आईएएस और आईपीएस अधिकारी संयुक्त सचिव रैंक से नीचे के पदों पर नहीं आना चाहते। अधिकांश राज्यों के आईएएस अफसर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर निदेशक या उप सचिव जैसे पदों पर काम करने के इच्छुक नहीं हैं।
ऐसा ही हाल आईपीएस अधिकारियों का है। इनकी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिपोर्ट पर गौर करें तो विभिन्न सुरक्षा बलों या जांच एजेंसियों में एसपी और डीआईजी के पचास फीसदी से ज्यादा पद खाली पड़े रहते हैं। अगर डीआईजी के पदों की बात करें तो यह आंकड़ा 70 फीसदी के पार पहुंच जाता है।
इनके इंतजार में कैडर अधिकारियों को भी परमोशन नहीं मिल पाता। अब डीआईजी के अनेक पद, जो आईपीएस के लिए खाली रहते हैं, उन्हें कैडर के पाले में डाला जा रहा है। अगर आईजी या उससे ऊपर के पदों को देखें तो वे ज्यादातर भरे रहते हैं।
एक पूर्व आईएएस अधिकारी कहते हैं कि एसपी और डीसी के पद पर रौब होता है। ऐसे वे अपने मूल कैडर वाले राज्य में ही तैनाती को प्राथमिकता देते हैं।
केंद्र में एसपी, उप सचिव, निदेशक या डीआईजी जैसे पदों पर स्वतंत्र कार्यभार व जलवा नहीं होता है। आईएएस के पदों को भरने के लिए अब केंद्र सरकार लेटरल एंट्री के विकल्प की ओर बढ़ रही है।
डीओपीटी के एक अधिकारी बताते हैं कि प्रतिनियुक्ति कोटे को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है। पिछले कुछ वर्षों का रिकॉर्ड देखें, तो अधिकांश राज्यों के लिए केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का जो कोटा तय किया गया है, वह खाली रह जाता है।
खासतौर पर, उप सचिव और निदेशक के पद नहीं भर पाते हैं। इससे कई मंत्रालयों का कामकाज प्रभावित होता है। पिछले साल केंद्र सरकार ने संयुक्त सचिव स्तर पर लेटरल एंट्री स्कीम के जरिए नौ नियुक्तियां की थीं। अब सरकार उसी दिशा में कदम आगे बढ़ा रही है।
हो सकता है कि निदेशक और उप सचिव स्तर के पौने चार सौ से अधिक पदों को उक्त योजना के तहत भरा जाए। वाणिज्य मंत्रालय, रसायन, स्पेस तकनीक, ट्रांसपोर्ट, मेक इन इंडिया प्रोजेक्ट, रेलवे, दूरसंचार, एचआरडी, हेल्थ, कृषि सेक्टर और कई दूसरे ऐसे विभाग हैं, जहां पर लेटरल एंट्री के जरिए पदों को भरा जा सकता है।
इस बाबत काम शुरू कर दिया गया है। सभी मंत्रालयों और विभागों से खाली पदों की सूची मांगी गई है।
आखिर केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर क्यों नहीं आ रहे आईएएस
केंद्र सरकार में करीब 1400 ऐसे पद हैं, जो सिविल सर्विस वाले अधिकारियों के लिए रखे गए हैं। इनमें ज्यादातर उप सचिव व निदेशक स्तर के पद हैं। हालांकि ये सभी पद आईएएस अधिकारियों के लिए नहीं हैं, इनमें दूसरी केंद्रीय सेवाएं जैसे आईएफएस व आईआरएस आदि सेवाओं के अफसर भी शामिल हैं।
छह सौ ऐसे पद हैं, जहां केंद्रीय सचिवालय सेवा के तहत पदोन्नति पाने वाले अधिकारियों को तैनात किया जाता है। आईएएस प्रतिनियुक्ति के तहत उपसचिव और निदेशक पदों पर अधिकारियों का इंतजार करना पड़ता है।
इसकी वजह है कि संबंधित अधिकारी अपने मूल कैडर में डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर बन कर जाना ज्यादा अच्छा समझता है। वहां पर उसके पास बहुत से मामलों में स्वायत्तता होती है। एनडीएमए से सेवानिवृत हुए एक आईएएस का कहना है कि सारी बात दिखावे की है।
जब कोई आईएएस बनकर आता है तो उसका प्रयास होता है कि वह जिले में डीसी या डीएम लगे। इसके बाद जब वह उपसचिव के पद से आगे बढ़ता है, तो अपने राज्य की राजधानी में निदेशक बन कर बैठना पसंद करते हैं।
जैसे ही वे इस पद से आगे बढक़र संयुक्त सचिव या अतिरिक्त सचिव जैसे पदों पर पहुंचते हैं, तो वे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति चाहने लगते हैं। वजह, केंद्र में इन पदों को बेहद प्रभावशाली माना जाता है। दायरा भी लंबा-चौड़ा होता है। देश के अलावा विदेशी दौरों की संभावनाएं बनी रहती हैं।
आईपीएस भी एसपी और डीआईजी के पद पर केंद्र में नहीं आना चाहते
यही हाल आईपीएस का है। अगर उन्हें केंद्र में किसी सुरक्षा बल, जांच एजेंसी या किसी अन्य विभाग में एसपी और डीआईजी का पद दिया जाता है, तो वे ज्वाइन करने में आनाकानी करने लगते हैं। वजह, राज्य जैसी सुविधाएं केंद्र में नहीं मिलेंगी।
जैसे बीपीआरएंडडी में डीआईजी आईपीएस के लिए 12 पद हैं, लेकिन उनमें से दस खाली पड़े हैं। यह हालत तो तब है जब आईपीएस के इंतजार में सात पद सीएपीएफ के कैडर अफसरों के लिए दे दिए गए हैं।
एसपी के 13 पदों में से छह खाली है। बीएसएफ में डीआईजी के 26 पद हैं। जब आईपीएस नहीं मिले तो 15 पदों को कैडर अधिकारियों से भरने के लिए कहा गया। इसके बावजूद छह पद खाली रह गए।
सीबीआई में डीआईजी के 35 स्वीकृत पद हैं, लेकिन 20 खाली पड़े हैं। एसपी के 59 पद हैं, मगर अभी 29 पद खाली हैं। सीआईएसएफ में डीआईजी के बीस में से 16 पद खाली हैं।
सीआरपीएफ में डीआईजी के 37 पद स्वीकृत हैं। जब आईपीएस नहीं आए, तो 18 पद अस्थायी तौर पर कैडर अफसरों की ओर शिफ्ट कर दिए। इसके बाद भी आधे पद खाली हैं। आईबी में डीआईजी के 63 पद हैं, लेकिन 28 खाली हैं।
एसपी के 83 पद हैं, जिनमें से 54 खाली पड़े हैं। केंद्र में आईपीएस के लिए डीआईजी के कुल 253 पद स्वीकृत हैं, लेकिन अभी 134 खाली हैं। इसी तरह एसपी के 197 स्वीकृत पदों में से 97 खाली हैं। बता दें कि ये संख्या तो तब है, जब बहुत से पद आईपीएस के न आने के कारण कैडर अफसरों को दे दिए गए।
सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है आईपीएस बनाम कैडर अफसर विवाद
भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों (सीएपीएफ) के कैडर अफसरों का विवाद सुप्रीम कोर्ट में है। हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट सीएपीएफ के पक्ष में फैसला दे चुके हैं, लेकिन प्रमोशन को लेकर वह फैसला लागू नहीं किया गया है।
कैडर अधिकारियों का कहना है कि जब तक नए सर्विस रूल नहीं बनते, तब तक इस फैसले का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आईजी के पचास फीसदी पदों को प्रतिनियुक्ति के जरिए भरने पर रोक लगा रखी है।
केंद्र सरकार ने पिछले दिनों कोविड-19 को आधार बनाकर कहा था कि सीएपीएफ में आईजी के पदों को भरा जाना जरूरी है। सरकार ने अपनी दलील में तात्कालिकता यानी ‘अर्जेन्सी’ का हवाला देकर स्टे हटाने की गुजारिश की थी।
इससे कोर्ट सहमत नहीं हुई और केंद्र सरकार की याचिका को खारिज कर नए सिरे से आवेदन देने का आदेश जारी कर दिया। अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई है।
कोविड-19 का इलाज पूरी दुनिया में नहीं है ये हम सब जानते हैं. भारत सरकार ने इमरजेंसी और सीमित इस्तेमाल के लिए कुछ दवाओं को इजाज़त दी है. ये बात भी हम सब जानते हैं.
ऐसी दवाओं की लिस्ट में एक नाम रेमडेसिवियर ड्रग का है - मुमकिन है कि ये बात भी आपको पता हो.
लेकिन आप शायद ये नहीं जानते होंगे कि अगर इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए आपको रेमडेसिवियर दवा चाहिए तो आसानी से नहीं मिल सकती. केन्द्र सरकार के अस्पताल आरएमएल में तो कम से कम ये दवा उपलब्ध नहीं है. कई मीडिया रिपोर्ट में मुबंई, कर्नाटक, तमिललाडु से भी इस दवा की क़िल्लत की ख़बरें आ रही हैं.
आरएमएल अस्पताल के बाहर किसी भी दवा की दुकान पर रेमडेसिवियर उपलब्ध नहीं हैं.
लेकिन आपकी पहुँच अगर दवा के बड़े व्यापारियों तक है, तब आपको ये दवा मिल सकती है. पर उसके लिए दिल्ली जैसे शहर में आपको दोगुने पैसे ख़र्च करने पड़ सकते हैं. अब तक आपने जो पढ़ा ये ख़बर कम और आपबीती ज़्यादा है.
और यही आपबीती इस खब़र का असली स्रोत है. इसी ख़बर की तफ़्तीश में जो बातें पता चलीं, कोरोना के दौर में वो जानना आपके लिए भी शायद ज़रूरी है. और यही आपबीती इस खब़र का असली स्रोत है. इसी ख़बर की तफ़्तीश में जो बातें पता चलीं, कोरोना के दौर में वो जानना आपके लिए भी शायद ज़रूरी है.
दिल्ली के कोविड अस्पताल का हाल
मैंने शुरुआत दिल्ली में केन्द्र सरकार के अधीन आने वाले अस्पताल आरएमएल से की. अपने परिचित के कोविड-19 इलाज के लिए इसी अस्पताल के डॉक्टर ने अपनी पर्ची पर रेमडेसिवियर दवा का नाम लिखा और घरवालों से तुंरत इसे मँगवाने का आदेश दिया.
घरवालों ने जब अस्पताल से पूछा, तो पता चला उनके स्टॉक में वो दवा है ही नहीं. परिवार वाले नज़दीकी दवा दुकानों पर गए.
दो-चार दुकानों पर जब ख़ाली हाथ लौटाया गया तो, उन्होंने बड़े और थोक दवा विक्रेताओं से संपर्क किया. लगभग दो घंटे की छानबीन के बाद बात बनी, लेकिन छह डोज़ की जगह केवल दो डोज़ ही मिल पाया, और वो भी दोगुने दाम पर.
भारत में रेमडेसिवियर दवा, 'कोविफ़ॉर' नाम से उपलब्ध है जो हेटेरो फ़ार्मा कंपनी बनाती है. एक और कंपनी सिप्ला को इसे बनाने की इजाज़त मिली है. कंपनी के मुताबिक़ इस दवा के एक डोज़ की क़ीमत है 5400 रुपये. लेकिन दिल्ली में ये कल तक मिल रही थी 10,500 रुपये में.
यहाँ आपको ये जानना ज़रूरी है, कि रेमडेसिवियर एक एंटीवायरल दवा है जिसे अमरीका की गिलिएड कंपनी बनाती है. उन्हीं के पास इसका पेटेंट भी हैं.
भारत में इसके इमरजेंसी में सीमित इलाज में इस्तेमाल की इजाज़त मिली है.
भारत में फ़ार्मा कंपनी हेटेरो को इस दवा को 'कोविफ़ॉर' नाम से बनाने की मंज़ूरी ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से मिली है. ऐसा उनका दावा है.
हेटेरो, जेनरिक दवा बनाने वाली कंपनी है, जो रेमडेसिवियर का जेनेरिक वर्जन दवा 'कोविफ़ॉर' भारत में 21 जून के बाद से बनाकर बेच रही है.
अब तक की खब़र पढ़ कर आपके मन में ज़रूर सवाल उठ रहा होगा कि कोविड 19 के इमरजेंसी इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा कोविड-19 के इलाज के नियुक्त सरकारी अस्पताल में उपलब्ध क्यों नहीं हैं?
यही सवाल मेरे मन में भी उठा. इसलिए मैंने आरएमएल से सम्पर्क किया. तीन अलग-अलग लोगों को फ़ोन करने के बाद हमारी बात हुई डॉक्टर पवन से.
डॉ. पवन रेस्पिरेट्री विभाग में हैं.
उन्होंने फ़ोन पर हमें बताया, "फ़िलहाल हम इस दवा को कोविड-19 के मरीज़ों को नहीं दे रहे हैं. कई जगहों पर इस दवा का ट्रायल चल रहा है. ये दवा कोविड-19 के इलाज के लिए कितनी कारगर है ये हमें नहीं पता. रेयरली इस दवा का इस्तेमाल दिल्ली के अंदर शुरू किया गया है. कुछ प्राइवेट अस्पतालों ने इसका इस्तेमाल शुरू ज़रूर किया है. सप्लाई के बारे में मैं आपको नहीं बता सकता. लेकिन नई ड्रग के इस्तेमाल में शुरूआत में दिक़्क़त तो आती ही है."
ये पूछे जाने पर कि क्या आरएमएल अस्पताल की तरफ़ से 'कोविफ़ॉर' बनाने वाली कंपनी को ऑडर भेजे गए हैं?
डॉ. पवन ने बताया कि उन्होंने किसी कंपनी को कॉन्टेक्ट नहीं किया है. फ़िलहाल आरएमएल में दूसरी दवाएँ हैं जो इमरजेंसी में मरीज़ों पर इस्तेमाल की जा रहीं हैं.
लेकिन हमें इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया कि फिर आरएमएल के दूसरे डॉक्टर ने मरीज़ के लिए रेमडेसिवियर लाने की बात पर्ची पर क्यों लिखी.
कारवां मैग्ज़ीन की रिपोर्ट के मुताबिक़ मुंबई में भी इस दवा की कालाबाज़ारी हो रही है. इकोनॉमिक टाइम्स की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक़ मुंबई में ये दवा शॉर्ट सप्लाई में है.
दवा के थोक व्यापारी
आरएमएल का पक्ष सुनने के बाद हमने सोचा कि ये पता लगाएँ कि आख़िर ये दवा मिलती कहाँ और कैसे है?
दिल्ली के भागीरथ पैलेस में दवाइयों का थोक में काम होता है.
हमने बात की दिल्ली ड्रग ट्रेडर एसोसिएशन के सचिव आशीष ग्रोवर से.
आशीष ने बताया कि ये दवाइयाँ आपको किसी मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलेंगी.
उनके अनुसार, इस दवा के लिए नियम कड़े हैं. इसके लिए आपको डॉक्टर का लिखा हुआ पर्चा चाहिए और साथ में मरीज़ का आधार कार्ड लगाने की ज़रूरत पड़ती है. ये सभी चीज़ें अस्पताल के लेटर हेड पर लिखा हुआ हो, तो कंपनी की साइट पर अप लोड करे दें, तभी ये दवा आपको अस्पताल दे पाएगा. ये दवा, कंपनी सीधे अस्पतालों को ही सप्लाई करती है. इसलिए बाज़ार में आपको खुले में नहीं मिलेगी.
दवा के बारे में जानकारी हासिल करते समय हमें ट्विटर पर इस तरह के कई लोगों के पोस्ट मिले जो यही जानकारी खोज रहे थे.
हालाँकि आशीष ने माना कि दवा भारत में शार्ट सप्लाई में है. मार्केट में इसके दाम दोगुने हो गए हैं और इसलिए कंपनी ने ऐसी व्यवस्था की है. उन्होंने ये भी माना कि इस बारे में उन्होंने कंपनी को सम्पर्क किया था और कंपनी ने उन्हें ये प्रक्रिया बताई है. वो अपने यहाँ आने वाले हर मरीज़ के रिश्तेदार को यही सलाह देते हैं.
आशीष ने एक और महत्वपूर्ण बात बताई. उनके मुताबिक़ पहले रेमडेसिवियर दवाई, भारत में बंग्लादेश से भी आ रही थी. उस वक़्त ऐसी कोई दिक़्क़त नहीं थी. लेकिन भारत में अब वो माल आना बंद हो गया है. अब यहीं पर कंपनी ये दवा बना रही है. ज़्यादा जानकारी कंपनी से माँगने की सलाह देकर आशीष ने अपनी बात ख़त्म की. दवा के थोक व्यापारी
आरएमएल का पक्ष सुनने के बाद हमने सोचा कि ये पता लगाएँ कि आख़िर ये दवा मिलती कहाँ और कैसे है?
दिल्ली के भागीरथ पैलेस में दवाइयों का थोक में काम होता है.
हमने बात की दिल्ली ड्रग ट्रेडर एसोसिएशन के सचिव आशीष ग्रोवर से.
आशीष ने बताया कि ये दवाइयाँ आपको किसी मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलेंगी.
उनके अनुसार, इस दवा के लिए नियम कड़े हैं. इसके लिए आपको डॉक्टर का लिखा हुआ पर्चा चाहिए और साथ में मरीज़ का आधार कार्ड लगाने की ज़रूरत पड़ती है. ये सभी चीज़ें अस्पताल के लेटर हेड पर लिखा हुआ हो, तो कंपनी की साइट पर अप लोड करे दें, तभी ये दवा आपको अस्पताल दे पाएगा. ये दवा, कंपनी सीधे अस्पतालों को ही सप्लाई करती है. इसलिए बाज़ार में आपको खुले में नहीं मिलेगी.
दवा के बारे में जानकारी हासिल करते समय हमें ट्विटर पर इस तरह के कई लोगों के पोस्ट मिले जो यही जानकारी खोज रहे थे.
हालाँकि आशीष ने माना कि दवा भारत में शार्ट सप्लाई में है. मार्केट में इसके दाम दोगुने हो गए हैं और इसलिए कंपनी ने ऐसी व्यवस्था की है. उन्होंने ये भी माना कि इस बारे में उन्होंने कंपनी को सम्पर्क किया था और कंपनी ने उन्हें ये प्रक्रिया बताई है. वो अपने यहाँ आने वाले हर मरीज़ के रिश्तेदार को यही सलाह देते हैं.
आशीष ने एक और महत्वपूर्ण बात बताई. उनके मुताबिक़ पहले रेमडेसिवियर दवाई, भारत में बंग्लादेश से भी आ रही थी. उस वक़्त ऐसी कोई दिक़्क़त नहीं थी. लेकिन भारत में अब वो माल आना बंद हो गया है. अब यहीं पर कंपनी ये दवा बना रही है. ज़्यादा जानकारी कंपनी से माँगने की सलाह देकर आशीष ने अपनी बात ख़त्म की.
हेटेरो कंपनी का पक्ष
आशीष के सुझाव पर अमल करते हुए हमने भारत में रेमडेसिवियर बनाने वाली कंपनी हेटेरो से संपर्क किया. भारत में अब ये दवा कोविफ़ॉर नाम से बिक रही है.
हेटेरो कंपनी के पब्लिक रिलेशन विभाग ने बीबीसी के सवाल का जवाब ई-मेल के ज़रिए दिया है.
ई-मेल इंटरव्यू में कंपनी के कॉरपोरेट कम्युनिकेशन हेड जय सिंह बालाकृष्णन ने लिखा है - "दवा बाज़ार में दोगुने दाम पर मिल रही है और दवा की सप्लाई में कमी है - इन दोनों सवाल पर कंपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहती".क्या उनकी दवा मेडिकल स्टोर पर भी मिल सकती है? इस सवाल के जवाब में बालाकृष्णन ने लिखा कि फ़िलहाल ये दवा कंपनी सीधे सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों को मुहैया करा रही है. केन्द्र सरकार के आदेशानुसार ये ड्रग रीटेल में नहीं बेची जा सकती.
कंपनी ने अपने जवाब में ये भी बताया है कि कोरोना के सीवियर कैटेगरी के मरीज़ों में ही इसका इस्तेमाल क्रिटिकल केयर सेटिंग में मेडिकल प्रैक्टिशनर की निगरानी में केवल अस्पतालों में ही किया जा सकता है. जून के अंतिम सप्ताह में कंपनी को इसे बनाने की इजाज़त मिली है. कंपनी 20,000 वायल (डोज़) जल्द से जल्द उपलब्ध करा रही है. 10,000 डोज़ की पहली खेप दिल्ली, हैदराबाद, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात भेजी गई है और दूसरी खेप कोलकाता, लखनऊ, भोपाल, इंदोर जैसे शहरों के लिए तैयार की जा रही है.
दवा का बांग्लादेश कनेक्शन
रेमडेसिवियर दवा अमरीकी कंपनी गिविएड बनाती है और उसी के पास इसका पेटेंट है. हेटेरो कंपनी का दावा है कि उसने गिलिएड के साथ क़रार किया है और इसलिए उन्हें भारत के लिए इसे बनाने की इजाज़त मिली है. लेकिन भारत सरकार के ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ने बंग्लादेश से इसके आयात पर रोक लगा रखी है. दवा कंपनियों के मुताबिक़ गिलिएड ने बांग्लादेश से इस बारे में कोई आधिकारिक क़रार नहीं किया है. इसलिए भारत सरकार कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती.
अमरीका ने ख़रीद ली है पूरी दवा
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अगले तीन महीने तक गिलिएड कंपनी जितनी मात्रा में रेमेडेसिवियर दवा बनाने जा रही है वो सभी अमरीका ने पहले ही ख़रीद ली है. मंगलवार को इसकी घोषणा करते हुए अमरीका के स्वास्थ्य विभाग ने कहा कि इस दवा के पाँच लाख डोज़ अमरीकी अस्पताल के लिए ख़रीदने का फ़ैसला लिया गया है. फ़िलहाल कोरोना की ये दवा तो नहीं है, लेकिन जाँच में पाया गया है कि इसके इस्तेमाल से मरीज़ों में रिकवरी टाइम में कमी आ सकती है. अमरीका के बाहर दुनिया में केवल नौ कंपनियों के पास ही इसे बनाने और बेचने का अधिकार है. ये एक बड़ी वजह है, इस ड्रग के कम सप्लाई होने की.
(bbc news)
नई दिल्ली, 2 जुलाई (वार्ता)। दिल्ली में कोरोना मरीजों के उपचार हेतु प्लाज्मा आसानी से उपलब्ध कराने के लिए गुरुवार को प्लाज्मा बैंक शुरू हो गया।
मुख्यमंत्री अरविंद ने आज इसकी शुरुआत करते हुए इस संक्रमण से ठीक हुए ज्यादा से ज्यादा लोगों से आगे आकर प्लाज्मा दान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आती, तब तक वायरस के उपचार में प्लाज्मा थेरेपी काफी मददगार साबित हो सकती है।
श्री केजरीवाल ने कहा, यह देश का पहला प्लाज्मा बैंक है। प्लाज्मा दान करने के इच्छुक व्यक्ति 1031 नंबर पर फोन करके अपनी जानकारी दे सकते हैं। इसके अलावा 8800007722 पर व्हाट्सऐप करके भी इच्छुक व्यक्ति अपना पंजीकरण करा सकेंगे।
उन्होंने कहा कि केवल वही व्यक्ति प्लाजमा दान कर सकता है जिसे कोरोना हुआ हो और वह इससे स्वस्थ हुआ हो। दान का इच्छुक व्यक्ति कोरोना से कम से कम 14 दिन पहले ठीक हुआ हो और उसकी उम्र 18 से 60 वर्ष के बीच होनी चाहिए। मधुमेह पीडि़त व्यक्ति, रक्तचाप 140 से अधिक रहता हो, हाइपरटेंशन का मरीज,जिसका वजन 50 किलोग्राम से कम हो, जो महिला एक ही बार गर्भवती हुई हो, गुर्दा, दिल, लीवर की बीमारी वाले भी प्लाज्मा नहीं दे सकते हैं।
नई दिल्ली, 2 जुलाई । जल्द ही भारत की पैरामिलिट्री फोर्स में मेल, फीमेल के साथ ट्रांसजेंडर को भी जगह मिलेगी। गृह मंत्रालय ने असिस्टेंट कमांडेंट की परीक्षा में थर्ड जेंडर के रूप में ट्रांसजेंडर को शामिल करने पर सुरक्षा बलों से टिप्पणी मांगी है। अगर सुरक्षा बलों की ओर से इस दिशा में सकारात्मक प्रतिक्रिया आती है तो संभव है कि ट्रांसजेंडर भी पैरामिलिट्री फोर्स में नजर आएं।
सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ), सेंट्रल इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी फोर्स (सीआईएसएफ), इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) और सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) को बधुवार को भेजे एक पत्र में गृह मंत्रालय ने बलों से कहा है कि वह दिसंबर माह में प्रस्तावित सीएपीएफ (सेंट्रल आर्म्ड पुलिस फोर्स या केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल) असिस्टेंट परीक्षा 2020 में मेल/फीमेल के साथ थर्ड जेंडर के तौर पर ट्रांसजेडर को शामिल करने पर अपनी प्रतिक्रिया दे।
हर वर्ष संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की ओर से सीएपीएफ असिस्टेंट कमांडेंट भर्ती परीक्षा आयोजित की जाती है। इस परीक्षा के जरिए सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी में असिस्टेंट कमांडेंट (ग्रुप ए) पदों पर नियुक्ति होती है। इस साल यूपीएससी सीएपीएफ असिस्टेंट कमांडेंट परीक्षा 2020 का नोटिफिकेशन 18 अगस्त को जारी करेगी। अगर गृह मंत्रालय को पैरामिलिट्री फोर्स की तरफ से पॉजिटिव जवाब आता है तो उनकी प्रतिक्रियाएं यूपीएससी के साथ शेयर कर दी जाएंगी। इसके बाद यूपीएससी अपने एप्लीकेशन फॉर्म में थर्ड जेंडर के तौर पर ट्रांसजेडर को जगह देगी।
नई दिल्ली, 2 जुलाई । भारतीय रेलवे ने अपने इतिहास में पहली बार सभी ट्रेनों के समय पर चलने का अनोखा रेकॉर्ड बनाया है। यह रेकॉर्ड 1 जुलाई को बना है। रेलवे ने बताया कि 1 जुलाई को सभी 201 ट्रेनें समय पर गंतव्य पहुंचीं। सभी ट्रेनों के समय पर चलने का पिछला रेकॉर्ड 23 जून 2020 को था जब 99.54 फीसदी ट्रेनें समय पर चली थीं। बता दें कि भारतीय रेलवे की लेटलतीफी किसी से छिपी नहीं है। इसे रेलवे की बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है। हालांकि एक हकीकत ये भी है कि अभी कोरोना महामारी के कारण देश की सभी रेग्युलर ट्रेनें नहीं चल रही हैं।
भारतीय रेलवे ने बताया कि रेलवे इतिहास में पहली बार 100 फीसदी ट्रेनों के समय पर चलने का रेकॉर्ड बना है। 23 जून 2020 को 99.54 प्रतिशत ट्रेनें समय पर चली थीं जबकि एक ट्रेन देरी से गंतव्य पर पहुंचा था।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ट्वीट कर कहा, ट्रेनें फास्ट लेन में चल रही हैं और अपनी सेवाओं में लगातार बेहतरीन सुधार कर रही हैं। भारतीय रेलवे ने 1 जुलाई को 100 फीसदी ट्रेनों के समय पर गंतव्य पर पहुंचने का रेकॉर्ड बनाया। पिछले सप्ताह रेलवे ने कोरोना महामारी को देखते हुए सभी रेग्युलर मेल, ऐक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेनों की सेवाएं 12 अगस्त तक के लिए रद्द कर दी थी। (navbharattimes.indiatimes.com)
नई दिल्ली, 2 जुलाई (वार्ता)। उच्चतम न्यायालय ने तबलीगी जमात के कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले 34 विदेशी जमातियों की याचिकाओं की सुनवाई गुरुवार को 10 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी तथा कहा कि वह उन्हें स्वदेश भेजने के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा, बल्कि काली सूची में डाले जाने के मसले पर ही सुनवाई करेगा।
इस बीच, केंद्र सरकार ने न्यायालय को बताया कि विदेशी जमातियों की स्वदेश वापसी तब तक नहीं हो सकेगी, जब तक उनके खिलाफ भारत के किसी भी राज्य में दर्ज आपराधिक मुकदमों की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की अवकाशकालीन खंडपीठ को बताया कि वीजा रद्द करने को लेकर हर विदेशी जमाती के मामले में सरकार द्वारा अलग-अलग आदेश पारित किया गया है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि फिर तो हर प्रभावित जमाती को उच्च न्यायालय जाना चाहिए।
गौरतलब है कि कोरोना को लेकर केंद्र सरकार के दिशानिर्देशों और राज्य सरकारों एवं पुलिस के आदेश का उल्लंघन करने पर हजारों जमातियों के खिलाफ विभिन्न राज्यों में आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे जिनकी सुनवाई अदालतों में लंबित है। केन्द्र सरकार ने हजारों जमातियों को ब्लैकलिस्ट करके उनके वीजा रद्द कर दिए थे, जिनमें से 34 विदेशी जमातियों ने सरकार के इस आदेश के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दायर की हैं।
योग गुरू रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद ने आज कहा कि आयुष मंत्रालय ने उसकी दवा कोरोनिल को बेचने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है। कंपनी ने हाल ही में कथित तौर पर कोरोना के इलाज के लिए कोरोनिल नाम से दवा लॉन्च की थी। हालांकि लॉन्च होते ही इसे लेकर खासा बवाल हो गया और कंपनी अपने दावे से पलट गई। अब पतंजलि का कहना है कि ये कोरोना की दवा नहीं, बल्कि बीमारी को मैनेज करने के लिए एक उत्पाद है। इधर आयुष मंत्रालय ने भी इस बात की पुष्टि की है कि पतंजलि इस उत्पाद को बेच तो सकती है लेकिन कोरोना के इलाज की दवा के रूप में नहीं।(navbharat times)