विचार / लेख
-अपूर्व भारद्वाज
यह वो ही कपिल सिब्बल है जिनके उलूल-जुलूल बयानों से कांग्रेस गाहे-बगाहे परेशानी में फंसती रहती है। जिन्होंने दिल्ली के एक लोकसभा सीट को छोडक़र कभी जमीनी राजनीति नहीं की। जिन्होंने अपना प्रोफेशन राजनीति के लिए कभी नहीं छोड़ा। जिन्होंने केवल अपने लोकसभा सीट के गणित के लिए पूरी कॉंग्रेस को तुष्टिकरण की तरफ मोड़ दिया। आज वो भगवा पगड़ी पहने कांग्रेस को सेक्युलिरिज्म सीखा रहे हैं।
जिन्होंने 0 लास की थ्योरी दी थी और कांग्रेस का बेड़ा गर्क कर दिया था। जिसे मीडिया ने दिन-रात चलाया और अण्णा जैसे आंदोलनजीवी को सँजीवनी दे दी और पूरा करप्शन का परसेप्शन यूपीए के विरूद्ध बन गया, पहचाना की नहीं..!!!
आनंद शर्मा ने शायद ही कभी लोकसभा चुनाव लड़ा हो लेकिन वीरभद्र सिंह जैसे खांटी जमीनी नेता को सदा राजनीति के पाठ पढ़ाते रहते थे। कांग्रेस ने उनको हिमाचल प्रदेश जैसी छोटी प्रदेश के बाद राज्यसभा सांसद से लेकर केंद्रीय मंत्री तक बनाया। वो आज कांग्रेस को बंगाल में राजनीति का ककहरा सीखा रहे हैं। यह इतने दोगले हैं कि इन्हें केरल में मुस्लिम लीग से गठबंधन नजर नहीं आ रहा था लेकिन वाम दलों का ढ्ढस्स्न को सीट देना आज अखर रहा है।
अब बात करें ‘गुलाम’ साहब की जिन्होंने पूरी जिंदगी नेहरू और गांधी की कृपा से निकाल दी लेकिन आज इनके अंदर का लोकतंत्र जग गया है। इन्हें कांग्रेस का वंशवाद नजर आ रहा है। गुजरात दंगों के समय साहब में इनको शैतान नजर आ रहा था। अब एक राज्यसभा की सीट के लिए भगवान नजर आ रहा है। मतलब जिस पार्टी ने आपको बनाया उसे ही नीचे दिखा रहे हैं। ऐसी नकली आजादी से पार्टी की गुलामी ही ठीक है।
राज बब्बर, मनीष तिवारी जैसे नेताओं के बारे में बात करना पोस्ट को लंबा करना होगा। कांग्रेस को इस मामले में बीजेपी से सीखना चाहिए। वो वक्त पडऩे पर जसवंत सिंह और कल्याण सिंह जैसे नेताओं को निकाल बाहर कर देती है। सत्ता में हो या न हो लेकिन अनुशासन से कोई समझौता नहीं करती हैं। अब समय आ गया है राहुल गाँधी को पार्टी रूपी नदी की सारी कीचड़ और गंदगी साफ कर देना चाहिए। देर से ही सही इस सुखी नदी में निर्मल और स्वच्छ जल तो आएगा।