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सबसे बुरे दौर को झेलता लेबनान
06-Aug-2020 9:08 PM
सबसे बुरे दौर को झेलता लेबनान

लेबनान इस समय ऐसा संकट झेल रहा है जैसा उसने पिछले कई दशकों में नहीं देखा। आर्थिक संकट, सामाजिक असंतोष, कोरोना महामारी और राजधानी बेरूत के विस्फोटों से थरथराने की घटना से इस मध्य पूर्वी देश की परेशानियां और गहरा गई हैं।

पंद्रह सालों तक गृहयुद्ध झेल चुका लेबनान पहली बार इतनी खराब आर्थिक स्थिति का सामना कर रहा है। 1975 से 1990 तक लेबनान गृहयुद्ध की चपेट में रहा। इसके बाद भी दो दशक से लंबे समय तक सीरिया की सेनाएं देश में रहीं और लेबनान में अपना प्रभुत्व बनाए रखा। सन 2005 में लेबनान के तत्कालीन प्रधानमंत्री रफीक हरीरी की हत्या से उपजी स्थिति देश के राजनैतिक और आर्थिक इतिहास में एक बड़ा मोड़ लेकर आई।

निर्णायक साल रहा 2005

14 फरवरी, 2005 के दिन लेबनान के प्रधानमंत्री रफीक हरीरी के दस्ते पर एक बड़ा आत्मघाती बम हमला हुआ था, जिसमें हरीरी के अलावा 21 और लोग भी मारे गए थे। विपक्ष ने इसके पीछे सीरिया का हाथ बताया था, जिससे सीरिया इनकार करता आया है। वहीं खुद लेबनान के शक्तिशाली शिया गुट हिजबुल्लाह पर भी इसका संदेह रहा है। इसके बाद देश में बहुत बड़े स्तर पर हुए विरोध प्रदर्शनों के चलते, सीरियाई सेना ने 26 अप्रैल को लेबनान छोड़ दिया।

सीरियाई सेनाएं 29 साल से लेबनान में बनी हुई थीं और एक समय तो उनके 40,000 सैनिक लेबनान में तैनात थे। संयुक्त राष्ट्र के एक ट्राइब्यूनल में चार आरोपियों पर हरीरी की हत्या के लिए जिम्मेदार होने का मामला चल रहा है। इसी शुक्रवार अदालत इस पर अपना फैसला सुनाने वाली है। हिजबुल्लाह प्रमुख हसन नसरल्लाह ने अब तक इन चारों अभियुक्तों को नहीं सौंपा है।

इस्राएल के साथ जंग

जुलाई 2006 में हिजबुल्लाह ने दो इस्राएली सैनिकों को कब्जे में ले लिया, जिसके कारण इस्राएल के साथ जंग छिड़ गई। 34-दिन चली इस जंग में जो 1,400 जानें गईं, उनमें से 1,200 लेबनानी थीं। मई 2008 में एक बार फिर एक हफ्ते तक चली हिंसक झड़पों में एक ओर थे हिजबुल्लाह समर्थित आतंकी और दूसरी ओर थे बेरूत और दूसरे इलाकों के सरकारी समर्थक। इस हिंसा की चपेट में आने से करीब 100 लोगों की जान चली गई थी।

इन हिंसक प्रकरणों का उल्लेख करना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह ऐसा समय था जब लेबनान फिर से गृह युद्ध के दलदल में गिरता नजर आ रहा था। जुलाई 2008 में जाकर लेबनान में एक 30-सदस्यों वाली राष्ट्रीय एकता सरकार के गठन पर सहमति बनी, जिसमें हिजबुल्लाह और उसके सहयोगियों को वीटो करने की शक्ति दी गई।

जून 2009 में रफीक हरीरी के बेटे साद हरीरी ने सीरिया-विरोधी गठबंधन के नेता के तौर पर चुनाव जीता और देश के प्रधानमंत्री चुने गए। हिजबुल्लाह के साथ कई महीनों तक चले गतिरोध के बाद साद हरीरी नवंबर में जाकर सरकार का गठन कर पाए। जनवरी 2011 में हिजबुल्लाह ने सरकार गिरा दी और जून में अपने प्रभुत्व वाली सरकार का गठन कर लिया।

ईरान समर्थित हिजबुल्लाह

सरकार और सीरिया संकट

अप्रैल 2013 में हिजबुल्लाह ने माना कि उसने अपने लड़ाके सीरिया में राष्ट्रपति बसर अल असद के समर्थन में लडऩे भेजे हैं। इसके बाद के सालों में भी हिजबुल्लाह अपने क्षेत्र के शक्तिशाली शिया देश ईरान से सैन्य और आर्थिक मदद लेकर हजारों लड़ाकों को सीरिया से लगी सीमा पर भेजता रहा।

अक्टूबर 2016 में हिजबुल्लाह के समर्थन से ही लेबनान में सेना के पूर्व जनरल माइकल आउन राष्ट्रपति बने। इसी के साथ देश में 29-महीनों से चला आ रहा राजनीतिक निर्वात भर गया। साद हरीरी को फिर से प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया।

मई 2018 में हिजबुल्लाह और उसके समर्थकों ने 2009 के बाद देश मे कराए गए संसदीय चुनावों में ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल की। खुद प्रधानमंत्री की पार्टी को काफी नुकसान हुआ लेकिन फिर भी उन्हीं का नाम तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने के लिए आगे किया गया। हालांकि नई सरकार के गठन पर मतभेदों के चलते हरीरी-हिजबुल्लाह के बीच बातचीत जनवरी 2019 तक खिंचती चली गई।

सडक़ों पर उतरी जनता

देश की बिगड़ती आर्थिक हालत और गिरती मुद्रा के कारण आम जनों को हो रही परेशानियों के चलते सितंबर 2019 में सैकड़ों लोग राजधानी बेरूत की सडक़ों पर उतरे और अगले करीब डेढ़ महीने तक वहां ऐसे हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए जिनके चलते 29 अक्टूबर को हरीरी ने अपनी सरकार समेत इस्तीफा दे दिया। 19 दिसंबर को हिजबुल्लाह ने समर्थन देकर एक अंजान से व्यक्ति हसन दियाब को देश का प्रधानमंत्री बनाने के लिए आगे किया, जिसे प्रदर्शनकारियों ने फौरन रद्द कर दिया।

आर्थिक संकट के चरम की ओर

इसी साल 21 जनवरी को लेबनान में एक नई सरकार बनी। यह एक ही पार्टी की सरकार है, जिसमें हिजबुल्लाह और उनके सहयोगी शामिल हैं और जो संसद में भी बहुमत में हैं। 30 अप्रैल को सरकार ने माना कि लेबनान के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि वह अंतरराष्ट्रीय कर्ज चुकाने में चूक गया। इसके बाद से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और देश में आर्थिक सुधारों की योजना बनाई गई।

मई के मध्य में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के साथ शुरु हुई बातचीत फिलहाल रुकी हुई है और जरूरी रकम का इंतजाम अभी नहीं हो सका है। इस संकट से निपटने के सरकार के तरीके के प्रति अपना विरोध जताते हुए 3 अगस्त को लेबनान के विदेश मंत्री ने इस्तीफा दे दिया। लेबनान पर 92 अरब डॉलर का कर्ज है जो कि उसकी जीडीपी के 170 फीसदी के आसपास है। देश की आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीती है और करीब 35 फीसदी लोग बेरोजगार हैं। आरपी/सीके (एएफपी) (www.dw.com)

 

 

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