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ट्रंप ने पीछे खींचे कदम पर मुसीबत अभी टली नहीं है
11-Apr-2025 4:15 PM
ट्रंप ने पीछे खींचे कदम पर मुसीबत अभी टली नहीं है

-फैसल इस्लाम

डोनाल्ड ट्रंप और उनके आसपास के लोग ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि पिछले सात दिनों में जो कुछ हुआ वो अराजक नहीं था।

अब तक जो हुआ, उससे तो लगता है कि चीन ट्रंप की शंतरज की चाल में फंस गया है। अपने सबसे बड़े बाज़ार में लगे आयात शुल्क के बाद चीनी अर्थव्यवस्था एक बहुत बड़ी मुसीबत की ओर बढ़ रही है।

वैसे ट्रंप ने चीन को छोडक़र बाकी देशों पर टैरिफ को 90 दिन के लिए भले ही रोक दिया हो, लेकिन ये 1930 के दशक के बाद अपनी तरह का पहला क़दम है।

वैसे 10त्न का टैरिफ अब भी लागू है। आसान भाषा में समझें तो चाहे दुनिया का कोई देश अमेरिका को अधिक सामान बेचता हो या कम, सभी पर 10 प्रतिशत टैरिफ तो लग ही चुका है।

ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया दोनों ही अमेरिका से अधिक सामान खऱीदते हैं और वहां कम सामान बेचते हैं। लेकिन, ये टैरिफ दोनों देशों पर लागू हो चुका है।

अब यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के बीच कोई अंतर नहीं बचा है। दोनों पर बराबर टैरिफ़ लग चुके हैं।

अब सभी लोग बेसब्री से ट्रंप के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या ट्रंप दवाइयों पर भी टैरिफ़ लगाएंगे? ब्रिटेन दवाइयों का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।

एक अन्य चुनौती अमेरिका पहुँचे ‘मेड इन चाइना’ सामान पर टैरिफ़ वसूलने की है।

ये आसान काम नहीं होगा, क्योंकि दुनिया के आधे मर्चेंट शिप अगले शुक्रवार को ये सामान लेकर अमेरिकी बंदरगाहों पर लंगर डालने वाले हैं।

ट्रंप की 90 दिनों की मोहलत के बावजूद ग्लोबल ट्रेड से जुड़ी कंपनियों के लिए अनिश्चिततता बरकऱार है।

 

चीन के साथ बिगड़ते रिश्ते

लेकिन, इस वक़्त का सबसे बड़ा मुद्दा है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यस्थाएं एक दूसरे को आँखें दिखा रही हैं।

दुनिया का तीन प्रतिशत ट्रेड अमेरिका और चीन के बीच होता है। कुल मिलाकर ग्लोबल ट्रेड का हाईवे बंद हो गया है।

जो कुछ हुआ है, उसके परिणाम बहुत जल्द सामने आने वाले हैं। चीन में कई कारखाने बंद होने वाले हैं। मज़दूर एक प्लांट से दूसरे प्लांट पर नौकरी की तलाश में घूमते नजऱ आएंगे।

चीन को जल्द ही कुछ करना होगा, वरना उसकी जीडीपी का एक बड़ा हिस्सा छू मंतर हो जाएगा। ये कुछ ऐसा ही होगा, जैसा प्राकृतिक आपदा के बाद किसी शहर का हाल होता है।

उधर, अमेरिका में उपभोक्ता वस्तुओं के दाम आसमान छूने लगेंगे। ट्रंप अमेरिकी कंपनियों से दाम ना बढ़ाने की गुज़ारिश कर सकते हैं, पर जल्द ही बढ़े हुए दामों का असर साफ नजर आने लगेगा।

ये सब फि़लहाल अमेरिका और चीन में ही होगा। बाक़ी दुनिया पर टैरिफ का ऐसा असर नहीं होगा।

कनाडा या यूरोप में न तो चीन से आने वाले सामान की कीमत बढ़ेगी और न ही कम होगी।

ट्रेड वॉर से करेंसी वॉर तक

इस स्तर पर ट्रेड वॉर सिफऱ् वस्तुओं की आवाजाही पर असर नहीं डालता। धीरे-धीरे ये करेंसी वॉर में तब्दील हो जाता है।

अमेरिका की बॉन्ड मार्केट पहले ही प्रभावित हो चुकी है, अब दुनिया के क्रेडिट बाज़ार भी अफऱा-तफऱी से दो चार हैं। बुधवार को एशिया में अमेरिकी सरकार के बॉन्ड्स की भारी खऱीदारी हुई है और इन पर प्रभावी ब्याज दर अब 5त्न तक पहुँच गया है।

कजऱ्े पर ब्याज दरें इस गति से नहीं बदलनी चाहिए।

पिछली बार ऐसा तब हुआ था, जब कोविड महामारी का आगाज़ हुआ था। उसे ‘डैश फॉर कैश’ कहा गया था। मार्च 2020 दुनिया को फ़ोकस मौत से लडऩा था। उस संकट से इमरजेंसी प्लान के ज़रिए ही लड़ा जा सका था।

एक नजऱ से देखें तो ट्रंप ने 90 दिनों की जो मोहलत दी है, वो इमरजेंसी में किया गया पॉलिसी चेंज ही है।

क्या अमेरिका के सरकारी बॉन्ड की बिकवाली के पीछे चीनी सरकार का हाथ था?

शायद नहीं। जो भी हो बॉन्ड बाज़ार में बुधवार को जो कुछ हुआ, वो ट्रंप की कमज़ोरी को हाईलाइट करता है।

चीन अमेरिकी सरकार के बॉन्ड्स का दूसरा सबसे बड़ा खऱीदार है, और अगर उसने सारे बॉन्ड बेचना शुरू कर दिए, तो अमेरिका में तबाही मच जाएगी। लेकिन, ऐसा करना चीन के लिए भी एक बड़ी तबाही होगा। उसके लिए ये अमेरिका से भी अधिक नुकसान की बात होगी।

सबसे अहम बात ये है कि बॉन्ड बाज़ार ट्रंप को एक संकेत दे रहा है। वो संकेत है कि बाज़ार टैरिफ़ की नीति से सहमत नहीं हैं।

अमेरिकी बॉन्ड मार्केट को बचाने के लिए अमेरिका का केंद्रीय बैंक यानी फ़ेडरल रिज़र्व सामने आ सकता है, लेकिन मौजूदा हालात में ऐसा नहीं लगता कि इसके चेयरमैन जेरोम पॉवेल कुछ करने वाले हैं।

बॉन्ड मार्केट के कारण अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट भी पैंतरा बदल रहे हैं। बेसेंट ट्रंप से कह रहे हैं कि अगर चीन से मुकाबला करना है, तो अपने सहयोगियों के साथ समझौते करें।

तूफ़ान से पहले की शांति

अतीत में ट्रंप इन्हीं सहयोगियों को चोर और लुटेरे तक कह चुके हैं। ऐसे में ये कहना मुश्किल है कि शुरू से ही सहयोगियों का साथ लेने की नीति थी।

ये विचार तो टैरिफ़ के बाद का लगता है।

और ये बात काफ़ी अहम है। अमेरिका को चीन का सामना करने के लिए यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और जी7 समूह के बाक़ी देशों की ज़रूरत होगी।

चीन तो यही चाहेगा कि ये देश न्यूट्रल रहें और पहले की तरह चीनी सामान का आयात करते रहें।

जो भी हो, बाक़ी दुनिया तो फि़लहाल यही समझने की कोशिश कर रही है कि ट्रंप ने पेंगुइन द्वीप या गऱीब अफ्ऱीकी देशों पर किस वजह से टैरिफ़ लगाए हैं।

दुनिया ये भी सोच रही है कि ट्रंप ऐसे संदेश क्यों सर्कुलेट कर रहे हैं, जिनमें वो स्टॉक मार्केट को ख़ुद गिराने की बात कर रहे हों।

चाहे आप अमेरिका के दोस्त हों या दुश्मन, ट्रंप के दौर में ये कह पाना मुश्किल है कि ऊंट किस करवट बैठेगा। 90 दिन की मोहलत के बाद माहौल शांत तो हुआ है, पर ये शांति ज़्यादा वक़्त के लिए नहीं रहने वाली है। ((bbc.com/hindi)

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