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भगतसिंह की फांसी और गद्दारों की कहानी
21-Mar-2025 10:31 PM
भगतसिंह की फांसी और गद्दारों की कहानी

-सुसंस्कृति परिहार

अंग्रेजी राज में एक ऐसे जज भी हुए जिन्होंने भगतसिंह को फांसी की सजा दिलाना कबूल नहीं किया और निर्णय सुनाने से पहले अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।

वे थे जस्टिस सैय्यद आगा हैदर जिन्होंने ‘शहीद भगत सिंह’ को ‘फांसी नहीं लिखी’, बल्कि ‘अपना इस्तीफा लिख दिया’ था  इतिहास बताता हैं कि मुसलमान सब्र रखने के साथ साथ इंसाफ परस्त भी हैं...

जस्टिस सैयद आगा हैदर का जन्म सन् 1876 में सहारनपुर के एक संपन्न सैय्यद परिवार  में हुआ था द्य सन 1904 में उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत आरंभ की तथा सन् 1925 में वे लाहौर हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुए।

जस्टिस आग़ा हैदर  यह नाम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्होंने  भगतसिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरू को सज़ा से बचाने के लिए गवाहों के बयानों और सुबूतों की बारीकी से पड़ताल की थी। मुलजि़मों से जस्टिस आग़ा हैदर साहब की यह हमदर्दी देखते हुए कहा जाता है, अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें इस मुक़दमे की सुनवाई से हटा दिया था। जबकि सच यह है कि वे अंग्रेज जजों के दबाव में नहीं आए थे और अपना इस्तीफा सौंप दिया था।

फिर भगत सिंह को फांसी की सजा क्यों हुई कुछ इतिहासकार लिखते हैं, कि भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले दो व्यक्ति थे जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकदमा चला तो उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल।

शोभा सिंह एक बिल्डर थे। शोभा सिंह साल 1939 में पंजाब चैंबर ऑफ़ कॉमर्स के अध्यक्ष चुने गए थे। वे राष्ट्रमंडल संबंध विभाग और विदेश मामलों की समिति के सदस्य थे उनके कार्यकाल में बोर्ड ऑफ इंडस्ट्रियल ऐंड साइंटिफिक़ रिसर्च की स्थापना हुई थी। उन्होंने भारत-जापान व्यापार समझौता किया था।

 जबकि सर शादी लाल एक सामाजिक-राजनीतिक नेता थे। सर शादी लाल पंजाब हिंदू सभा के एक नेता थे। वे 20वीं सदी की शुरुआत में पंजाब में हिंदू हितों की वकालत करते थे उनके कार्यों का असर न्यायिक क्षेत्र पर भी पड़ा भगत सिंह के मुकदमे में अभियोजन पक्ष के गवाह के तौर पर उन्होंने गवाही दी थी उनकी गवाही ने भगत सिंह को दोषी ठहराए जाने और फांसी की सज़ा पाने में अहम भूमिका निभाई।

विदित हो इन दोनों को वतन से की गई गद्दारी के लिए अंग्रेज़ों से, न सिर्फ सर की उपाधि मिली बल्कि और भी बहुत इनाम मिला था। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत अंग्रेजों से मिली थी आज कनाट प्लेस में शोभा सिंह के स्कूल में कतार लगती है बच्चों को प्रवेश तक नहीं मिलता है।

शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली थी आज भी शामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता की नजरों में सदा घृणा के पात्र थे और अब तक हैं।

लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया शादी लाल के लडक़े उसका कफन दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।

 जस्टिस आगा हैदर अंग्रेजी हुकूमत में जज थे जिन पर अंग्रेजी हुकूमत ने अपना दबाव बना कर भगतसिंह को फांसी की सज़ा देने का हुक्म दिया मगर उन्होंने उस दबाव को नकारते हुए अपना इस्तीफा ही दे दिया जिसके बाद शादीलाल जज ने भगत सिंह और साथियों को फांसी लिखकर बहुत नाम कमाया।

 वस्तुत: भगत सिंह और उनके साथियों को सज़ा मुख्य जज जी सी हिल्टन के अध्यक्षता वाले एक ट्रिव्यूनल द्वारा दी गई थी।जिसका गठन गवर्नर जनरल लार्ड इरविन ने किया था।

 ट्रिव्यूनल में सिर्फ आगा हैदर अकेले भारतीय थे और बाकी सभी जज अंग्रेज़ थे । जब आग़ा हैदर को फांसी देने वाले दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था तो उन्होंने हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया और अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में सर शादी लाल नामक जज ने हस्ताक्षर बिना आपत्ति के कर दिए। इन दोंनो देशद्रोही हिंदुओं की वजह से भगतसिंह अपने दो साथियों सहित शहादत को समर्पित हुए जबकि सैयद हैदर आगा शहीदों के साथ अजर अमर हो गए। यहां हमें जस्टिस खलीलुर्रहमान रमदे जी का भी शुक्रगुजार  होना चाहिए, जिनकी बदौलत  भारत को शहीद भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव पर अंग्रेजों के जमाने में चले मुकदमे के ट्रायल की कॉपी मिल सकी थी। फांसी देने संबंधित कई चौंकाने वाले तथ्य भी सामने आए थे।जो देश के गद्दारों के नाम उजागर करते हैं।

यह भी स्मरण रखना चाहिए कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य एडवोकेट आसिफ अली ने भगत सिंह और साथियों के पक्ष में अपील लगाकर अंग्रेजों से अदालत में खुलकर बहसबाजी की थी। जबकि भगत सिंह के खिलाफ केस लडऩे वाले वकील राय बहादुर सूरज नारायण थे। वे अभियोजन पक्ष के वकील थे।

यह इतिहास इस बात की गवाही देता है कि अंग्रेजी शासन काल में अपने स्वाधीनता सेनानियों को मजबूती प्रदान करने में मुस्लिमों का अवदान कहीं ज़्यादा रहा है। इंडिया गेट पर शहादत में शामिल सर्वाधिक मुसलमानों की संख्या भी देखी जा सकती है। भगतसिंह की शहादत दिवस पर अपने आज़ादी के इतिहास को हम सभी को जानना चाहिए।

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