भारतीय मुसलमानों द्वारा सदियों से दान की गई अरबों रुपये की संपत्ति को नियंत्रित करने वाले दशकों पुराने कानून में संशोधन के प्रस्ताव से देश में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी का लिखा-
यह बिल अगस्त 2024 में वक्फ अधिनियम,1995 में संशोधन के लिए संसद में पेश किया गया था. इसमें व्यापक बदलाव प्रस्तावित थे, जिससे सरकार को वक्फ संपत्तियों को विनियमित करने और ऐसी संपत्तियों से संबंधित विवादों को निपटाने का अधिकार मिलेगा.
विपक्ष की आलोचना के बीच बिल को संसद की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया था. विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस बिल के जरिए वक्फ की संपत्ति पर कब्जा करना चाहती है, जबकि सरकार कहती है कि वह वक्फ की संपत्ति का बेहतर इस्तेमाल करना चाहती है और मुस्लिम वंचित महिलाओं की मदद करना चाहती है.
इसी साल 27 जनवरी को बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली समिति ने बीजेपी और उसके सहयोगियों द्वारा प्रस्तावित 14 संशोधनों को मंजूरी दे दी, जबकि विपक्ष द्वारा प्रस्तावित 44 संशोधनों को खारिज कर दिया.
एक ओर जहां संसद में विपक्षी दल वक्फ बिल का विरोध कर रहे हैं, तो वहीं मुस्लिम संगठन सड़कों पर उतर कर इसका विरोध कर रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बैनर तले कई संगठनों ने पहले भी इसके खिलाफ विरोध जताया था, अब विरोध प्रदर्शनों को राज्य स्तर तक ले जाने की योजना है.
लगभग सभी प्रमुख मुस्लिम पार्टियां इस बिल के खिलाफ हैं. उन्होंने 17 मार्च को संसद के पास जंतर-मंतर पर धरना देने की घोषणा की है. इसी तरह के प्रदर्शन बिहार और आंध्र प्रदेश की राजधानियों के साथ-साथ देश के अधिकांश हिस्सों में भी आयोजित किए जाएंगे.
वक्फ बिल पर सरकार-विपक्ष आमने सामने
हाल ही में समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों के रुख पर कहा था, "जो वक्फ बिल के खिलाफ हैं, वो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं. लेकिन वो एक तरफ सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ धमकी दे रहे हैं. लोकतंत्र धमकी से नहीं बल्कि प्रजातंत्र और जनतंत्र से चलेगा. देश के अंदर जनता के चुने गए जनप्रतिनिधियों द्वारा कानून बनाया जाएगा, या फिर धमकी से बनेगा."
मुस्लिम संगठनों का आरोप है कि बीजेपी की केंद्र सरकार 'असंवैधानिक' कानून लाकर मुसलमानों को निशाना बना रही है. उनका कहना है कि सरकार मुसलमानों को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर रही है.
मुसलमान इस बिल के खिलाफ क्यों हैं?
मुसलमानों का कहना है कि वक्फ संशोधन बिल मुसलमानों के धार्मिक और संवैधानिक अधिकारों के लिए गंभीर खतरा है. डीडब्ल्यू से बात करते हुए प्रमुख मुस्लिम संगठन जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष इंजीनियर मुहम्मद सलीम ने कहा कि वक्फ संपत्तियां सरकारी संपत्ति नहीं बल्कि धार्मिक ट्रस्ट हैं और यह बिल वक्फ की स्वायत्तता पर गंभीर हमला है.
इंजीनियर मुहम्मद सलीम ने कहा, "यह बिल मुस्लिम संपत्तियों और उनकी संस्थाओं को व्यवस्थित रूप से कमजोर करने के लिए लाया गया है. यह विधेयक 1995 के मौजूदा वक्फ अधिनियम में व्यापक बदलाव करता है, जिससे सरकार को वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में हस्तक्षेप करने का अधिक अधिकार मिल जाता है."
उन्होंने कहा, "हमारा मानना है कि सरकार समझदारी से काम लेगी और बिल को वापस ले लेगी. लेकिन अगर वह इसी तरह जारी रही तो मुस्लिम संगठन इस बिल के खिलाफ सभी कानूनी, संवैधानिक, नैतिक और शांतिपूर्ण तरीके अपनाएंगे."
क्या होता है वक्फ
इस्लामी परंपरा में, वक्फ मुसलमानों द्वारा समुदाय के लाभ के लिए किया गया धर्मार्थ या धार्मिक दान है. ऐसी संपत्तियों को बेचा या किसी अन्य उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है और न ही उन्हें विरासत में प्राप्त किया जा सकता है, बल्कि वे हमेशा अल्लाह के मार्ग में समर्पित रहती हैं. वक्फ की गई संपत्ति पर दोबारा दावा नहीं किया जा सकता.
भारत में इनमें से बड़ी संख्या में संपत्तियों का इस्तेमाल मस्जिदों, मदरसों, कब्रिस्तानों और यतीमखानों के लिए किया जाता है, और कई अन्य खाली पड़ी हैं या उन पर अतिक्रमण हो चुका है.
वक्फ संपत्तियां वर्तमान में वक्फ अधिनियम 1995 के अधीन हैं, जो उनके प्रबंधन और प्रशासन के लिए राज्य स्तरीय बोर्डों के गठन को अनिवार्य बनाता है. इन बोर्डों में राज्य सरकार के नामित सदस्य, मुस्लिम विधायक, राज्य बार काउंसिल के सदस्य, इस्लामी विद्वान और वक्फ संपत्तियों के प्रशासक शामिल होते हैं.
सरकार का कहना है कि वक्फ बोर्ड भारत में सबसे बड़े भूस्वामियों में से एक है. देश भर में कम से कम 8,72,351 वक्फ संपत्तियां हैं, जो 9,40,000 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैली हुई हैं, जिनका अनुमानित मूल्य 1.2 लाख करोड़ रुपये है. वक्फ बोर्ड भारत में सशस्त्र बलों और भारतीय रेलवे के बाद सबसे बड़ा भूस्वामी है.
केंद्र सरकार का कहना है कि वक्फ संपत्तियों और वक्फ बोर्डों में व्यापक भ्रष्टाचार है और इन्हें सुधारने के लिए वक्फ संशोधन बिल लाया गया है.
क्या इसमें सुधार की जरूरत है?
मुस्लिम संगठन इस बात पर सहमत हैं कि वक्फ बोर्ड में भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या है, इसके सदस्यों पर कई बार अतिक्रमणकारियों के साथ मिलकर वक्फ की जमीन बेचने का आरोप भी लगा है. लेकिन आलोचकों का यह भी कहना है कि इनमें से बड़ी संख्या में वक्फ संपत्तियों पर व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारी एजेंसियों द्वारा अतिक्रमण किया गया है, जिस पर भी तत्काल ध्यान देने की जरूरत है.
भारत में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति की समीक्षा के लिए कांग्रेस पार्टी की नेतृत्व वाली पिछली सरकार द्वारा गठित जस्टिस सच्चर कमेटी द्वारा 2006 में पेश रिपोर्ट में वक्फ सुधारों की सिफारिश की गई थी. उन्होंने पाया कि बोर्डों द्वारा अर्जित राजस्व, उनके स्वामित्व वाली बड़ी संख्या में संपत्तियों की तुलना में कम था.
कमेटी ने अनुमान लगाया कि बोर्ड में अपनी संपत्तियों के प्रभावी इस्तेमाल के माध्यम से लगभग 120 अरब रुपये की वार्षिक आय उत्पन्न करने की क्षमता है, जबकि वर्तमान वार्षिक आय लगभग दो अरब रुपये है.
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, वर्तमान में वक्फ संपत्तियों पर कम से कम 58,889 अतिक्रमण हैं, जबकि 13,000 से अधिक पर कानूनी कार्यवाही चल रही है. 4,35,000 से अधिक संपत्तियों की स्थिति अज्ञात है.
विवाद क्या है
वक्फ बिल में प्रस्तावित संशोधन में बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम प्रतिनिधि रखने का प्रावधान किया गया है. साथ ही दो महिला सदस्यों को रखने की बात कही गई है. साथ ही इसमें कहा गया है कि वही व्यक्ति दान कर सकता है जिसने पांच सालों तक इस्लाम का पालन किया हो, मतलब वह मुसलमान हो और दान की जा रही संपत्ति का मालिकाना हक रखता हो.
मुसलमानों द्वारा पीढ़ियों से इस्तेमाल की जा रही अनेक संपत्तियों के पास औपचारिक दस्तावेज नहीं हैं, क्योंकि उन्हें दशकों या सदियों पहले मौखिक रूप से या बिना किसी कानूनी रिकॉर्ड के दान कर दिया गया था. दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर मुजीबुर्रहमान ने कहा कि ऐसी प्राचीन सामुदायिक संपत्तियों के स्वामित्व का पता लगाना काफी कठिन है, क्योंकि उनकी प्रबंधन और स्वामित्व प्रणाली सदियों से मुगल प्रणाली से ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली और अब वर्तमान प्रणाली में स्थानांतरित हो गई है.
प्रोफेसर रहमान ने कहा, "आप निजी संपत्तियों का पता कुछ पीढ़ियों पहले तक लगा सकते हैं, लेकिन सामुदायिक संपत्तियों का पता लगाना अधिक कठिन है, क्योंकि समय के साथ उनका प्रबंधन बदल जाता है." उन्होंने कहा सरकार का वर्तमान कदम "मुस्लिम संपत्तियों पर राज्य का नियंत्रण हासिल करने का प्रयास मालूम होता है." (dw.com/hi)