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कौन बनेगा दिल्ली का मुख्यमंत्री, आठ वरिष्ठ पत्रकारों ने बताए ये नाम
11-Feb-2025 2:39 PM
कौन बनेगा दिल्ली का मुख्यमंत्री, आठ वरिष्ठ पत्रकारों ने बताए ये नाम

-अभिनव गोयल

दिल्ली में नए मुख्यमंत्री को चुनने के लिए बीजेपी में कवायद तेज हो गई है। रविवार को बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इस बैठक में ‘मुख्यमंत्री कौन होगा’ इसे लेकर लंबी बातचीत हुई।

वहीं दूसरी तरफ रविवार शाम को ही दिल्ली बीजेपी दफ्तर में नतीजे आने के बाद विधायकों की पहली बैठक हुई।

बैठक में शामिल ग्रेटर कैलाश से नवनिर्वाचित विधायक शिखा राय ने बीबीसी से बातचीत करते हुए कहा, ‘बैठक में पानी, यमुना की सफाई और अन्य मुद्दों को लेकर चर्चा हुई। बैठक में मुख्यमंत्री के नाम को लेकर कोई बात नहीं हुई है।’

‘आप’ छोडक़र बीजेपी की टिकट पर बिजवासन से चुनाव जीतने वाले कैलाश गहलोत से लेकर प्रवेश वर्मा तक इस सवाल से बचते नजर आए कि ‘दिल्ली का मुख्यमंत्री कौन होगा।’

बैठक के बाद प्रवेश वर्मा और मनजिंदर सिंह सिरसा ने अलग-अलग जाकर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से उनके आवास पर भी मुलाकात की।

दिल्ली में बीजेपी करीब 27 सालों के बाद सत्ता में वापसी कर रही है। पार्टी ने कुल 70 में से 48 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की है।

8 फऱवरी को आए नतीजों के बाद अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि इस सरकार का चेहरा कौन होगा? इस एक बड़े सवाल को लेकर बीबीसी हिंदी ने आठ वरिष्ठ पत्रकारों से बात की।

राजनीतिक विश्लेषकों का ऐसा दावा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से लौटने के बाद ही दिल्ली में मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण समारोह होगा।

फिलहाल पीएम मोदी 10 से 12 फऱवरी तक फ्रांस में और उसके बाद 14 फऱवरी तक अमेरिका में रहेंगे।

शरद गुप्ता का मानना है कि कोई भी फैसला लेने से पहले भारतीय जनता पार्टी जातीय गणित से लेकर आस-पास के राज्यों तक का ध्यान रखती है।

उनका कहना है, ‘इस बार भी बीजेपी के फैसले के पीछे एक बड़ा संदेश छिपा होगा। मैसेजिंग उनके लिए बहुत मायने रखती है। मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया, जबकि यादवों का वर्चस्व उत्तर प्रदेश और बिहार में देखा जाता है।’

वे कहते हैं, ‘हिंदी बेल्ट में ओबीसी की सबसे बड़ी जातियों में से एक यादवों को अपनी तरफ करने के लिए मध्य प्रदेश में बड़े चेहरों को दरकिनार कर मोहन यादव को चुना गया।’

गुप्ता का कहना है कि इस साल बिहार में विधानसभा के चुनाव हैं, ऐसे में बीजेपी किसी पूर्वांचली नेता पर दांव लगा सकती है और इसके लिए मनोज तिवारी फिट आदमी हैं।

नई दिल्ली विधानसभा से अरविंद केजरीवाल को करीब 4 हजार वोट से हराने वाले प्रवेश वर्मा को शरद गुप्ता एक मजबूत दावेदार मानते हैं।

इसके अलावा गुप्ता करोल बाग विधानसभा से हारने वाले दुष्यंत गौतम का नाम भी लेते हैं। वे कहते हैं, ‘अगर बीजेपी दलित चेहरे के तौर पर किसी को लाने का विचार करती है, तो दुष्यंत गौतम बाजी मार सकते हैं, भले वे चुनाव नहीं जीत पाए हैं।’

बीजेपी सांसद बांसुरी स्वराज के नाम पर उनका कहना है, ‘वे एक अर्बन चेहरा हैं। उनकी वजह से कहां के वोट मिलेंगे? उनमें कोई ऐसी यूएसपी नहीं है कि मुख्यमंत्री बना दिया जाए।’

वे कहते हैं, ‘अगर बीजेपी को हिंदुत्व की पिच पर खेलना है तो कपिल मिश्रा को भी मौका दिया जा सकता है।’

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री का मानना है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने 2014 के बाद मुख्यमंत्री चुनने की स्थापित परंपरा को तोड़ दिया है और आप उनके फैसले को भांप नहीं सकते हैं।

वे कहते हैं, ‘हरियाणा एक जाट प्रदेश है लेकिन वहां पंजाबी खत्री समाज से आने वाले मनोहर लाल को सीएम बनाया। महाराष्ट्र में मराठा राजनीति होती है, वहां एक ब्राह्मण को चुना। राजस्थान में ठाकुर, गुर्जर की राजनीति के बीच ब्राह्मण को ले आए, ऐसा ही हाल मध्य प्रदेश में किया।’

अत्री कहते हैं, ‘जो नरेंद्र मोदी की राजनीति को नहीं समझते हैं, वो कयासबाज़ी करते हैं। वे किस को मुख्यमंत्री बनाएंगे, इसका फैसला वे चुनाव से पहले ही कर लेते हैं। इस बार भी नया नाम सामने आ सकता है।’

अत्री का मानना है, ‘राहुल बार-बार दलितों, पिछड़ों और संविधान के मुद्दे पर बीजेपी को घेर रहे हैं। दिल्ली भले छोटी है लेकिन यहां से निकली बात पूरे देश में गूंजती है। ऐसे में बीजेपी किसी दलित चेहरे को आगे कर सकती है, जिससे कांग्रेस का नैरेटिव कमजोर होगा।’

प्रवेश वर्मा के नाम को लेकर उनका कहना है, ‘वे सीएम कभी नहीं बनेंगे। मुसलमानों के ख़िलाफ़ उन्होंने टिप्पणियां की हैं, जो उनके ख़िलाफ़ जाएगा। वो महत्वाकांक्षी और बड़बोले हैं। उनके आने से बीजेपी पर परिवारवाद का आरोप लगेगा।’

इसके अलावा वे शालीमार विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी की नवनिर्वाचित विधायक रेखा गुप्ता और जनकपुरी से चुनकर आए आशीष सूद को भी दावेदार मानते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल ओपिनियन एडिटर वंदिता मिश्रा ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ‘मुख्यमंत्री की रेस में जिन नामों की चर्चा है, उनमें से किसी के नाम पर मुहर नहीं लगेगी। ऐसे उम्मीद है कि कोई नया नाम सामने आ सकता है।’

इससे पहली बीबीसी हिंदी के लेंस प्रोग्राम में बात करते हुए उन्होंने कहा था कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विकल्प ख़त्म नहीं हुए हैं।

उनका कहना था, ‘अब आम आदमी पार्टी को यह सोचना होगा कि जो उन्होंने कुछ चीज़ें की हैं, वे सही थीं और यही वजह है कि उनके पास अभी भी 40 प्रतिशत से ऊपर वोट शेयर है।’

‘दिल्ली पर सबकी नजऱ होती है और आप जो भी करेंगे, उसकी देशभर में चर्चा होगी। इसलिए उन्हें यह तय करना होगा कि बिना कैमरे के अपनी ख़ामियों को सुधारने के बारे में सोचें।’

बीजेपी, संघ, अटल बिहारी वाजपेयी और योगी आदित्यनाथ पर वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी किताबें लिख चुके हैं।

बीबीसी से बातचीत में त्रिवेदी कहते हैं, ‘बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व, राजनीति और पार्टी में एक बड़ा पीढ़ीगत यानी जेनरेशनल बदलाव कर रहा है। यही वजह है कि पार्टी और संगठन के नेताओं की उम्र घटकर 50 के पास आ गई है। पार्टी अब नए और यंग चेहरों को पसंद कर रही है।’

वे कहते हैं, ‘महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश से लेकर उत्तराखंड के सीएम जनरेशनल चेंज को दिखा रहे हैं। उनकी उम्र कम है।’

त्रिवेदी का मानना है, ‘वहीं कांग्रेस इसके उलट चल रही है। जब राहुल गांधी पार्टी अध्यक्ष थे। उन्होंने राजस्थान में सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की जगह कमलनाथ को चुना। अभी पार्टी अध्यक्ष खडग़े जी की उम्र 82 साल है।’

वे कहते हैं, ‘जब बीजेपी नए लोगों को मुख्यमंत्री बनाती है तो आलोचक आम तौर पर ये कहते हैं कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह किसी भी ऐसे व्यक्ति को नहीं चाहते, जो उन्हें चुनौती दे। लेकिन बात ये नहीं है। फिलहाल कोई भी ऐसा नहीं है जो उन्हें चुनौती दे पाए।’

त्रिवेदी का मानना है, ‘बीजेपी में एक मुख्यमंत्री के साथ दो उप मुख्यमंत्री बनाने की परंपरा नहीं थी, लेकिन अब सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखकर ऐसा किया जा रहा है।’

उत्तर प्रदेश में केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक को, छत्तीसगढ़ में अरुण साव और विजय शर्मा को और राजस्थान में दीया कुमारी को, मध्य प्रदेश में राजेंद्र शुक्ला और जगदीश देवड़ा को उप मुख्यमंत्री बनाया गया।

प्रवेश वर्मा के नाम पर विजय कहते हैं, ‘वे दिल्ली में बदलाव का ट्रिगर प्वाइंट हैं। 15 दिन पहले तक लीडरशिप के नाम पर कोई नाम नहीं था, लेकिन प्रवेश वर्मा ने पूरा चुनाव पलट दिया।’

वे कहते हैं, ‘प्रवेश वर्मा को अमित शाह ने तैयार किया है। नतीजों के बाद दोनों की मुलाकात भी हुई है। लोग कह रहे हैं कि ज्यादा चर्चा में आने से रेस में पिछड़ सकते हैं, लेकिन महाराष्ट्र में फडणवीस के नाम को लेकर चर्चा थी, बाद में उन्हें ही बनाया गया।’

दो दशकों से पत्रकारिता कर रहीं विनिता यादव का कहना है, ‘बीजेपी एक ऐसे चेहरे को मुख्यमंत्री बनाएगी, जो ज़्यादा बगावती और वोकल ना हो। पिछले कुछ समय से पार्टी और संघ के अंदर मनमुटाव की खबरें आई हैं, लेकिन अब दोनों के बीच संबंध ठीक हो रहे हैं। ऐसे में संगठन की राय ली जाएगी।’

वे कहती हैं, ‘नंबर एक पर प्रवेश वर्मा का नाम लिया जा रहा है। वे नतीजों के बाद अमित शाह से भी मिले, लेकिन हमने दूसरे राज्यों में देखा है कि जो लोग मोदी-शाह के करीबी थे। उन्हें सीएम नहीं बनाया गया। ऐसे में प्रवेश वर्मा को सीएम की जगह अच्छा मंत्रालय दिया जा सकता है।’

विनिता कहती हैं, ‘सतीश उपाध्याय बीजेपी में मोदी-शाह की लॉबी के नेता नहीं रहे हैं। हालांकि कुछ सालों में वे खुद को यस मैन की भूमिका में ले आए हैं। बावजूद इसके उनकी उम्मीद कम लगती है।’

वे कहती हैं, ‘दिल्ली में बीजेपी की राजनीति को विजेंद्र गुप्ता ने जि़ंदा रखने का काम किया है। उन्होंने हार नहीं मानी और केजरीवाल सरकार के नाक में दम करके रखा। वे बहुत पुराने नेता हैं और बहुत कुछ जान रहे हैं, जो उनके ख़िलाफ़ जाता है।’

इसके अलावा यादव दुष्यंत गौतम का नाम भी लेती हैं।

उनका कहना है, ‘वे उत्तराखंड में चुनाव प्रभारी थे। उनके समय में पार्टी ने जीत दर्ज की। वे सारी परीक्षाएं पास कर चुके हैं, जहां से मोदी-शाह के पेपर बनकर निकलते हैं।’

वे कहती हैं, ‘भले चुनाव हार गए हैं लेकिन दुष्यंत गौतम पीएम मोदी के बहुत खास हैं। वे बड़ी जिम्मेदारियां निभा चुके हैं। आखिर में एक नाम मोहन सिंह बिष्ठ का भी है।’

पिछले 41 वर्षों से पत्रकारिता कर रहे विनीत वाही का कहना है कि जो नाम मीडिया में उछाले जा रहे हैं, उनके चांस कम दिखाई देते हैं।

वे कहते हैं, ‘सोशल मीडिया इतना हावी है कि फैक्ट, कैजुअल्टी बन रहे हैं। बीजेपी में सब कुछ पीएम नरेंद्र मोदी की तरफ़ से तय हो रहा है। ऐसे में क्या होगा, किसी को नहीं पता है।’

प्रवेश वर्मा के नाम पर वाही कहते हैं, ‘वे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं। राजनीतिक परिवार से होने के चलते उन्हें फायदा मिला है। सांसद रहते हुए भी उन्होंने अच्छा काम किया है, लेकिन ऐसी ही स्थिति हरीश खुराना के साथ भी है।’

हरीश खुराना के पिता मदन लाल खुराना ने साल 1993 के विधानसभा चुनावों में मोती नगर से जीत हासिल की थी। इस जीत के बाद वे दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे।

वाही कहते हैं, ‘हरीशा खुराना, प्रवेश वर्मा से भी पहले से सक्रिय हैं। बस उनका नाम उस तरह से नहीं उछाला जा रहा है। ऐसे में बीजेपी में क्या हो सकता है, इसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता।’

इसके अलावा वे मनोज तिवारी, हर्ष मल्होत्रा और बांसुरी स्वराज को भी मुख्यमंत्री का दावेदार मानते हैं।

उनका मानना है, ‘दिल्ली में करीब 25 प्रतिशत पूर्वांचली वोटर हैं, ऐसे में मनोज तिवारी को मौका दिया जा सकता है। हर्ष मल्होत्रा संगठन के आदमी हैं। बांसुरी स्वराज को हाल ही में पार्टी में लाया गया। लाते ही उन्हें सांसद का चुनाव लड़ाया गया। ऐसे कयास लगाए गए कि पार्टी उन्हें आगे लेकर जाना चाहती है।’

वरिष्ठ पत्रकार और दिल्ली में करीब तीन दशकों से पत्रकारिता कर रहे रामेश्वर दयाल का कहना है, बीजेपी कैडर आधारित पार्टी है। आलाकमान जो तय करता है, उसे मान लिया जाता है।’

वे कहते हैं, ‘दिल्ली में मुख्यमंत्री के अलावा छह मंत्री ही बनाए जा सकते हैं। ऐसे में कुछ विधायकों को दिल्ली खादी बोर्ड और दिल्ली पर्यटन विकास निगम जैसे दर्जन भर से ज़्यादा बोर्ड और कॉर्पोरेशन में भेजा जा सकता है।’

मुख्यमंत्री की रेस में वाही- प्रवेश वर्मा, मोहन सिंह बिष्ठ, विजेंद्र गुप्ता, आशीष सूद, सतीश उपाध्याय, रेखा गुप्ता और शिखा राय के नाम की संभावना जताते हैं।

वे कहते हैं, ‘प्रवेश वर्मा का काम अच्छा रहा है। मोहन सिंह बिष्ठ छठी बार विधायक बने हैं। उन्हें मुख्यमंत्री नहीं तो स्पीकर का पद दिया जा सकता है। विजेंद्र गुप्ता बहुत आक्रामक रहे हैं। वे दो बार नेता प्रतिपक्ष रहे हैं। केजरीवाल सरकार को परेशानी में डालते रहे हैं। आरएसएस से उनकी अच्छी बनती है।’

वाही कहते हैं, ‘आशीष सूद बीजेपी का पंजाबी चेहरा हैं। जनकपुरी से विधायक चुने गए सूद पार्षद भी रहे हैं। वे दिल्ली बीजेपी के महासचिव के साथ-साथ दिल्ली यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष भी रहे हैं। खास बात ये है कि वे पार्टी के शीर्ष नेताओं के करीबी भी हैं।’

वरिष्ठ पत्रकार अशोक वानखेड़े का कहना है, ‘बीजेपी का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि ऐसा आदमी मुख्यमंत्री बनेगा, जिसकी चर्चा सबसे कम है।’

वे कहते हैं, ‘अब पुराने वाली बीजेपी नहीं रही है। अब पार्टी को किसी वरिष्ठ आदमी और अनुभव की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि सरकार तो 'दिल्ली' से ही चलनी है।’

प्रवेश वर्मा के नाम पर वानखेड़े कहते हैं, ‘एक समय राजनारायण ने इंदिरा गांधी को हराया था। ऐसे में तो उन्हें प्रधानमंत्री होना चाहिए था। प्रवेश वर्मा ने केजरीवाल को हराया है, इसका मतलब ये नहीं है कि बीजेपी उन्हें मुख्यमंत्री बना देगी।’

वे कहते हैं, "बिहार चुनाव नजदीक है। किसी ऐसे व्यक्ति को भी सत्ता की चाबी दी जा सकती है, जिसका असर वहां पड़े।’ (bbc.com/hindi)

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