अजन्मे बच्चे पर कब तक मां का हक रहे, और कब उस बच्चे का हक मां से अधिक अपने खुद पर रहे? यह सवाल दुनिया के अलग-अलग देशों को अलग-अलग तरीके से परेशान करता है। सबसे विकसित और आधुनिक समझे जाने वाले देश भी इस मुद्दे पर सबसे दकियानूसी बन जाते हैं। दूसरी तरफ हिन्दुस्तान जैसा धर्मालु और आस्थावान देश गर्भपात के मामले में दुनिया के सबसे उदार देशों में से एक है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट कल एक अजन्मे बच्चे के पक्ष में खड़ा हो गया, और तीन जजों की बेंच ने यह साफ कर दिया कि साढ़े सात महीने का हो चुका अजन्मा बच्चा अब पैदा होगा ही, उसका गर्भपात नहीं किया जा सकेगा, क्योंकि उसके अपने अधिकार हैं। यह फैसला भारत की सामाजिक हकीकत से जोडक़र देखने पर कई मुद्दों पर सोचने मजबूर करता है।
‘छत्तीसगढ़’ अखबार के संपादक सुनील कुमार का यह वीडिटोरियल देखें।