विचार / लेख

cartoonist kaptan...
-कनुप्रिया
राजस्थान में स्कूली बच्चों पर छत गिर गई, कुछ की मौत हो गई, कई घायल हो गए। सरकार न्याय की माँग कर रहे परिजनों पर लाठी बरसा रही है, पुलिस सरकारी तानाशाही और अत्याचार का औजार भर बनकर रह गई है, जनता को छुटपुट केसों में कभी-कभार राहत पहुँचाने के सिवा उससे अब कोई लेना-देना नहीं रहा। कोई पुलिसकर्मी अच्छा है तो वह व्यक्तिगत तौर पर कुछ बेहतर राहत पहुँचा देगा, और उसकी रील हम देख लेंगे।
मौत से भी बड़ी त्रासदी होती है न्याय का न मिलना और उससे भी बड़ी त्रासदी आम लोगों की संवेदनहीनता, जो अब नवसामान्य हो चुकी है। ‘गरीबों की जिंदगी में जीना-मरना चलता रहता है, कई-कई बच्चे होते हैं कुछ एक निपट भी गए तो क्या फर्क पड़ता है, अरे इन लोगों को आदत हो जाती है, अगले ही दिन काम पर चल पड़ते हैं, अच्छा हुआ एक खाने वाला कम हुआ, मरने का दुख है मगर सरकार आखिर क्या-क्या देखेगी, इसमे मोदी जी क्या करेंगे, आप लोगों को सरकार को कोसने का बहाना चाहिए’, आदि-आदि।
एक तरह जख्मों पर नमक हम भी छिडक़ ही देते हैं ये कहकर कि शिक्षा के ऊपर मंदिर को चुना, लो भुगत लो अब। मगर बात तो यही है कि शिक्षा, रोजग़ार, चिकित्सा के ऊपर मंदिर को मध्यम वर्ग भी चुन रहा है, उच्च मध्यम वर्ग भी, सारा ऊपरी प्रोफेशनल तबका चुन रहा है क्योंकि ये सब हासिल करने के लिये उसके पास पैसा है, वो चुन रहा है और भुगत नहीं रहा। सारा नैरेटिव यही तबका बनाता है, इसका मीडिया बनाता है, मगर भुगतता वो गरीब है जिसे समझ कम है और इस नैरेटिव के झाँसे में आ जाता है। और गरीब तबके के लिये क्या तर्क है कि वो आलसी है इसलिये गऱीब है, उसे मुफ्त का चाहिए सब, टैक्स हम दें, सुविधा इन्हें चाहिए।
मजे की बात है कि फिल्मों के भावुक दृश्यों पर जार-जार रोने वाले इस दिल के भले उच्च मध्यम वर्ग को अपनी इस क्रूर संवेदनहीनता का पता तक नहीं है, इतनी मासूमियत ही शायद अवसाद से बचा ले जाती है। यह देश इस दुनिया में तीसरी अर्थव्यवस्था बन गया है, कैसे और क्यों, जीडीपी के आँकड़ों का खेल क्या है आखिर ये तो इकोनॉमिस्ट ही बता सकते हैं, मगर जिस देश के अधिसंख्य बच्चे स्कूली शिक्षा की न्यूनतम सुविधा से बाहर किये जा रहे हों, उन पर स्कूल की छतें गिर रही हों, वो जिंदगी के सपनो से बेदखल किये जा रहे हों, उस देश को विश्व बैंक दुनिया की पहली अर्थव्यवस्था भी घोषित कर दे तब भी ये अब अधिसंख्य जनता के लिये रहने लायक नहीं है, जो मंदिर मंदिर गाते हैं वो विदेशों में बस रहे हैं जो मूलभूत व्यवस्थाओं से ही जद्दोजहद कर रहे हैं वो बिना बाहर गए नागरिकता से बाहर किये जा रहे हैं।
तिस पर तुर्रा ये कि सकारात्मक सोचो।