विचार / लेख

केरल ने की थी तुर्की की करोड़ों की मदद, थरूर ने उठाया मुद्दा, क्या है संदेश
27-May-2025 10:07 PM
केरल ने की थी तुर्की की करोड़ों की मदद, थरूर ने उठाया मुद्दा, क्या है संदेश

-इमरान कुरैशी

कांग्रेस सांसद शशि थरूर भले ही इस वक्त ऑपरेशन सिंदूर के बाद बने सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों में से एक की अगुवाई कर रहे हों लेकिन वे केरल में सियासी पारा गिरने नहीं दे रहे। केरल की वामपंथी सरकार पर उनका ताज़ा हमला तुर्की को लेकर है।

दरअसल साल 2023 में केरल ने तुर्की को भूकंप के दौरान 10 करोड़ रुपये की मानवीय मदद दी थी। थरूर ने इसी मदद पर सवाल उठाया है।

शशि थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, ‘मुझे उम्मीद है कि दो साल बाद तुर्की के व्यवहार को देखते हुए केरल सरकार अपनी अनुचित उदारता पर विचार करेगी। यह तो बताने की ज़रूरत ही नहीं है कि वायनाड के लोग उन दस करोड़ रुपयों का कहीं बेहतर इस्तेमाल कर सकते थे।’

संजय झा के नेतृत्व वाले एक अन्य प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा और सीपीएम के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास ने तुरंत इसका जवाब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दिया।

उन्होंने लिखा, ‘शशि थरूर के लिए मेरे मन में सम्मान है, लेकिन यह टिप्पणी एकतरफा याददाश्त का लक्षण है। यह हास्यास्पद और हैरान करने वाला है कि उन्होंने केरल को नीचा दिखाने की कोशिश की। वह अच्छी तरह जानते हैं कि मोदी सरकार ने खुद तुर्की की मदद के लिए ‘ऑपरेशन दोस्त’ शुरू किया था।’

सवाल उठ रहे हैं कि आखिर शशि थरूर करना क्या चाह रहे हैं? क्या बीजेपी से उनकी नज़दीकियां बढ़ रही हैं? हमने इन्हीं सवालों का जवाब जानने के लिए दो विश्लेषकों से बात की।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एमजी राधाकृष्णन बीबीसी हिंदी को बताया, ‘शशि थरूर के लिए बीजेपी में शामिल होना मुश्किल होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि वो राजनीतिक रूप से बहुसंख्यकवादी हिंदू विचारधारा का विरोध करते हैं। वो कमलनाथ की तरह ‘सॉफ्ट हिंदू’ व्यक्ति हैं। वो हमास के आलोचक हैं और उनका इसराइल की ओर झुकाव है। थरूर आपातकाल के भी कट्टर आलोचक रहे हैं।’

राजनीतिक विश्लेषक और पूर्व कुलपति प्रोफ़ेसर जे प्रभाष इस मामले को अलग नजरिए से देखते हैं।

उन्होंने बीबीसी को बताया, ‘थरूर के मन में निश्चित रूप से कुछ चल रहा है। वह हिंदू वोट को साधने की कोशिश कर रहे हैं। यह हो सकता है कि वो अपनी पार्टी के नेतृत्व को कोई संदेश देना चाह रहे हों। यह तो सबको पता है कि वह केरल के मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं।’

थरूर की मंशा

शशि थरूर ने अंग्रेजी के 43 शब्दों में केरल में कम्युनिस्टों पर निशाना साधा और कांग्रेस नेतृत्व को संदेश दिया कि तुर्की को दिए गए दस करोड़ रुपये वायनाड में आई बाढ़ के पीडि़तों के लिए इस्तेमाल हो सकते थे।

वायनाड से प्रियंका गांधी सांसद हैं।

इस पोस्ट के ज़रिए उन्होंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान तुर्की के पाकिस्तान के साथ खड़े रहने की ओर भी ध्यान खींचा।

इस साल फरवरी में, थरूर अपनी ही पार्टी से नाराजग़ी का सामना कर रहे थे। केरल में वामपंथी सरकार और कांग्रेस दोनों आमने-सामने हैं लेकिन थरूर निवेश आकर्षित करने की केरल सरकार की कोशिशों में मदद करने को तैयार हो गए थे।

जाहिर है ये बात उनकी पार्टी को नागवार गुजऱी थी।

इसी महीने बीजेपी ने उन्हें ऑपरेशन सिंदूर के बाद बने प्रतिनिधिमंडल की अध्यक्षता के लिए चुना। थरूर ने पेशकश स्वीकार की लेकिन अपनी पार्टी के नेतृत्व को इस बारे में सूचना नहीं दी।

हाल के महीनों में उनके बयान और काम केरल के राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बने हुए हैं।

प्रधानमंत्री की ओर से डेलिगेशन की अगुवाई करने के उनके ताज़ा फ़ैसले के बाद कई कांग्रेस नेता सोच रहे हैं कि न जाने थरूर कब पार्टी छोड़ दें। लेकिन अब भी कांग्रेस में ऐसे बहुत से लोग हैं जो मानते हैं कि पूरे देश में युवाओं के बीच में उनकी बड़ी लोकप्रियता है।

लेकिन कई वरिष्ठ कांग्रेसी उनके रवैये की खुलेआम आलोचना कर रहे हैं।

राज्य सभा के पूर्व डिप्टी चेयरमैन पीजे कूरियन ने पिछले सप्ताह साफ़ कहा, ‘अगर कोई सोचता है कि शशि थरूर का झुकाव बीजेपी की ओर बढ़ रहा है, तो इसबात पर शक नहीं करना चाहिए। उनका पक्षपाती रवैया बहुत साफ़ है।’ आम तौर पर शांत रहने वाले केरल के वित्त मंत्री केएन बालागोपाल ने भी थरूर की आलोचना की।

एक बयान में उन्होंने कहा, ‘यह बेवजह की उदारता नहीं है। एक बड़ी आपदा के समय, हमें एक मानवीय नज़रिया अपनाना था। तुर्की को दी जाने वाली सहायता भारतीय विदेश मंत्रालय के ज़रिए दी गई थी। साल 2023 की घटना को 2025 के सीमा संकट से जोडऩा ग़लत है। साल 2023 में राज्य ने मानवीय आधार पर तुर्की का समर्थन किया था। दो साल बाद, तुर्की को दी गई मदद की गलत व्याख्या करना सही नज़रिया नहीं है।’

सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास की तरह विश्लेषक एमजी राधाकृष्णन भी मानते हैं कि थरूर को मोदी सरकार के ऑपरेशन दोस्त का भी जि़क्र करना चाहिए था।

बीजेपी की ओर झुकाव?

राधाकृष्णन उन पहले लोगों में से एक थे जिनसे थरूर ने राजनीति में कूदने के बारे में बातचीत की थी। इसके बाद थरूर ने तिरुवनंतपुरम लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था।

राधाकृष्णन कहते हैं, ‘थरूर ने बीजेपी की विचारधारा के खिलाफ बहुत ही सुसंगत रुख़ अपनाया है। वह बीजेपी की मुस्लिम विरोधी, अल्पसंख्यक विरोधी राजनीति के बहुत स्पष्ट विरोधी हैं। उन्होंने ‘मैं हिंदू क्यों हूं’ नामक पुस्तक लिखी है। उन्होंने हिंदुत्व का नाम नहीं लिया। वह स्वघोषित, प्राउड हिंदू हैं। दूसरी ओर वह कोई आम राजनेता भी नहीं हैं।’

राधाकृष्णन ने कहा, ‘इस तरह के व्यक्ति के लिए राजनीतिक रूप से भाजपा में शामिल होना बेहद मुश्किल होगा। मैं कॉमन सेंस की बात कर रहा हूँ। लेकिन आप जानते हैं कि राजनीति और सत्ता में कुछ ऐसा खिंचाव होता है कि वह अलग-अलग स्वभाव के लोगों को भी बदलने के लिए मजबूर कर सकता है। किसने उम्मीद की थी कि जॉर्ज फर्नांडिस बीजेपी के साथ गठबंधन करेंगे?’

उन्होंने कहा, ‘थरूर विचारधारा पर व्यावहारिकता को तरजीह देते दिख रहे हैं। उनका मानना है कि व्यावहारिकता विचारधारा से ज़्यादा महत्वपूर्ण है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो अवसरवादी हैं।’

हालांकि, प्रोफेसर प्रभाष का मानना है, ‘अगर वो बीजेपी में शामिल हो जाते हैं तो इसमें कोई ताज्जुब की बात नहीं है, क्योंकि पिछले चुनाव में वह बहुत कम वोटों से जीते थे। इसलिए वह बीजेपी की ओर झुकने की कोशिश कर रहे हैं।’

लेकिन प्रोफेसर प्रभाष को ये भी लगता है कि तुर्की की दी गई मदद का मुद्दा उठाकर थरूर ने अपनी सियासी हैसियत को छोटा किया है। (bbc.com/hindi)

(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)


अन्य पोस्ट