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क्या डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ को हथियार बनाकर चीन पर ‘सीधा हमला’ किया है?
04-Apr-2025 4:05 PM
क्या डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ को हथियार  बनाकर चीन पर ‘सीधा हमला’ किया है?

-एनाबेल लियंग

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को अमेरिका के हर ट्रेडिंग पार्टनर पर टैरिफ लगाने का एलान किया, इस दौरान उन्होंने चीन के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया।

घोषणा के बाद अपने भाषण में उन्होंने कहा, ‘चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मैं बहुत इज्जत करता हूं। लेकिन वो अमेरिका का बहुत ज़्यादा फ़ायदा उठा रहे हैं।’

ट्रंप ने एक चार्ट दिखाते हुए कहा कि जिन देशों ने अमेरिकी वस्तुओं के बिजनेस में मुश्किलें खड़ी की हैं वो इस तरह से हैं, ‘अगर आप देखें चीन 67 फीसदी के साथ पहले नंबर पर है। यह अमेरिका पर लगाया गया टैरिफ है, जिसमें मुद्रा हेरफेर और व्यापार से संबंधी बाधाएं शामिल हैं।’

उन्होंने कहा, ‘हम रेसिप्रोकल टैरिफ में छूट दे रहे हैं और 34 फीसदी टैरिफ ही लगा रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहूं तो हमारे ऊपर चार्ज लगा रहे हैं, हम उन पर चार्ज लगा रहे हैं। हम तो कम चार्ज लगा रहे हैं। तो फिर कोई निराश कैसे हो सकता है?’

लेकिन चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने तुरंत इस कदम को 'एकतरफा धमकी' करार दिया। चीन ने कहा कि वो अपने हितों की रक्षा के लिए कदम उठाएगा।

चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने ट्रंप पर कारोबार को एक सामान्य ‘टिट फॉर टैट’ यानी ‘जैसे को तैसा’ के खेल में बदलने का आरोप लगाया।

हालांकि एक्सपर्ट्स का मानना है चीन के पास निराश होने की काफी वजहें हैं।

उनमें से एक ये एलान है जिसमें चीन की वस्तुओं पर पहले से लग रहे टैरिफ के अलावा 20 फीसदी अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया है।

जब ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में चीन पर टैरिफ लगाए थे तो चीन ने बचने के लिए एक रास्ता निकाला था। लेकिन कंबोडिया, वियतनाम और लाओस सहित अन्य दक्षिण पूर्व एशियाई देशों पर भारी टैरिफ लगाकर ट्रंप ने उस रास्ते को बंद कर दिया है।

जिन 10 देशों पर सबसे ज्यादा टैरिफ लगाए गए हैं उनमें पांच एशियाई देशों के नाम शुमार हैं।

ट्रंप ने अमेरिका में आयात पर टैरिफ़ की एक लंबी लिस्ट की घोषणा की है और अमेरिकी समयानुसार, 5 अप्रैल से ज़्यादातर देशों पर 10 प्रतिशत का बेसलाइन टैरिफ़ भी लागू होगा, जबकि 9 अप्रैल से अमेरिका के कुछ सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों पर ऊंचा आयात शुल्क लागू होगा।

चीन के लिए टैरिफ में हो रही है बढ़ोतरी

जनवरी में व्हाइट हाउस में लौटने के बाद से ट्रंप ने चीन से आयात पर नए टैरिफ लगाए थे। अब इन्हें 20 फीसदी और बढ़ा दिया गया है।

एक हफ्ते से भी कम समय में ये टैरिफ बढक़र 54 फीसदी हो जाएंगे। इसके अलावा कार, स्टील और एल्युमीनियम जैसे उत्पादों पर टैरिफ कम होगा।

चीन को ट्रंप की वजह से बिजनेस से जुड़ी अन्य मुश्किलों का सामना भी करना पड़ रहा है।

इससे पहले बुधवार को राष्ट्रपति ने चीन से आने वाले कम मूल्य के पार्सल के प्रावधान को समाप्त करने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर साइन किए।

इस प्रावधान से चीन के शीन और टेमू जैसे ई कॉमर्स प्लेटफॉर्म अमेरिका में 800 डॉलर की कीमत के पैकेज बिना किसी टैक्स के भेज पाते थे।

कस्टम डेटा के मुताबिक इस प्रावधान के तहत बीते वित्त वर्ष में 1.4 अरब डॉलर के पैकेज चीन से अमेरिका पहुंचे हैं।

प्रावधान हटने की वजह से चीन की कुछ कंपनियों को कस्टमर्स से अतिरिक्त चार्ज लेना होगा। इस वजह से अमेरिका में उनकी वस्तुओं की मांग कम हो सकती है।

हीनरीच फाउंडेशन से जुड़ीं डेबरा एम्स कहती हैं कि अगर देखा जाए तो इस वक्त चीन की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं।

उन्होंने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि नए टैरिफ चीन पर ही लगाए गए हैं। लेकिन जब चीन पर अमेरिका एक के बाद एक टैरिफ लगाता है तो फिर नंबर्स चौंकाने वाले होते हैं।’

‘चीन को पलटवार करना होगा। वो चुपचाप बैठकर ये सब होते हुए नहीं देख सकते हैं।’

सप्लाई चेन पर पड़ेगा असर

कंबोडिया, वियतनाम और लाओस पर ट्रंप ने 46 से 49 फीसदी तक टैरिफ लगाए हैं।

इन्वेसटमेंट फर्म एसपीआई एससेट से जुड़े स्टीफन इन्स ने कहा, ‘चीन की विस्तार की गई सप्लाई चेन पर हमला किया गया है।’

‘वियतनाम और अन्य देशों को अमेरिका की बिजनेस नीति से नुकसान पहुंच सकती है। ये कोई बदला नहीं है। लेकिन टैरिफ के जरिए रणनीतिक नियंत्रण है।’

कंबोडिया और लाओस इस क्षेत्र के सबसे गरीब देश हैं और वो चीन की सप्लाई चेन पर निर्भर करते हैं। हाई टैरिफ की वजह से इन देशों पर बुरा असर पड़ सकता है।

वियतनाम चीन का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। ट्रंप के पहले कार्यकाल के दौरान जब चीन और अमेरिका के बीच तनाव था तब वियतनाम को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा था।

ट्रंप ने साल 2018 में चीन पर टैरिफ लगाए। इसकी वजह से बिजनेस करने वालों ने इस बात पर विचार किया कि प्रोडक्ट कहां बनाए जाएं और उन्होंने इसके लिए वियतनाम को चुना।

चूंकि चीन की कंपनियां वियतनाम चली गईं, इसलिए वियतनाम से अमेरिका में किए जाने वाले आयात में बढ़ोतरी दर्ज हुई।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार के एक्सपर्ट और अमेरिकी सरकार के लिए काम कर चुके स्टीफन ओल्सन ने बीबीसी को बताया, ‘चीन के साथ जुड़े होने की वजह से वियतनाम को निशाना बनाया गया है।’

नए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका वियतनाम का सबसे बड़ा निर्यात बाजार बना हुआ है। वहीं चीन वियतनाम को सबसे ज़्यादा सामान सप्लाई करने वाला देश बन गया है।

इतना ही नहीं चीन वियतनाम के कुल आयात में एक तिहाई से अधिक का योगदान देता है।

वियतनाम में पिछले साल जो नए निवेश हुए उनमें से हर तीन में एक के पीछे चीन की कंपनी ही थी।

इनसीड बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर पुशन दत्त का कहना है कि दक्षिण पूर्व एशिया पर लगाए गए नए टैरिफ चीन को रोकने के लिए हैं।

उन्होंने कहा, ‘चीन में डिमांड एक दिक्कत बन गई है। ट्रंप के पिछले कार्यकाल के दौरान चीन की कंपनियों ने अपने प्लांट चीन से दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में शिफ़्ट किए। लेकिन अब ये दरवाजा भी बंद हो गया है।’

लेकिन ट्रंप के टैरिफ का असर अमेरिका की उन कंपनियों पर भी पड़ेगा जो अपने प्रोडक्ट दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में बनाते हैं।

उदाहरण के लिए अमेरिका की बड़ी कंपनियों एपल, इंटेल और नाइकी पर भी इसका असर पड़ेगा क्योंकि इनकी अधिकतर फैक्ट्री वियतनाम में ही हैं।

वियतनाम में अमेरिकन चैंबर ऑफ कॉमर्स के हाल ही में किए गए सर्वे में पाया गया कि वहां अधिकांश अमेरिकी निर्माताओं को आशंका है कि अगर टैरिफ लगाया गया तो वे अपने कर्मचारियों की छंटनी कर देंगे।

आगे का मुश्किल रास्ता

सवाल ये है कि चीन के पास टैरिफ का जवाब देने का क्या रास्ता है क्योंकि इनके लागू होने में कुछ ही दिन का वक्त है।

ओल्सन कहते हैं कि चीन टैरिफ पर मजबूती से पलटवार कर सकता है और वो ऐसे कदम उठा सकता है जिससे अमेरिकी कंपनियों के लिए चीन में काम करना मुश्किल हो जाए।

वहीं प्रोफेसर दत्त मानते हैं कि चीन की अर्थव्यवस्था पहले ही चुनौतियों का सामना कर रही है और उसके सामने आगे का रास्ता बेहद मुश्किल है।

उन्होंने कहा, ‘अन्य क्षेत्रों में निर्यात करने से वहां औद्योगिकीकरण ख़त्म होने का खतरा है। वहां के राजनेता इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। इसका मतलब है कि चीन को अंत में घरेलू मांग को बढ़ावा देना होगा।’

ये टैरिफ चीन को उन अन्य एशियाई देशों के साथ गठजोड़ बनाने के लिए भी प्रेरित कर सकते हैं, जो टैरिफ का सामना कर रहे हैं।

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व सदस्य वांग वेयाओ कहते हैं कि इस मुश्किल वक्त में एशियाई देशों को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है।

वो कहते हैं, ‘अंत में अमेरिका का प्रभाव खत्म हो जाएगा और वो अकेला महसूस करेगा।’

 

ऐसी कुछ चर्चा भी चल रही हैं। चीन, दक्षिण कोरिया और जापान ने पांच साल में पहली बार अर्थव्यवस्था से जुड़ी बात की हैं।

वो फ्री ट्रेड एग्रीमेंट की बात को लेकर तेजी दिखा रहे हैं। हालांकि इसका प्रस्ताव 10 साल पहले रखा गया था। नए टैरिफ से उन्हें ऐसा करने के लिए अतिरिक्त प्रोत्साहन मिल सकता है।

लेकिन कुछ समय के लिए चीन को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है जब तक अमेरिका के साथ बातचीत आगे नहीं बढ़ेगी।

ओल्सन कहते हैं, ‘अंत में चीन और अमेरिका बातचीत की ओर ही आगे बढ़ेंगे और इस तरह का रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे जिसमें समझौता हो पाए। ऐसा जल्द हो ये मुमकिन नहीं है। मुझे लगता है कि हालात सुधरने से पहले और ज्यादा खराब होंगे।’ ((bbc.com/hindi)


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