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जो रूट: इंग्लैंड के कप्तान का 100वाँ टेस्ट और इंडिया कनेक्शन
31-Jan-2021 1:34 PM
जो रूट: इंग्लैंड के कप्तान का 100वाँ टेस्ट और इंडिया कनेक्शन

joe root twitter


-पराग फाटक

इंग्लैंड के कप्तान जो रूट के क्रिकेट करियर में भारत का हमेशा से विशेष योगदान रहा है. चौंकिए नहीं, जो रूट के अब तक के क्रिकेट करियर पर नज़र डालते ही ये बात स्पष्ट हो जाएगी.

किसी भी क्रिकेट टीम के लिए विदेशी दौरा हमेशा मुश्किल भरा होता है, ख़ास कर टेस्ट सिरीज़ में यह मुश्किल ज़्यादा बढ़ जाती है. भारतीय उपमहाद्वीप की पिचों पर दूसरी टीमों के लिए जीत हासिल करना बेहद मुश्किल भी होता है.

बीते एक दशक के दौरान भारतीय टीम का अपनी पिचों पर शानदार प्रदर्शन रहा है. भारतीय बल्लेबाज़ों और स्पिनरों के अलावा विदेशी टीमों की मुश्किलों को यहाँ के स्पिनरों को मदद देने वाली पिचें, गर्म और नमी भरी स्थितियां भी बढ़ाती रही हैं. इसके अलावा घरेलू दर्शकों का जोरदार समर्थन भी विदेशी टीम के लिए चिंता का सबब रहा है.

ये दिसंबर, 2012 की बात है. तब एलिस्टर कुक की कप्तानी में इंग्लैंड की टीम भारत का दौरा करने वाली थी. टीम में भारतीय पिचों और परिस्थितियों को देखते हुए कुछ युवा चेहरों को भी मौका दिया गया था.

सिरीज़ का पहला मैच अहमदाबाद में खेला गया था और इंग्लैंड की टीम ये मुक़ाबला नौ विकेट से हार गई थी. दूसरी पारी में एलिस्टर कुक की 176 रनों की पारी के चलते ही इंग्लैंड की टीम पारी की हार बचा सकी थी. इस हार का बदला इंग्लैंड की टीम ने मुंबई टेस्ट में ले लिया. केविन पीटरसन की 186 रनों की पारी ने सिरीज़ में चेतेश्वर पुजारा के दूसरे शतक को फ़ीका कर दिया. इसके बाद इंग्लैंड की टीम ने कोलकाता में भी भारत को सात विकेट से हरा दिया. एलिस्टर कुक की 190 रनों की पारी मैच में निर्णायक साबित हुई.

सिरीज़ का आख़िरी टेस्ट नागपुर में खेला जाना था. इंग्लैंड की टीम सिरीज़ में बढ़त हासिल करने के बाद हर हाल में सिरीज़ जीतना चाहती थी, इसके लिए उसे नागपुर में केवल हारना नहीं था. टेस्ट जीत कर या ड्रॉ रखकर इंग्लिश टीम सिरीज़ अपने नाम कर सकती थी. ऐसे में इंग्लिश चयन समिति और टीम प्रबंधन ने आख़िरी टेस्ट में टीम की बल्लेबाज़ी को मज़बूत करने का फ़ैसला लिया. उनके पास विकल्प के तौर पर तीन बल्लेबाज़ थे. इन तीनों में में एक नीली आंखों और भूरे रंग के बालों वाला युवा क्रिकेटर भी था, जिसके चेहरे पर हर वक्त शरारत भरी मुस्कान थी लेकिन वह बेहद कम बोलने वाला क्रिकेटर था. ये सवाल भी पूछा जा रहा था कि क्या ये युवा टेस्ट क्रिकेट खेलने लायक हो गया है?

कैसे मिला रूट को मौका?
इंग्लैंड के घरेलू काउंटी क्रिकेट में इस युवा क्रिकेटर का यार्कशायर की ओर से लगातार अच्छा प्रदर्शन था. बांग्लादेश और श्रीलंका का दौरा करने वाली इंग्लिश ए टीम की ओर से भी उन्होंने बेहतरीन खेल दिखाया था. उस वक्त इंग्लैंड के सीनियर खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया का दौरा कर रहे थे, लिहाजा इस युवा क्रिकेटर को इंग्लिश ए टीम का नेतृत्व करने का मौका भी मिल चुका था.

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हालांकि भारत दौरे पर चुने जाने तक इसकी उम्मीद नहीं थी उन्हें प्लेइंग इलेवन में मौका मिल जाएगा. लेकिन नागपुर में टेस्ट में उस युवा क्रिकेटर को इंग्लिश टेस्ट कैप मिल गई और वो क्रिकेटर थे जो रूट. इंग्लिश टीम प्रबंधन ने ऑलराउंडर समित पटेल पर तरजीह देते हुए जो रूट को मौका दिया और उसके बाद क्या हुआ, इसका अंदाज़ा आप इससे लगा सकते हैं कि बीते आठ साल में समित पटेल को केवल एक टेस्ट खेलने का मौका मिल पाया है और जो रूट अपना 100वाँ टेस्ट खेलने वाले हैं.

आप इसे भाग्य कहें, संयोग कहें या टीम प्रबंधन की दूरदर्शी सोच कहें- रूट को नागपुर टेस्ट में मौका देना इंग्लैंड क्रिकेट के लिए बेहद अहम साबित हुआ. हालाँकि उस वक्त वह फ़ैसला काफ़ी चुनौतीपूर्ण और जोख़िम भरा था. उस मैच में भारतीय टीम चार स्पिनरों के साथ खेलने उतरी थी. पिच भी स्पिनरों को मदद पहुँचाने वाली थी और नागपुर की गर्मी का अंदाज़ा लगा ही सकते हैं.

लेकिन इन सबका इस युवा क्रिकेटर पर कोई असर नहीं पड़ा. अपनी डेब्यू टेस्ट पारी में जो रूट ने विकेट पर चार घंटे और करीब 50 मिनट व्यतीत करते हुए 73 रनों की पारी खेली. आर अश्विन, रविंद्र जडेजा, प्रज्ञान ओझा और पीयूष चावला के सामने इस बल्लेबाज़ ने अपने फ्रंट फुट के इस्तेमाल से प्रभावित किया. ये मुक़ाबला ड्रॉ रहा और इंग्लैंड की टीम सिरीज़ को 2-1 से अपने नाम करने में कामयाब रही.

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जो रूट कैसे टेस्ट क्रिकेट में जडेजा से आगे निकले
जो रूट के साथ विकल्प के तौर पर टीम प्रबंधन के सामने जो दो और विकल्प मौजूद थे- उनमें एक इयॉन मॉर्गन थे तो दूसरे जॉनी बैरिस्टो. मॉर्गन टेस्ट में भले अपना असर नहीं दिखा पाए हों लेकिन वे वनडे क्रिकेट और ट्वेंटी-20 क्रिकेट में इंग्लिश टीम के आधार स्तंभ बने हुए हैं. इयॉन मॉर्गन की कप्तानी में ही इंग्लैंड की टीम ने अपना पहला वर्ल्ड कप जीतने का करिश्मा 2019 में दिखाया था.

वहीं बैरिस्टो भी इंग्लिश टीम के भरोसेमंद खिलाड़ी साबित हुए. बैरिस्टो विकेटकीपर बल्लेबाज़ के तौर पर रूट की तरह ही इंग्लैंड के टेस्ट, वनडे और ट्वेंटी-20 टीम का अभिन्न हिस्सा हैं. इन तीनों क्रिकेटरों में एक तरह से इंग्लैंड की ओर से सबसे ज़्यादा रन बनाने की होड़ भी दिखाई देती है.

वैसे नागपुर के जिस टेस्ट में रूट ने इंग्लैंड की ओर से अपने टेस्ट करियर का डेब्यू किया था, उसी टेस्ट में भारत की ओर से रविंद्र जडेजा ने भी करियर शुरू किया था. हालांकि टीम कॉम्बिनेशन के चलते जडेजा टीम से अंदर बाहर होते रहे हैं, लिहाजा उन्हें अब तक 51 टेस्ट खेलने का ही मौका मिला है जबकि रूट उनसे लगभग दोगुनी संख्या में टेस्ट खेलते हुए अब अपने 100वें टेस्ट से महज दो कदम की दूरी पर हैं.

नागपुर से शुरू हुआ उनका टेस्ट करियर चेन्नई में 100वें टेस्ट तक पहुँचने वाला है. रूट इंग्लैंड की ओर से 100वाँ टेस्ट खेलने वाले 15वें क्रिकेटर होंगे. इस सूची में एलिस्टेयर कुक, जेम्स एंडरसन, स्टुअर्ट ब्रॉड, एलेक स्टुअर्ट, इयान बेल, ग्राहम गूच, डेविड गावर, माइकल अर्थटन, कोलिन काउड्रे, जेफ्री बॉयकॉट, केविन पीटरसन, इयन बॉथम, एंड्रूय स्ट्रॉस और ग्राहम थोर्प शामिल हैं.

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रूट पर उम्मीदों का बोझ
जो रूट के दादा, पिता और भाई भी क्रिकेट खेलते थे. इसलिए क्रिकेट से रूट का लगाव बचपन से ही था. उन्होंने स्कूली स्तर पर क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था, इसके बाद वे कॉलेज टीम में शामिल हुए. कॉलेज के बाद रूट यार्कशायर की टीम में शामिल हुए. इंग्लिश क्रिकेट के पितामह माने जाने वाले जेफ्री बॉयकॉट और इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वान भी यार्कशायर की ओर से ही खेलते थे. यानी कहा जा सकता है कि इस काउंटी में अच्छी बल्लेबाज़ी का सलीका एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचता रहा. यार्कशायर ही नहीं इंग्लिश क्रिकेट संभालने वाले लोगों ने रूट पर विशेष ध्यान दिया. रूट को शुरूआती दौर से ही 'नेक्स्ट बिग थिंग' कहा जाने लगा था.

बेहद कम उम्र में ही रूट को इंग्लैंड का महान बल्लेबाज़, भविष्य का कप्तान सब बताया जाने लगा था. इन उम्मीदों के बोझ तले रूट के पास कोई ग़लती करने का मौका ही नहीं था. दरअसल रूट को कभी प्रतिभाशाली, उभरता हुए क्रिकेट नहीं कहा गया- उन्हें हमेशा महान बताया गया.

उनसे कम उम्र में ही उम्मीद की जाने लगी कि वे परिपक्वता से बल्लेबाज़ी करेंगे, वे टीम की योजनाओं के मुताबिक बल्लेबाज़ी करेंगे, टीम को दबाव से बाहर निकालेंगे. इन सब दबावों के चलते कई बार लोग बिखर जाते हैं, वे लोगों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाते. कुछ अवसाद से ग्रसित हो जाते हैं. लेकिन रूट इन सबसे खुद को बचाते रहे या कहें मैच दर मैच खुद को बेहतर करते गए.

लगातार शानदार प्रदर्शन
क्या जो रूट स्पेशल हैं? जवाब, आंकड़े देते हैं. 2012 में टेस्ट डेब्यू करने से अब तक इंग्लैंड ने 101 टेस्ट मैच खेले हैं और इनमें 99 टेस्ट मैचों में रूट टीम का हिस्सा रहे हैं. तो महज दो टेस्ट मैचों में उनकी अनुपस्थित से ज़ाहिर है कि प्रदर्शन और फ़िटनेस दोनों मापदंडों पर रूट हमेशा पास होते रहे.

केवल एक बार उन्हें 2014 में टेस्ट टीम से ड्रॉप किया गया था. अगले ही टेस्ट में जब वे टीम में वापस लौटे तो दोहरे शतक से उन्होंने चयन समिति को अपना जवाब दिया था. इसके अलावा बीते साल वेस्टइंडीज़ दौर पर वे एक टेस्ट नहीं खेल पाए थे, क्योंकि उनकी पत्नी मां बनने वाली थीं और उन्होंने पत्नी के साथ समय बिताने के लिए छुट्टी ली थी.

रूट ने आठ साल में 99 टेस्ट खेले हैं, औसतन हर साल उन्होंने 12 से ज़्यादा टेस्ट खेले हैं. इतना ही नहीं वे इंग्लैंड की ओर से वनडे और टी-20 भी खेलते रहे हैं. हर टीम का हर साल का व्यस्त क्रिकेट कैलेंडर होता है, जिसमें क्रिकेटरों को आराम के लिए बमुश्किल समय मिल पाता है. इंटरनैशनल क्रिकेट में विपक्षी टीम खिलाड़ियों की तकनीक की खामियों पर भी नज़र रखती है और उसके मुताबिक बल्लेबाज़ों के ख़िलाफ़ योजनाएं बनाती हैं. एक दशक से भी कम समय में 100 टेस्ट मैच तक पहुँचने से साफ़ है कि रूट विपक्षी गेंदबाज़ों की योजनाओं को नाकाम करते रहे हैं.

विदेशी मैदान पर प्रदर्शन
कहा जाता है किसी भी बल्लेबाज़ी का असली इम्तिहान विदेशी पिचों पर होता है. कई बल्लेबाज़ घरेलू पिचों पर तो शेर होते हैं लेकिन विदेशी पिचों पर ढेर हो जाते हैं. कई दिग्गज बल्लेबाज़ों के भी घरेलू मैदान और विदेशी मैदान पर प्रदर्शन में काफी अंतर है लेकिन जो रूट अपवाद साबित हुए हैं.

वे एक तरफ भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और दुबई की स्पिन विकेट पर शानदार बल्लेबाज़ी करते आए हैं तो वहीं दक्षिण अफ़्रीका और वेस्टइंडीज़ की उछाल भरी पिचों पर भी रन बटोरते आए हैं. इंग्लैंड के दूसरे बल्लेबाज़ों ने कई बार ये स्वीकार किया है कि रूट जिस तरह से स्पिनरों का सामना करते हैं, वह बाक़ी बल्लेबाज़ों के लिए किसी सीख से कम नहीं होता है. पिछले हफ़्ते ही रूट ने श्रीलंका में 228 और 186 रनों की मैराथन पारियाँ खेलकर टीम को जीत दिलाई हैं. इसकी दूसरी तरफ दो साल पहले उन्होंने न्यूज़ीलैंड की उछाल भरी पिच पर चार चार तेज़ गेंदबाज़ों के बाउंसरों का सामना करते हुए दोहरा शतक बनाया था.

इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की टेस्ट सिरीज़ यानी एशेज़ सिरीज़ का अपना रोमांच रहा है. ऑस्ट्रेलियाई टीम एशेज सिरीज़ में रूट पर अंकुश लगाने के तमाम तरकीबें अपनाती रही हैं, यही वजह है कि अब तक रूट ऑस्ट्रेलिया में शतक नहीं बना पाए हैं लेकिन उनके वहाँ भी वे टीम के लिए उपयोगी रन बटोरते रहे हैं.

'फैब फोर' में कौन बेहतर
एक ही दौर में खेलने वाले क्रिकेटरों में चार खिलाड़ियों को फैब फोर कहने का चलन न्यूज़ीलैंड के पूर्व क्रिकेटर, कप्तान मार्टिन क्रो ने शुरू किया था.

इस दौर में भारत के विराट कोहली, ऑस्ट्रेलिया के स्टीव स्मिथ, इंग्लैंड के जो रूट और न्यूज़ीलैंड के केन विलियम्सन को 'फैब फोर' कहा जा रहा है. ये चारों अपनी अपनी टीम के सबसे भरोसेमंद बल्लेबाज़ और कप्तान भी रहे हैं. चारों बल्लेबाज़ दुनिया भर के मैदानों पर अपनी टीम के लिए रन बटोरते दिखे हैं.

इन चारों खिलाड़ियों की अपनी अपनी टीमों को कामयाबी दिलाने में अहम भूमिका रही है.

इनमें विराट कोहली जिस अंदाज़ में लगातार शानदार बल्लेबाज़ी करते आए हैं, उसे देखकर ऐसा लगता है कि वे रन मशीन हैं. वहीं स्टीव स्मिथ जिस अंदाज़ में बल्लेबाज़ी करते हुए वह बहुत आकर्षक नहीं है, लेकिन वे विपक्षी टीम को चौंकाते रहते हैं. केन विलियम्सन की बल्लेबाज़ी आकर्षित करने वाली है. वे बेहद कलात्मक अंदाज़ में बल्लेबाज़ी करते हैं. इन चारों में जो रूट आम लोगों के प्रतिनिधि हैं.

ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी मेहनत से खुद का मांजा है. वह हमेशा मेहनत करके रन जुटाते नजर आते हैं, इसलिए उनकी पारी में बहुत सारे सिंगल और डबल रन होते हैं. रूट पिच के मिजाज के मुताबिक अपने शाट्स खेलते हैं. वे कवर ड्राइव और पुल शाट्स खेलकर तेज़ गेंदबाज़ों की लाइन लेंथ बिगाड़ सकते हैं जबकि स्पिनरों पर लगातार स्वीप से रन बटोर सकते हैं.

क्रिकेट के कमेंटेटर जो रूट को हमेशा व्यस्त रहने वाला क्रिकेटर बताते हैं. इसके चलते उनके प्रतिद्वंद्वियों को भी हमेशा व्यस्त रहना होता है. बतौर बल्लेबाज़ रूट की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि वह घंटों पिच पर बिताने के बाद भी बिलकुल फ्रेश नज़र आते हैं. बल्लेबाज़ी करते हुए वे कभी बोर या थके नज़र नहीं आते हैं.

रूट के व्यक्तित्व में एक तरह की मासूमियत और उत्सुकता शामिल है. लेकिन वे रन के लिए भूखे दिखते हैं. उन्होंने हर तरह की चुनौतियों पर खुद को साबित किया है. विपक्षी टीम उनकी बल्लेबाज़ी का अभ्यास करती हैं, उस हिसाब से उन्हें आउट करने की योजनाएँ बनाती हैं. रूट इनमें फंसते भी हैं, लेकिन यह केवल उनके अपने अभ्यास को बेहतर करता है.

जादुई स्पिन गेंदबाज़ी
टीम के कप्तान और अहम बल्लेबाज़ की दोहरी ज़िम्मेदारी निभाने के बावजूद रूट गेंदबाज़ी भी करते हैं. वे अपने टीम के अहम गेंदबाज़ों को आराम देने के लिए गेंद संभालते हैं. वे चालाकी से गेंदबाज़ी करते हैं, वे अपने गेंदों पर बल्लेबाज़ों को शाट्स खेलने के लिए उकसाते हैं और कई बार इस लालच में अच्छी दिख रही है साझेदारियां टूट जाती हैं.

कप्तान की चुनौती
कप्तानी संभालना कोई आसान चुनौती नहीं होती. टीम और बेहतर खिलाड़ियों को हमेशा जीत के लिए प्रोत्साहित करना, रिजर्व खिलाड़ियों को मौके देना, टीम प्रबंधन- चयनसमिति से तालमेल बिठाना, बैठकें करना, मीडिया, फैंस सबको संभालना- ये सब कप्तान को करना होता है.

जो रूट साढ़े चार सालों से इंग्लैंड की कप्तानी कर रहे हैं. इस दौरान दूसरे महादेशों से आए क्रिकेटरों की संख्या इंग्लिश टीम में बढ़ी है. इंग्लिश टीम में अलग अलग संस्कृतियों वाले खिलाड़ियों को एकजुट रखने की ज़िम्मेदारी रूट बखूबी निभा रहे हैं.

वे इस दौरान टीम के कोच और सपोर्ट स्टॉफ़ की मदद भी लेते हैं. इंग्लैंड के कई पूर्व क्रिकेटरों ने कहा है कि रूट अपने टीम खिलाड़ियों से बेहतरीन अंदाज़ में कम्यूनिकेट करते हैं.

वैसे रूट के अब तक करियर में ऐसा भी नहीं हुआ कि कप्तानी संभालने का रूट की बल्लेबाज़ पर कोई असर पड़ा है. कप्तान के तौर भी उनका प्रदर्शन संतोषजनक रहा है. वर्कलोड को देखते हुए इंग्लिश टीम में दो कप्तान हैं. इंग्लैंड ने वनडे और टी-20 के लिए ऑइन मोर्गन को कप्तान बनाया है. बतौर टेस्ट कप्तान रूट ने कभी ये नहीं कहा कि वे मोर्गन की कप्तानी में कैसे खेलेंगे?

उन्होंने बहुत सहजता से मोर्गन की कप्तानी स्वीकार कर ली. मोर्गन की कप्तानी में जीते गए वर्ल्ड कप में इंग्लैंड की ओर से सबसे ज़्यादा रन रूट के बल्ले से ही निकले थे.

आईपीएल से दूरी
भारतीय पिचों पर शानदार बल्लेबाज़ी करने की काबिलियत रखने, लगातार शानदार बल्लेबाज़ी, उपयोगी गेंदबाज़ी, शानदार फ़ील्डिंग, कप्तानी के गुण और बेहतरीन फिटनेस के बावजूद जो रूट ने खुद को इंडियन प्रीमियर लीग से दूर रखा है.

इंटरनेशनल क्रिकेट के तीनों फॉरमेट में लगातार रन बटोरने और विकेट झटकने के बाद रूट उन गिने चुने खिलाड़ियों में शामिल हैं जो आईपीएल में नहीं खेलते. इंग्लिश क्रिकेट बोर्ड ने टीम के व्यस्त कार्यक्रम का हवाला देते हुए उन्हें आईपीएल से दूर रहने को कहा है. एक बार तो उन्होंने नीलामी से अपना नाम वापस ले लिया था. हालाँकि ऑस्ट्रेलिया के बिग बैश लीग में खेलना बहुत कामयाब नहीं रहा है.

विवादों से दूर रहते हैं रूट
99 टेस्ट मैचों में आठ हज़ार से ज़्यादा रन और 149 वनडे मैचों में करीब छह हज़ार रन बटोर चुके रूट अपनी एनर्जी और मस्तमौला अंदाज़ के लिए जाने जाते हैं. मैदान में वे मौजूद हों तो आप उनकी उपेक्षा नहीं कर सकते. टीम के कप्तान और अहम बल्लेबाज़ होने के बाद भी रूट हमेशा विवादों से दूर रहते हैं.

हालाँकि कई बार उनके विपक्षी खिलाड़ियों ने उन्हें विवादों में घसीटने की कोशिश ज़रूर की है. इसमें सबसे चर्चित मामला 2013 में तब हुआ था जब ऑस्ट्रेलियाई टीम इंग्लैंड का दौरा कर रही थी. बर्मिंघम के एक बार में डेविड वॉर्नर ने रूट को थप्पड़ मार दिया था. उस वक्त बार में इंग्लैंड के दूसरे खिलाड़ी भी मौजूद थे. मज़ाक, से शुरू हुई बात छींटाकशी से हाथापाई तक पहुँच गई. वॉर्नर ने ग़लतफहमी में रूट पर हाथ उठाया लेकिन रूट ने इसको लेकर शिकायत नहीं की.

वॉर्नर ने अपने रवैए के लिए रूट से माफ़ी मांगी और रूट ने उन्हें माफ़ कर दिया. रूट से जुड़ा एक दूसरा विवाद फ़रवरी, 2019 में वेस्टइंडीज़ में खेले गए सेंट लूसिया टेस्ट में देखने को मिला.

वेस्टइंडीज़ के तेज़ गेंदबाज़ शैनन गैब्रिएल ने रूट पर छींटाकशी करते हुए पूछा था, "क्या तुम्हें लड़के पसंद हैं?"

रूट ने इसका जवाब देते हुए कहा था, "गे होने में कोई ख़राबी नहीं है."

इस छींटाकशी के चलते गैब्रिएल पर बाद में अनुशासानात्मक कार्रवाई हुई थी और उन पर चार वनडे मैच नहीं खेलने की पाबंदी लगाई गई थी.  (bbc.com)


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