राजनांदगांव

अब चप्पे-चप्पे पर नक्सली नहीं सुरक्षाबल तैनात
12-Jul-2025 1:16 PM
अब चप्पे-चप्पे पर नक्सली नहीं सुरक्षाबल तैनात

2009 की घटना के बाद फोर्स का बढ़ा दबदबा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 12 जुलाई।
राजनांदगांव रेंंज के जिलों के जंगलों में 12 जुलाई 2009 की शहादत की घटना के बाद अब हालात काफी बदल गए हैं। रेंंज के सभी जिलों के भीतरी इलाकों में चप्पे-चप्पे पर घुसपैठ करने वाले नक्सलियों का वक्त अब खात्मे की ओर है। 

नक्सलियों के गढ़ में सुरक्षाबलों ने मोर्चा सम्हाल लिया है। मोहला-मानपुर से लेकर कवर्धा के सरहदी इलाकों में फोर्स ने नक्सलियों को दुबकने के लिए मजबूर कर दिया है। परिणामस्वरूप नक्सल आतंक  से भयभीत लोगों को अब सुकून भरा और निडर होकर  जीने का अवसर मिल रहा है। नक्सलियों ने राजनांदगांव जिले में जमकर उपद्रव मचाया था। नक्सल संगठन के हावी होने से पुलिस की दखल कमजोर थी। 

12 जुलाई 2009 को एसपी स्व. विनोद चौबे समेत 29 जवानों की शहादत की घटना के बाद तेजी से केंद्र और राज्य ने संयुक्त रूप से नक्सलियों के खिलाफ सख्त रणनीति अपनाई। हालांकि बीते 16 साल में पुलिस को शहादत का दर्द भी झेलना पड़ा। मोहला-मानपुर क्षेत्र पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में रहा। इसी तरह राजनांदगांव, खैरागढ़ और कवर्धा में भी नक्सलियों ने अपनी जड़े मजबूत की थी। सिलसिलेवार सुरक्षा कैम्प खोलकर पुलिस ने नक्सलियों पर नकेल कसना शुरू किया। इसके अलावा नक्सलियों को ढेर करने में भी फोर्स ने महारत हासिल कर ली।

नक्सलियों से भिडऩे के लिए कांकेर के जंगलवार में जवानों को एक विशेष ट्रेनिंग के जरिये गोरिल्ला वार में दक्ष बनाया गया। जिसके अब परिणाम बेहतर तरीके से सामने आए हैं। 16 साल में नक्सलियों के साथ लंबी मुठभेड़ हुई। एक जानकारी के मुताबिक नक्सलियों के एक बड़े कैडर को मिलाकर पुलिस ने 30 से ज्यादा माओवादियों को मार गिराया। पुलिस ने रणनीतिपूर्वक कार्रवाई करते घर वापसी का अभियान भी चलाया। 

केंद्र से मिली आर्थिक और सैन्य मदद के चलते सभी जिलों में नक्सलियों की जड़ें खत्म हो गई है। पुलिस ने आत्मसमर्पण के लिए भी कई ठोस कदम उठाए।

आत्मसर्पण नीति से प्रभावित होकर 47 नक्सलियों ने मुख्यधारा में वापसी की। पुलिस ने नक्सलियों के लिए ट्रांजिट रूट माने जाने वाले मोहला-मानपुर से लेकर बालाघाट की सीमा से सटे इलाकों में कैम्प खोल दिया। इधर विकास की गति बढऩे से ग्रामीणों की भी नक्सलियों को लेकर झुकाव खत्म हो गया। नक्सलियों को नए भर्ती के लिए युवा नहीं मिल रहे हैं। 

नक्सल क्षेत्र के ग्रामीण शिक्षा-दीक्षा के रास्ते उन्नति की ओर बढऩे का मन बना चुके हैं। पूर्व में नक्सलियों ने पिछड़ापन और अशिक्षा को आधार बनाकर कई युवाओं को नक्सल संगठन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था। 16 साल पहले हुई मदनवाड़ा-कोरकोट्टी नक्सल हमले ने अविभाजित राजनांदगांव जिले की परिस्थिति को अब बदल दिया है। आने वाले दिनों में सभी जिले नक्सल मुक्त होने के कगार पर है। केंद्र ने मोहला-मानपुर को छोडक़र राजनांदगांव, खैरागढ़ और कवर्धा को नक्सलमुक्त जिला घोषित किया है। हालांकि इन जिलों में अब भी नक्सलियों की आवाजाही बनी हुई है। बहरहाल नक्सल संगठन अपने वजूद को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।


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