राजनीति
बांग्लादेश के छात्र नेताओं और अंतरिम सरकार के सलाहकारों की हाल की तल्ख टिप्पणियां भारत के लिए खतरे की घंटी है। साथ ही यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या वहां आगामी संसदीय चुनाव भारत विरोध के मुद्दे पर ही लड़ा जाएगा?
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी का लिखा-
बांग्लादेश में बीते साल अगस्त में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद गठित अंतरिम सरकार के सत्ता संभालने के बाद से ही देश में भारत विरोध की लहर उठने लगी थी। लेकिन अब फरवरी में होने वाले संसदीय चुनाव से पहले छात्र नेताओं और सरकार के सलाहकारों की तल्ख टिप्पणियों ने दोनों देशों के आपसी संबंधों में कड़वाहट और बढ़ा दी है। इससे यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या बांग्लादेश के आगामी चुनाव में भारत विरोध ही सबसे बड़ा मुद्दा बनेगा।
इससे पहले जुलाई एक्यो मंच (जुलाई एकता मंच) नामक एक कट्टरपंथी संगठन ने बुधवार को ढाका स्थित दूतावास के समक्ष प्रदर्शन किया था। उसके बाद भारत ने सुरक्षा का हवाला देते हुए वीजा जारी करने की प्रक्रिया बंद कर दी थी।
हिंसा और आगजनी
वैसे तो बीते साल अगस्त से ही बांग्लादेश लगातार हिंसा और उथल-पुथल का शिकार रहा है। देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्पीडऩ के कई मामले भी सामने आते रहे हैं। लेकिन अब एक छात्र नेता और इंकलाब मंच के संयोजक शरीफ उस्मान हादी की मौत ने पूरे देश को एक बार हिंसा और आगजनी की चपेट में ले लिया है। उनकी हत्या से नाराज प्रदर्शनकारियों ने राजधानी ढाका में जमकर तोडफ़ोड़ और आगजनी की। उनलोगों ने भारत और हसीना-समर्थक समझे जाने वाले अखबारों के दफ्तरों पर भी धावा बोला और वहां आग लगा दी।
खुलना में तो एक पत्रकार की गोली मार कर हत्या कर दी गई। उग्र प्रदर्शनकारियों ने शेख मुजीब के धान मंडी स्थित आवास, जिसे संग्रहालय में बदला गया था, पर भी हमला किया और आग लगा दी। देश के विभिन्न हिस्सों में हुई हिंसा और प्रदर्शन में शामिल लोग शेख हसीना और भारत विरोधी नारे लगा रहे थे।
बीते साल जुलाई आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे हादी को बीते 12 दिसंबर को ढाका में गोली मार दी गई थी। हालात बिगड़ते देख कर उनको एयर एंबुलेंस से 15 दिसंबर को सिंगापुर ले जाया गया था। लेकिन बृहस्पतिवार को उनकी मौत हो गई। यह खबर फैलते ही प्रदर्शनकारी ढाका में जुटने लगे। कुछ देर में ही हिंसा की यह आग पूरे देश में फैल गई। चटगांव में भारतीय सहायक उच्चायुक्त के आवास के सामने देर रात तक विरोध प्रदर्शन जारी रहा। स्थानीय पत्रकारों ने डीडब्ल्यू को बताया कि भीड़ ने उच्चायोग पर पथराव भी किया।
हालात बेकाबू होते देख कर अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने देर रात परिस्थिति को नियंत्रित करने के लिए सेना को सडक़ो पर उतारा और राष्ट्र को संबोधित किया। उन्होंने आम लोगों से धैर्य और संयम बनाए रखने और किसी अफवाह पर ध्यान नहीं देने की अपील की। बावजूद इसके ढाका समेत पूरे देश में भारी तनाव है। युनूस ने शुक्रवार को एक उच्च-स्तरीय बैठक में परिस्थिति की समीक्षा की है। मोहम्मद यूनुस ने हादी की मौत के बाद उनके सम्मान में शनिवार को एक दिन के राजकीय शोक का भी एलान किया है।
भारत-विरोधी लहर
शेख हसीना और उनकी अवामी लीग सरकार के प्रति भारत के कथित नरम रवैए की शुरू से ही चर्चा होती रही है। बांग्लादेश के छात्र नेता और जमात-ए-इस्लामी जैसी कट्टरपंथी पार्टियां बीते साल अगस्त से ही यह मुद्दा उठाती रही हैं। बीते अगस्त से ही भारत में रह रहीं पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को शरण देने के मुद्दे पर संबंधों में तनातनी रही है।
बांग्लादेश की एक अदालत ने हसीना को मौत की सजा सुनाई है। उसके बाद अंतरिम सरकार कम से कम दो बार औपचारिक रूप से भारत से हसीना को प्रत्यर्पित करने की मांग कर चुकी है। लेकिन भारत ने इस पर चुप्पी साध रखी है। इससे कट्टरपंथी दलों और अंतरिम सरकार की नाराजगी लगातार बढ़ी है।
अब हाल में दो तल्ख बयान ने द्विपक्षीय संबंधों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। इसी सप्ताह छात्र नेता हसनत अब्दुल्ला ने धमकी दी थी कि अगर भारत ने बांग्लादेश को अस्थिर करने का प्रयास किया तो भारत के सातों पूर्वोत्तर राज्यों को उससे काट दिया जाएगा। हसनत पहले अंतरिम सरकार ने सलाहकार थे। लेकिन बाद में इस्तीफा देकर उन्होंने नेशनल सिटीजन पार्टी (एनसीपी) का गठन किया था। बीते साल के छात्र आंदोलन में उनकी अहम भूमिका रही थी।
उनकी इस धमकी को गंभीरता से लेते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय ने दिल्ली स्थित बांग्लादेश के उच्चायुक्त को बुला कर इसकी शिकायत की और ढाका में भारतीय दूतावास की सुरक्षा बढ़ाने को कहा। बांग्लादेश में विभिन्न कट्टरपंथी पार्टियों के समर्थक भारतीय दूतावास तक जुलूस निकालने और प्रदर्शन करने की धमकी दे रहे थे।
लेकिन इसके बाद हसनत ने एक बार फिर ढाका से भारतीय उच्चायुक्त तो देश से बाहर निकालने की बात कही। उन्होंने एक जनसभा में कहा था, ‘भारत का यह रवैया स्वीकार नहीं किया जा सकता। उसने शेख हसीना को शरण दे रखी है। जवाबी कार्रवाई के तहत उसके उच्चायुक्त को बांग्लादेश से बाहर निकाल देना चाहिए था। हसनत का कहना था कि भारत को भी बांग्लादेश के संप्रभुता और सीमा का सम्मान करना चाहिए। आपसी संबंध बराबरी के आधार पर तय होते हैं।’
उसी दिन यानी बुधवार को बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय के सलाहकार मोहम्मद तौहीद ने भी आरोप लगाया कि भारत वर्ष 1971 के मुक्ति युद्ध में बांग्लादेश के योगदान को लगातार कमतर आंकता रहा है। वह इसे पाकिस्तान पर अपनी जीत बताते हुए कोलकाता स्थित पूर्वी कमान मुख्यालय में विजय दिवस का आयोजन करता रहा है। उनका कहना था कि अगर मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों ने स्थानीय स्तर पर पाक सेना का विरोध नहीं किया होता तो भारत की जीत आसान नहीं होती। लेकिन भारत इस जीत का श्रेय बांग्लादेश को देने की बजाय खुद लेता रहा है।
वैसे, यह विवाद पुराना है। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेता बीते एक साल के दौरान कई बार यह बात कह चुके हैं कि बांग्लादेश को भारत ने नहीं मुक्ति वाहिनी के लड़ाकों ने पाकिस्तान से मुक्त कराया था। उनकी दलील है कि भारत ने निजी हितों के लिए पाकिस्तान के साथ लड़ाई लड़ी थी, बांग्लादेश को मुक्त कराने के लिए नहीं।
जल्दी हालात सुधरने के संकेत नहीं
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है भारत और बांग्लादेश के आपसी संबंधों में कड़वाहट लगातार बढ़ रही है और निकट भविष्य में इसमें सुधार के कोई संकेत नहीं हैं।
राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर रही डा। संगीता घोष डीडब्ल्यू से कहती हैं, ‘पड़ोसी देश की परिस्थिति भारत के अनुकूल नहीं है। वहां बीते साल से ही जानबूझ कर भारत विरोधी भावनाएं भडक़ाई जा रही हैं। मुझे लगता है कि फरवरी में होने वाले संसदीय चुनाव में भी भारत विरोध ही सबसे बड़ा मुद्दा रहेगा। दोनों देशों को राजनयिक स्तर पर आपसी संबंध सुधारने की दिशा में पहल करनी चाहिए। लेकिन मौजूदा परिस्थिति में इसकी संभावना कम ही नजर आती है।’
उनका कहना था कि चुनाव के बाद अगर वहां कोई लोकतांत्रिक सरकार सत्ता में आती है तो यह प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है।
राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे मईदुल इस्लाम डीडब्ल्यू से कहते हैं, ‘बांग्लादेश में भारत विरोध ही सबसे बड़ा मुद्दा है। बीते साल अगस्त के बाद गठित और सक्रिय कट्टरपंथी पार्टियां अपने सियासी फायदे के लिए आम लोगों को भडक़ाने में जुटी हैं। फिलहाल शेख हसीना समेत कई अन्य नेताओं के प्रत्यर्पण को मुद्दा बना कर भारत पर हमले किए जा रहे हैं।’
मईदुल कहते हैं कि चुनाव से पहले बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीडऩ तेज हो सकता है। शायद इसी आशंका के कारण इस मामले में भारत सरकार ‘वेट एंड वाच’ की नीति पर आगे बढ़ रही है। लेकिन बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति भारत के लिए खतरे की घंटी तो है ही। (dw.comhi)


