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नई दिल्ली, 9 मार्च।इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक ख़बर के मुताबिक़ भारत आख़िरकार अफ़गानिस्तान में शांति के लिए तैयार किए जा रहे रोडमैप पर फ़ैसला लेने वाले छह देशों की सूची में शामिल हो गया है. बीते छह महीने से भारत इसके लिए लगातार कोशिश कर रहा था.
इस नए मैकेनिज़म को अमेरिका ने सुझाया है वहीं रूस ने जो योजना सुझायी थी उसमें भारत को इन देशों की सूची में शामिल नहीं किया गया था.
सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया है कि रूस और चीन के बीच बढ़ती नज़दीकी के बीच रूस ने जो तऱीका सुझाया था, उसमें रूस, चीन, अमेरिका, पाकिस्तान और ईरान को बातचीत के मेज पर रखे जाने की बात कही गई थी.
एक अधिकारी ने अख़बार से बताया कि ऐसा पाकिस्तान के कहने पर किया गया था जो नहीं चाहता कि भारत इस इलाक़े में शांति के लिए तैयार किए जा रहे रोडमैप का हिस्सा बने. लेकिन भारत इस पर लंबे वक़्त से काम कर रहा था और इसके लिए सभी भारत ने अफ़गानिस्तान और उससे बाहर सभी अहम किरदारों से संपर्क साधा ताकि वह बातचीत की इस टेबल का हिस्सा बन सके.
एक उच्च अधिकारी ने बताया कि ''हमारे हित सुरक्षित होने चाहिए, आने वाले महीनों में इसे लेकर बात आगे बढ़ेगी.''
अब इस टीम का हिस्सा होने के कारण भारत को उम्मीद है कि वह विशेष रूप से आतंकवाद, हिंसा, महिलाओं के अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर नियमों को तय करने में अहम भूमिका निभाएगा.
भारत का यह मानना है कि वह एक अफ़ग़ानिस्तान-नेतृत्व वाली, अफ़ग़ानिस्तान-नियंत्रित और अफ़ग़ानिस्तान के स्वामित्व वाली प्रणाली चाहता है, लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में ज़मीनी हक़ीक़त कुछ ऐसी रही है कि यहाँ ऐसा हो नहीं सका है.
टोलो न्यूज़ में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पिछले सप्ताह अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी और हाई काउंसिल फोर नेशनल रिकंसिलिएशन के अध्यक्ष अब्दुल्ला अब्दुल्ला को एक चिट्ठी भेजी थी जिसमें संयुक्त राष्ट्र के संरक्षण में एक रिजनल कॉन्फ्रेंस के गठन का प्रस्ताव दिया गया था. इसके अंतर्गत अमेरिका, भारत, रूस, चीन, पाकिस्तान और ईरान के विदेश मंत्री एक साथ मिलकर अफ़गानिस्तान में बेहतरी लाने की कोशिश करेंगे.
सूत्रों का कहना है कि भारत की ओर से इस बातचीत का हिस्सा विदेश मंत्री एस. जयशंकर हो सकते हैं.
एक सूत्र ने अख़बार से कहा कि ये लंबे वक़्त से जारी भारत की कूटनीति का फल है. पिछले साल सितंबर में अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अब्दुल रशीद दोस्तम की भारत यात्रा के दौरान इस पर बातचीत हुई थी. फिर अफ़गानिस्तान के पूर्व सीईओ अब्दुल्ला-अब्दुल्ला और अफ़ग़ानिस्तान नेता अता मोहम्मद से बीते साल अक्टूबर में इसे लेकर चर्चा हुई थी.
इसके बाद इस साल जनवरी में भारतीय एनएसए अजीत डोभाल की गुपचुप अफ़गानिस्तान यात्रा भी इसी कोशिश का हिस्सा थी. जहाँ उन्होंने काबुल के नेताओं से मुलाक़ात की थी.
सूत्रों का कहना है कि ईरान के साथ नई दिल्ली के रिश्ते और चाबहार बंदरगाह को अफ़ग़ानिस्तान तक जोड़ने की विकास की रणनीति भी इसके पीछे एक अहम वजह रही.
ब्लिंकन ने अपनी चिट्ठी में आने हफ्तों में तुर्की में वरिष्ठ अफ़ग़ानिस्तानी नेताओं और तालिबान के बीच बातचीत के लिए बैठक बुलाई है ताकि '90 दिनों के हिंसा घटाने' वाले प्लान पर चर्चा की जा सके. (bbc.com/hindi)