राष्ट्रीय

अंगार उगलती गर्मी जानलेवा होती है. ये जैसे-जैसे बढ़ती हैं, वैसे वैसे अस्पतालों में भीड़ तो बढ़ती ही है, अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचता है. आखिर इस समस्या का हल क्या है?
डॉयचे वैले पर समांथा बेकर की रिपोर्ट-
1.4 अरब की जनसंख्या वाले देश में, जहां कम से कम आधी आबादी खुले में काम करती है और सिर्फ 10 फीसदी घरों में एयर कंडीशनिंग की सुविधा है वहां गर्मी सिर्फ एक असुविधाजनक स्थिति नहीं है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था, लोगों की रोजी-रोटी और उनके स्वास्थ्य के लिए भी एक गंभीर चुनौती है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में पर्यावरण अर्थशास्त्र की चेयर प्रोफेसर पूर्णमिता दासगुप्ता ने कहा, "भारत में गर्मी की लहरें बढ़ रही हैं. नए इलाकों में भी अब भीषण गर्मी का असर महसूस हो रहा है और गर्मी का मौसम समय से पहले ही देखने को मिल रहा है.” ऐसी तपिश में, तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक तक पहुंच सकता है.
जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, लोगों की काम करने की क्षमता कम होती है. मेडिकल जर्नल लैंसेट के मुताबिक, सिर्फ 2023 में भारत में भीषण गर्मी के कारण 182 अरब घंटे के संभावित काम का नुकसान हुआ. ऐसा अनुमान है कि अगर यही स्थिति बनी रही, तो 2030 तक देश को 3.4 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर नुकसान हो सकता है.
खेती-बाड़ी और निर्माण कार्य में सबसे ज्यादा परेशानी होगी, लेकिन खतरा सिर्फ खुले में काम करने वालों तक ही सीमित नहीं है. सघन आबादी वाले जिन इलाकों में घरों में हवा ठीक से नहीं आती, उनमें गर्मी रुक जाती है. इससे लोगों के लिए दिन की तेज गर्मी के दौरान घर पर रहना तक मुश्किल हो जाता है.
सरकारें इस गर्मी की समस्या से निपटने की तैयारी में जुट गई हैं. कई राज्यों में हीट ऑफिसर की नियुक्ति की जा रही है. कई जगहों पर स्थानीय प्रशासन अब ऐसे नियम बना रहे हैं कि नौकरी देने वाले लोगों या कंपनियों को अपने कर्मचारियों को धूप से बचाने के लिए छांव, आराम के लिए ब्रेक और पानी उपलब्ध कराना होगा. दूसरी तरफ, कुछ कंपनियां खुद ही घटती हुई उत्पादकता को सुधारने के लिए अपने स्तर पर कदम उठा रही हैं.
दासगुप्ता ने कहा, "वास्तविकता यह है कि ज्यादातर मामलों में उत्पादकता कम होती है. 35 डिग्री सेल्सियस तापमान पर, सामान्य गति से काम करने वाला कोई भी व्यक्ति काम करने की लगभग आधी क्षमता खो देता है.” जब इसे पूरी अर्थव्यवस्था के नजरिए से देखा जाता है, तो यह कमी एक बहुत बड़ी आर्थिक चुनौती बन जाती है.
पूरी दुनिया में गर्मी का असर
एडवोकेसी समूह ‘क्लाइमेट ट्रांसपेरेंसी' के मुताबिक, वर्ष 2021 में अत्यधिक गर्मी के कारण विनिर्माण, कृषि, सेवा और निर्माण जैसे क्षेत्रों में लगभग 159 अरब डॉलर की आय का नुकसान हुआ. यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.4 फीसदी है. चेतावनी दी गई है कि 2030 तक थाईलैंड, कंबोडिया और पाकिस्तान जैसे देशों को भी ऐसे ही बड़े नुकसान झेलने पड़ सकते हैं.
ये नुकसान विशेष रूप से महत्वाकांक्षी विकास लक्ष्यों वाले विकासशील देशों के लिए खतरनाक हैं, जैसे कि भारत का लक्ष्य 2047 तक पूरी तरह से विकसित होना है.
गर्मी की समस्या सिर्फ भारत की नहीं, बल्कि पूरे विश्व की है. गर्मी से संबंधित आर्थिक नुकसान की वजह से अमेरिका को पहले ही हर साल करीब 100 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है. अमेरिकी थिंक टैंक ‘अटलांटिक काउंसिल' के मुताबिक, यह आंकड़ा 25 साल के भीतर सालाना 500 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है.
यूरोप में, गर्मी के थपेड़ों की वजह से पहले ही जीडीपी में 0.3 से 0.5 फीसदी की कमी हो गई है. फिलहाल, यह आंकड़ा बहुत ज्यादा नहीं लग रहा है, लेकिन अगर इसी तरह गर्मी बढ़ती रही और इससे निपटने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए गए, तो 2060 तक नुकसान पांच गुना बढ़ सकता है.
गर्मी की वजह से स्वास्थ्य पर असर
गर्मी सिर्फ अर्थव्यवस्था को ही नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि यह जीवन को भी खतरे में डालती है. भारत में एक दिन की भीषण गर्मी के कारण अनुमानित तौर पर 3,400 अतिरिक्त मौतें होती हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले के शोधकर्ताओं के अनुसार, पांच दिन की भीषण गर्मी के दौरान यह संख्या लगभग 30,000 तक पहुंच जाती है.
दुनिया में सबसे तेजी से गर्म हो रहा यूरोप महाद्वीप पहले से ही घातक परिणामों का सामना कर रहा है. सिर्फ 2022 की गर्मियों में, ज्यादा तापमान के कारण 61,000 अतिरिक्त मौतें हुईं, जिनमें कई बुजुर्ग थे.
ब्रिटेन में आपातकालीन चिकित्सक डॉ. सैंडी रॉबर्टसन ने कहा, "हम सभी गर्मी से थकावट और हीट स्ट्रोक यानी लू लगने के बारे में सोचते हैं, जैसे कि किसी व्यक्ति को गर्मी वाले दिन लंबी दौड़ के बाद गिरते हुए देखते हैं. हालांकि, असल में जो सबसे बड़ी बीमारी हमें होती है उसका पता कुछ दिनों के बाद चलता है.”
दासगुप्ता ने भारत में कम आय वाले मजदूरों से बात की. इस दौरान पता चला कि ये मजदूर अक्सर गर्मी से जुड़ी बीमारियों के लिए डॉक्टर के पास नहीं जाते क्योंकि उन्हें पता ही नहीं होता कि उन्हें इलाज की जरूरत है.
ब्रिटेन में भीषण गर्मी के दौरान, रॉबर्टसन को स्ट्रोक, सांस की दिक्कतें, हार्ट अटैक और यहां तक कि मारपीट की घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी दिखती है, क्योंकि गर्मी बढ़ने पर हिंसा भी बढ़ जाती है. लंबे समय तक गर्मी में रहने से गुर्दे की बीमारी, मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर और सोचने-समझने की शक्ति कम होने का भी खतरा रहता है.
स्वास्थ्यकर्मी भी गर्मी से अछूते नहीं हैं. ब्रिटेन के कई अस्पतालों में एयर कंडीशनिंग की कमी है. जब वार्ड के अंदर का तापमान 26 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाता है, तो इससे ज्यादा गर्मी वाली स्थिति बन जाती है. इससे मरीजों की सुरक्षा को खतरा होता है, स्टाफ पर दबाव पड़ता है और उपकरण गड़बड़ाने लगते हैं, जिनमें जीवन रक्षक दवाएं रखने वाले फ्रिज भी शामिल हैं.
रॉबर्टसन ने कहा, "हमने देखा है कि अस्पतालों में आईटी सिस्टम पूरी तरह से क्रैश हो जाते हैं, क्योंकि वे बहुत ज्यादा गर्म हो जाते हैं. अगर आपके विभाग में पहले से ही ज्यादा काम है, ज्यादा गर्मी पड़ रही है और दिन पहले से ही तनावपूर्ण है, तो ऐसे में जिन सिस्टम पर आप अपने मरीजों की देखभाल के लिए भरोसा करते हैं उनके खराब होने से मुश्किलें बढ़ जाती हैं और अव्यवस्था की स्थिति बन जाती है. इससे गंभीर संकट पैदा होता है.”
रॉबर्टसन का सुझाव है कि जब गर्मी बढ़े तो कुछ आसान तरीके अपनाएं. अपनी दवाओं की जांच करें कि कहीं वे शरीर की गर्मी झेलने की क्षमता को तो कम नहीं कर रहीं, अपने बुजुर्ग पड़ोसियों की खैरियत पूछें, घरों को रात में खोलकर हवादार रखें और दिन में पर्दे लगाए रखें ताकि घर में ठंडक रहे.
गर्मी से निपटने के लिहाज से शहरों को डिजाइन करना
शहरों में दमघोंटू और जानलेवा तापमान के कारण आपातकालीन विभागों में मरीजों की भीड़ बढ़ने की संभावना अधिक रहती है. डामर, कंक्रीट और अन्य शहरी ढांचे, जंगलों जैसी प्राकृतिक जगहों की तुलना में बहुत ज्यादा गर्मी सोखते और छोड़ते हैं. विशेषकर सघन आबादी वाले शहरों में जहां हरियाली कम होती है वहां ‘अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट' के कारण दिन का तापमान खुले इलाकों में लगभग 3.9 डिग्री सेल्सियस तक ज्यादा हो जाता है.
गर्मी के खतरनाक असर को कम करने का एक तरीका एयर कंडीशनिंग है. यह खासकर बुजुर्गों जैसे कमजोर समूहों के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन अगर यह एसी जीवाश्म ईंधन से बनी बिजली से चलता है, तो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता है. इससे धरती और गर्म होती है. गर्मी बदतर होती जाती हैं. एसी से ‘हीट आइलैंड' का असर भी बढ़ता है, जिससे रात में बाहर का तापमान करीब 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है.
बफेलो यूनिवर्सिटी के आर्किटेक्ट और असोसिएट प्रोफेसर निक राजकोविच का कहना है कि गर्मी से बचने के लिए शहरों को अब ऐसे स्मार्ट तरीके अपनाने होंगे जिनमें ज्यादा पेड़-पौधे लगाए जाएं और कुछ आसान उपाय किए जाएं.
स्पेन के सेविले में संकरी गलियां छाया बनाती हैं और तापमान को कम रखती हैं. अमेरिका के लॉस एंजेलिस में सड़कों को सफेद रंग से रंग दिया गया है, ताकि वे गर्मी को अवशोषित न करें. चीन के शियामेन में हरे-भरे छतों की वजह से शहर का तापमान लगभग 1 डिग्री सेल्सियस तक कम हो गया है.
राजकोविच ने कहा, "हम सड़कों के किनारे पेड़ लगाते थे, क्योंकि इससे घोड़ों को गाड़ी खींचते समय ठंडक मिलती थी.” एक और चीज जिससे मदद मिल सकती है वह है बिल्डिंग की डिजाइन पर फिर से विचार करना और शहर को पुराने समय के हिसाब से डिजाइन करना.
उन्होंने कहा, "जब एयर कंडीशनिंग की खोज नहीं हुई थी, तब हम इमारतों को ठंडा रखने के लिए प्राकृतिक तरीके से हवा के प्रवाह पर बहुत अधिक निर्भर थे.”
अमेरिका के शुष्क दक्षिण-पश्चिमी हिस्से में, पुएब्लो इंडियन्स ने एक खास तरह की वास्तुकला विकसित की. उनके घर एडोब (मिट्टी, रेत और पुआल का मिश्रण) की मोटी दीवारों से बनते हैं, जो दिन भर गर्मी को सोखते और रात में धीरे-धीरे छोड़ते हैं. इन घरों की सपाट छतें बारिश का पानी भी जमा करती हैं.
वहीं, अफ्रीकी देश बुर्किना फासो में, इमारतों पर दोहरी छतें बनाई जाती हैं जिनके बीच हवा के लिए जगह होती है. यह डिजाइन गर्मी को बाहर निकालने और पूरी इमारत को छाया में रखने में मदद करती है. राजकोविच ने कहा, "ये सभी ऐसे तरीके हैं जिनसे हम इमारतों को ठंडा रखने के लिए समझदारी से काम कर सकते हैं.”