राष्ट्रीय

लगभग एक साल पहले तक रानी ख़ान अपने जैसे किन्नरों की तरह कई निजी कार्यक्रमों में डांस करके गुज़र-बसर करती थीं.
रानी में इस्लाम को लेकर बचपन से ही ज़रा सी भी दिलचस्पी नहीं थी. मगर फिर उनकी ज़िंदगी में ऐसी घटना घटी जिसने उनका ज़िंदगी जीने के तरीक़े और चरित्र को ही बदलकर रख दिया.
रानी बताती हैं कि उनकी एक सहेली भी उन्हीं की तरह डांसर थीं और वो एक कार्यक्रम से लौट रही थीं जहाँ उनकी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई.
वो कहती हैं, "उसकी मौत के कुछ दिनों बाद मैंने एक सपना देखा. सपने में मेरी सहेली का चेहरा बिगड़ा हुआ था और वो कह रही थी कि यह डांस छोड़ दो."
रानी का कहना है कि उस सपने ने उनकी ज़िंदगी पर गहरा असर डाला और धर्म की तरफ़ उनका रुझान बढ़ने लगा.
'नमाज़ के वक़्त लोग दूर खड़े हो जाते थे'
सोचा क्यों न वो क़ुरान की शिक्षा हासिल करें और इसी सिलसिले में उन्होंने एक धार्मिक मदरसे में जाना शुरू कर दिया.
उन्होंने बताया, "वहाँ के दूसरे छात्र मुझे अजीब नज़रों से देखते थे. इस वजह से मैं वहाँ ख़ुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती थी. कुछ वक़्त तो मैं मदरसे जाती रही लेकिन वहाँ पर लोगों के रवैये की वजह से मैंने वहाँ जाना छोड़ दिया और अपनी माँ से क़ुरान पढ़ने लगी."
रानी बताती हैं कि उस अरसे के दौरान जब वो मोहल्ले की मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिए मर्दाना कपड़े पहनकर जाती थीं तो मोहल्ले के लोग, जो उन्हें जानते भी थे, उनके साथ नमाज़ के लिए एक पंक्ति में खड़ा होना पसंद नहीं करते थे.
वो याद करती हैं "अक्सर ऐसा भी होता था कि जब नमाज़ के लिए एक पंक्ति में खड़े होते थे तो लोग मुझसे 10 क़दम तक की दूरी बना लेते थे."
रानी कहती हैं कि मस्जिद में लोगों के इस व्यवहार ने उनमें असुरक्षा की भावना को बढ़ा दिया जिसके बाद उन्होंने फ़ैसला किया कि वो पैसे इकट्ठा करेंगी और एक धार्मिक मदरसा क़ायम करेंगी जहां पर किन्नरों को धार्मिक शिक्षा (तालीम) दी जाएगी.
आज पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबद में एक ऐसा मदरसा है जिसे न तो कोई मौलाना या धार्मिक मामलों की जानकार महिला चला रही है बल्कि उस धार्मिक मदरसे की पूरी ज़िम्मेदारी रानी के हाथों में है.
इस मदरसे में शिक्षा हासिल करने वाले न ही मर्द हैं और न ही औरतें बल्कि वे किन्नर हैं जो अपनी पेशेवर ज़िंदगी के साथ-साथ धर्म को भी वक़्त देना चाहते हैं.
'लोग किन्नरों को मुसलमान नहीं समझते'
रानी के लिए मदरसा बनाने और इसके लिए जहग मिलना आसान नहीं था.
उन्हें मदरसा बनाने के लिए एक घर की ज़रूरत थी जिसकी खोज उन्होंने काफ़ी पहले ही शुरू कर दी थी.
उन्होंने बताया, "मैं कई इलाक़ों में गई जहाँ मुझे कोई भी घर देने को तैयार नहीं था. काफ़ी जद्दोजहद के बाद इस्लामाबाद के एक उपनगर में मैं एक घर किराये पर लेने में कामयाब हुई."
रानी बताती हैं कि इसके बाद उन्हें किन्नरों को इस मदरसे में शिक्षा देने के लिए लाने में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वो इस्लामाबाद की उन सड़कों और चौराहों पर गईं जहां पर किन्नर भीख मांगते थे.
वो बताती हैं, "मैंने उन्हें मदरसे में धार्मिक शिक्षा देने का प्रस्ताव दिया लेकिन शुरू में कोई आने के लिए तैयार नहीं हुआ."
रानी के मुताबिक़, पाकिस्तान में किन्नर नाच-गानों या सेक्स वर्कर के तौर पर जाने जाते हैं और उनका धर्म की तरफ़ रुझान न के बराबर रहता है.
वो कहती हैं, ''पाकिस्तानी समाज में अक्सर लोगों की सोच यह होती है कि शायद किन्नर मुसलमान नहीं होते और उनका दीन-धर्म की ओर कोई रुझान नहीं होता जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है.''
मदरसे में कैसे आने लगे किन्नर?
रानी किन्नरों के मदरसे में आने की घटना बताती हैं. उन्होंने किन्नरों के सामने प्रस्ताव रखा कि जो इस मदरसे में पढ़ने आएगा उसे हर महीने राशन दिया जाएगा.
वो बताती हैं कि इस प्रस्ताव के बाद 40 किन्नर मदरसे में आकर शिक्षा लेने लगे लेकिन दो महीने बाद उसमें से आधे वापस भाग गए और चौराहों पर फिर भीख मांगने लगे.
रानी बताती है किं अब जितने भी किन्नर उनके मदरसे में आते हैं उनको हर महीने राशन दिया जाता है और उसका ख़र्चा वो ख़ुद उठाती हैं. किन्नरों के शौक़ को मद्देनज़र रखते हुए उन्हें हर महीने मेकअप का सामान भी दिया जाता है.
मदरसे के साथ-साथ सिर छिपाने की जगह भी
इस मदरसे में बॉबी (बदला हुआ नाम) भी शिक्षा ले रही हैं.
बीबीसी उर्दू से बातचीत में उन्होंने बताया कि जब उनके घरवालों को उनके किन्नर होने का पता चला और समाज में 'बदनामी' के डर से उन्होंने उन्हें घर से निकाल दिया.
वो याद करती हैं, "घर से निकाले जाने के बाद मेरे पास सिर छिपाने के लिए कोई जगह नहीं थी. मेरा रंग सांवला है और चेहरे पर चेचक के दाग़ हैं. इन वजहों से मुझे कोई कार्यक्रमों में नहीं बुलाता था और सेक्स वर्कर का काम भी न के बराबर था."
बॉबी ने बताया कि थोड़े दिन इधर-उधर की ठोकरें खाने के बाद एक दिन वो रावलपिंडी में सरकार की ओर से बनाए गए रैन बसेरे में रात गुज़ारने गईं.
वो बताती हैं, "वहां पर मौजूद लोग मुझे बेहद अजीब तरीक़े से देख रहे थे जिसकी वजह से मैं डर गई और पूरी रात मैंने डरते हुए जागकर गुज़ारी."
बॉबी ने अगले दिन इस घटना का ज़िक्र एक अन्य से किया तो उन्होंने इस मदरसे का पता दिया जो धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ राशन भी देता है.
वो याद करती हैं, "जब मैं इस मदरसे में पहुंची तो किसी भी किन्नर ने मेरे रंग और चेहरे पर दाग़ का मज़ाक़ नहीं उड़ाया बल्कि सबने बड़े अच्छे अंदाज़ में मेरा स्वागत किया."
इस मदरसे में आकर बॉबी ने पहली बार धर्म और पैग़ंबर-ए-इस्लाम के बारे में विस्तार से जाना.
इस धार्मिक मदरसे में सुरैया (बदला हुआ नाम) भी रहती हैं.
वो बताती हैं, "पुलिस ने मुझे भीख मांगने के लिए गिरफ़्तार किया तो पूरे शहर में मेरी ज़मानत देने के लिए कोई शख़्स नहीं था. फिर किसी ने रानी को सूचित किया कि मुझे गिरफ़्तार कर लिया गया है लेकिन ज़मानत नहीं होने के कारण मुझे रिहा नहीं कर रही है. रानी इसके बाद थाने आईं और उन्होंने उनकी ज़मानत कराई.''
सुरैया बताती हैं "जिस चौक पर मैं भीख मांगती थी वहाँ पर रानी पहले भी आ चुकी थीं. उन्होंने मुझे भीख मांगने के लिए मना किया था और मदरसे में आने को कहा था लेकिन मैंने तब उनकी बात नहीं मानी थी."
सुरैया कहती हैं कि वो अब इस मदरसे में आकर ख़ुश हैं और ख़ुद को सुरक्षित महसूस करती हैं.
वो कहती हैं "अब मैं सारा दिन मदरसे में रहती हूं. इसकी साफ़-सफ़ाई करती हूं और धार्मिक शिक्षा लेने आने वाले किन्नरों की सेवा करती हूं."
'मदरसे को अजीब तरीक़े से देखते हैं लोग'
मदरसे की संरक्षक रानी कहती हैं कि उन्होंने इस मदरसे को सिर्फ़ किन्नरों के लिए नहीं बनाया है और यहां पर बाक़ी लोगों का आना मना नहीं है.
वो कहती हैं, "इस मदरसे में किसी लड़के या लड़की को धार्मिक शिक्षा देने पर प्रतिबंध नहीं है लेकिन जिस इलाक़े में यह मदरसा है वहां के लोग अपने बच्चों को इस मदरसे में भेजने का सोचते भी नहीं हैं."
एक सवाल के जवाब में रानी कहती हैं कि उन्हें किसी कट्टरपंथी समूह की ओर से इस मदरसे को बंद करने की अभी तक कोई धमकी नहीं मिली है लेकिन मदरसे के आगे से गुज़रने वाले राहगीर इस मदरसे को और यहां रहने वाले लोगों को 'बड़ी अजीब नज़रों से' देखते हैं.
रानी ने सिर्फ़ प्राइमरी स्कूल तक की शिक्षा हासिल की है लेकिन वो कहती हैं कि उनका मक़सद धार्मिक शिक्षा के बाद यहां पढ़ने वाले लोगों को आगे आधुनिक शिक्षा दिलाना है.
उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा है कि जो किन्नर अभी जवान हैं वो आधुनिक शिक्षा हासिल करें ताकि कल उन्हें उनकी तरह पछताना न पड़े.
बुजुर्ग किन्नरों के लिए मदद की अपील
रानी ने सरकार से निवेदन किया कि वह किन्नरों को भी उस 'एहसास कार्यक्रम' में शामिल करें जिसके तहत ग़रीबों और कम आय वाले लोगों की मदद की जाती है.
उन्होंने सरकार से यह भी अपील की कि उन बुज़ुर्ग किन्नरों की मदद की जाए जो अब डांस करके रोज़गार कमाने की स्थिति में नहीं हैं और न ही कोई और काम कर सकते हैं.
बीबीसी उर्दू से बात करते हुए इस्लामाबाद के डिप्टी कमिश्नर हमज़ा शफ़क़ात ने कहा कि हालात को मद्देनज़र रखते हुए स्थानीय पुलिस को यह आदेश दिए गए हैं कि वो इस मदरसे की सुरक्षा को बढ़ाएं.
उन्होंने कहा कि अगर इस मदरसे के संरक्षक इसके रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करेंगे तो ज़िला प्रशासन उनकी हर मुमकिन मदद करेगा.
ज़िला प्रशासन के रिकॉर्ड के मुताबिक़, इस्लामाबाद में मदरसों की संख्या 1100 से अधिक है जिनमें से सिर्फ़ 450 के क़रीब मदरसे रजिस्टर्ड हैं जबकि बाक़ियों के रजिस्ट्रेशन अभी नहीं हुए हैं. (bbc)