राष्ट्रीय

- दिव्या आर्य
सुप्रीम कोर्ट की दो जज की बेंच ने कई घंटों की सुनवाई के बाद रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ़ अर्नब गोस्वामी समेत तीन लोगों को अंतरिम ज़मानत दे दी है.
अदालत ने मुंबई हाई कोर्ट के गोस्वामी की ज़मानत याचिका ठुकराने के फ़ैसले को ग़लत बताया है.
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई इस याचिका की बुधवार को तत्काल सुनवाई ऐसे समय में हुई, जब कोर्ट दीवाली की छुट्टी के लिए बंद है.
छुट्टी के दौरान ऐसी तत्काल सुनवाई पर आपत्ति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने अदालत के सेक्रेटरी जनरल को चिट्ठी लिख 'सेलेक्टिव लिस्टिंग' यानी अदालत के सामने सुनवाई के लिए अन्य मामलों में से इसे प्राथमिकता देने का आरोप लगाया है.
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस चिट्ठी का मक़सद किसी एक व्यक्ति के ख़िलाफ़ बोलना नहीं था, बल्कि आम नागरिकों के न्याय के हक़ की बात रखनी थी.
उन्होंने कहा, "ये अदालत की गरिमा का सवाल है, किसी भी नागरिक को ये नहीं लगना चाहिए कि वो दूसरे दर्जे का है, सभी को ज़मानत और जल्द सुनवाई का हक़ होना चाहिए, सिर्फ़ कुछ हाई प्रोफाइल मामलों और व़कीलों को नहीं."
'हेबियस कॉर्पस याचिका'
सुप्रीम कोर्ट की छुट्टियों के दौरान मुख़्य न्यायाधीश एक या ज़्यादा जजों की 'वेकेशन बेंच' का गठन कर सकते हैं, जो बहुत ज़रूरी मामलों की सुनवाई कर सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट की हैंडबुक के मुताबिक़ जिन मामलों में मौत की सज़ा सुनाई गई हो, 'हेबियस कॉर्पस याचिका', प्रॉपर्टी गिराए जाने की आशंका के मामले, जगह ख़ाली कराने के मामले, मानवाधिकार उल्लंघन के मामले, सार्वजनिक महत्व के मामले, ज़मानत अर्ज़ी बर्ख़ास्त करने के ख़िलाफ़ दायर मामले या अग्रिम ज़मानत के मामलों को बहुत ज़रूरी माना जा सकता है.
इनके अलावा अगर मुख्य न्यायाधीश चाहें, तो किसी अन्य केस को सुनवाई के लिए चिन्हित कर सकते हैं.
अर्नब गोस्वामी समेत तीन लोग आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में जेल में हैं. नौ नवंबर को बॉम्बे हाईकोर्ट ने तीनों को अंतरिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख़ किया.
किन मामलों को जल्द सुनवाई को हक़ हो?
दुष्यंत दवे की चिट्ठी के बाद, अर्नब गोस्वामी की पत्नी ने भी एक चिट्ठी लिखकर उन पर अपने पति को चुनकर निशाना बनाने की बात कही.
उन्होंने तीन मामलों का ज़िक्र करते हुए ये कहा कि उनमें भी याचिका दायर करने के अगले ही दिन उसे सुप्रीम कोर्ट के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया था, और ऐसे में इस मामले की आलोचना करना सही नहीं है.
There again goes my friend Dushyant Dave throwing mud at the judiciary like his equally holier than thou comrade in arms Prashant Bhushan. It never occurred to him that the matter may have been listed because it appeared a perverse case of custody demanding immediate attention
— Mahesh Jethmalani (@JethmalaniM) November 10, 2020
वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने भी ट्वीट कर कहा कि दुष्यंत दवे को ये भी सोचना चाहिए कि, "ये मामला इसलिए सूचीबद्ध किया गया हो क्योंकि ये हिरासत में रखे जाने का ऐसा विकृत मामला लगता है, जिस पर फ़ौरन ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है."
बीबीसी से बातचीत में महेश जेठमलानी ने कहा कि दवे ने आलोचना दोहरे मापदंड पर की है, "कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ख़ुद ही संज्ञान लेकर सुनवाई करता है, ये सब केस पर निर्भर है, ऐसे एक केस पर शोर मचाना सही नहीं है."
इन आरोपों के जवाब में दुष्यंत दवे ने भी कई ऐसे मामलों की चर्चा की, जिनमें लंबे समय से हिरासत में होने के बावजूद सुनवाई की तारीख़ नहीं मिली है या बहुत देर से दी गई है.
उनके समर्थन में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने भी ट्वीट कर इसे प्रशासनिक ताक़त का ग़लत इस्तेमाल बताया.
Read SCBA Pres Dushyant Dave's stinker to SC Registrar. When life & death matters like CAA, 370, Habeas Corpus, Electoral bonds etc are not listed for months, Arnab Goswami's petitions are listed in hours. Is he a Super Citizen? Gross abuse of admn power! https://t.co/9PFDHOhsJp
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) November 10, 2020
उन्होंने लिखा, "जब ससीएए, 370, हेबियस कॉर्पस, इलेकटोरल बॉन्ड्स जैसे मामले कई महीनों तक नहीं सूचीबद्ध होते, तो अर्नब गोस्वामी की याचिका घंटों में कैसे सूचीबद्ध हो जाती है, क्या वो सुपर सिटिज़न हैं?"
दूसरी ओर दुष्यंत दवे ने कहा, "ज़मानत और सुनवाई का हक़ ऐसे सैंकड़ों लोगों को नहीं दिया जा रहा, जो सत्ता के क़रीब नहीं हैं, ग़रीब हैं, कम रसूख़वाले हैं या जो अलग-अलग आंदोलनों के ज़रिए लोगों की आवाज़ उठा रहे हैं, चाहे ये उनके लिए ज़िंदगी और मौत का सवाल हो."
सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामले
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के मुताबिक़ एक नवंबर 2020 को अदालत में 63,693 मामले लंबित थे. राज्य सभा में क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद की ओर से दिए गए एक जवाब के मुताबिक़ पिछले दो सालों में सुप्रीम कोर्ट में केस की सुनवाई पूरी करने के मामलों में तेज़ी आई है.
साल 2017 में 13,850 के मुक़ाबले साल 2018 में 43,363 और साल 2019 में 45,787 मामलों की सुनवाई पूरी की गई. लेकिन इस साल कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से अदालत के काम पर बड़ा असर पड़ा.
'सेंटर फ़ॉर लॉ एंड पॉलिसी रिसर्च' के मुताबिक़ अप्रैल महीने में सुप्रीम कोर्ट ने 355 निर्देश दिए, जबकि साल 2018 के इसी महीने में ये आँकड़ा 10,586 और 2019 में 12,084 था.
दुष्यंत दवे के मुताबिक़ बार एसोसिएशन के अध्यक्ष होने के नाते पिछले महीनों में उनके पास कई वकीलों ने अपने केस की सुनवाई न हो पाने के बारे में शिकायत की है.
उन्होंने कहा, "कोरोना से जुड़ी बंदिशों से पहले 15 बेंच बैठा करती थीं, पर अब 7-8 ही बैठती हैं और वो भी कम समय के लिए, छोटे वकीलों के मामले पीछे हो रहे हैं और रसूखवाले वकील सुनवाई करवा पा रहे हैं, ऐसे में तकनीकी बदलाव लाने होंगे और एक-एक केस की लड़ाई नहीं बल्कि सिस्टम को ठीक करना होगा."
महेश जेठमलानी मानते हैं कि हर अदालत एकदम सही चले, ये ज़रूरी नहीं, लेकिन मोटे तौर पर सुप्रीम कोर्ट ठीक ही चल रही है और हर व़क्त न्यायपालिका पर सवाल उठाना सही नहीं है.
उन्होंने कहा, "एक-दो मामलों में चूक हो भी सकती है, कभी हेबियस कॉर्पस की याचिका नहीं सुनी जाती, क्योंकि देश की सुरक्षा या अन्य वजहें होती हैं, वर्ना मैं भी जाना-माना वकील हूँ, लेकिन अपने केस भी हमेशा सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करवा पाऊँ, ये ज़रूरी नहीं."(bbc)