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सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी को जमानत दी। इसके अलावा 2 अन्य को भी जमानत दी गई।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और इंदिरा बनर्जी की एक अवकाश पीठ वर्तमान में रिपब्लिक टीवी एंकर अर्नब गोस्वामी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के 9 नवंबर के आदेश को चुनौती दी गई है जिसमें उन्हें अन्वय नाइक की आत्महत्या मामले में अंतरिम जमानत से इनकार कर दिया था। सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि क्या आत्महत्या के उकसाने के लिए अपराध को पैसे का भुगतान न करने के लिए आमंत्रित किया जा सकता है, गोस्वामी की हिरासत और उच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम राहत से इनकार करने के खिलाफ कड़ी मौखिक टिप्पणियां भी कीं।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, "आत्महत्या के एक मामले के लिए सक्रिय रूप से उकसाना और प्रोत्साहन देना पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति पर पैसा बकाया है, तो क्या यह आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला है? ए का ही पर बकाया है। वित्तीय तनाव के कारण बी ने आत्महत्या कर ली, क्या ये आत्महत्या के लिए उकसाना है ? यह धारा 306 आईपीसी के तहत अपराध को आकर्षित करता है? हम यहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ काम कर रहे हैं और क्योंकि उन पर पैसा बकाया था, नाइक ने वित्तीय तनाव के कारण आत्महत्या कर ली। क्या यह हिरासत में पूछताछ के लिए मामला है?"
वो इतने पर भी नहीं रुके, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भी टिप्पणी की: "यदि एफआईआर लंबित है, जमानत नहीं दी जाती है तो यह न्याय का मखौल होगा।" उन्होंने पूछा, "अगर हम एक संवैधानिक अदालत के रूप में कानून नहीं बनाते हैं और स्वतंत्रता की रक्षा नहीं करते हैं तो कौन करेगा?" उच्च न्यायालय ने अधिकार क्षेत्र का त्याग किया न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने निराशा भी व्यक्त की कि उच्च न्यायालय एक नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने में विफल रहा।
यदि भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध का गठन किया जाता है, तो उच्च न्यायालय ने उस पहलू से निबटा नहीं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, "हाईकोर्ट ने हैबियस के सुनवाई योग्य ना होने पर टनों पन्नों लिख दिए जबकि ये प्रार्थना वापस ले ली गई थी।" उन्होंने कहा, "अगर यह अदालत आज हस्तक्षेप नहीं करती है, तो हम विनाश के रास्ते पर यात्रा कर रहे हैं। इस आदमी (गोस्वामी) को भूल जाओ। आप उनकी विचारधारा को पसंद नहीं करते तो अपने आप को अलग रखें। अगर मुझ पर छोड़े तो मैं उनका चैनल नहीं देखूंगा। सब कुछ अलग रखें। अगर हमारी राज्य सरकारें ऐसे लोगों के लिए यही करने जा रही हैं, जिन्हें जेल भेजना है, तो सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना होगा।"
जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, "हाईकोर्ट को एक संदेश देना होगा- कृपया व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र का उपयोग करें। हम मामले के बाद मामलों को देख रहे हैं। न्यायालय अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने में विफल हो रहे हैं। लोग ट्वीट के लिए जेल में हैं! " न्यायाधीश ने एक हालिया मामले का भी उल्लेख किया जहां राज्य सरकार के खिलाफ ट्वीट करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में एक महिला को कोलकाता में पेश होने के लिए जारी किए गए पुलिस समन को रोक दिया था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की, "हमारा लोकतंत्र असाधारण रूप से मजबूत और लचीला है। सरकारों को ट्वीट्स को अनदेखा करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए। यह वह आधार नहीं है जिस पर चुनाव लड़ा जाता है।" उन्होंने टिप्पणी की, "अगर आपको कोई चैनल पसंद नहीं है तो उसे न देखें।" जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी टिप्पणी की, "किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को अस्वीकार करने के लिए तकनीकी आधार नहीं हो सकता। यह आतंकवाद का मामला नहीं है।" वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे गोस्वामी के लिए उपस्थित हो रहे हैं। महाराष्ट्र राज्य का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अमित देसाई कर रहे हैं। वरिष्ठ वकील चंदर उदय सिंह अन्वय नाइक नाइक की पत्नी और FIR में शिकायतकर्ता अक्षता नाइक का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच अर्नब गोस्वामी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मौजूद पत्रकार सुचित्र मोहंती के अनुसार अर्नब गोस्वामी की ओर से हरीश साल्वे और महाराष्ट्र सरकार की ओर से कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में अपनी दलीलें रख रहे हैं.
सुनवाई के दौरान अर्नब गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे ने अदालत से कहा कि - "द्वेष के साथ और तथ्य को हटाकर सत्ता के दुरुपयोग पहले भी हुए हैं हम सभी उससे वाकिफ़ हैं. अन्वय नाइक की पत्नी ने बीते साल एक चिट्ठी में साफ़ लिखा था कि आर्थिक तंगी के कारण उन्होंने आत्महत्या की. ये आत्महत्या के लिए उकसावे के दायरे में कैसे आता है?"
इसके जवाब में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा,"अगर आत्महत्या आर्थिक तंगी के कारण हुई है तो इसमें धारा 306 लगेगी. इसके बावजूद अगर आज कोर्ट इस मामले में दखल नहीं देती है तो हम विनाश की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. उनकी (अर्नब गोस्वामी) विचारधारा कुछ भी हो ऐसी परिस्थिति में उनका चैनल ना देखें. लेकिन आज संवैधानिक कोर्ट होने के नाते अगर हम इस मामले में दख़ल ना दें ये विनाश के पथ पर आगे बढ़ने जैसा होगा. आज हमें उच्च अदालतों को भी संदेश देना होगा कि वह अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल लोगों की आज़ादी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए करें."
जस्टिस चंद्रचूड़ ने साथ ही कहा, ‘’अगर एफ़आईआर लंबित रहे और ज़मानत ना दी जाए तो ये न्याय का दमन होगा.’’