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रेयर अर्थ तत्वों के मामले में आत्मनिर्भर बनते हुए अब असम और पश्चिम बंगाल में भी जल्दी ही इनका खनन शुरू किया जाएगा. भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) ने वहां इसका पता लगाया है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से पूर्वोत्तर भारत की भूवैज्ञानिक क्षमता पर जारी ताजा अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि असम के कार्बी ग्लांग जिले के जशोरा और सामचंपी परिसरों में रेयर अर्थ तत्वों के भंडार का पता चला है. वहां नियोबियम और इट्रियम जैसे सहायक तत्व भी मौजूद हैं.
व्यापारिक संगठन एसोसिएटेड चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एसोचैम) की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम के सिलसिले में कोलकाता पहुंचे असम सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव अजय तिवारी ने इसकी जानकारी दी. उन्होंने कार्यक्रम में कहा कि असम के दो पर्वतीय जिलों -- दिमा हसाओ और कार्बी आंगलांग -- में अहम खनिजों के भंडार की जानकारी मिली है.
क्या कहती है जीएसआई की रिपोर्ट
जीएसआई की रिपोर्ट के मुताबिक वहां रेयर अर्थ तत्वों का भंडार है. इस बारे में उसकी अंतिम रिपोर्ट मिलते ही खदानों के आवंटन के लिए नीलामी की प्रक्रिया शुरू की जाएगी.
उनका कहना था कि इसके लिए मंजूरी की प्रक्रिया को तेज किया जा रहा है और सरकारी संस्थानों के अलावा निजी कंपनियों के साथ भी शुरुआती बातचीत चल रही है. सरकार खनन उद्योग पर अब खास ध्यान दे रही है.
इसी कार्यक्रम में पहुंचे जीएसआई के निदेशक असित साहा ने डीडब्ल्यू को बताया, पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले में भी रेयर अर्थ तत्वों के भंडारों के मूल्यांकन का काम अग्रिम चरण में है. असम के अलावा यहां भी इसका भंडार होने की संभावना है. अध्ययन पूरा होने के बाद इसकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी जाएगी.
उनके मुताबिक, यह जी-2 स्तर की खोज है. इसका मतलब यह एडवांस स्टेज में है. इस दौरान खनिजों के सैंपल का विश्लेषण कर उनकी गुणवत्ता और वहां मौजूद मात्रा का मूल्यांकन किया जाता है.
रेयर अर्थ तत्वों का महत्व
मौजूदा दौर में रेयर अर्थ तत्वों का काफी महत्व है. इसके खनन और शोध के मामले में चीन पूरी दुनिया में पहले स्थान पर है. भारत भी अपनी जरूरतों के लिए वहीं से आयात करता रहा है. लेकिन चीन की ओर से इसके निर्यात पर पाबंदी लगाने के कारण इसकी सप्लाई चेन में बाधा पैदा हो गई है. उसके बाद ही सरकार ने इन तत्वों के भंडार की तलाश और उनके खनन की कवायद तेज की है.
रेयर अर्थ तत्वों का इस्तेमाल स्मार्टफोन से लेकर तमाम इलैट्कानिक्स उपकरणों के अलावा बिजली के मोटरों, बैटरियों, मिसाइल और रडार प्रणाली, सौर ऊर्जा पैनलों और चिकित्सा उपकरणों समेत विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है. पवन चक्कियों और इलेक्ट्रिक वाहनों में भी इनका इस्तेमाल होता है.
एक विश्लेषणात्मक समूह केयर एज ने बीते सप्ताह जारी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि दुनिया में मौजूद रेयर अर्थ तत्वों के भंडार का करीब आठ फीसदी भारत में है. लेकिन इसके वैश्विक खनन में देश का हिस्सा महज एक फीसदी ही है. ऐसे में इस संसाधन के दोहन से इस मामले में भारत की आत्मनिर्भरता बढ़ने की संभावना है. खनिज क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने इस साल नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन (एनसीएमएम) शुरू किया है.
जीएसआई के मुताबिक, ओडिशा के अलावा केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, झारखंड, और राजस्थान में इन तत्वों के भंडार हैं. अब पश्चिम बंगाल और असम भी इस सूची में शामिल हो जाएंगे.
क्या हैं रेयर अर्थ तत्व?
रेयर अर्थ तत्व 17 रासायनिक तत्वों का समूह है. यह धरती की भीतरी सतह पर पाए जाते हैं. लेकिन इनका खनन और शोधन एक महंगा सौदा है. इसके लिए उन्नत तकनीक की भी जरूरत है. यही वजह है कि विश्व के कई देशों में इसका भंडार होने के बावजूद वहां खनन और शोधन का काम नहीं होता.यह तत्व आधुनिक तकनीक का सबसे अहम हिस्सा बन गए हैं.
रेयर अर्थ तत्वों की खोज वर्ष 1788 में स्वीडन की एक खदान में एक काले रंग की चट्टान के तौर पर हुई थी. वर्ष 1794 में योहान गाडोलिन नामक एक वैज्ञानिक ने इस चट्टान की जांच कर इस मामले में नई जानकारियां दुनिया के सामने रखीं. लेकिन उस समय किसी ने कल्पना तक नहीं की थी कि आगे चल कर यह तत्व इंसान और विज्ञान की जरूरतों का अपरिहार्य हिस्सा बन जाएंगे.
रेयर अर्थ तत्वों का भंडार
पूर्व भूगर्भशास्त्री विश्वरूप कुमार मंडल डीडब्ल्यू को बताते हैं, "दुनिया भर में रेयर अर्थ तत्वों का भंडार करीब 130 मिलियन टन होने का अनुमान है. इसमें 44 टन यानी करीब एक-तिहाई चीन में है. वह इसके खनन और उत्पादन में भी पहले स्थान पर है. उनके मुताबिक, भारत में इसका भंडार 6.9 मिलियन टन होने की संभावना है."
हालांकि रेयर अर्थ तत्वों के खनन के मुद्दे पर पर्यावरण को लेकर भी चिंताएं जताई जा रही हैं. पर्यावरणविदों का कहना है कि इसके बड़े पैमाने पर खनन का पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
पर्यावरणविद प्रोफेसर नलिनी भट्टाचार्य डीडब्ल्यू से कहती हैं, "इस बात में कोई संदेह नही है कि रेयर अर्थ तत्व आधुनिक जीवन का बेहद अहम और अपरिहार्य हिस्सा हैं. देश में मौजूद इसके भंडारों का पता लगा कर उनके दोहन से इस मामले में आत्मनिर्भर होने में काफी मदद मिलेगी. लेकिन इसके साथ ही पर्यावरण के मुद्दे का भी ध्यान रखा जाना चाहिए. कहीं भी इसके खनन की शुरुआत से पहले पर्यावरण पर इसके असर से संबंधित अध्ययन भी अनिवार्य किया जाना चाहिए."
प्रोफेसर भट्टाचार्य का कहना है कि हमें इस मामले में बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है. कहीं ऐसा नहीं हो कि एक चीज हासिल करने के प्रयास में हम पहले से ही चुनौतियों से जूझ रहे पर्यावरण का संतुलन और बिगाड़ दें.