राष्ट्रीय

-इमरान कुरैशी
चेतावनी- कहानी के कुछ विवरण आपको विचलित कर सकते हैं।
कर्नाटक के बेलगावी जि़ले में एक महिला की मौत के मामले में पुलिस ने उनके सास-ससुर और पति को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि संतान न होने की वजह से ससुरालवालों ने महिला की निर्मम हत्या कर दी। इस मामले में पति की भूमिका की भी जाँच की जा रही है।
लेकिन जांच में इस अपराध को अंजाम देने के लिए अपनाया गया जो तरीका सामने आया है उसने महिला एक्टिविस्टों और पुलिस अधिकारियों को भी हैरान कर दिया है।
आरोप है कि शनिवार को 34 साल की रेणुका संतोष होनाकांडे को उनकी सास जयंती होनाकांडे और ससुर कमन्ना होनाकांडे ने मोटरसाइकिल पर अपने साथ ले जाने के लिए बुलाया था।
मामले में शुरुआत में लगा कि रेणुका की मौत मोटरसाइकिल एक्सीडेंट के कारण अथणी तालुका के पास स्थित मलबाडी गांव में हुई है। ये जगह महाराष्ट्र के सांगली जि़ले से कऱीब दो घंटे की दूरी पर है।
लेकिन शुरुआती पुलिस जांच में सामने आया है कि रेणुका को उनके सुसरालवालों ने मोटरसाइकिल से धक्का देकर गिरा दिया था। जब वह नीचे गिरीं तो उनके सिर पर पत्थर मारा गया और साड़ी से गला घोंट दिया गया।
ऐसा इसलिए किया गया ताकि ये एक सडक़ दुर्घटना लगे। इन दोनों बुजुर्गों की उम्र 64 और 62 साल है। इसके बाद बुजुर्ग दंपत्ति ने रेणुका की साड़ी को मोटरसाइकिल के पिछले पहिए से बांध दिया और करीब 120 फीट तक उसे घसीटा।
पति की क्या भूमिका थी?
बेलगावी पुलिस के एसपी भीमशंकर गुलेद ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘बुजुर्ग दंपत्ति को हत्या के मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया और रेणुका के पति संतोष होनाकांडे को भी कस्टडी में ले लिया गया है। हालांकि वो क्राइम सीन पर मौजूद नहीं थे।’
एसपी गुलेद ने बताया, ‘पत्नी की हत्या की साजि़श में उनकी (संतोष होनाकांडे) की भूमिका की जांच की जा रही है। उन्हें दहेज निषेध अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया है। संतोष ने पत्नी के परिवार से दहेज के रूप में पांच लाख रुपये की मांग की थी और इसमें से पिछले महीने ही उन्हें पचास हज़ार रुपये मिले थे।’
अधिकारी ने बताया कि संतोष पुणे में स्थित एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते हैं। अधिकारियों ने कहा, ‘ऐसा नहीं था कि वह (महिला) कम पढ़ी लिखी थी। उनकी पत्नी बीएमएस डिग्री के साथ डॉक्टर थीं।’
एसपी ने बताया कि महिला को संतान न होने के कारण उनकी हत्या की गई। एसपी भीमाशंकर ने कहा, ‘संतोष ने दूसरी महिला से भी शादी की हुई है और वो गर्भवती हैं।’
हिंसा का बर्बर तरीका
महिला एक्टिविस्टों का कहना है कि महिलाओं के खिलाफ जिस तरह की हिंसा हो रही है, पिछले कुछ सालों में उसका तरीक़ा बदला है।
उनके अनुसार, रेणुका के मामले और हाल के कुछ अन्य मामलों में जो तरीक़े अपनाए गए हैं, वो पहले की तुलना में कहीं ज़्यादा बर्बर और अमानवीय होते जा रहे हैं।
एक महिला अधिकार संगठन ‘अवेक्षा’ की डोना फर्नांडिस ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘हमने 1997 में बेंगलुरु में एक स्टडी की थी और यहां दहेज उत्पीडऩ के कारण हर महीने कऱीब 100 महिलाओं की मौत हो रही थी। इनमें से करीब 70 फीसदी महिलाओं की मौत जलने के कारण हुई। आज भी हालात ज़्यादा नहीं बदले हैं, क्योंकि कानून प्रभावी साबित नहीं हो पाए हैं।’
उन्होंने कहा, ‘ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जहां पुरुष जानबूझकर ऐसे गाड़ी चलाते हैं कि महिला की मौत हो जाए या वह वह गंभीर रूप से घायल हो जाए। इसके बाद वह दोबारा दहेज लेकर शादी कर लेते थे। अब हिंसा के रूप बदल गए हैं।’
ग्लोबल कंसन्र्स इंडिया एंड मुक्ति अलायंस अगेंस्ट ह्यूमन ट्रैफिकिंग एंड बॉन्डेड लेबर की डायरेक्टर बृंदा अडिगे ने कहा, "जैसा कि बेलगावी मामला सामने आया है, जिस तरह की हिंसा की जा रही है, वह क्रूरता है क्योंकि कानून को गंभीरता से नहीं लिया जाता।’
कानून तो है, लेकिन लागू होने पर सवाल
बृंदा अडिगे ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘पुलिस थाने में कोई भी केस दर्ज कराने में समय लगता है क्योंकि उन्हें सबूत तलाशने पड़ते हैं कि कहीं महिला ने तो इस मामले में उकसावे वाली कोई गतिविधि नहीं की है। दूसरा, जब मामला कोर्ट तक पहुंचता है तो पुलिस बहुत कम सबूत पेश करती है।’
‘हमें लगता है कि पुलिस शिकायत दर्ज होने के तुरंत बाद कार्रवाई नहीं करती है या उसके 24 घंटे के भीतर सबूत नहीं जुटाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो फिर कोर्ट में बहाने बनाए जाते हैं। हम मान लेते हैं कि उन्होंने सारे नियमों का पालन किया भी तो भी कोर्ट परिस्थितिजन्य सबूतों को स्वीकार नहीं करती।’
वहीं फर्नांडिस ने उदाहरण देते हुए कहा, ‘स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि 498ए को लागू करने के नियम भी बदल चुके हैं। अब महिलाओं को पहले काउंसलिंग दी जाती है, उसके बाद ही 498ए (या बीएनएसएस की धारा 85) के तहत जांच शुरू की जाती है। पति दोबारा थाने नहीं आता और महिला अकेली पड़ जाती है। पुरुष बच निकलते हैं क्योंकि पुलिस इसे ‘काउंसलिंग नाकाम रही’ कहकर दर्ज कर लेती है। यह एक बेहद दुखद स्थिति है।’
इस तरह के मामलों को अलग-अलग स्तर पर जिस तरह से निपटाया जाता है, उसे लेकर एक्टिविस्ट्स सवाल उठाते हैं।
कर्नाटक पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि साल 2023 के दिसंबर महीने तक पति की ओर से क्रूरता किए जाने के कुल 3005 मामले दर्ज हुए थे। वहीं दहेज के लिए होने वाली मौतों की संख्या 156 थी। वहीं साल 2024 के अंत में पति की क्रूरता से जुड़े 2,943 केस दर्ज किए गए थे और दहेज के लिए होने वाली मौतों की संख्या 110 थी।
अप्रैल 2025 तक ये आंकड़े क्रमश: 946 और 45 हैं।
इस बीच पुणे के मुलशी इलाके की वैष्णवी हगावने की मौत का मामला भी चर्चा में है। शुरुआत में ये कहा गया कि उन्होंने आत्महत्या की थी।
हालांकि, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके शरीर पर मारपीट के निशान पाए गए। उनके माता-पिता ने आरोप लगाया कि वैष्णवी को दहेज के लिए प्रताडि़त किया जा रहा था और उसकी हत्या कर दी गई।
पुलिस ने इस मामले में वैष्णवी के पति शशांक हगावने, सास लता हगावने और ननद करिश्मा हगावने, ससुर हगावने और उनके दूसरे बेटे सुशील हगावने को गिरफ्तार कर लिया।
अडिगे कहती हैं, ‘मामले तो बढ़ रहे हैं, लेकिन सज़ा की दर तीन प्रतिशत से भी कम है। अगर एक महिला शादीशुदा है तो उसे अप्सरा की तरह दिखना चाहिए। यह मायने नहीं रखता कि उसने कितनी पढ़ाई की है। सब कुछ दहेज, संतान पैदा करना और वह भी बेटा।। इन्हीं बातों पर आधारित होता है। ये मायने नहीं रखता कि वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर है, डॉक्टर है या एस्ट्रोनॉट।’ (bbc.com/hindi)