राष्ट्रीय
बचावकर्मियों ने उत्तराखंड के हिमस्खलन में फंस कर मरे सभी आठ लोगों के शव बरामद कर लिए हैं. इसके साथ ही शुक्रवार से चला आ रहा बचाव अभियान खत्म हो गया है.
रविवार को सेना ने बचाव अभियान खत्म होने की जानकारी दी. शून्य से नीचे के तापमान पर चल रहा बचाव अभियान उनके लिए भी बड़ी चुनौती था. शुक्रवार को 50 से ज्यादा कर्मचारी बर्फ और मलबे के नीचे दब गए, जब हिमस्खलन हुआ. यह जगह माणा गांव थी जो उत्तराखंड में तिब्बत से लगती सीमा पर मौजूद है.
अधिकारियों को पहले 55 कर्मचारियों के दबे होने की सूचना मिली थी लेकिन बाद में पता चला कि एक कर्मचारी हिमस्खलन से पहले ही अपने घर सुरक्षित पहुंच गया था. सेना ने खोज अभियान में ड्रोन आधारित डिटेक्टशन सिस्टम का इस्तेमाल किया. इसके लिए कई ड्रोन और एक खोजी कुत्ते को काम पर लगाया गया था.
"भगवान ने बचाया"
निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले अनिल ने हिमस्खलन की इस घटना को याद करते हुए अस्पताल के बिस्तर से समाचार एजेंसी एएफपी को फोन पर बताया, "वह भगवान या कोई देवदूत ही था जिसने हमें बचाया. जिस तरह से बर्फ ने अपनी चपेट में सब को ले लिया, हमारे लिए बचने की कोई उम्मीद नहीं थी." अनिल अगले कुछ वर्षों में 30 साल के हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि जिंदा बचना "किसी सपने जैसा" लग रहा है.
सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) की परियोजना में काम कर रहे ये लोग निर्माण स्थल पर लोहे के कंटेनरों में रहते हैं. ये कंटेनर टेंट से मजबूत होते हैं और आमतौर पर मौसम की मार सहने में सक्षम होते हैं.
अनिल ने बताया कि बहुत से कर्मचारी गहरी नींद में थे और जब शुक्रवार सुबह छह बजे हिमस्खलन हुआ तब कुछ लोग अस्थाई शौचालयों में थे. उनके नीचे से जमीन हिल गई. जिस कंटेनर में अनिल और उनके साथी सो रहे थे वह फिसल कर नीचे की तरफ जाने लगा.
चारों तरफ केवल बर्फ
अनिल ने कहा, "पहले तो हमें समझ में ही नहीं आया कि हो क्या रहा है लेकिन फिर जब हमने कंटेनर की खिड़की से देखा तो चारों तरफ केवल बर्फ नजर आई. कंटेनरों की छत भी धीरे धीरे अंदर की तरफ मुड़ने लगी थी." हर कोई मदद के लिए चीखने चिल्लाने लगा और कुछ लोग खुशकिस्मत थे कि वे कंटेनर से बाहर निकल गए. लेकिन हर कोई बाहर नहीं निकल सका और वे वहीं फंस गए.
अनिल के साथी विपन कुमार जब खुद को हिला पाने में असमर्थ हो गए और बर्फ की मोटी परत के नीचे दब गए तो उन्हें लगा कि, "सब खत्म हो गया" उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार से कहा, "मुझे एक जोरदार आवाज सुनाई दी, जैसे बिजली कड़की हो...इससे पहले कि मैं कुछ कर पाऊं सब कुछ अंधेरे में घिर गया."
3,200 की ऊंचाई पर न्यूनतम तापमान माइनस 12 डिग्री सेल्सियस था. धन सिंह बिष्ट, उनका बेटा और भतीजा आज इसलिए जिंदा हैं क्योंकि बचाव दल ने तुरंत कार्रवाई की और उन्हें निकाल लिया. उन्होंने एएफपी से कहा, "मैं उनका शुक्रगुजार हूं."
हिमालय के इन ऊपरी इलाकों में हिमस्खलन और भूस्खलन आम बात है, खासतौर से सर्दियों के मौसम में. वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन मौसमों को और ज्यादा भीषण बना रहा है. इस बीच इन इलाकों में जंगलों की कटाई विकास और निर्माण की परियोजनाओं में भी काफी तेजी आई है जिसने स्थिति और बिगाड़ दी है.
2021 में जब उत्तराखंड में एक विशाल ग्लेशियर पानी में गिर गया और उसकी वजह से बाढ़ आ गई तो करीब 100 लोगों की मौत हुई थी. इसी तरह मानसून की बाढ़ और भूस्खलन ने 2013 में करीब 6,000 लोगों की जान ली थी. इस घटना के बाद विकास परियोजनाओं की समीक्षा की मांग उठी थी.
एनआर/वीके (एएफपी)