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तेलंगाना में एक सुरंग परियोजना पर काम करने वाली टीम के आठ सदस्य सुरंग के एक हिस्से के ढह जाने की वजह से पांच दिनों से फंसे हुए हैं. सवाल उठ रहे हैं कि आखिर भारत में अक्सर इस तरह के हादसे क्यों हो रहे हैं.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
श्रीसैलम लेफ्ट बैंक कैनाल (एसएलबीसी) सुरंग परियोजना में हुए हादसे के बाद फंसे हुए आठ कर्मियों को बचाने के लिए बचाव कार्य अभी भी जारी है, लेकिन कोई सफलता हासिल नहीं हुई है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक बचावकर्मी लगभग सुरंग के अंत तक पहुंच गए थे, लेकिन फिर भी फंसे हुए कर्मियों तक नहीं पहुंच पाए.
जहां आठों लोग फंसे हुए हैं उसे हिस्से में लगातार पानी और कीचड़ आ रहा है, जिस वजह से बचावकर्मी पहुंच नहीं पा रहे हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), एसडीआरएफ के कर्मियों के अलावा भारतीय नौसेना के मार्कोस कमांडो ने भी उस इलाके तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन वे पानी और कीचड़ को पार नहीं कर पाए.
कैसे हुआ हादसा
एसएलबीसी सुरंग परियोजना एक सिंचाई परियोजना का हिस्सा है जिसके तहत तेलंगाना के श्रीसैलम जलाशय से पास के नालगोंडा जिले में सिंचाई और पीने के लिए पानी उपलब्ध कराने की योजना है. 22 फरवरी को इस परियोजना के तहत चल रही सुरंग की खुदाई के बीच सुरंग की छत का एक हिस्सा अचानक ढह गया.
उस वक्त वहां खुदाई टीम के कई सदस्य मौजूद थे जिनमें से कुछ लोग बच निकलने में सफल रहे लेकिन आठ लोग वहीं फंस गए. उन्हें बचा कर निकाल लाने के लिए बचाव कार्य चार से भी ज्यादा दिन से चल रहा है लेकिन अभी तक सफलता हाथ नहीं लगी है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक राज्य सरकार को जानकारों ने बताया है कि सुरंग के ऊपर स्थित पहाड़ों से अचानक की छत में पानी आ गया जिसकी वजह से सुरंग की छत की मिट्टी ढीली हो गई और फिर छत ढह गई. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक एक विशेषज्ञ ने सरकार को बताया कि अमूमन सुरंग बनाने में इस तरह मिट्टी धंसती नहीं है, लेकिन यह सुरंग ऐसी जगह बनाई जा रही थी जहां मिट्टी धंसने के हादसे अक्सर होते हैं.
ड्रिलिंग की वजह से खतरा बढ़ गया और आखिर छत ढह गई. बल्कि मंगलवार 25 फरवरी को बचाव कार्य भी इसलिए रोकना पड़ा क्योंकि जानकारों का कहना था कि मिट्टी धंसे की और भी घटनाओं की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है. हालांकि इस परियोजना में वाकई ढांचागत जोखिम था या नहीं इस पर आधिकारिक रूप से राज्य सरकार ने अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है.
फंसे हुए लोगों को लेकर चिंता
बचाव कार्य पांचवें दिन में प्रवेश कर चुका है और अब फंसे हुए आठों लोगों को लेकर चिंताएं गहराती जा रही हैं. उन्हें खाने पीने की चीजें पहुंचाना तो दूर अभी तक उनमें से किसी से भी किसी तरह का संपर्क नहीं हो पाया है. तेलंगाना के उप-मुख्यमंत्री भट्टी मल्लू विक्रमार्का ने वादा किया है कि जब तक आठों लोग मिल नहीं जाते तब तक राज्य सरकार अपने हाथ खड़े नहीं करेगी.
अब सूंघने वाले कुत्तों की मदद से उन का पता लगाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या इस तरह की परियोजनाओं को हरी झंडी इनमें काम करने वाले लोगों की जान को ताक पर रख कर दी जाती है. यह बीते लगभग एक साल में इस तरह का तीसरा हादसा है.
नवंबर 2023 में उत्तराखंड के उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग की खुदाई में भी इसी तरह सुरंग के ढह जाने से 41 कर्मी अंदर फंस गए थे. करीब 16 दिनों तक चले बचाव अभियान के बाद सभी कर्मियों को बचा लिया गया. हालांकि उस हादसे और तेलंगाना के हादसे में एक बड़ा फर्क यह है कि बचाव कार्य के पांचवें दिन फंसे हुए लोगों से संपर्क कर उन तक खाने पीने का सामान भी पहुंचा दिया गया था. और वहां पानी और कीचड़ जैसी अड़चनें भी नहीं थीं.
एक और सुरंग हादसा जनवरी, 2025 में असम के दीमा हसाओ जिले में हुआ था. एक अवैध खदान में खुदाई के दौरान पास में स्थित एक बेकार पड़ी खदान से अचनाक पानी घुस आया जिसकी वजह से नौ खनिक उस खदान में फंस गए.
44 दिनों तक चले बचाव अभियान के अंत तक खनिकों को बचाया नहीं जा सका. सभी खनिकों के गले हुए शव बरामद हुए. (dw.com/hi)