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भारत में बाघ बचाने की कोशिशें रंग लाईं, दोगुने हुए बाघ
22-Feb-2025 12:58 PM
भारत में बाघ बचाने की कोशिशें रंग लाईं, दोगुने हुए बाघ

पिछले दशक में भारत में बाघों की संख्या दोगुनी होकर लगभग 3,682 हो गई है. बाघ अब उस जगह पर भी अच्छी संख्या में हैं जहां इंसान रहते हैं, पर इससे आस-पास रहने वाले समुदायों पर क्या असर पड़ेगा?

डॉयचे वैले पर फ्रेड श्वालर की रिपोर्ट-

तेजी से बढ़ते शहरीकरण और इंसानी आबादी के बावजूद, दुनिया के करीब तीन-चौथाई बाघ अब भारत में रहते हैं. ‘साइंस' में प्रकाशित एक नए अध्ययन के मुताबिक, 2010 से 2022 तक भारत में बाघों की अनुमानित संख्या 1,706 के मुकाबले दोगुनी से ज्यादा लगभग 3,700 हो गई है.

बाघों की आबादी में जो सुधार हुआ है, वह इसलिए हुआ है क्योंकि उन्हें बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए गए हैं. उनकी रहने की जगह को भी सुरक्षित किया गया है और उन्हें शिकारियों से भी बचाया गया है.

रिसर्चरों का मानना है कि इससे दुनिया भर में बाघ को बचाने के कार्यक्रमों के लिए अहम सबक मिलेंगे.

भारतीय वन्यजीवसंस्थान में संरक्षक और नए अध्ययन के प्रमुख लेखक यादवेंद्रदेव विक्रमसिंह झाला ने कहा, "ऐसी जगहें बनाने से जहां इंसान नहीं रहते, बाघों को बच्चे पैदा करने और अपनी संख्या बढ़ाने में मदद मिली. फिर वो वहां से आसपास के जंगलों में भी फैल गए जहां इंसानों की आवाजाही होती है.”

2010 से 2022 के बीच, भारत में बाघों के रहने वाले इलाके में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो सालाना लगभग 1,131 वर्ग मील (2,929 वर्ग किलोमीटर) है. बाघ अब भारत में 53,359 वर्ग मील (1,38,200 वर्ग किलोमीटर) में फैले हुए हैं, जो इंग्लैंड के आकार का क्षेत्र है.

क्या इंसान और बाघ साथ-साथ रह सकते हैं?
भारतीय संरक्षक हर चार साल में बाघों के रहने की जगहों का सर्वे करते हैं. इस दौरान बाघों की संख्या, उनके शिकार और रहने की अच्छी जगहों की जानकारी इकट्ठा की जाती है. 

बाघ सुरक्षित और शिकार से भरपूर इलाकों में तो खूब बढ़े, लेकिन उन्होंने ऐसी जगहों पर भी रहना सीख लिया है जहां लगभग 6 करोड़ लोग खेती-बाड़ी करते हैं और बस्तियों में रहते हैं, यानी टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के बाहर.

रिसर्च में पता चला है कि बाघों के रहने वाले इलाकों में से केवल 25 फीसदी इलाके ही ऐसे हैं जहां शिकार की कोई कमी नहीं है और जो सुरक्षित भी हैं. लगभग 50 फीसदी इलाकों में बाघ करीब 6 करोड़ लोगों के साथ रहते हैं.

वन्यजीव संरक्षणक रवि चेल्लम ने कहा कि बाघों की आबादी को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि इंसान और बाघों के लिए साझी जमीन हो. चेल्लम ने कहा, "अब यह माना जाता है कि बड़ी बिल्लियां इंसानों के साथ रहकर भी जिंदा रह सकती हैं और अच्छे से रह सकती हैं. चुनौतियां और मुश्किलें तो हैं, पर ज्यादातर लोग समझते हैं कि बाघ जैसे जानवरों वाले पारिस्थितिक तंत्र कितने जरूरी होते हैं.”

भारत में बाघों के हमलों से हर साल करीब 56 लोगों की मौत होती है. हालांकि यह मृत्यु दर अन्य वजहों से होने वाली मौतों की तुलना में बहुत कम है. जैसे, भारत में हर साल सड़क दुर्घटनाओं की वजह से 1,50,000 लोगों की मौत होती है.

झाला ने कहा कि बाघ और इंसान एक ही जगह पर शांति से रहें, इसके लिए तीन चीजें जरूरी हैं. पहला, स्थानीय लोगों को बड़े मांसाहारी जानवरों के साथ रहने से फायदा हो, ऐसा करना जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि उनसे होने वाली कमाई, इकोटूरिज्म से होने वाली कमाई और अगर कोई नुकसान हो तो उसका मुआवजा, ये सब उनके साथ बांटा जाए.

दूसरा, जो जानवर परेशानी खड़ी करते हैं और इंसानों के लिए खतरा हैं, उन्हें इंसानी बस्तियों से दूर ले जाना. तीसरा, कुछ बदलाव करना. जैसे, खुले में शौच से जुड़ी समस्या खत्म करना, यह सुनिश्चित करना कि लोग जंगल वाले इलाकों में समूहों में घूमें, पर्याप्त रोशनी और सुरक्षित आवास की व्यवस्था करना और मवेशियों के लिए सुरक्षित जगह बनाना.

आंकड़े बताते हैं कि बाघों के आवास कम हो गए हैं
भारत के बेंगलुरु में कार्नासियल्स ग्लोबल में पारिस्थितिकीविद् अर्जुन गोपालस्वामी एक दशक से बाघों की आबादी पर नजर बनाए हुए हैं. उन्होंने कहा कि नए अध्ययन के निष्कर्ष दूसरे आंकड़ों से उलट हैं जो दिखाते हैं कि हाल के वर्षों में बाघों के प्राकृतिक आवास कम हो गए हैं.

गोपालस्वामी ने डीडब्ल्यू को बताया, "पिछली रिपोर्टों से पता चलता है कि बाघों के रहने की जगह काफी कम हो गई है. यह 2006 और 2018 के बीच 10,000 से 50,000 वर्ग किलोमीटर तक घट गई है.

उन्होंने कहा, "यह कहना मुश्किल है कि पिछले दो दशकों में भारत में बाघों की संख्या बढ़ी है, घटी है या स्थिर रही है.”

बाघों की घटती संख्या एक लंबे समय से चली आ रही प्रवृत्ति का हिस्सा है, क्योंकि सदियों से उनका शिकार किया जा रहा है और उनके रहने की जगहें नष्ट की जा रही हैं. यह सब बहुत पहले शुरू हुआ था, जब औपनिवेशिक काल यानी अंग्रेजों के राज में जानवरों को मारने पर इनाम दिया जाता था.

गोपालस्वामी ने कहा कि अलग-अलग नतीजों के कारण, जमीन पर अलग-अलग काम किए जा रहे हैं, जिनमें विरोधाभास भी है.  उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए, ‘साइंस' पेपर में बताया गया है कि बाघ भारत में नए इलाकों में फैल रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ, अधिकारी बाघों को अलग-थलग होने से बचाने के नाम पर उन्हें एक रिजर्व से दूसरे रिजर्व में ले जा रहे हैं.”

गोपालस्वामी का कहना है कि बाघों की संख्या और उनके प्राकृतिक आवासों के बारे में सही जानकारी जुटाने के लिए और ज्यादा वैज्ञानिक तरीके अपनाने चाहिए, ताकि उन्हें बचाने के लिए बेहतर काम किया जा सके. (dw.com/hi)


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