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भारतीय मूल के गुरदीप सिंह रंधावा को जर्मनी की एक प्रमुख पार्टी ने सांसद पद का उम्मीदवार बनाया है. वे इसे जर्मनी में भारतीयों की बढ़ती साख के रूप में देखते हैं और भारत-जर्मनी के संबंधों को और आगे बढ़ाना चाहते हैं.
डॉयचे वैले पर आदर्श शर्मा की रिपोर्ट-
जर्मनी में 23 फरवरी को आम चुनावहोने हैं. इसके बाद तय होगा कि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में अगली सरकार कौन बनाएगा. इसके अलावा, यह भी पता चल जाएगा कि भारतीय मूल के गुरदीप सिंह रंधावा जर्मनी की संसद बुंडेसटाग में पहुंचेंगे या नहीं. गुरदीप को क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन यानी सीडीयू ने सांसद पद के लिए उम्मीदवार बनाया है.
सीडीयू जर्मनी की सबसे पुरानी और प्रमुख पार्टियों में से एक है. जनमत सर्वेक्षणों में सीडीयू और इसकी सहयोगी पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) को सबसे ज्यादा वोट मिलते दिख रहे हैं. इन्हें देश भर में 30 से 35 फीसदी वोट मिलने की संभावना जताई जा रही है. हालांकि, गुरदीप के राज्य थुरिंजिया में सीडीयू धुर-दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी से कड़े मुकाबले का सामना कर रही है.
थुरिंजिया में पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में एएफडी (आल्टरनेटिव फॉर जर्मनी) सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. यहां उसे 32 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे. हालांकि बाकी दलों ने उसके साथ मिलकर सरकार बनाने से इनकार कर दिया था. जिसके बाद राज्य में दूसरे नंबर पर रही सीडीयू के नेतृत्व में सरकार बनी थी. सीडीयू नेता मारियो फॉइग्ट फिलहाल थुरिंजिया के मुख्यमंत्री हैं.
हार-जीत से नहीं पड़ता फर्क: गुरदीप
गुरदीप पिछले 40 सालों से जर्मनी में रह रहे हैं. वे साल 1984 में जर्मनी आए थे और फिर यहीं के होकर रह गए. वे कहते हैं कि उन्हें इस चुनाव में हार या जीत से कोई फर्क नहीं पड़ता. उनके लिए यही बड़ी बात है कि सीडीयू जैसी पार्टी ने उन्हें सांसद पद का उम्मीदवार बनाया. गुरदीप ने डीडब्ल्यू हिंदी को बताया कि पार्टी की चयन समिति के 90 फीसदी से ज्यादा सदस्यों ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था.
गुरदीप का कहना है कि सालों की मेहनत के बाद वे इस मुकाम तक पहुंचे हैं. अपने राजनीतिक सफर के बारे में उन्होंने कहा, "पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के एकीकरण के बाद मैं सीडीयू को पसंद करने लगा था. शुरुआत में मैंने अपने इलाके में सीडीयू उम्मीदवारों का समर्थन करना शुरू किया और साल 2000 के बाद सक्रिय रूप से पार्टी के लिए काम करने लगा. समय के साथ पार्टी ने काउंटी और जिले से लेकर राज्य स्तर तक मुझे अहम जिम्मेदारियां सौंपीं.”
गुरदीप के पिता भारतीय सेना में अफसर थे इसलिए उनकी शुरुआती पढ़ाई सेना के स्कूलों में हुई. वे कहते हैं कि इस वजह से उनकी सोच काफी उदार है और वे सभी समुदायों को साथ लेकर चलना पसंद करते हैं. वे खुद को एक सिख नेता नहीं बल्कि पूरे भारतीय समुदाय का प्रतिनिधि मानते हैं. हालांकि, वे यह भी कहते हैं कि जर्मनी में सिर्फ भारतीय मूल के लोगों के वोट से चुनाव नहीं जीता जा सकता, इसके लिए स्थानीय जर्मन नागरिकों का भरोसा जीतना जरूरी है.
जर्मनी में भारत का सम्मान बढ़ाने की कोशिश
गुरदीप अपनी सबसे बड़ी कामयाबी इस बात को मानते हैं कि उन्होंने जर्मनी में प्रवासी भारतीयों की एक अच्छी पहचान बनाई है. वे चाहते हैं कि और भी भारतीय जर्मनी की राजनीति में हिस्सा लें और अहम पदों पर पहुंचे. 64 साल के गुरदीप कहते हैं, "हम नई पीढ़ी के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं जिससे वे जर्मनी की राजनीति में हमसे भी ज्यादा सफल हो सकें.”
गुरदीप कहते हैं कि वे सीडीयू पार्टी के भीतर भी भारत और भारतीय प्रवासियों की छवि को बेहतर बना रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि अगर सीडीयू के नेतृत्व में अगली सरकार बनती है तो वे भारत-जर्मनी के संबंधों को और मजबूत करने में अहम भूमिका निभाएंगे.
सीडीयू नेता और थुरिंजिया के मुख्यमंत्री मारियो फॉइग्ट भी भारत और जर्मनी के संबंधों को मजबूत करने की बात कहते हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा, "यहां जर्मनी में बहुत सारे सक्रिय भारतीय हैं, जो हमारे समाज को फायदा पहुंचा रहे हैं. हम भारत के साथ व्यापार समझौतों को आगे बढ़ाना चाहते हैं. इसी तरह कार्यबल को विकसित करने की बात भी है. इस तरह की चीजों से दोस्ती और गहरी होगी.”
सीडीयू ने क्यों जताया गुरदीप पर भरोसा
पिछले साल थुरिंजिया में हुए विधानसभा चुनावों में भी सीडीयू ने गुरदीप सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया था. सीडीयू के गुरदीप सिंह को लगातार मौके दिए जाने के पीछे कई वजहें हैं. थुरिंजिया के मुख्यमंत्री मारियो फॉइग्ट ने डीडब्ल्यू हिंदी से कहा कि हम जर्मनी और भारत के बीच जो संबंध बनाना चाहते हैं, गुरदीप उसके उदाहरण और प्रेरणास्रोत हैं.
मारियो के मुताबिक, गुरदीप थुरिंजिया में सीडीयू के पार्टी बोर्ड में शामिल होने वाले भारतीय समुदाय के पहले व्यक्ति हैं. उन्होंने कहा, "गुरदीप आर्थिक रूप से सोचने वाले व्यक्ति हैं. वे छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के मामले में बहुत अच्छे हैं. उनके भारतीय समुदाय से मजबूत संबंध हैं, जो हमारे लिए बहुत अच्छी बात है. आखिर में, वे भारत के साथ मजबूत संबंध स्थापित कर रहे हैं और यही हम चाहते हैं.” (dw.com/hi)