राष्ट्रीय
सौतिक विस्वास
साल 2008 के नवंबर महीने में मुंबई पर जब आतंकियों ने हमला किया था उस वक्त देविका रोतावन सिर्फ नौ साल की थी. हमलावरों ने उन्हें पैर में गोली मार दी थी.
बाद में उन्हें एक मात्र जीवित हमलावर को अदालत में पहचान लिया था.
पंद्रह साल बाद मैंने देविका से मुलाकात कर जाना कि इस भयावह आतंकी हमले की शिकार होने के बाद उनकी ज़िंदगी कितनी बदल गई.
देविका रोतावन से मेरी पहली मुलाकात 2010 में एक स्लम में हुई थी. इससे दो साल पहले मुंबई में हुए आतंकी हमले में वो घायल होने के बावजूद वो बच गई थीं.
देविका को जिस वक़्त गोली लगी थी, उस समय वो अपनी दसवीं सालगिरह से सिर्फ दो महीने दूर थीं.
उन्हें छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर किए आतंकी हमले में मोहम्मद अजमल कसाब ने पैरों में गोली मार दी थी.
स्टेशन पर इस हमले में 50 लोगों की मौत हो गई थी और 100 लोग घायल हो गए थे. देविका ने जवाबी कार्रवाई में बच गए हमलावर अजमल कसाब को पहचाना था .
देविका हमले की गवाही देने और भरी अदालत में कसाब को पहचानने वाली सबसे छोटी उम्र की गवाह थीं.
उन्होंने अदालत में शपथ लेकर बड़े ही शांत तरीके से वकीलों के सवाल के जवाब दिए थे.
उस वक्त़ मीडिया ने सुर्खियां बनाई थी- ‘वो लड़की जिसने कसाब को पहचाना’.
'मुंबई आतंकी हमले की सबसे छोटी उम्र का शिकार'
मई 2010 में कसाब को मौत की सजा दी गई थी और इसके दो साल बाद उसे फांसी पर लटका दिया गया था.
मई 2010 में जब मैंने देविका से मुलाकात की थी तो वो एक शर्मीली बच्ची थीं. वो लंगड़ा कर चल रही थीं और मुस्कुरा रही थीं.
उन्होंने ज्यादा बातचीत नहीं की थी. उनके एक कमरे के घर के एक कोने में उनका देविका के भाई जयेश हड्डी की बीमारी का शिकार होकर पड़े थे.
ड्राई फ्रूट्स बेचने वाले उनके पिता काम की वजह से घर से बाहर गए हुए थे. उन्हें एक ही चिंता सता रहा थी - अब क्या होगा. घर में बहुत कम सामान था- कुछ प्लास्टिक की कुर्सियां, एक ट्रंक और कुछ बर्तन.
देविका ने उस समय कहा था कि वो बड़ी होकर पुलिस अफसर बनना चाहती हैं.
इस हफ्ते कुछ दिन पहले मैंने रोतावन परिवार से मिलने उनके घर पहुंचा.
देविका अपने 25 साल पूरे करने से एक महीने पीछे रह गई हैं.
वो अब जिंदादिल और पूरी तरह आत्मविश्वास से भरी युवती नजर आती हैं.
रोतावन परिवार एक छोटे अपार्टमेंट के अपने घर में रहता है. अब ज्यादातर बात वही करती हैं. उनके पिता सिर्फ चुपचाप सुनते रहते हैं.
इतने सालों में वो टीवी शो, पोडकास्ट, रिपोर्टरों और लोगों के जमावड़ों बीच एक सांस में हमले के बारे में सुनाती रही हैं.
अब एक बार फिर उन्होंने वैसा ही बेधड़क ब्योरा दिया.
देविका ने बताया कि कैसे उन्होंने पुणे के लिए ट्रेन का इंतजार करते वक्त गोलियां चलने की आवाज़ सुनी और आसपास लोगों को जमीन पर गिरते देखा.
उन्होंने देखा कि बिना किसी खौफ़ के कैसे एक नौजवान लोगों पर गोलियां बरसाता जा रहा था.
देविका ने भागने की कोशिश की लेकिन एक गोली उनका दाहिना पैर छेदते हुए निकल गई.
वो बेहोश होकर गिर पड़ीं.उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. आखिरकार छह बार सर्जरी कराने और 65 दिन अस्पताल में गुजारने के बाद देविका घर लौटीं.
देविका ने पहली बार 11 साल की उम्र में स्कूल जाना शुरू किया. शुरू में स्कूल वालों ने दाखिल करने से इनकार किया. स्कूल वालों का कहना था इससे दूसरे बच्चों पर खतरा आ सकता है.
देविका कहती हैं, "मैंने 2009 में स्पेशल कोर्ट की सुनवाई के दौरान कसाब को पहचान लिया. मैंने उसकी ओर उंगली उठाई. कसाब ने पल भर के लिए उनकी ओर देखा और फिर नजरें झुका लीं.
देविका का अतीत और अब वर्तमान भी 26/11 के हमले से परिभाषित हो रहा है.
पंद्रह साल बाद मुंबई भले ही इस हादसे से आगे बढ़ गया हो लेकिन देविका की जिंदगी पर इसकी छाया बनी हुई है.
इंस्टाग्राम और ट्विटर प्रोफाइल पर भी देविका का हैंडल देविका रोतावन 26/11 के नाम से है.
फेसबुक पर वो ‘’खुद को मुंबई आतंकी हमले की सबसे छोटी उम्र का शिकार’’ बताती हैं.
देविका के परिवार का संघर्ष
उन्हें सिर्फ तारीफ ही नहीं मिलती. उन्हें वित्तीय मदद भी मिलती है.
उनके घर की दीवारों पर 26/11 हमले से जुड़ी यादें चस्पा हैं. उनकी बहादुरी की तारीफ करते हुए सर्टिफिकेट लगे हुए हैं.
पिछले साल मुंबई आए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की एक तस्वीर भी उनके साथ दिख रही है.
दीवार पर टंगी एक पटरी पर लाइन से ट्रॉफियां सजी हैं. बेडरूम में आलमारी के ऊपर प्लास्टिक से कवर किए टैडीबियर रखे हैं, जो उनके प्रशंसकों ने उन्हें दिए हैं.
26/11 के सर्वाइवर के तौर पर देविका अमिताभ बच्चन के शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में भी मेहमान के तौर पर शामिल हो चुकी हैं. ‘इंडियन आयडल’ के एक शो में भी वो आ चुकी हैं.
और मीडिया के बारे में तो पूछिये ही मत. जब भी कोई भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव भरी ख़बर आती है तो पत्रकार उनसे बयान लेने पहुंच जाते हैं.
देविका कहती हैं, ‘’कभी-कभी तो पत्रकार सीधे घर में घुस आते हैं. अजीब हाल है.’’
हालांकि वो इससे नाराज नहीं होती और कभी-कभी अपने बयानों को दिलचस्पी से देखती भी हैं.
इंस्टाग्राम पर वो लिखती हैं, ’’जो कुछ भी करें ये पक्का कर लें कि आपका दिन खुशी-खुशी खत्म हो.’’
लेकिन खुशियां रोतावन परिवार के पास आसानी से नहीं आई हैं. तमाम दूसरे लोगों की तरह वो जीविका के लिए एक तेजी से बदलते शहर की चुनौतियों से जूझते रहे है.
ये परिवार 12 साल चॉल में रहा. वहां से उन्हें हटना भी पड़ा क्योंकि इलाके में पुनर्निर्माण होता रहा था.मुंबई की चॉलों को बड़े चमचमाते कारोबारी दफ़्तरों और अपार्टमेंट्स के लिए कई बार तोड़ा जा चुका है.
आखिरकार रोतावन परिवार को अब जाकर उपनगरीय इलाके में स्लम वालों के पुनर्वास के लिए बनाए गए एक अपार्टमेंट में 25 वर्ग मीटर के मकान में ठिकाना मिल सका है.
लेकिन इसका भी किराया 19 हजार रुपये है, जो परिवार पर जैसे बड़े बोझ की तरह है.
लेकिन सेलेब्रिटी स्टेटस के बावजूद देविका की ज़िंदगी में सब कुछ बेहतरीन नहीं है.
लेकिन 15 साल से चली आ रही उनकी ख्याति ने परिवार को टिकाए रखने में मदद करती रही है.
देविका के पिता 60 वर्षीय नटवरलाल के पास अब कोई काम नहीं है. 26 /11 के हमले के बाद उनका ड्राई फ्रूट्स का बिजनेस चौपट हो गया था.
देविका के भाई जयेश 28 साल का हो गए हैं. उन्हें हाल में ऑफिस असिस्टेंट की नौकरी मिली है. पिछले आठ साल के दौरान देविका को दो किस्तों में 13 लाख रुपये का सरकारी मुआवजा मिला है.
देविका के सपने जिंदा हैं
स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद वो टीबी का शिकार हो गई थीं. इससे उनकी पढ़ाई-लिखाई पर असर पड़ा.
सरकार ने हमले के बाद उन्हें घर देने का वादा किया था. आजकल वो इसी के लिए जोर लगा रही हैं.
मुंबई हमले में बचे लोगों को मदद देने वाला एक प्राइवेट ट्रस्ट देविका की कॉलेज फीस देता है.
इस साल जनवरी में राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो’ यात्रा निकाली तो देविका अपने पिता के गृह प्रदेश राजस्थान में उसमें शामिल हुई थीं. कांग्रेस सरकार ने राजस्थान में उन्हें एक जमीन का प्लॉट दिया है.
देविका अगले साल की शुरुआत में ग्रेजुएशन पूरा कर सकती हैं. राजनीति विज्ञान और मानविकी विषय लेकर पढ़ाई कर रहीं देविका पुलिस अफसर बनना चाहती हैं.
वो कहती हैं, ‘’मैं पिछले कुछ महीनों से नौकरी तलाश रही हूं लेकिन अभी तक नहीं मिली है. मुझे चिंता होती है क्योंकि मुंबई काफी महंगा शहर है.’’
मुंबई हमले जैसी त्रासद घटना के 15 साल बीत जाने के बाद देविका का परिवार अब भी दोस्तों, शुभेच्छुओं और क्लबों को ओर दी जाने वाली थोड़ी-बहुत आर्थिक मदद के जरिये अपना काम चला रहा है.
नटवरलाल कहते हैं,’’हम ऐसे शो के लिए ट्रेन और प्लेन से यात्रा करते हैं जहां देविका को बोलने के लिए बुलाया जाता है. उन्हें वहां सर्टिफिकेट और यहां तक कि पैसे भी दिए जाते हैं.’’
वो कहते हैं, ‘’हमने ऐसे सैकड़ों शो किए हैं.’’ इसी से हमारा गुजारा हो रहा है.
लेकिन ऐसे शो कब तक चलेंगे? कसाब से नत्थी उनकी पहचान के साथ देविका अब कितनी सहज हैं.?
वो कहती हैं,’’ ये पहचान मुझ पर थोप दी गई है. मैं इससे भाग नहीं रही हूं. मैंने इसे अपना लिया है.’’
देविका कहना है,’’ मैं एक दूसरी पहचान भी अपनाना चाहूंगी. मैं पुलिस अफसर बनना चाहती हूं जो आतंकवादियों से देश की रक्षा करे.’’
ऐसे कहते हुए देविका मुस्कुरा पड़ती हैं. सपने शायद ही इतनी आसानी से मरते हैं. (bbc.com)