राष्ट्रीय

वामपंथी उग्रवाद प्रभावित बिहार के गया में ‘सूरज चाचू’ बदल रहे महिलाओं की जिंदगी
सीटू तिवारी
पटना, 19 नवंबर। प्रियांशु कुमारी को अब अपनी पढ़ाई के लिए भरपूर ‘बिजली’ मिल पाती है। वो बिहार राज्य के वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित गया जिले के मोहनपुर ब्लॉक के लखैयपुर गांव की रहने वाली है। उनके आधे कच्चे-आधे पक्के घर में पहली मंजिल तक पहुंचने के लिए सीढ़ी नहीं है, लेकिन पहली मंजिल पर लगी सोलर प्लेट्स ने प्रियांशु को भविष्य के लिए सपने देखने का हौसला दिया है।
सरकारी स्कूल में दसवीं की छात्रा प्रियांशु के इलाके में बमुश्किल रोजाना पांच से छह घंटे बिजली आती है। प्रियांशु का रूटीन देखें तो सुबह का दस बजे तक का वक्त प्राइवेट कोचिंग में बीतता था, उसके बाद दोपहर तीन बजे का वक्त स्कूल में। स्कूल से घर लौटकर प्रियांशु को अपने छोटे भाई बहन और समोस-जलेबी की दुकान चलाने वाली अपनी कामकाजी मां गीता देवी का खाना बनाना पड़ता था।
इन सारे काम से छुट्टी पाने के बाद ही प्रियांशु को पढ़ाई के लिए वक्त मिल पाता था। लेकिन सूरज अस्त होने के साथ ही प्रियांशु की पढ़ाई लिखाई ठप हो जाती थी।
इस बीच छह महीने पहले मुंबई में ड्राइवरी करने वाले प्रियांशु के पिता घर आए तो उसने अपनी ये मुश्किल बताई। प्रियांशु के घर के सामने ही 23 साल अनु कुमारी ने सोलर मार्ट खोल रखा है। अनु की सलाह पर प्रियांशु के घरवालों ने पांच हजार रूपये खर्च करके छत पर सोलर प्लेट्स लगवा दी। इन सोलर प्लेट्स से अंधेरा होते ही तीन बल्ब जगमगा उठते है। घर में हुए इस उजाले के चलते प्रियांशु और उसके भाई बहन देर रात तक पढ़ सकते हैं।
सोलर का ये उजाला प्रियांशु और अनु कुमारी जैसी जीविका दीदीयों के जीवन की गेम चेंजर साबित हो रही है। जीविका, बिहार सरकार की एक योजना है जो ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम कर रही है। राज्य के 38 जिले के 534 ब्लॉक की 1.3 करोड़ महिलाएं इससे जुड़ी हुई है। साल 2006 -07 में वल्र्ड बैंक की मदद से शुरू इस योजना से जुड़ी महिलाओं को जीविका दीदी कहा जाता है।
इन्हीं जीविका दीदीयों ने गया के डोभी ब्लॉक में सौर उपकरण की कंपनी जे -वायर्स (जीविका वूमेन इनीशियेटिव रिनीवेबल एनर्जी साल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड) नाम की कंपनी जनवरी 2020 में शुरू की है।
दरअसल साल 2017 में सौर ऊर्जा को लेकर डोभी में काम शुरू हुआ। सोलर ऊर्जा थू्र लोकसाइजेशन फॉर सस्टेनबिलिटी प्रोजेक्ट के तहत बिहार सरकार, आई आई टी बॉम्बे और केन्द्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने जीविका दीदीयों को एसेंबलिंग, डिस्ट्रीब्यूशन, मेंटीनेंन्स की ट्रेनिंग दी गई। इन्हीं जीविका दीदीयों ने छात्र-छात्राओं के बीच सोलर स्टडी लैंप बांटा। एक सोलर लैंप की एसेंबलिंग करने पर जीविका दीदी को 12 रूपये और डिस्ट्राब्यूशन पर 17 रूपये मिलते।
तकरीबन 1.5 साल तक चले इस प्रोजेक्ट ने जीविका दीदीयों को आर्थिक और मानसिक तौर पर मजबूत किया। वो अब सोलर तकनीशियन बन चुकी थी और वापस घर नहीं बैठना चाहती थी। 23 साल की अनु ने लखैयपुर में सोलर मार्ट खोला है। वो बताती है कि इस प्रोजेक्ट की कमाई से उन्होने 20,000 रूपये बचा लिए थे। इसी रूपयों से उन्होने एक दुकान खोली और गया शहर से बिजली उपकरण (सोलर) लाकर बेचने लगी। जिससे उन्हें हर माह 3 से 4 हजार की कमाई होने लगी।
बाद में जब जे-वायर्स कंपनी खुली तो अनु कुमारी को कंपनी ही सोलर उपकरणों की सप्लाई करने लगी। इस बीच कोरोना पीरियड में अनु को एक निजी कंपनी का सीएसपी (कम्युनिकेशन सर्विस प्रोवाइडर) का काम मिल गया।
बाहरवीं तक पढ़ी अनु बताती है कि सीएसपी में वो 1000 रूपये पर 10 रूपये का कमीशन लेती है और इसने उनकी जिंदगी बदल दी।
अनु अब सोलर उपकरण और सी एस पी से हर महीने औसतन 12 हजार रूपये कमा लेती है। उन्होनें अब एक लैपटॉप और प्रिंटर भी खरीद लिया है। वो कहती है कि अब उनका ससुराल में मान सम्मान बढ़ गया है और उनके प्राइवेट शिक्षक पति इंद्रजीत पासवान भी उनके काम में अनु को मदद करते है।
जीविका में जितेन्द्र तिवारी यंग प्रोफेशनल (सोशल डेलवेपमेंट) है। 48 शेयरहोडर्स वाली जीविका दीदीयों की कंपनी जे वायर्स के प्रबंधन में जितेन्द्र जीविका दीदीयों की मदद करते है। मालूम हो कि ज्यादातर जीविका दीदीयों की पढ़ाई बहुत कम है और जो पढ़ी लिखी हैं भी, उनकी पढाई आर्ट स्ट्रीम से है।
ऐसे में सोलर के तकनीकी काम से उन्हें क्यों जोड़ा गया? इस सवाल पर जितेन्द्र कहते है कि अभी कुछ अध्ययनों में सामने आया है कि बिहार में 60 से 70 फीसदी पाल्यूशन इनडोर(धुएं से प्रदूषण)है यानी हाशिए पर औरतें है। इसलिए सौर बिजली से लेकर कूकर तक का फायदा अगर सबसे ज्यादा किसी को है, तो वो महिलाएं है। चूंकि जीविका दीदीयों ने ये मुश्किलें झेली है इसलिए वो कंपनी का काम ज्यादा डेडीकेशन से करती है।
जे वायर्स से जुड़ी जीविका दीदीयों ने राज्य के गया, पश्चिमी चंपारण, पूर्णिया, नवादा, जमुई, भोजपुर, जहानाबाद सहित कई जिलों के अंदरूनी इलाकों में अब तक 372 सोलर मार्ट खोल लिए है। इन सोलर मार्ट में सभी तरह के सौर ऊर्जा के घरेलू उपकरण और उनके मेंटीनेंस या रखरखाव की सुविधा मिलती है।
संजू देवी जे वायर्स कंपनी की बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स है। जून 2016 में जमशेदपुर (झारखंड) में ट्रांसपोर्ट व्यवसाय से जुड़े उनके पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
ससुराल वालों के तानों से परेशान होकर संजू अपने दो बच्चों के साथ अपनी मायके कल्हारा गांव (बोधगया) आ गई। यहां सबसे पहले वो जीविका से जुड़ी और हर हफ्ते स्वयं सहायता समूह में 10 रूपए जमा करने शुरू किए। इस बीच उन्होने सोलर तकनीशियन की ट्रेनिंग ली और सोलर लैम्प की एसेंबलिंग का काम शुरू किया।
बाद में जब जे वायर्स कंपनी शुरू हुई तो उन्होने स्वयं सहायता समूह जहां वो हर हफ्ते 10 रूपये जमा करती थी, वहां से 10 हजार का लोन लिया और कंपनी की शेयरधारक बन गई। संजू बताती है कि 2022 -23 में कंपनी का टर्नओवर साढ़े तीन करोड़ रहा है जिसमें 30 लाख शुध्द मुनाफा है।
बिहार में संजू जैसी हजारों महिलाओं के जीवन में सौर ऊर्जा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से सकारात्मक बदलाव ला रहा है। बदलाव की ये छोटी छोटी कहानियां बिखरी हुई है, लेकिन इन सबका केन्द्र सौर ऊर्जा है। जैसा कि आरटीआई (रिसर्च ट्रायंगल इंस्टीट्यूट) इंटरनेशनल के मैनेजर (एनर्जी) नीलेश कुमार कहते है, इस तरीके के डीसेंट्रलाइज्ड रिनीवेबल एनर्जी ऑप्शन्स से महिलाएं आर्थिक तौर पर सशक्त होती है। उन्हें क्लीन एनर्जी मिलती है जिससे वो स्थानीय आर्थिक अवसरों को आजमा कर अपना जीवन स्तर ऊंचा करती है।