राष्ट्रीय
नैनो कार और सिंगुर जमीन विवाद एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं. कारण है सिंगुर जमीन विवाद पर आया टाटा मोटर्स के हक में एक अहम फैसला.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
टाटा मोटर्स ने राज्य में पूंजी निवेश के नुकसान को लेकर पश्चिम बंगाल औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (डब्ल्यूबीआईडीसी) से मुआवजे के जरिए भरपाई का दावा पेश किया था. सोमवार को इस मामले में टाटा मोटर्स को बड़ी जीत मिली.
तीन सदस्यीय मध्यस्थ्य पैनल ने टाटा मोटर्स को पश्चिम बंगाल से 765.78 करोड़ रुपये की राशि 1 सितंबर 2016 से वास्तविक वसूली तक 11 फीसदी सालाना ब्याज के साथ वसूलने का हकदार माना है.
टाटा की जीत
टाटा मोटर्स ने इस बारे में एक बयान भी जारी किया है और बताया है कि मध्यस्थ्य पैनल ने उसके हक में फैसला दिया है. टाटा ने बाजार नियामक को भी इसके बारे में सूचित किया है और कहा कि कंपनी अब प्रतिवादी पश्चिम बंगाल डब्ल्यूबीआइडीसी से 11 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज के साथ 765.78 करोड़ रुपये की राशि वसूलने की हकदार है.
साथ ही मध्यस्थ्य पैनल ने दावेदार को प्रतिवादी पश्चिम बंगाल से कार्यवाही की लागत के लिए एक करोड़ रुपये की राशि वसूलने का भी हकदार माना.
एक लाख वाली कार और गहरा विवाद
टाटा समूह को अपनी लखटकिया नैनो कार परियोजना के लिए सिंगुर में प्लांट लगाना था लेकिन उस समय विपक्ष में रहीं ममता बनर्जी ने इसका जबरदस्त विरोध किया था. नैनो कार देश के जाने माने उद्योगपति रतन टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था.
जब टाटा मोटर्स को सिंगुर में नैनो कार लगाने के लिए प्लांट के लिए जमीन आवंटित की गई थी तो उस वक्त राज्य में वामदल की सरकार थी. लेकिन उस वक्त बनर्जी ने विपक्ष में रहते हुए इस प्रोजेक्ट का जोरदार विरोध किया.
साल 2006 में टाटा मोटर्स ने सिंगुर में प्लांट लगाने का ऐलान किया था. उस समय रतन टाटा समूह के चेयरमैन थे. लेकिन परियोजना के ऐलान के बाद सिंगुर में बवाल होने लगा और उसी साल मई में किसानों ने टाटा पर जबरन जमीन अधिग्रहण का आरोप लगाते हुए विरोध प्रदर्शन किया.
बनर्जी ने साल 2006 में इस परियोजना के लिए किसानों की जमीन के कथित जबरन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था. बाद में उन्होंने 26 दिनों तक आमरण अनशन भी किया था.
किसानों की जमीन पर हुआ था विवाद
टाटा की कार फैक्ट्री लगाने के लिए पश्चिम बंगाल की तत्कालीन वाम मोर्चा सरकार ने खेती की एक हजार एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया और उसे टाटा को सौंप दिया गया. लेकिन जल्द ही आरोप लगने लगे कि सरकार ने जबरदस्ती किसानों की जमीन ली है जबकि सरकार का कहना था कि राज्य की बदहाल अर्थव्यवस्था पटरी पर लाने के लिए निवेश और उद्योगों को बढ़ावा देने की जरूरत है.
राजनीतिक विरोध के साथ-साथ सिंगुर के किसानों के विरोध के बाद रतन टाटा ने 3 अक्टूबर 2008 को नैनो प्रोजेक्ट को सिंगुर से बाहर ले जाने का ऐलान किया. इसके बाद नैनो फैक्ट्री गुजरात के साणंद में लगाई गई थी.
सिंगुर के लोगों को उनकी जमीन वापस दिलाने के वादे ने ममता बनर्जी को नई राजनीतिक ताकत भी दी थी. 2011 के राज्य विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने वो कर दिखाया जो अब तक कोई नहीं कर पाया. उन्होंने पश्चिम बंगाल में 1977 से राज कर रहे वाममोर्चा को सत्ता से बाहर कर दिया.
इतने साल बाद राज्य के हालात बदल गए हैं. राज्य की मुखिया होने के नाते बनर्जी की जिम्मेदारियां अब कहीं अधिक हैं, जिनमें राज्य में लोगों को रोजगार देना, बुनियादी सुविधा मुहैया कराना आदि शामिल हैं. लेकिन इनके सबके लिए पैसे की भी जरूरत होती है, इसलिए अब हर साल वह राज्य में निवेशकों को लुभाने के लिए वैश्विक बंगाल व्यापार सम्मेलन आयोजित करती हैं. (dw.com)