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भारत में गरीब सवर्णों को भी मिलता रहेगा आरक्षण
08-Nov-2022 12:59 PM
भारत में गरीब सवर्णों को भी मिलता रहेगा आरक्षण

भारत में गरीबी में जीने वाले सवर्णों को भी 10 फीसदी आरक्षण मिलता रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 103वें संवैधानिक संशोधन को वैध करार देकर सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी है.

    डॉयचे वैले पर ओंकार सिंह जनौटी की रिपोर्ट-

भारतीय सुप्रीम कोर्ट की सर्वोच्च बेंच, संवैधानिक पीठ ने सोमवार को निर्धन अगड़ी जातियों के लिए 10 फीसदी आरक्षण के फैसले को मंजूरी दे दी. इस तरह सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलना जारी रहेगा.

पांच जजों की बेंच ने 3:2 के बहुमत से सरकार के 103वें संविधान संशोधन को वैध करार दिया. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि बेहद गरीब अगड़ी जातियों को 10 फीसदी आरक्षण से संविधान के मूलभूत ढांचे को कोई खतरा नहीं है. इस 10 फीसदी आरक्षण के दायरे से एससी, एसटी, एसईबीसी और ओबीसी को बाहर रखा गया है. बेंच ने इसे समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना.

क्या है ईडब्ल्यूएस कोटा
आर्थिक रूप से कमजोर तबके या इकोनॉमिकली वीकर सेक्शन (ईडब्ल्यूएस) के तहत वे परिवार आते हैं, जिनकी कुल पारिवारिक आय एक साल में 8 लाख रुपये से कम हो. संसद के दोनों सदनों द्वारा इस 103वें संवैधानिक संशोधन को पास करने के बाद जनवरी 2019 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस पर मुहर लगाकर इसे कानून बना दिया.

यह आरक्षण इसी कानून के तहत लागू है. इस कानून के खिलाफ सर्वोच्च अदालत में कई याचिकाएं दायर की गईं. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि पिछड़ी जातियों को इस श्रेणी से बाहर रखने से इस आरक्षण का लाभ सिर्फ अगड़ी जातियों के मध्यवर्गी समाज को मिलेगा. साथ ही इसे आरक्षण की अधिकतम 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन भी कहा गया. अदालत की पीठ के तीन जजों ने इन तर्कों को नहीं माना.

आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होने के प्रावधान पर टिप्पणी करते हुए सर्वोच्च अदालत की बेंच ने कहा कि सरकार, "सबकी भागीदारी व समानता वाले समाज की तरफ बढ़ने के लिए समय समय पर खास कदम उठा सकती है." कोर्ट ने यह भी कहा कि निजी संस्थाओं में ईडब्ल्यूएस कोटे के तहत आवेदन करना भी संविधान के मूलभूत ढांचे का उल्लंघन नहीं है.

संवैधानिक पीठ में 3:2
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित का सेवा में आखिरी दिन भी था. कानूनी प्रावधान के मुताबिक, अगर सुनवाई के दौरान बेंच का कोई जज सेवानिवृत्त हो जाए तो नये जज के आने पर पूरी सुनवाई फिर से शुरू से होती है.

जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस. रवींद्र भट्ट ने सरकार के संविधान संशोधन के इस फैसले पर आपत्ति जताई. जस्टिस भट्ट ने कहा कि शिक्षा और नौकरियों के लिए बनाए गए इस कोटा सिस्टम में पिछड़े वर्ग को बाहर रखना और यह तर्क देना कि इससे उन्हें दोहरा लाभ मिलेगा, सरकार को ऐसा नहीं कहना चाहिए. जस्टिस भट्ट ने कहा कि जाति और वर्ग के आधार पर निर्धनों में भी निर्धन की एक श्रेणी बनाना, यह "संवैधानिक रूप से प्रतिबंधित भेदभाव" है और यह "किसी भी तरह के भेदभाव नहीं करने" के कानून की मूल भावना पर प्रहार है.

दूसरी तरफ जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिपाठी और जस्टिस जेबी पादरीवाला ने सरकार के संविधान संशोधन का जायज ठहराया. (dw.com)


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