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नई दिल्ली, 7 नवंबर । दलित नेता उदित राज ने सुप्रीम कोर्ट के ईडब्लूएस कोटा पर दिए गए फ़ैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में इंदिरा सहनी मालले को दरकिनार कर दिया है.
उन्होंने ट्वीट कर लिखा, “ EWS आरक्षण की बात आई तो सुप्रीम कोर्ट ने यू-टर्न मार लिया कि 50% की सीमा संवैधानिक बाध्यता नही है लेकिन जब भी SC/ST/OBC को आरक्षण देने की बात आती थी तो इंदिरा साहनी मामले में लगी 50% की सीमा का हवाला दिया जाता रहा.”
“मैं गरीब सवर्णों के आरक्षण के विरुद्ध नही हूं बल्कि उस मानसिकता का हूं कि जब-जब SC/ST/OBC का मामला आया तो हमेशा सुप्रीमने कहा कि इंदिरा साहनी मामले में लगी 50% सीमा पार नही की जा सकती.”
बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष ने भी इस पर ट्वीट करते हुए लिखा है, “सुप्रीम कोर्ट ने अनारक्षित वर्गों के लिए ईडब्ल्यूएस आरक्षण की वैधता को बरकरार रखा है, पीएम मोदी के गरीब कल्याण विज़न को इसका बड़ा श्रेय जाता है. ये सामाजिक न्याय की दिशा में एक बड़ा क़दम है.”
राज्यसभा सांसद और बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर कहा है- “ आरजेडी ने ईडब्लूएस कोटाके तहत 10% आरक्षण के विरोध में संसद के दोनों सदनों में मतदान किया था. आरजेडी अब किस मुँह से सवर्णो से वोट माँगने जाएगी.”
बिहार के पूर्व सीएम और हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्यूलर) के प्रमुख जीतन राम मांझी ने कहा है, "मैंने पूर्व में EWS के आधार पर सवर्ण जातियों के लिए आरक्षण की मांग की थी. आज माननीय उच्चतम न्यायलय ने भी मेरी बातों पर मुहर लगा दिया है जिसके लिए सबों का धन्यवाद. अब “जिसकी जितनी संख्या भारी उसको मिले उतनी हिस्सेदारी” का आदोलन शुरू होगा."
क्या है फैसला?
आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 फ़ीसदी आरक्षण जारी रहेगा. सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने सोमवार को ईडब्लूएस कोटे के तहत आरक्षण को बरकरार रखा है.
चीफ़ जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली पाँच जजों की बेंच ने बहुमत से ईडब्लूएस कोटे के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और कहा कि 103वां संविधान संशोधन वैध है.
भारत के संविधान में 103वां संशोधन करके सामान्य वर्ग के ग़रीब छात्रों के लिए आरक्षण का ये प्रावधान किया गया है.
सबसे पहले जस्टिस दिनेश महेश्वरी ने अपना फ़ैसला सुनाया और ये भी कहा कि ईडब्लूएस आरक्षण से अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग को बाहर रखना भी संवैधानिक तौर पर वैध है. (bbc.com/hindi)