राष्ट्रीय
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- सुचित्रा मोहंती
24 अगस्त 2017 : सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार पर ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए इसे मौलिक अधिकार बताया. नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से ये फ़ैसला सुनाया.
फ़ैसले को लेकर जिस एक जज की बहुत चर्चा हुई, उनका नाम है जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़.
इस फ़ैसले के साथ ही उन्होंने 41 साल पहले अपने पिता जस्टिस वाईवाई चंद्रचूड़ के फ़ैसले से अलग फ़ैसला दिया था. अपने फ़ैसले में उन्होंने लिखा, "निजता का अधिकार संविधान में निहित है, ये अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी से निकल कर आता है."
41 साल के अंतर पर आया ये फ़ैसला बदलते समय में संविधान की बदलती व्याख्या का सटीक उदाहरण है.
जस्टिस चंद्रचूड़ पिछले सालों में कई अहम फ़ैसलों को लेकर सुर्खिय़ों में रहे हैं. उनकी टिप्पणियाँ और व्याख्याएँ न सिर्फ़ क़ानूनी गलियारों में बल्कि अख़बारों और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनती रही हैं. कई बार उनका नाम सोशल मीडिया पर ट्रेंड भी कर चुका है.
संवैधानिक अधिकारों की रक्षा, एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के अधिकारों और अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़े अपने फ़ैसलों के लिए चर्चित जस्टिस डॉक्टर धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ देश के 50वें मुख्य न्यायाधीश बनेंगे.
मौजूदा चीफ़ जस्टिस यूयू ललित का कार्यकाल आठ नवंबर को समाप्त हो रहा है. जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो सालों का होगा. वो नवंबर 2024 तक मुख्य न्यायाधीश के पद पर रहेंगे.
एक नज़र डालते हैं जस्टिस चंद्रचूड़ के अब तक के चर्चित फ़ैसलों पर:
अविवाहित महिलाओं को गर्भपात का अधिकार
22 जुलाई 2022 को एक अहम फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 24 हफ़्ते की गर्भवती अविवाहित महिला को गर्भपात की इजाज़त दे दी.
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस एएस बोपन्ना की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि एक अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात कराने की इजाज़त न देना उसकी निजी स्वायत्तता और आज़ादी का उल्लंघन होगा.
कोर्ट ने ये भी कहा कि महिला को इस क़ानून के तहत मिलने वाले लाभ से केवल इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वो शादीशुदा नहीं है.
कोर्ट के आदेश में ये कहा गया है कि बच्चे को जन्म देने या न देने की मर्ज़ी महिला को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले निजी स्वतंत्रता के अधिकार का भी अभिन्न हिस्सा है. न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर महिला को गर्भपात की मंज़ूरी नहीं दी गई, तो ये क़ानून के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा.
जीवन से जुड़ी जानकारियां
13 मई 2016 से भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश
31 अक्टूबर 2013 से सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्ति तक इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
29 मार्च 2000 से इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज बनने तक, बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश
1998 से न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति तक, भारत के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल.
भारत के सर्वोच्च न्यायालय और बॉम्बे उच्च न्यायालय में प्रेक्टिस
हार्वर्ड लॉ स्कूल, यूएसए से एलएलएम की डिग्री और न्यायिक विज्ञान (एसजेडी) में डॉक्टरेट की उपाधि
कैंपस लॉ सेंटर, दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी
सेंट स्टीफंस कॉलेज, नई दिल्ली से इकोनॉमिक्स में ऑनर्स
समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करना
6 सितंबर 2018 को देश की सर्वोच्च अदालत ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया है. इसके अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अब अपराध नहीं माना जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविल्कर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की संवैधानिक पीठ ने इस मसले पर सुनवाई की.
धारा 377 को पहली बार कोर्ट में 1994 में चुनौती दी गई थी. 24 साल और कई अपीलों के बाद सुप्रीम कोर्ट के पाँच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने अंतिम फ़ैसला दिया है. नवतेज जोहर मामले में उन्होंने लिखा कि सेक्शन 377 "पुराना औपनिवेशक क़ानून" था, जो समानता अभिव्यक्ति और जीवन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन था.
सितंबर 2022 में समलैंगिकता पर एक भाषण देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, "समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने भर से समानता नहीं आ जाएगी, इसे घरों तक, काम करने की जगहों तक और सार्वजनिक जगहों तक ले जाना होगा.
निजता का अधिकार
24 अगस्त 2017 को नौ जजों वाली सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बताया.
पीठ में मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, जस्टिस जे चेलमेश्वर, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस आरके अग्रवाल, जस्टिस आरएफ़ नरीमन, जस्टिस एएम सप्रे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे.
पीठ ने कहा कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीने के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है. संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के उन दो पुराने फ़ैसलों को ख़ारिज कर दिया, जिनमें निजता को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था.
1954 में एमपी शर्मा मामले में छह जजों की पीठ ने और 1962 में खड़ग सिंह केस में आठ जजों की पीठ ने फ़ैसला सुनाया था. इसके पहले, जुलाई में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजता का अधिकार संपूर्ण अधिकार नहीं है और इस पर राजसत्ता कुछ हद तक तर्कपूर्ण रोक लगा सकती है.
निजता के अधिकार को लेकर बहस तब तेज़ हुई, जब सरकार ने आधार कार्ड को ज़्यादातर सुविधाओं के लिए ज़रूरी बनाना शुरू कर दिया. आधार को क़ानूनी तौर पर लागू करने की कोशिश कर रही केंद्र सरकार के वकीलों ने कोर्ट ने निजता के अधिकार की मौलिकता पर ही सवाल खड़ा कर दिए थे.
सबरीमाला, भीमा कोरेगांव, मोहम्मद ज़ुबैर के मामलों पर टिप्पणी
शफ़ीन जहान बनाम अशोकन केएम मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हादिया के धर्म और विवाह के लिए साथी की पसंद को सही ठहराया.
हादिया ने इस्लाम धर्म अपना लिया था और याचिकाकर्ता शफीन जहां से शादी कर ली थी, इस पर उसके माता-पिता ने आरोप लगाया कि उसका ब्रेनवॉश किया गया था. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि विवाह या धर्म से जुड़े निर्णय लेने का एक वयस्क का अधिकार उसकी निजता के क्षेत्र में आता है.
सबरीमाला मंदिर मामले में, उन्होंने माना कि सबरीमाला मंदिर से 10-50 वर्ष की आयु के बीच की महिलाओं को बाहर करना संवैधानिक नैतिकता का उल्लंघन है.
उन्होंने कहा कि इसने उनकी स्वायत्तता, स्वतंत्रता और गरिमा को नष्ट कर दिया. विशिष्ट रूप से, उन्होंने माना कि इस प्रथा से अनुच्छेद 17 का भी उल्लंघन हुआ है, जो छुआछूत को प्रतिबंधित करता है, क्योंकि इसके तहत महिलाओं को अशुद्धता की धारणा से देखा जाता है.
दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवाद के मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि उपराज्यपाल दिल्ली के कार्यकारी प्रमुख नहीं हैं.
चूँकि रिप्रजेंटेटिव डेमोक्रेसी में कार्यपालिका अनिवार्य है, इसलिए इसका नेतृत्व मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद को करना चाहिए. उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह से बंधे हैं और संविधान के तहत उनकी कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है.
उन्होंने तहसीन पूनावाला मामले में जज लोया की मौत की परिस्थितियों की जाँच की मांग को खारिज कर दिया था. जज लोया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे.
जोसेफ शाइन मामले में, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने व्यभिचार को अपराध से मुक्त करने में बहुमत की राय से सहमति व्यक्त की. उन्होंने पाया कि आईपीसी की धारा 497 (व्यभिचार) संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन है.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने पत्रकार मोहम्मद जुबैर मामले में उन्हें ज़मानत दे दी और कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग संयम से किया जाना चाहिए. जब तक बहुत तथ्य मौजूद न हों किसी व्यक्ति को हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है.
कई मामलों में जताई असहमति
उन्होंने रोमिला थापर मामले में भीमा कोरेगांव में कथित रूप से हिंसा भड़काने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ एक आपराधिक साजिश में भाग लेने के लिए पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के संबंध में बेंच के एसआईटी नहीं बनाने के फ़ैसले पर अहसमति जताई.
उन्होंने कहा कि मुद्दा यह था कि क्या गिरफ्तारियों ने संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 की ओर से दी गई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है. उन्होंने सुझाव दिया कि एक विशेष जाँच दल कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी की जाँच करे.
साल 2018 में आधार की अनिवार्यता और उससे निजता के उल्लंघन पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने बहुमत से कहा कि आधार नंबर संवैधानिक रूप से वैध है. लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने इससे अलग राय जताते हुए आधार को असंवैधानिक क़रार दिया.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आधार एक्ट को मनी बिल की तरह पास करना संविधान के साथ धोखा है.
फ़रवरी 2020 में गुजरात में भाषण देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्य की मशीनरी का इस्तेमाल कर असहमतियों पर अंकुश लगाना, डर की भावना पैदा करता है, जो क़ानून के शासन का उल्लंघन करता है.
उन्होंने कहा, "असहमत रहने वालों पर राष्ट्रविरोधी या लोकतंत्र विरोधी होने का लेबल लगाना हमारे संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए प्रतिबद्धता और लोकतंत्र की तरक़्क़ी की मूल भावना पर हमला करता है."
साथ काम करने वालों की नज़र में जस्टिस चंद्रचूड़
जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ इलाहाबाद हाईकोर्ट में 2013 से लेकर 2016 तक काम कर चुके जस्टिस अमर सारण (रिटायर्ड) ने बीबीसी से ख़ास बातचीत में कहा, "बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने दो बेटियों को गोद लिया है (अपने दो बच्चों के अलावा) क्योंकि दोनों की माएँ बहुत ग़रीब है. एक अच्छे जज और के अलावा वो बहुत अच्छे इंसान हैं."
जस्टिस प्रदीप कुमार सिंह (रिटायर्ट), जो इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ एक ही बेंच पर रहे हैं, वो अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि वो एक सख्त जज हैं, और क़ानून का बहुत सख्ती से पालन करते हैं. जस्टिस सिंह से मुताबिक, "लोग क्या सोचेंगे, वो इस बारे में नहीं सोचते हैं."
जस्टिस सिंह बताते हैं कि निठारी कांड में सुरेंदर कोली के मामले में उन्होंने कोली की मौत की सज़ा को कम कर दिया था, क्योंकि 13 लड़कियों की हत्या के लिए सुनाई गई सज़ा को देने में देरी हो रही थी, उन्होंने लोगों की प्रतिक्रिया के बारे में नहीं सोचा. उस बेंच पर जस्टिस जंद्रचूड़ के साथ जस्टिस बघेल थे.
जस्टिस बघेल के मुताबिक़ उन्होनें इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक पीआईएल की सुनवाई करते हुए, एक आदेश दिया कि उत्तर प्रदेश के सभी सड़कों पर साइकिल ट्रैक होने चाहिए.
वो कहते हैं, "उन्होंने कहा था कि प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए उन्होंने ये आदेश दिया."
जस्टिस गोविंद माथुर (रिटायर्ड) इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस रह चुके हैं. वो बताते हैं कि जस्टिस चंद्रचूड़ टेक्नॉलॉजी को बहुत अच्छ तरीके से समझते हैं और उन्हें पता है कि उन्हें कैसे अपनाते हैं और इस्तेमाल करते हैं.
वो कहते हैं, "उन्होंने नई तकनीक के इस्तेमाल के लिए बहुत क़दम उठाए. वो चाहते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया में तकनीक का भरपूर इस्तेमाल हो और कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है कि वादियों और वकीलों को इसका फ़ायदा मिले."
जस्टिस माथुर बताते हैं, "जब जस्टिस चंद्रचूड़ इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस थे, तब उन्होंने युवा वकीलों को इसी कोर्ट में जज बनने के लिए सिफ़ारिश की थी. उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट से लगाव है."
कॉलेजियम के तरीक़े पर आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट में 4 जजों के ख़ाली पदों को भरने के लिए चल रही चर्चा की बीच जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नजीर ने एक अक्तूबर को CJI के पत्र में नियुक्ति के लिए अपनाए गए तरीक़ों पर आपत्ति जताई.
कॉलेजियम में 5 सदस्य होते हैं और CJI इसके प्रमुख होते हैं. अभी कॉलेजियम में चीफ़ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस केएम जोसेफ शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति और उनके नाम की सिफ़ारिश कॉलेजियम ही करता है.
पहले भी कई सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज कॉलेजियम के तरीक़ों पर आपत्ति जता चुके हैं. चंद्रचूड़ की जताई गई आपत्ति उनकी नियुक्ति की घोषणा के ठीक पहले आई है, इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि मुमकिन है आने वाले समय में इस सिस्टम में वो कोई बदलाव लाने की वो पहल कर सकते हैं.
जस्टिस चद्रचूड़ का अबतक का सफ़र
जस्टिस चंद्रचूड़ के पिता जस्टिस वाईवाई चंद्रचूड़ 1978 में देश के 16वें न्यायाधीश बने थे और सात साल इस पद पर रहे थे. ये किसी मुख्य न्यायाधीश का सबसे लंबा कार्यकाल है. ये पहला मौक़ा होगा, जब पहले मुख्य न्यायाधीश रह चुके शख्स के बेटे भी चीफ़ जस्टिस पद की शपथ लेंगे.
जस्टिस चंद्रचूड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी एलएलबी की डिग्री पूरी की. इसके बाद वो स्कॉलरशिप पर हावर्ड पहुँचे. वहाँ उन्होंने मास्टर्स इन लॉ (एलएलएम) और डॉक्टरेट इन जूडिशियल साइंसेस की पढ़ाई पूरी की.
इसके बाद वो वकील के तौर पर सुप्रीम कोर्ट, गुजरात, कलकत्ता, इलाहाबाद, मध्य प्रदेश और दिल्ली के हाईकोर्ट में रहे. इसके बाद वो बॉम्बे हाईकोर्ट में जज नियुक्त किए गए.
1998 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट नियुक्त किया गया. वो 1998 से 2000 एडिश्नल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) भी रहे.
मार्च 2000 में वे बॉम्बे हाईकोर्ट में एडिशनल जज नियुक्त किए गए. अक्तूबर 2013 में उन्होने इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस पद की शपथ ली थी. (bbc.com/hindi)