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हड़ताल पर प्रतिबंधः छह महीने के नाम पर स्थायी होता जा रहा है एस्मा
22-Dec-2021 1:26 PM
हड़ताल पर प्रतिबंधः छह महीने के नाम पर स्थायी होता जा रहा है एस्मा

उत्तर प्रदेश में सरकारी ने सरकारी कर्मचारियों के हड़ताल पर जाने से रोक लगा दी है और चेतावनी दी है कि यदि इसका उल्लंघन किया गया तो आवश्यक सेवा रखरखाव अधिनियम यानी एस्मा (ESMA) के तहत कार्रवाई की जएगी.

  डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-

राज्य के अपर मुख्य सचिव कार्मिक डॉक्टर देवेश चतुर्वेदी ने इस बारे में अधिसूचना जारी कर दी है कि यूपी में अब हड़ताल अवैध है. इसके मुताबिक, उत्तर प्रदेश में किसी भी लोक सेवा, निगमों और स्थानीय प्राधिकरणों में हड़ताल पर प्रतिबंध लगाया जा रहा है. इसके बाद भी हड़ताल करने वालों के खिलाफ विधिक व्यवस्था के तहत कार्रवाई की जाएगी.

राज्य में पहले भी कोविड संक्रमण की वजह से एस्मा एक्ट लगाया जा चुका है. पिछले साल 25 नवंबर को छह महीने के लिए राज्य सरकार ने यह आदेश जारी किया था और इस दौरान राज्य में किसी भी तरह की हड़ताल पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. उसके बाद इसी साल मई में इसे अगले छह महीने के लिए फिर बढ़ा दिया गया था और अब एक बार फिर इसकी अवधि छह महीने के लिए बढ़ा दी गई है.

बार-बार बढ़ रहा है एस्मा
एस्मा को साल 1968 में लागू किया गया था जिसके तहत केंद्र सरकार अथवा किसी भी राज्य सरकार द्वारा यह कानून अधिकतम छह महीने के लिए लगाया जा सकता है. कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी कर्मचारी को बिना वॉरंट गिरफ्तार किया जा सकता है. एस्मा लागू करने से पहले कर्मचारियों को समाचार पत्रों तथा अन्य माध्यमों से इसके बारे में सूचित किया जाता है.

उत्तर प्रदेश में अगले साल की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं और कई कर्मचारी संगठन अपनी विभिन्न मांगों को लेकर धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं. सरकारी कर्मचारियों के अलावा छात्रों और समाज के अन्य वर्गों के लोग भी अपनी मांगों को लेकर आए दिन प्रदर्शन करते रहते हैं. लखनऊ में 69,000 हजार शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थी पिछले कई दिनों से डेरा जमाए हुए हैं. चूंकि इन्हें तो प्रदर्शन करने से रोका नहीं जा सकता, सरकार ने एस्मा लगाकर सरकारी कर्मचारियों के विरोध प्रदर्शन पर लगाम लगाने की कोशिश की है.

दो दिन पहले निजीकरण के विरोध में बैंक कर्मियों की देशव्यापी हड़ताल से लोगों को काफी परेशानियां उठानी पड़ी थीं. राज्य कर्मचारी भी यदि हड़ताल पर चले गए या फिर कार्य बहिष्कार कर दिया तो जनता को परेशानी होगी और इसका सीधा नुकसान चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को उठाना पड़ेगा. इस स्थिति को टालने के लिए सरकार ने एस्मा लगाने की अधिसूचना जारी कर दी, जबकि एस्मा जैसा कानून हमेशा नहीं बल्कि विशेष परिस्थितियों में ही लगाया जाता है.
बोलने की आजादी पर हमला

कई कर्मचारी संगठनों ने सरकार के इस फैसले की आलोचना भी की है. उत्तर प्रदेश के चतुर्थ श्रेणी राज्य कर्मचारी महासंघ ने घोषणा की है कि वो सरकार के इस फैसले के खिलाफ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे.

संघ के प्रदेश महामंत्री सुरेश यादव कहते हैं, "सरकार ने राज्य कर्मचारी संगठनों पर तीन बार एस्मा लगाया. सरकार कर्मचारियों की बात न सुनकर हड़ताल के माध्यम से बात रखने पर भी रोक लगा दी है, जो किसी भी हालत में ठीक नहीं है. हजारों की संख्या में पद खाली पड़े हैं लेकिन भर्ती नहीं हो रही है. बार-बार एस्मा लगाकर सरकार बोलने की आजादी पर प्रतिबंध लगा रही है."

उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूलों के शिक्षक और हजारों की संख्या में सरकारी कर्मचारी नई पेंशन योजना के विरोध और पुरानी पेंशन बहाली के लिए लड़ रहे हैं. उनकी मांग है कि केंद्र सरकार की नई पेंशन योजना को वापस लिया जाए और पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया जाए.

विभिन्न विभागों के कर्मचारी अलग-अलग इसके खिलाफ कई बार प्रदर्शन कर चुके हैं और उन्होंने चेतावनी दी थी कि अब सभी कर्मचारी संगठन एक बैनर के तले पुरानी पेंशन बहाली को लेकर आंदोलन चलाएंगे. लेकिन एक बार फिर एस्मा की अवधि बढ़ा देने के बाद अब इन संगठनों की योजनाओं पर पानी फिर गया है.

एक दिसंबर को लखनऊ के ईको गार्डन में इस मांग को लेकर हजारों कर्मचारी इकट्ठा हुए थे और उन्होंने सरकार को चेतावनी दी थी. चुनाव से पहले बड़े आंदोलन की आशंकाओं के चलते ही सरकार ने एस्मा लगा दिया ताकि कर्मचारी संगठन एक होकर कोई आंदोलन न करने पाएं.

इसके अलावा, कई अन्य विभागों में भी कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर आंदोलन करने की तैयारी में थे. कुछ जगहों पर छिट-पुट आंदोलन चल भी रहे थे. कर्मचारी संगठनों को उम्मीद थी कि चुनाव से पहले सरकार के सामने अपनी मांगों को उठाएंगे तो शायद कुछ हद तक उनका समाधान निकल जाए लेकिन सरकार ने तो मांगें उठाने पर ही प्रतिबंध लगा दिया है.

लखनऊ स्थित किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के कर्मचारियों ने भी पिछले हफ्ते हड़ताल शुरू कर दी थी. इनकी मांग थी कि इन्हें पीजीआई के कर्मचारियों के बराबर वेतन और सुविधाएं मिलें. अस्पताल में ओपीडी से लेकर ऑपरेशन तक कई सेवाएं बाधित रहीं और लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा. हालांकि, बातचीत के बाद आंदोलन स्थगित हो गया लेकिन मांगें पूरी न होने पर कर्मचारियों ने दोबारा आंदोलन की चेतावनी दी थी.

कर्मचारी संगठनों का कहना है कि कोविड को देखते हुए मई में या उससे पहले भी किसी संगठन ने हड़ताल करने की कोई योजना नहीं बनाई थी लेकिन फिर भी एस्मा लगा दिया गया. अब चुनाव के वक्त इसकी अवधि फिर से बढ़ाने के बाद कर्मचारी संगठनों में इसे लेकर काफी नाराजगी है. (dw.com)
 


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