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क्या कोरोनावायरस महामारी साल के अंत में होने वाली जापान की पारंपरिक शराब पार्टी ‘बोनेंकाई’ पार्टियों के लिए आखिरी ऑर्डर है?
डॉयचे वैले पर जूलियन रेयाल की रिपोर्ट-
काओरी मोरी कहती हैं कि वो शराब का ज्यादा सेवन नहीं करती हैं इसलिए वो शायद ही कभी साल के अंत में होने वाली जापान की पारंपरिक पार्टियों में जाने को उत्सुक रहती हों. उन्हें यह जानकर काफी राहत मिली कि कोरोनोवायरस महामारी के कारण इस साल उनके कार्यस्थल पर इस तरह की बहुत कम पार्टियां आयोजित की जा रही थीं.
डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहती हैं, "मैं अभी इनमें से किसी भी शराब पार्टी में नहीं जाना चाहती. हालांकि हमें बताया जा रहा है कि अब बाहर जाना आसान हो गया है और महामारी के लिए घोषित आपात स्थिति हटा ली गई है.”
वो कहती हैं, "अगर मैं बाहर जा रही हूं, तो मैं दो या तीन करीबी दोस्तों के साथ एक अच्छे, शांत रेस्टोरेंट में जाना चाहती हूं, जिनके साथ मैं आराम से और शांतिपूर्ण बातचीत का आनंद ले सकूं.”
जापान में अपने साथियों, ग्राहकों और व्यावसायिक सहयोगियों के साथ रात में शराब पार्टी के लिए ‘नोम्युनिकेशन' शब्द का इस्तेमाल होता है जो कि शराब पीने के लिए इस्तेमाल होने वाले जापानी शब्द ‘नोमू' और ‘कम्युनिकेशन' शब्दों से मिलकर बना है. दिसंबर महीने में इस तरह की पार्टियों को ‘बोनेंकाई' या वर्षांत पार्टी भी कहते हैं. ये नए साल के शुरुआती हफ्तों तक चलती रहती हैं जिन्हें ‘शिनेंकाई' कहा जाता है.
सहकर्मियों के साथ लगभग अनिवार्य शराब पार्टियां कर्मचारियों के बंधन को मजबूत करने और कॉर्पोरेट एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए आयोजित होती हैं. लेकिन इस साल आयोजित पार्टियों की संख्या में गिरावट देखी गई है.
बहुत कम ‘बोनेंकाई' पार्टियां हो रही हैं
शोध बताते हैं कि मोरी ऐसे लोगों में शुमार हैं जो इस साल पार्टी नहीं करेंगे और ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. टोक्यो शोको रिसर्च की ओर से हाल ही में किए गए एक सर्वेक्षण में भाग लेने वाली 800 से ज्यादा जापानी फर्मों में से 70 फीसद से अधिक ने कहा कि उनकी इस साल ‘बोनेंकाई' पार्टियों की कोई योजना नहीं है.
निप्पॉन लाइफ इंश्योरेंस की ओर से किए गए एक अन्य सर्वेक्षण में पाया गया कि करीब आठ हजार कंपनी कर्मचारियों में से करीब 62 फीसद ने साक्षात्कार में कहा कि काम के बाद के शराब पीना ‘अनावश्यक' है.
निप्पॉन के सर्वेक्षण में भाग लेने वाले कई कर्मचारियों ने कहा कि उन्हें लगा कि वे अपने सहकर्मियों के साथ शराब पीकर आराम नहीं कर सकते. दूसरों ने कहा कि पीना भी काम का ही एक हिस्सा है लेकिन इससे वे बचेंगे. 22 फीसद से ज्यादा ने कहा कि वे केवल शराब पीना पसंद नहीं करते हैं, लेकिन कंपनी के कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए दबाव महसूस करते हैं.
‘बोनेंकाई' पार्टियों की संख्या में गिरावट की वजह क्या है?
कई फर्मों ने समझाया कि इस बार ऐसी पार्टियों को छोड़ने का मुख्य कारण कोरोनावायरस महामारी थी. टोकिया में खुद का एक बिजनेस संभालने वाले केन काटो कहते हैं, "दो साल पहले महामारी शुरू से पहले की तुलना में, इस साल बहुत कम पार्टियों की योजना बनाई जा रही है.”
केटो कहते हैं, "गिरावट वास्तव में नाटकीय रही है और मेरा अनुमान है कि अधिकांश कंपनी कर्मचारी साल के अंत में होने वाली दस या उससे भी ज्यादा पार्टियों में जाने वाले थे लेकिन अब वे एक या दो में जाने की योजना बना रहे हैं- और ये पार्टियां पहले की तरह नहीं हैं.
मोरी की कंपनी ने कर्मचारियों के लिए कोविड-19 संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए कई दिशा-निर्देश जारी किए हैं. इनमें छोटी जगहों पर कम लोगों का एक साथ होना और छोटी पार्टियों का होना शामिल है. उनकी फर्म भी खाने-पीने और बैठने की व्यवस्था करते समय मास्क पहनने की सलाह देती है ताकि लोग आमने-सामने संपर्क से बच सकें.
मोरी कहती हैं कि स्वास्थ्य संकट के बीच पार्टियां मस्ती से ज्यादा तनावपूर्ण होंगी. वो समझाती हैं कि इससे बचने के लिए वर्चुअल ड्रिंकिंग पार्टियां उसका समाधान थीं.
जापान के कार्यस्थलों के लिए नुकसान
केन काटो, जो टोक्यो में एक छोटे से व्यवसाय के मालिक हैं, ने डीडब्ल्यू को बताया कि पार्टियों में गिरावट ‘कुछ दुर्भाग्यपूर्ण" है, जबकि उन कारणों को समझते हुए कि कर्मचारी इस साल बाहर क्यों जा रहे थे. "इस तरह के काम के बाद शराब पीना जापानी कॉर्पोरेट संस्कृति का एक हिस्सा है और परंपरागत रूप से, यह लोगों के लिए एक-दूसरे से खुलकर बात करने का समय रहा है और कंपनी में अन्य लोगों की स्थिति या रैंक को ध्यान में रखे बिना.”
वह बताते हैं कि ऐसी पार्टियों से स्टाफ के नए सदस्यों में मेलजोल बढ़ता है और व्यावसायिक संबंध भी मजबूत होते हैं. वह कहते हैं, "इस तरह के काम के बाद शराब पीना जापानी कॉर्पोरेट संस्कृति का एक हिस्सा है और परंपरागत रूप से यह कंपनी में अन्य लोगों की स्थिति या रैंक को ध्यान में रखे बिना और लोगों के लिए एक-दूसरे से खुलकर बात करने का समय है. यदि हम इससे वंचित होते हैं तो यह एक त्रासदी ही होगी.” (dw.com)