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कांग्रेस को भारी ना पड़ जाए पंजाब की उठापटक
30-Sep-2021 1:05 PM
कांग्रेस को भारी ना पड़ जाए पंजाब की उठापटक

नवजोत सिंह सिद्धू के पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष के पद से इस्तीफे से पार्टी एक बार फिर संकट में फंस गई है. विधान सभा चुनावों से बस कुछ ही महीने पहले इस तरह की उथल पुथल पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है. 

  डॉयचे वेले पर चारु कार्तिकेय  की रिपोर्ट 

सिद्धू को कुछ ही समय पहले कांग्रेस ने एक भारी कीमत चुका कर अपनी पंजाब इकाई का अध्यक्ष बनाया था. उनकी नियुक्ति को कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अपनी बेइज्जती समझा और मुख्यमंत्री पद से ही इस्तीफा दे दिया.

उसके बाद कैप्टन ने यहां तक घोषणा कर दी कि आने वाले चुनावों में वो सिद्धू को हर कीमत पर हरा कर दम लेंगे. उनके और सिद्धू के बीच झगड़ा काफी समय से चल रहा था और पार्टी हाई कमान ने जब दोनों में से सिद्धू का पक्ष लिया तो लगा कि कुछ समय के लिए पार्टी में अंदरूनी कलह शांत हो जाएगी.

लेकिन सिद्धू के इस्तीफे से स्पष्ट हो गया है कि पंजाब में कांग्रेस के लिए संकट और गहराता ही जा रहा है. सरकार और संगठन दोनों में अस्थिरता आ गई है.

क्यों दिया इस्तीफा

पार्टी के चुनाव अभियान को मजबूत करने के लिए पार्टी के पास अब ना तो प्रदेश को साढ़े चार सालों से संभाल रहा मुख्यमंत्री है और ना एक स्थिर प्रदेश अध्यक्ष.

कहा जा रहा है कि सिद्धू ने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि वो मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की नई सरकार में शामिल करने के लिए चुने गए कुछ मंत्रियों और अधिकारियों से खुश नहीं थे.

इसमें सबसे प्रमुख नाम है सुखजिंदर सिंह रंधावा का जिनके नाम पर चन्नी से पहले मुख्यमंत्री पद के लिए भी विचार किया जा रहा था. रंधावा सिद्धू की ही तरह जाट सिख हैं और सिद्धू नहीं चाहते कि पार्टी में कोई और जाट सिख नेता उनकी बराबरी करे.

सिद्धू ने उन्हें मुख्यमंत्री बनने से तो रोक दिया लेकिन उन्हें गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी दिए जाने से नहीं रोक पाए. दूसरा विवाद राणा गुरजीत सिंह को भी मंत्रिमंडल में शामिल करने पर था. राणा पर 2018 में बालू के खनन में भ्रष्टाचार का आरोप लगा था जिसकी वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था.

'बेअदबी' का मुद्दा

मीडिया में आई खबरों में कहा जा रहा है कि सिद्धू नहीं चाहते थे कि राणा को फिर से मंत्रिपद दिया जाए, लेकिन उनकी आपत्ति को स्वीकार नहीं किया गया. इसके बाद एपीएस देओल को चन्नी सरकार का एडवोकेट जनरल बनाए जाना सिद्धू की नाराजगी की तीसरी वजह माना जा रहा है.

देओल हाल तक प्रदेश के पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी के वकील थे, जिनके कार्यकाल के दौरान पंजाब में जगह जगह गुरु ग्रन्थ साहिब के साथ बेअदबी की घटनाएं हुईं और फिर उन घटनाओं का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोली भी चलाई.

14 अक्टूबर को फरीदकोट के बरगारि गांव में विरोध प्रदर्शनों में पुलिस की गोली से दो लोगों की जान चली गई. सैनी के खिलाफ प्रदेश में काफी नाराजगी है और देओल ने उन्हें कम से कम चार मामलों में जमानत दिलवाई.

सिद्धू ने बेअदबी के मामलों में इंसाफ दिलाने को शुरू से अपना मुद्दा बनाया हुआ है और ऐसे में देओल की सरकार में नियुक्ति उनकी मुहिम पर पानी फेर रही थी. 

कहा जा रहा है कि इन्हीं कारणों की वजह से सिद्धू ने इस्तीफा दिया. उन्होंने एक वीडियो ट्वीट किया है जिसमें उन्होंने इनमें से कुछ कारणों की ओर इशारा भी किया. 

कारण चाहे जो भी हो, सिद्धू के इस्तीफे ने कांग्रेस के लिए एक नई समस्या जरूर खड़ी कर दी है. अब देखना होगा कि पार्टी इस संकट से बाहर निकलने के लिए क्या करती है. (dw.com)

 

 


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