महासमुन्द

गांव की पगडंडियों से न्यूयॉर्क की सडक़ों तक संघर्ष से बदलाव की इबारत लिखने वाली प्रेमशीला को अवंती बाई लोधी सम्मान
06-Nov-2025 4:19 PM
गांव की पगडंडियों से न्यूयॉर्क की सडक़ों तक संघर्ष से बदलाव की इबारत लिखने वाली प्रेमशीला को अवंती बाई लोधी सम्मान

 प्रेमशीला बघेल ने संघर्ष की शुरुआत वहां से की जहां सपने भी रुक जाते हैं...

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद, 6 नवंबर। महासमुंद की प्रेमशीला बघेल को राज्य अलंकरण समारोह में उपराष्ट्रपति सी पी राधाकृष्णन के हाथों अवंती बाई लोधी सम्मान से महासमुंद जिला गौरवान्वित है। गांव की पगडंडियों से न्यूयॉर्क की सडक़ों तक संघर्ष से बदलाव की नई इबारत लिखने वाली प्रेमशीला को इस सम्मान से हर वर्ग में खुशी का महौल है।

 महासमुंद की मिट्टी गवाह है कि प्रेमशीला ने महिला संघर्ष से निपटने की शुरुआत अपने दो कमरों के मिट्टी के घर से शुरू किया था। यह कोई कहानी नहीं बल्कि हकीकत है कि महासमुंद की बेटी प्रेमशीला बघेल ने अपने संघर्ष की शुरुआत वहां से की जहां सपने भी रुक जाते हैं। उनसे ‘छत्तीसगढ़’ से हुई बातचीत की एक झलक.. .

प्रेमशीला बताती हैं-महासमुंद में जन्म होने के बाद बचपन अभावों और संघर्षों में बीता। माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे।   दो बहनों में मैं छोटी थी। घर में दो वक्त की रोटी भी कभी मयस्सर नहीं थी। शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास ये सब मेरे लिए सपने जैसे थे। जब 19 वर्ष की युवा थी तभी पिताजी ने मुझे एक सामाजिक संस्था के काम से जोड़ा। मैंने उसी राह को अपनी मंजिल मान लिया। इसके बाद मैंने अपना परिवार सम्हाला और यहीं से शुरू हुआ महिलाओं का सामाजिक जागरूकता का सिलसिला, जो आज तक जारी है।

प्रेमशीला बताती हैं-वर्ष1996 से महिलाओं और वंचित समुदायों के हक की लड़ाई में सक्रिय होने के बाद कभी पीछे मुडक़र नहीं देखा। छत्तीसगढ़ महिला जागृति संगठन में 11 वर्षों तक कार्यकर्ता के रूप में कार्य किया। इस दौरान हजारों महिलाओं को उनके अधिकार और स्वाभिमान से जोड़ा। इसी दौरान न्यूयॉर्क में आयोजित वल्र्ड मार्च ऑफ  वुमन वर्ष 2000 में महिलाओं पर बढ़ती हिंसा और गरीबी जैसे ज्वलंत मुद्दों को दुनिया के सामने रखने संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के समक्ष दृढ़ता से संदेश पहुंचाया। वहां भारत की 25 संघर्षरत महिलाओं के साथ मैंने छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया और अंतर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

प्रेमशीला ने जहां अभाव था, वहीं अवसर तलाशा। बीच में पढ़ाई छूटी जरूर लेकिन रुकना कहां मंज़ूर था। काम करते हुए  एमए् समाज शास्त्र, मास्टर ऑफ सोशल वर्क और छत्तीसगढ़ी भाषा में स्नातक डिप्लोमा किया। उन्होंने मजबूत इरादे के साथ विभिन्न स्वयं सेवी संस्थाओं में काम किया और आखिर में खुद का संगठन चला कर अपने अनुभवों को जमीन में उतारने की जिजीविषा ने के चलते एक नई संस्था का उन्नयन कर जन विकास समिति बनाया। वर्ष 2005 में इस एनजीओ की मुखिया बनकर कमान संभाली।

प्रेमशीला का सामाजिक कार्य सिर्फ भाषणों या सभाओं तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने जमीनी स्तर पर काम करते हुए महासमुंद जिले में लगभग 1500 महिला समूहों के बैंक खातों का डिजिटलीकरण करवाया। नाबार्ड, एनयूएलएम जैसी योजनाओं के साथ ग्रामीण और शहरी 15 हजार महिलाओं के समूह को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा पहल की। महिला हिंसा, शिक्षा, स्वास्थ्य, बाल श्रम और लैंगिक भेदभाव जैसे मुद्दों पर सम्मेलन, प्रशिक्षण, नुक्कड़ नाटक और कानूनी जागरूकता अभियान के माध्यम से संदेश देती रही।

किशोरी बालिकाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए नवा अंजोर जैसे बुनियादी शिक्षा से जुडक़र उनके लिए एक नई जमीन तैयार किया। बाल विवाह के विरुद्ध अभियान में आगे बढक़र न केवल महिलाओं को बल्कि पुरुषों को भी जागरूक किया। पर्यावरण संरक्षण के लिए अभियान में गांव-गांव जाकर पर्यावरण मित्र बनाए। वर्ष 2005 से 2008 तक राजनांदगांव जिले में कुष्ठ पीडि़तों और दिव्यांगों का समूह बनाकर उनके साथ आजीविका मूलक कार्य किया। उन्हें नया आत्मविश्वास दिया। ऐसे 100 समूह बनाकर वंचित और समाज के मुख्य धारा से कटे लोगों की आवाज बनी।

इसके अलावा महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए बुनकर महिलाओं को हाथ करघा से जोड़ा, साबुन निर्माण, कुम्हार महिलाओं को मिट्टी की आधुनिक कला से और बंसोड महिलाओं को बांस शिल्प और घरेलू महिलाओं को महिला कैंटीन से जोडक़र आजीविका की नई परिभाषा दी।

प्रेमशीला का कहना है कि यह उनका सामुदायिक विश्वास और बदलाव के जज़्बे से उपजा सम्मान है। सामाजिक बदलाव की पहल को समय-समय पर अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया जिसमें शासकीय, गैर सरकारी, बैंक समूह तथा मीडिया समूह द्वारा प्रदत सम्मान शामिल हैं।

 

आज भी प्रेमशीला महासमुंद के शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में एक सोशल चेंज एजेंट के रूप में कार्य कर रही हैं। प्रेमशीला को लोग सोशल वॉरियर के रूप में जानते हैं। उन्होंने महिलाओं को न सिर्फ समूहों में जोड़ा है, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और आत्मबल से भी जोड़ा। समाज को रास्ता दिखाने पहले खुद में बदलाव किया। दारू भट्टी तोड़ा, नशा मुक्ति का संकल्प दिलाया और युवाओं को पर्यावरण, शिक्षा से जोडऩे की पहल की। प्रेमशीला बघेल का जन्म 24 अप्रैल 1975 को महासमुंद के पंजाबी पारा में हुआ है। पिता के के बघेल एवं माता बसंती बघेल के अलावा परिवार में एक बहन है। उन्होंने ग्रामीण और शहरी 15 हजार महिलाओं के समूह को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने के लिए पहल कियाहै। महिला शिक्षा, हिंसा, बाल श्रम एवं लैंगिक भेदभाव जैसे मुद्दो पर प्रशिक्षण और जागरूकता अभियान के माध्यम से सकारात्मक संदेश दिया। कुष्ठ पीडि़त दिव्यागों के स्वसहायता समूह बनाकर वंचित एवं समाज से कटे हुये लोगों की आवाज बनी। इसके अलावा सन् 2000 में महिलाओं पर बढ़तेे हिंसा एवं गरीबी जैसे ज्वलन्त मुद्दों को संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से वर्ड मार्च आफ वूमेन जैसे कार्यक्रम में भाग लिया। वर्तमान में महिलाओं के आजीविका पर कार्य कर रही है।)


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