महासमुन्द

महासमुंद में इस पक्षी को मानसून के आगमन का संकेतक मानते हैं और कुछ लोग इसे देवदूत भी कहते हैं
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,19 जुलाई। विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके पक्षियों की 17 से अधिक प्रजातियों के रहन-सहन, आदतों सहित उनके आहार पर अब छात्राएं बर्ड एक्सपर्ट के मार्गदर्शन में रिसर्च कर रही हैं। बीते सप्ताह भर के रिसर्च के दौरान छात्राओं को पक्षियों की एक नई प्रजाति की जानकारी मिली है। जिसके विषय में छात्राएं शोध कर रही हैं।
हरेली बर्ड काउंट महोत्सव में साइबेरिया के मेहमान पक्षी एशियन ओपन बिल स्टॉर्क का रिसर्च करते छात्राएं कल लचकेरा पहुंची थीं। उन्होंने मर्लिन एप, एचडी कैमरों से पक्षियों के व्यवहार, रहन-सहन की जानकारियां लीं। महासमुंद क्षेत्र में इस पक्षी को मानसून के आगमन का संकेतक मानते हैं और कुछ लोग इसे देवदूत भी कहते हैं।
गौरतलब है कि वर्षों से मानसून पूर्व ही साइबेरिया से एशियन ओपन बिल स्काट सारस बड़ी संख्या में जिला मुख्यालय के समीप ग्राम लचकेरा में प्रजनन के लिये पहुंचते हैं और बारिश समाप्त होते ही वापस सायबेरिया चले जाते हैं। बीते 30 साल से लगातार ये मेहमान पक्षी लचकेरा में अपना घोंसला बनाते आ रहे हैं। इस बात की जानकारी जब प्रदेश और बाहर प्रांतों के विशेषज्ञों को हुई तो उन्होंने कॉलेज की छात्राओं के साथ मर्लिन एप की सहायता से इस पर रिसर्च शुरू किया।
इस रिसर्च में छात्राओं को 5 किलो से लेकर 8 किलो तक वजनी साइबेरियन सारस मिले हैं। छात्राओं के रिसर्च का उद्देश्य विलुप्त हो रही पक्षियों की प्रजातियों को संरक्षण देना है। मिली जानकारी के अनुसार कॉलेज प्रबंधन द्वारा इसे हरेली बर्ड काउंट महोत्सव नाम दिया गया है। माता कर्मा कॉलेज महासमुंद की छात्राओं सहित करीब 300 से अधिक छात्राएं इस रिसर्च में जुटी हुई हैं। पक्षियों की इन प्रजातियों पर रिसर्च कर छात्राएं इसका दस्तावेज भी तैयार कर रही हैं।
भूगोल तथा सूक्ष्मजीव विज्ञान परिषद द्वारा विभागाध्यक्ष ओमप्रकाश पटेल एवं श्वेतलाना नांगल के मार्गदर्शन में शासकीय माता कर्मा कन्या महाविद्यालय के शोधार्थी जगदीश प्रसाद खटकर, सहायक प्राध्यापक व शेर स्कूल की रिचा पटेल, रायपुर से आए अन्य शोधार्थी, बर्ड वॉच विशेषज्ञ खीरसागर पटेल,महिमा तिग्गा तथा स्थानीय पक्षी प्रेमी संजय साहू, लचकेरा से शिवम साहू के नेतृत्व में महाविद्यालय परिसर, परसकोल रोड, एसपी बंगला, सागौन ऑक्सीजन तथा ग्राम लचकेरा में वल्र्ड वॉच किया।
पक्षी अवलोकन तालिका में पक्षी की प्रजाति संख्या तथा स्थान का उल्लेख पत्रक में खट्टी स्कूल से व्याख्याता चिंत्रा खटकर तथा आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल से विकास यादव, महाविद्यालयीन छात्रा उर्वशी जोशी, प्रगति कोसरिया ने वल्र्ड वॉच गणना में किए गए प्रजातियों तथा पक्षियों की संख्या का उल्लेख किया। अन्य विद्यार्थी दिव्या,चांदनी, अदिति, प्रगति, केमिन,अंकिता, मीणा,हिमा, सविता, मेघा, मोंगरा, गीतांजलि, डिगेश्वरी, हेमा, धनेश्वरी, प्रेषित, स्तुति, गौरी, धैर्य, पुष्कर, यूरावत तथा लचकेरा के स्थानीय विद्यार्थियों ने वल्र्ड वॉच का लाभ उठाया।
जानकारी अनुसार हरेली सीजन में इन पक्षियों द्वारा कुछ विशेष जाति के वृक्षों बरगद, पीपल, बबूल, बोइर आम, जामुन, शीशम में बसेरा के लिए घोसला तैयार किया जाता है। ये पक्षी आसपास झाडिय़ों और मैदान में पड़े स्थानीय सामग्रियों से विविध प्रकार के घोसले तैयार करते हैं।
शोधार्थियों ने बताया कि घोंसला निर्माण पश्चात अंडा देने के बाद उनका व्यवहार बदल जाता है और वे चूजों की पोषण प्रक्रिया में व्यस्त रहते हैं। बताया कि उन्हें चूजों के लिए भोजन व्यवस्था को समझने का अवसर मिला तथा विविध कैमरा, बायनोक्युलर, रबीन मोबाइल एप ई बर्ड व मर्लिन की सहायता से चिडिय़ों की आवाज, उनकी फोटो, विशेषताएं, संभावित क्षेत्र के बारे आसानी से समझने के लिए, इनके संचालन प्रक्रिया को बताया गया।
इस दौरान शोधार्थियों को पक्षियों की पहचान कर सही गणना के बाद ऐप में दर्ज करना सिखाया गया। लचकेरा में पक्षियों के 20 प्रजातियों के लगभग 1100 पश्चियों की गणना की गई। वल्र्ड अकाउंट बाच में घरेलू कौंवा, गौरैया, उल्लू, कबूतर, एशियन ओपन बिल स्काट, कार्पोरेट सारस, इंडियन कारमोरेंट, जल तटवर्ती पक्षी, बगुले, फ्लाई कैचर, किलकिला, गिद्ध, मीडियम एग्रेड सनबर्ड, फ्लावर पिकर्स, वुड कीपर, पैरोट, पीटबुश्वट, रोबिन, जंगल बबलर,बुलबुल, कोमल इत्यादि पक्षियों को करीब से देखने और समझने का मौका मिला।
बर्ड अकाउंट वॉच में वल्लभाचार्य महाविद्यालय से कविता गहिर, बंदना यादव, ओकार साहू, अरविंद साहू प्राध्यापक ने रोमांचक अवसर का लाभ उठाया। मिर्लिन एप के अनुसार लचकेरा के 4 वृक्षों में 7 हजार बर्ड पक्षियों पर रिसर्च कर रही छात्राओं को पक्षी वैज्ञानिकों ने एक एप डाउनलोड कराया है। यह एप पक्षियों की आवाज को ट्रेक करता है। इस एप की सहायता से शोध वाले स्थान पर कितने पक्षी है आदि को बताया गया।
मालूम हो कि यह पक्षी मानसून के मौसम में प्रजनन करता है और अपने घोंसले पेड़ों पर बनाता है। एशियन ओपन बिल स्काट को भारत में घोंघिल पक्षी के नाम से भी जाना जाता है। यह पक्षी मानसून के आगमन का संकेत माना जाता है और कुछ क्षेत्रों में इसे देवदूत के रूप में भी देखा जाता है। इन्हें एशियन ओपन बिल अथवा एशियाई ओपन बिल सारस भी कहा जाता है। यह एक मध्यम आकार का सारस पक्षी है जो भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है। यह मुख्य रूप से भूरे या सफेद रंग का होता है। इसके पंख और पूंछ चमकदार काले होते हैं। एशियन ओपन बिल को यह नाम इसकी चोंच के विशिष्ट अंतराल के कारण मिला है। जो इसे अन्य सारस प्रजातियों से अलग करता है। जो वयस्क पक्षियों में निचले और ऊपरी मेम्बिबल के बीच होता है। यह मध्यम आकार का सारस है। जिसकी लंबाई लगभग 81 सेमी और पंखों का फैलाव 147 से 149 सेमी तक होता है। यह मुख्य रूप से घोंघे, कीड़े और अन्य छोटे जलीय जीवों को खाता है। यह पक्षी झुंड में रहना पसंद करता है।
रिसर्च कर रही छोत्राओं ने बताया कि लचकेरा तालाब के किनारे लगे 2 पीपल पेड़ों तथा अन्य स्थान पर लगे 2 बबूल पेड़ों पर 7 हजार से अधिक विदेशी प्रवासी पक्षी वर्तमान में हैं। बर्ड काउंट इंडिया द्वारा छत्तीसगढ़ राज्य में बर्ड काउंट महोत्सव का आयोजन 13 से 16 जुलाई 2025 तक किया गया। जिसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ में हरेली त्यौहार सीजन में पक्षियों की विविध प्रजातियां व उनकी विविधता का अध्ययन करना, आंकड़े एकत्रित करना व दस्तावेजीकरण करना था। महाविद्यालय परिसर महासमुंद, परसकोल रोड, एसपी बंगला, सागौन ऑक्सीजोन के अलावा ग्राम लचकेरा में वल्र्ड वॉच किया गया। पक्षी अवलोकन तालिका मे पक्षी की प्रजाति, संख्या व स्थान का उल्लेख पत्रक तैयार किया गया।