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भारत जैविक खेती का वैश्विक केंद्र बनने की राह पर: प्रधानमंत्री मोदी
19-Nov-2025 8:56 PM
भारत जैविक खेती का वैश्विक केंद्र बनने की राह पर: प्रधानमंत्री मोदी

कोयंबटूर, 19 नवंबर। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को कहा कि भारत जैविक खेती का वैश्विक केन्द्र बनने की राह पर है और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह देश की स्वदेशी और पारंपरिक पद्धति है।

मोदी ने यहां दक्षिण भारत प्राकृतिक कृषि शिखर सम्मेलन 2025 और एक प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए कहा कि युवा तेजी से कृषि को एक आधुनिक और व्यापक अवसर के रूप में पहचान रहे हैं और इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती मिलेगी।

बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की शानदार जीत के बाद मोदी ने अपने यहां आगमन पर लोगों द्वारा गमछा लहराने का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसा लग रहा था कि ‘‘बिहार की हवा’’ उनसे पहले ही तमिलनाडु में आ गई है।

तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाला राजग अगले साल विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के नेतृत्व वाले गठबंधन से मुकाबला करेगा। विपक्षी गठबंधन एम के स्टालिन के नेतृत्व वाली सरकार को सत्ता से हटाने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है।

इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने नौ करोड़ किसानों को सहायता देने के लिए पीएम-किसान योजना की 21वीं किस्त जारी की। इस किस्त की कुल राशि 18,000 करोड़ रुपये से अधिक है।

मोदी ने कहा कि इस योजना के तहत अब तक छोटे किसानों के बैंक खातों में सीधे चार लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित किए जा चुके हैं, जिससे वे विभिन्न कृषि जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो गए हैं।

उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत यह कहते हुए की कि प्राकृतिक खेती उनके दिल के बहुत करीब है। मोदी ने कहा कि प्राकृतिक खेती का विस्तार 21वीं सदी की कृषि की जरूरत है। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में, बढ़ती मांग के कारण खेतों और कृषि से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में रसायनों के इस्तेमाल में तेजी से वृद्धि हुई है।

उन्होंने कहा कि रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वरता कम हो रही है, मिट्टी की नमी प्रभावित हो रही है और साल दर साल खेती की लागत बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि फसल विविधीकरण और जैविक खेती मृदा संबंधी समस्याओं का समाधान है। उन्होंने कहा कि साथ ही जैविक खेती जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भी मदद करती है।

उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती भारत का अपना स्वदेशी विचार है और यह देश की परंपराओं में निहित है तथा पर्यावरण के अनुकूल है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारा लक्ष्य प्राकृतिक खेती को पूरी तरह से विज्ञान समर्थित आंदोलन बनाना होना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘प्राकृतिक खेती एक स्वदेशी भारतीय अवधारणा है - कहीं और से आयातित नहीं है बल्कि परंपरा से जन्मी और पर्यावरण के साथ जुड़ी हुई है।’’

मोदी ने कहा, ‘‘भारत प्राकृतिक खेती का वैश्विक केंद्र बनने की राह पर है।’’ उन्होंने कहा कि देश की जैव विविधता विकसित हो रही है और युवा अब कृषि को एक आधुनिक और व्यापक अवसर के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस बदलाव से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को काफी मजबूती मिलेगी।

उन्होंने कहा कि पिछले 11 वर्षों में पूरे कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव आया है। उन्होंने कहा कि भारत का कृषि निर्यात लगभग दोगुना हो गया है और सरकार ने कृषि के आधुनिकीकरण में किसानों की सहायता के लिए हरसंभव अवसर खोले हैं।

उन्होंने कहा कि अकेले किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) योजना के माध्यम से ही इस वर्ष किसानों को 10 लाख करोड़ रुपये से अधिक की सहायता प्राप्त हुई है। उन्होंने कहा कि सात साल पहले पशुधन और मत्स्य पालन क्षेत्रों को केसीसी लाभों का विस्तार दिए जाने के बाद से, इन क्षेत्रों में कार्यरत लोग भी इसका व्यापक लाभ उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि जैव-उर्वरकों पर जीएसटी में कमी से किसानों को और लाभ हुआ है।

प्राकृतिक खेती के ‘एक एकड़, एक मौसम’ की वकालत करते हुए उन्होंने कहा कि जैविक खेती जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने, मिट्टी की उर्वरता को पुनर्जीवित करने और फसलों के पोषण मूल्य को बढ़ाने में मदद करती है। उन्होंने कहा कि देश को प्राकृतिक खेती के रास्ते पर आगे बढ़ना होगा और यह एक दृष्टिकोण और आवश्यकता दोनों है और तभी जैव विविधता को भावी पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जा सकेगा।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए सक्रिय रूप से प्रोत्साहित कर रही है और एक साल पहले उसने राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन शुरू किया था, जिससे अब तक लाखों किसान जुड़ चुके हैं। उन्होंने कहा कि इस पहल का सकारात्मक प्रभाव विशेष रूप से दक्षिण भारत में दिखाई दे रहा है, अकेले तमिलनाडु में लगभग 35,000 हेक्टेयर भूमि पर जैविक और प्राकृतिक खेती की जा रही है।

मोदी ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि दक्षिण भारत में किसान लगातार पारंपरिक प्राकृतिक कृषि पद्धतियों जैसे पंचगव्य, जीवामृत, बीजामृत आदि को अपना रहे हैं, जिससे मृदा की स्थिति में सुधार होता है, फसलें रसायन मुक्त रहती हैं और लागत भी कम होती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘श्री अन्न’ (मिलेट्स) की खेती को प्राकृतिक खेती के साथ एकीकृत करना धरती माता की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और मोटा अनाज दक्षिणी राज्यों में पीढ़ियों से पारंपरिक आहार का हिस्सा रहा है।

उन्होंने कहा कि सरकार इस ‘सुपरफूड’ को वैश्विक बाजारों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक और रसायन-मुक्त खेती इसकी अंतरराष्ट्रीय पहुंच बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगी।

मोदी ने कहा कि इस शिखर सम्मेलन में ऐसे प्रयासों पर चर्चा जरूर होनी चाहिए।

बहु-फसलीय कृषि का समर्थन करते हुए, उन्होंने केरल और कर्नाटक के पहाड़ी इलाकों का उदाहरण दिया जहां नारियल, सुपारी, फलदार पौधे, मसाले और काली मिर्च जैसी कई फसलें एक ही खेत में उगाई जाती हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी एकीकृत खेती प्राकृतिक खेती के मूल दर्शन को दर्शाती है।

उन्होंने कहा कि कृषि के इस मॉडल को अखिल भारतीय स्तर पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने जब दो छात्राओं को राष्ट्र के आर्थिक परिवर्तन के लिए उनके दृष्टिकोण की सराहना करते हुए तख्तियां लहराते देखा तो उन्होंने सुरक्षाकर्मियों से इन तख्तियों को लाने को कहा और छात्राओं की सराहना की।

इससे पहले प्रधानमंत्री ने हवाई अड्डे से कोयंबटूर जिला लघु उद्योग संघ (सीओडीआईएसएसआईए) मैदान तक लगभग दो किलोमीटर की दूरी तक रोड शो किया तथा आम नागरिक एवं पार्टी कार्यकर्ता उनके स्वागत के लिए सड़क के दोनों ओर खड़े थे।

उनके स्वागत में सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गये और लोगों ने प्रधानमंत्री के वाहन पर फूल बरसाए जबकि प्रधानमंत्री ने हाथ हिलाकर लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। (भाषा)


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