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मिशन अस्पताल भूमि विवाद पर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा
04-Nov-2025 11:34 AM
मिशन अस्पताल भूमि विवाद पर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा

प्राइम लोकेशन की 12 एकड़ भूमि पर स्वामित्व को लेकर विवाद

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बिलासपुर, 4 नवंबर। बिलासपुर में शहर के मध्य स्थित मिशन अस्पताल की 12 एकड़ जमीन को लेकर चल रहा स्वामित्व विवाद अब निर्णायक मोड़ पर पहुंच गया है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की डबल बेंच ने सोमवार को इस मामले में दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

इस मामले में क्रिश्चियन वुमन बोर्ड ऑफ मिशन्स  की ओर से याचिका दायर की गई थी। याचिकाकर्ता का कहना है कि जिला प्रशासन ने अस्पताल की भूमि का अधिग्रहण और उस पर की गई तोड़फोड़ अवैधानिक रूप से की। उन्होंने कहा कि यह जमीन उनके स्वामित्व में है और शासन ने नियमों की अनदेखी कर कार्रवाई की।

वहीं, शासन पक्ष ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता संस्था को इस मामले में याचिका दायर करने का अधिकार ही नहीं है, क्योंकि जिन दस्तावेजों के आधार पर पॉवर ऑफ अटॉर्नी दी गई है, वे किसी अन्य संस्था से संबंधित हैं।
गौरतलब है कि मिशन अस्पताल की स्थापना वर्ष 1885 में हुई थी। यह अस्पताल क्रिश्चियन वुमन बोर्ड को लीज पर दी गई जमीन पर बना है। लीज वर्ष 2014 में समाप्त हो गई, लेकिन प्रबंधन ने इसका नवीनीकरण नहीं कराया। नवीनीकरण के लिए किया गया आवेदन 2024 में नजूल न्यायालय ने खारिज कर दिया था।

इसके बाद मिशन प्रबंधन ने कमिश्नर कोर्ट में अपील की, लेकिन वहां से भी राहत नहीं मिली। अंततः उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने एडवोकेट जनरल की दलीलों के आधार पर नितिन लॉरेंस द्वारा प्रस्तुत याचिका को खारिज कर दिया था। लॉरेंस पर आरोप था कि वे अलग-अलग याचिकाओं में अपना पद और संस्था बदलते रहे। इस आदेश के खिलाफ डबल बेंच में अपील दायर की गई थी।

लीज समाप्त होने के बाद जिला प्रशासन ने अस्पताल परिसर की भूमि पर कब्जे की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी थी। कलेक्टर के आदेश के खिलाफ मिशन प्रबंधन ने तत्कालीन कमिश्नर भीलम नामदेव एक्का के समक्ष अपील दायर की थी, जिन्होंने स्थगन आदेश दिया था। बाद में राज्य शासन ने उन्हें पद से हटा दिया। इसके बाद कमिश्नर कोर्ट ने भूमि अधिग्रहण को वैध ठहराया था।

इस मामले के अलावा शासन के समक्ष एक अन्य याचिका लंबित है, जो डिसाइपल्स चर्च ऑफ क्राइस्ट संस्थान द्वारा दायर की गई है। यह संस्थान स्वयं को इस भूमि का वैध स्वामी बताते हुए 1891 से जुड़े दस्तावेजों के आधार पर दावा कर रहा है। इस मामले की अगली सुनवाई 13 नवंबर को सिविल कोर्ट में होगी। डिसाइपल्स चर्च के प्रतिनिधियों का कहना है कि वर्ष 1925 तक यह जमीन चर्च के नाम पर दर्ज थी। बाद में यह शासन के नाम पर कैसे दर्ज हुई, इस पर प्रश्न उठाया गया है। सिविल लाइन के सुबोध मार्टिन और अतुल अनुराधा की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि यह भूमि अमेरिका निवासी इराबेला ने वर्ष 1891 में खरीदी थी और बिलासपुर की क्रिश्चियन मिशन ऑफ डिसाइपल्स ऑफ क्राइस्ट संस्था के नाम पर स्थायी स्वामित्व के रूप में दर्ज थी। बाद में यह भूमि शासन के खाते में दर्ज हो गई, जिसे याचिकाकर्ता पक्ष अवैध बता रहा है।


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