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इन दो गांवों ने बदल दी विकास की परिभाषा
अपने बीच अक्सर यह सोच हावी रहती है कि अगर आदिवासी इलाकों में उद्योग लगा दिए जाएं, खनिज निकाल लिए जाएं या पर्यटन उद्योग को कंपनियों के हवाले कर दिया जाए, तो वहां के लोग विकास करेंगे। लेकिन तिरिया और इससे पहले धुड़मारास गांव ने इस सोच को पूरी तरह से गलत साबित किया है।
बस्तर के इन दोनों गांवों ने दिखाया है कि विकास का असली मतलब होता है-अपनी जमीन, जंगल, संस्कृति और जीवनशैली को बचाते हुए आगे बढऩा। तिरिया गांव की ग्रामसभा ने 3,057 हेक्टेयर वनभूमि पर सामुदायिक वन अधिकार लेकर उसे खुद संभालने का फैसला किया। उन्होंने जंगल की रक्षा की, अवैध कटाई पर रोक लगाई, पारंपरिक ज्ञान के सहारे वन प्रबंधन की एक मिसाल कायम की।
जंगल बचाने के साथ-साथ यह आजीविका और आत्मनिर्भरता की भी कहानी है। तिरिया ने लघु वनोपज को संगठित तरीके से जुटाना और बेचना शुरू किया, इको-टूरिज्म मॉडल खड़ा किया, जिससे गांव को रोजगार भी मिला और बाहरी दुनिया को बस्तर की संस्कृति से जुडऩे का मौका भी। यहां की बंबू राफ्टिंग का आनंद ही अलग है।
याद होगा, बीते साल धुड़मारास गांव को भी संयुक्त राष्ट्र ने इसी तरह के टिकाऊ पर्यटन मॉडल के लिए सम्मानित किया था। इन गांवों ने दुनिया को यह बताया है कि आदिवासी समाज का विकास मॉडल राजनेताओं, वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों की सोच से कहीं ऊंचा है।
जब सरकारें बड़े-बड़े कॉरपोरेट्स के साथ मिलकर आदिवासी इलाकों को विकास के नाम पर खाली कराना चाहती हैं, तब तिरिया और धुड़मारास जैसे गांव उम्मीद की किरण बनकर सामने आए हैं। क्या सरकारें इनसे सीख लेगी, और इन पर अपनी योजनाएं थोपना बंद करेंगी?
आबकारी घोटाले में रियायत?
आबकारी घोटाले की ईओडब्ल्यू-एसीबी, और ईडी पड़ताल कर रही है। ईओडब्ल्यू-एसीबी ने 23 आबकारी अफसरों पर एफआईआर किया है। सरकार ने इन सभी को सस्पेंड कर दिया है। यह पहला मौका है जब इतनी बड़ी संख्या में एक साथ अफसरों को सस्पेंड किया गया है। मगर घोटाले के खिलाफ मुहिम चला रहे भाजपा के ही कुछ नेता इससे संतुष्ट नहीं हैं।
चर्चा है कि एक नेता ने तो बकायदा पीएमओ को चि_ी तक लिख दी है। चि_ी में यह बताया गया कि दो आबकारी अफसरों को छोड़ दिया गया है। जबकि घोटाले में उनकी भी संलिप्तता रही है। एक अफसर तो पिछली सरकार में आबकारी उडऩदस्ता के प्रभारी भी थे।
ईओडब्ल्यू-एसीबी से परे ईडी की जांच तेजी से चल रही है। पूर्व सीएम भूपेश बघेल के पुत्र को तो ईडी गिरफ्तार कर चुकी है। कुछ, और लोगों पर शिकंजा कसने की तैयारी है। चर्चा है कि दुर्ग-भिलाई के तीन, और कारोबारियों को ईडी ने नोटिस जारी किया है। ये सभी घोटाले की राशि को इधर-उधर करने में भूमिका निभाते रहे हैं। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
नाम में क्या रक्खा है? बहुत कुछ...
पचपेड़ी नाका के नामकरण का विवाद अब तक सुलझ नहीं पाया है। रायपुर नगर निगम ने पार्षद अमर गिदवानी की सिफारिश पर पचपेड़ी नाका का नाम संत गोदड़ी बाबा के नाम करने की अनुशंसा की थी। स्थानीय विरोध के बाद नामकरण प्रस्ताव को वापस भी ले लिया गया था। मगर कुछ संगठनों ने सिंधी समाज के खिलाफ अभियान चलाया, तो मामला पुलिस तक पहुंच गया।
सिंधी समाज के प्रमुख नेता पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी, चैम्बर अध्यक्ष सतीश थौरानी, पूर्व अध्यक्ष अमर पारवानी की अगुवाई में एक प्रतिनिधि मंडल ने दो दिन पहले एसएसपी लाल उम्मेद सिंह से मुलाकात की। सिंधी नेताओं ने आरोप लगाया कि सिंधी समाज के संतों, और महापुरुषों पर अशोभनीय टिप्पणी की जा रही है। उन्होंने छत्तीसगढ़ क्रांति सेना के पदाधिकारी अमित बघेल के खिलाफ लिखित में शिकायत भी की। कुछ वीडियो भी दिए हैं। मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
अमित सोशल मीडिया में नाम बदलने के प्रस्ताव के खिलाफ काफी मुखर रहे हैं। एसएसपी ने सिंधी नेताओं को आश्वासन तो दिया है कि जांच कर कार्रवाई की जाएगी। मगर अब तक कोई कार्रवाई नहीं होने से सिंधी समाज के नेता नाखुश हैं। सुंदरानी जैसे नेताओं की नाराजगी इस बात को लेकर ज्यादा है कि उनकी अपनी पार्टी की सरकार होने के बावजूद कार्रवाई में देरी हो रही है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।