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शनिवार को देश के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने 1973 के कोर्ट के एक फ़ैसले को 'अभूतपूर्व' बताया और कहा कि संविधान को समझने और उसे लागू करने के मामले में ये फ़ैसला एक 'नॉर्थ स्टार' (ध्रुव तारे) की तरह जजों को रास्ता दिखाता है.
इससे दस दिन पहले उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए कहा था कि 1973 के फ़ैसले के साथ उसने एक ग़लत उदाहरण पेश किया है.
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक ख़बर के अनुसार बॉम्बे बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित 18वें पालखीवाला मेमोरियल लेक्चर में चीफ़ जस्टिस ने कहा कि बदलते वक्त में जज संविधान में लिखी बातों की व्याख्या करते हैं और केशवानंद भारती मामले में दिया गया फ़ैसला भारतीय संविधान की आत्मा को बनाए रखने में मदद करता है.
अख़बार लिखता है कि चीफ़ जस्टिस ने कहा, "जब आगे का रास्ता जटिल होता है उस वक्त हमारे संविधान की मूल संरचना एक ध्रुव तारे की तरह इसकी व्याख्या करने वालों और इसका कार्यान्वयन करने वालों को एक दिशा देता है और उनका मार्गदर्शन करता है. संविधान के मूल स्वरूप या उसके दर्शन में संविधान को सर्वोच्च जगह दी गई है. इसमें क़ानून के शासन, शक्ति के बंटवारे, क़ानून की समीक्षा, धर्मनिरपेक्षता, संघीय ढांचे, हर इंसान को आज़ादी और सम्मान के साथ-साथ राष्ट्र एकता और अखंडता की बात की गई है."
चीफ़ जस्टिस ने कहा कि 1973 का फ़ैसला "सफलता ही ऐसी दुर्लभ कहानी है" जिसका भारत के पड़ोसी मुल्कों नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान ने भी अनुकरण किया.
इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस ख़बर को पहले पन्ने पर जगह दी है. जाने माने वकील नानी पालखीवाला ने 13 जजों की बेंच के सामने केशवानंद भारती मामले की पैरवी की थी.
'केशवानंद भारती बनाम स्टेट ऑफ़ केरल' मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 'संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को बदला नहीं जा सकता' यानी संविधान में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन इसकी मूल संरचना में नहीं. इस फ़ैसले के कारण केशवानंद भारती 'संविधान का रक्षक' भी कहा जाता था.
दस दिन पहले उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि इस फ़ैसले ने ग़लत मिसाल पेश की है और अगर कोई भी संस्था संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति पर सवाल उठाती है, तो यह कहना मुश्किल होगा कि 'हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं.' (bbc.com/hindi)