अंतरराष्ट्रीय

ईरान और पाकिस्तान से इस साल तीस लाख से ज्यादा अफगानों को वापस उनके देश भेजा जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इससे वहां पहले से ही मौजूद मानवीय संकट और गहरा सकता है.
डॉयचे वैले पर अशोक कुमार की रिपोर्ट-
दशकों से अशांति और अस्थिरता झेल रहे अफगानिस्तान से लाखों लोग बीते दशकों में पड़ोसी देशों में गए. लेकिन अब ईरान और पाकिस्तान जैसे देश विस्थापित अफगानों से जुड़ी नई नीतियों पर अमल कर रहे हैं. इससे इन देशों में रह रहे लाखों अफगान प्रभावित हो रहे हैं. ईरान ने अपने यहां 'गैर कानूनी रूप से' रह रहे 40 लाख अफगानों को देश से चले जाने के लिए 6 जुलाई की समयसीमा दी थी.
अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी संस्था यूएनएचसीआर के प्रतिनिधि अराफात जमाल ने काबुल से एक वीडियो प्रेस कांफ्रेंस के जरिए बताया, "हम देख रहे हैं कि इन दोनों ही देशों से अफगान लोगों को बड़े पैमाने पर बिना किसी गरिमा और व्यवस्था के भेजा जा रहा है, जिससे अफगानिस्तान पर बहुत दबाव पड़ रहा है, जो इन लोगों को लेने का इच्छुक तो है लेकिन इसके लिए उसकी कोई तैयारी नहीं दिखती."
उन्होंने कहा कि जितने ज्यादा लोगों को भेजा जा रहा है और जिस तरीके से भेजा जा रहा है, वह उनके लिए चिंता का कारण है. इस साल पाकिस्तान और ईरान से 16 लाख लोग पहले ही अफगानिस्तान लौट चुके हैं. जमाल ने कहा कि इनमें ज्यादातर लोग ईरान से आए हैं. यूएनएचसीआर का अनुमान है कि इस साल अफगानिस्तान में करीब तीस लाख लोग वापस आएंगे.
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी का कहना है कि इस्लाम काला बॉर्डर से हर दिन 30 हजार लोग ईरान से अफगानिस्तान में आ रहे हैं. 4 जुलाई को तो एक ही दिन में 50 हजार लोग आए. जमाल कहते हैं, "इनमें से बहुत से लोगों को अचानक अपने ठिकाने से उखाड़कर यहां भेज जा रहा है और इसके लिए उन्हें दुर्गम और मुश्किल सफर करना पड़ रहा है. जब वे आते हैं तो थके होते हैं, उन्हें कुछ पता नहीं होता और वे बर्रबरता के शिकार और अक्सर मायूस होते हैं."
संयुक्त राष्ट्र ने हर दिन सात से दस हजार लोगों को साफ पानी, साफ-सफाई और शौचालय की सुविधा मुहैया कराने का इंतजाम किया है. जो लोग सीमा पार करके आ रहे हैं, उनमें से बहुत से लोगों का कहना है कि ईरानी अधिकारियों ने उन्हें अपना देश छोड़ने के लिए मजबूर किया. इसमें लोगों को गिरफ्तार करके सीमा पार भेजना भी शामिल है.
मदद की गुहार
उधर सहायता संस्था रेड क्रॉस का अनुमान है कि ईरान से इस साल और दस लाख अफगान लोगों को भेजा जा सकता है. इंटरनेशनल रेड क्रॉस फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस (आईएफआरसी) और रेड क्रेसेंट सोसायटीज में अफगान प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख सामी फखूरी का कहना है कि उन्होंने हेरात प्रांत की इस्लाम काला सीमा चौकी पर हाल के दिनों में लौटने वाले लोगों की भरी हुई बसें देखी हैं. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़े बताते हैं कि इस साल 12 लाख लोग ईरान से अफगानिस्तान लौट चुके हैं.
फखूरी ने कहा, "हमारा अनुमान है कि और लाख लोग या फिर उससे भी ज्यादा लोग इस साल के आखिर तक लौट सकते हैं." वह कहते हैं कि इनमें से ज्यादातर लोगों का भविष्य अधर में होगा क्योंकि उन्होंने बहुत पहले ही देश छोड़ दिया था और अब अफगानिस्तान में उनका कोई घर नहीं है. फखूरी के मुताबिक, "ज्यादातर लोगों से पूछा नहीं गया कि उन्हें वापस जाना है या नहीं. बस उन्हें बसों में बिठा दिया गया और सीमा चौकी पर भेज दिया गया."
अफगानिस्तान पहले ही मानवीय संकट का सामना कर रहा है और सहायता समूहों को चिंता है कि ईरान से आने वाले नए लोगों की वजह से दबाव बढ़ जाएगा. साथ ही पाकिस्तान भी अपने यहां रह रहे अफगानों को निकाल रहा है. फखूरी ने कहा कि आईएफआरसी ने 3.14 करोड़ डॉलर की मदद की अपील की है ताकि अफगान सीमा पर और ट्रांजिट कैंपों में लौटने वालों की मदद की जा सके. अब तक इसमें से सिर्फ 10 प्रतिशत रकम ही जुटाई जा सकी है.