अंतरराष्ट्रीय

तल्लिन (एस्तोनिया), 11 अगस्त। भारतीय अंतरिक्ष यान से पहले पृथ्वी के इकलौते उपग्रह चंद्रमा पर उतरने की होड़ में लगभग 50 वर्षों में रूस के पहले चंद्र अभियान के तहत शुक्रवार को ‘चंद्र लैंडिंग क्राफ्ट’ ले कर एक रॉकेट प्रक्षेपित हुआ।
सुदूर पूर्व में रूस के वोस्तोचन अंतरिक्षयान से चंद्रमा के लिए ‘लूना-25’ यान का प्रक्षेपण 1976 के बाद रूस का पहला प्रक्षेपण है। तब यह सोवियत संघ का हिस्सा था।
रूसी चंद्र लैंडर के 23 अगस्त को चंद्रमा पर पहुंचने की उम्मीद है और उसी दिन भारतीय यान के भी चंद्रमा पर पहुंचने की उम्मीद है। भारतीय यान को 14 जुलाई को प्रक्षेपित किया गया था।
रूसी अंतरिक्ष यान को चंद्रमा के आसपास की यात्रा करने में लगभग 5.5 दिन लगेंगे। फिर तीन से सात दिन यह सतह पर जाने से पहले लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर चंद्रमा की कक्षा में परिक्रमा करेगा।
केवल तीन देश ही चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतरने में कामयाब रहे हैं: सोवियत संघ, अमेरिका और चीन। भारत और रूस का लक्ष्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सबसे पहले उतरने का है।
रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ‘रोस्कोस्मोस’ ने कहा कि वह यह दिखाना चाहती है कि रूस ‘‘चंद्रमा पर पेलोड पहुंचाने में सक्षम है’’ और ‘‘रूस चंद्रमा की सतह तक पहुंच की गारंटी सुनिश्चित करना चाहता है।’’
जाने माने रूसी अंतरिक्ष विश्लेषक विताली ईगोरोव ने कहा, ‘‘चंद्रमा का अध्ययन लक्ष्य नहीं है। लक्ष्य दो महाशक्तियों चीन और अमेरिका तथा कई अन्य देशों के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है जो अंतरिक्ष महाशक्ति के खिताब पर दावा करना चाहते हैं।’’
यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से उसके लिए पश्चिमी प्रौद्योगिकी तक पहुंच मुश्किल हो गई है, जिससे उसका अंतरिक्ष कार्यक्रम प्रभावित हुआ है। विश्लेषकों का कहना है कि ‘लूना-25’ शुरू में एक छोटे चंद्रमा रोवर को ले जाने के लिए था, लेकिन यान के वजन को कम करने के उद्देश्य से उस विचार को छोड़ दिया गया।
ईगोरोव ने कहा, ‘‘विदेशी इलेक्ट्रॉनिक्स हल्के होते हैं, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स भारी होते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों के पास चंद्र जल का अध्ययन करने का कार्य हो सकता है। रोस्कोसमोस के लिए मुख्य कार्य केवल चंद्रमा पर उतरना, सोवियत विशेषज्ञता को पुनः प्राप्त करना और यह सीखना है कि नए युग में इस कार्य को कैसे किया जाए।’’
रोस्कोस्मोस के वीडियो फीड के अनुसार ‘लूना-25’ को रूस के सुदूर पूर्व में वोस्तोचन कोस्मोड्रोम से बिना किसी त्रुटि के प्रक्षेपित किया गया।
स्पेसपोर्ट रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की एक पसंदीदा परियोजना है और रूस को एक अंतरिक्ष महाशक्ति बनाने और कजाकिस्तान में बैकोनूर कोस्मोड्रोम से रूसी प्रक्षेपणों को स्थानांतरित करने के उनके प्रयासों में इसका अहम स्थान है।
2019 में चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने का पिछला भारतीय प्रयास तब रुक गया जब लैंडर चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को लेकर वैज्ञानिकों में विशेष रुचि रही है, जिनका मानना है कि स्थायी रूप से छाया वाले ध्रुवीय क्रेटरों में पानी होने की संभावना है। चट्टानों में जमे पानी को भविष्य के खोजकर्ता हवा और रॉकेट ईंधन में बदल सकते हैं।
ब्रिटेन की रॉयल ऑब्जर्वेटरी, ग्रीनविच के खगोलशास्त्री एड ब्लूमर ने कहा, ‘‘चंद्रमा के रहस्य काफी हद अनसुलझे हैं और चंद्रमा का पूरा इतिहास इसके चेहरे पर लिखा हुआ है। यह काफी पुराना है और पृथ्वी पर आपको जो कुछ भी मिलता है, उससे मिलती जुलती चीजें वहां भी हैं। यह उसकी अपनी प्रयोगशाला है।”
‘लूना-25’ को चंद्रमा की चट्टान और धूल के नमूने लेने हैं।
एपी सुरभि मनीषा मनीषा 1108 1040 तल्लिन (एपी)