सामान्य ज्ञान
अवंती, पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। आधुनिक मालवा का प्रदेश जिसकी राजधानी उज्जयिनी और महिष्मति थी। उज्जयिनी (उज्जैन) मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है। प्राचीन संस्कृत तथा पाली साहित्य में अवंती या उज्जयिनी का सैंकड़ों बार उल्लेख हुआ है। महाभारत में सहदेव द्वारा अवंती पर विजय प्राप्त करने का वर्णन है।
बौद्ध काल में अवंती उत्तरभारत के शोडश (16) महाजनपदों में से थी जिनकी सूची अंगुत्तरनिकाय में हैं। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में इसी जनपद को मालवा कहा गया है। इस जनपद मेें वर्तमान मालवा, निमाड़ और मध्य प्रदेश का बीच का भाग सम्मिलित था। पुराणों के अनुसार अवंती की स्थापना यदुवंशी क्षत्रियों द्वारा की गई थी। बुद्ध के समय अवंती का राजा चंडप्रद्योत था। इसकी पुत्री वासवदत्ता से वत्सनरेश उदयन ने विवाह किया था जिसका उल्लेख भास रचित स्वप्नवासवदत्ता नामक नाटक में है।
अवंती का जनपद मौर्य-साम्राज्य में सम्मिलित था और उज्जयिनी मगध-साम्राज्य के पश्चिम प्रांत की राजधानी थी। इससे पूर्व मगध और अवंती का संघर्ष पर्याप्त समय तक चलता रहा । कथासरित्सागर से यह ज्ञात होता है कि अवंतीराज चंडप्रद्योत के पुत्र पालक ने कौशाम्बी को अपने राज्य में मिला लिया था। विष्णु पुराण से विदित होता है कि संभवत:गुप्त काल से पूर्व अवंती पर आभीर इत्यादि शूद्रों या विजातियों का आधिपत्य था। प्रमाण मिलते हैं कि प्रथम शती ई पू में (57 ई पू के लगभग) विक्रम संवत के संस्थापक किसी अज्ञात राजा ने शकों को हराकर उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था। गुप्त काल में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने अवंती को पुन: जीत लिया ।
चीनी यात्री युवानच्वांग के लेखों से ज्ञात होता है कि अवंती या उज्जयिनी का राज्य उस समय (615-630 ई) मालवा राज्य से अलग था और वहां एक स्वतंत्र राजा का शासन था। कहा जाता है कि प्राचीन अवंती वर्तमान उज्जैन के स्थान पर ही बसी थी, यह तथ्य इस बात से सिद्ध होता है कि क्षिप्रा नदी जो आजकल भी उज्जैन के निकट बहती है, प्राचीन साहित्य में भी अवंती के निकट ही वर्णित है। उज्जैन से एक मील उत्तर की ओर भैरोगढ़ में दूसरी-तीसरी शती ई. पू. की उज्जयिनी के खंडहर पाए गए हैं। यहां वेश्या-टेकरी और कुम्हार-टेकरी नाम के टीले हैं जिनका सम्बन्ध प्राचीन किंवदंतियों से है।
परखम
परखम मथुरा तहसील के अन्तर्गत एक पुराना गांव है। यह रेल एवं सडक़ मार्गों द्वारा अन्य स्थानों से जुड़ा हुआ है। परखम जनाई गांव से एक मील पश्चिम में है।
यहां पर बौद्धकालीन पुरातत्व सामग्री प्रचुर मात्रा में मिली है। इससे प्रतीत होता है कि बौद्ध काल में बौद्धधर्म का एक अच्छा केन्द्र था। यहां के पुरातत्व अवशेष संग्रहालय में सुरक्षित हैं। मान्यता है कि इसी स्थान पर ब्रह्माजी ने कृष्ण की परीक्षा ली थी। इसलिए परीक्षा की इच्छा के लिए इस स्थान का नाम परखम हुआ।
सर्वेंट्ïस ऑफ इंडिया सोसाइटी
सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना गोपाल कृष्ण गोखले ने 1905 में बहुभाषी और बहुधर्मी भारतीयों को कल्याण कार्यों के लिए एकजुट और प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से की थी। यह देश का पहला धर्मनिरपेक्ष संगठन था, जो पिछड़े वर्गों, ग्रामीण एवं जनजातीय लोगों, आात राहत कार्यों, साक्षरता के प्रचार-प्रसार और अन्य सामाजिक उद्देश्यों के लिए काम करता था।
इस संस्था के सदस्यों को पांच वर्ष का प्रशिक्षण दिया जाता है और वे साधारण वेतन पर काम करने को सहमत होते है। 1915 में गोखले के बाद श्रीनिवास शास्त्री 1869-1946 इस संगठन के अध्यक्ष बने। संस्था का मुख्यालय पुणे में है और इसकी शाखाएं नई दिल्ली, चेन्नई भूतपूर्व मद्रास, मुंबई भूतपूर्व बंबई, इलाहाबाद और नागपुर में है। यद्यपि सदस्यों की संख्या हमेशा कम रही है तो भी समाजसेवा के आदर्श निभाने में सोसाइटी की भूमिका प्रभावशाली रही है।


