सामान्य ज्ञान
वनस्पति तेलों एवं अथवा जंतुओं से प्राप्त वसा को ट्रांसएस्टरीफिक़ेशन जैसी रसायनिक प्रक्रियाओं द्वारा संसाधित कर बॉयोडीजल का निर्माण आसानी से किया जा सकता है। वनस्पति तेल एवं जंतु-वसा ग्लीसरॉल तथा फ़ैटीएसिड्स के रसायनिक संयोग से बने एस्टर्स ही होते हैं। इनके एल्कॉक्सी ग्रुप के एल्केन भाग को किसी भी अन्य इच्छित एल्कॉहल के एल्केन ग्रुप से बदला जा सकता है। इस प्रकिया के लिए किसी एसिड अथवा बेस की आवश्यकता भी पड़ती है, जो उत्प्रेरक का कार्य करता है। हालांकि ट्रांसएस्टरीफिक़ेशन की प्रक्रिया, तमाम प्रकार के वनस्पति तेलों एवं जंतुवसा में कराई जा सकती है, लेकिन बॉयोडीजल के उत्पादन में वनस्पति तेलों, विशेषकर सोयाबीन अथवा कनोला का उपयोग किया जाता है। मेथेनॉल द्वारा इसका ट्रांसएस्टरीफक़ेशन किया जाता है। इसके पश्चात प्राप्त बॉयोडीजल से ग्लीसरीन, बचे हुए स्वतंत्र फ़ैटीएसिड्स, उत्प्रेरक तथा एल्कॉहल जैसी अशुद्धियों को दूर किया जाता है, साथ ही इसमें सल्फऱ की मात्रा को न्यूनतम स्तर पर लाने का उपाय किया जाता है। इस प्रकार परिशोधित बायोडीजल को बी 100 का मानक दिया जाता है।
इस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त बॉयोडीजल, पेट्रोडीजल के सदृश्य ही होता है और इसका उपयोग आज के आधुनिक डीजल वाहनों में सीधे तौर पर किया जा सकता है या फिर पेट्रोडीजल के साथ किसी अनुपात में मिला कर। इसके लिए वाहन में किसी भी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही इसकी आपूर्ति के लिए आधुनिक पेट्रोल स्टेशनों की आधारभूत संरचना में भी किसी परिवर्तन की आवश्यता नहीं है। इसलिए बॉयोडीजल को आधुनिक समय में प्रयोग में लाए जा रहे पेट्रोल एवं पेट्राडीजल के


