सामान्य ज्ञान

शहीदी दिवस
23-Mar-2021 12:24 PM
शहीदी दिवस

23 मार्च , 1931 की रात स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू की देशभक्ति को अपराध की संज्ञा देकर अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था।  कहा जाता है कि मृत्युदंड के लिए 24 मार्च की सुबह तय की गई थी, लेकिन किसी बड़े जनाक्रोश की आशंका से डरी हुई अंग्रेज सरकार ने 23 मार्च की रात को ही इन क्रांति वीरों की जीवनलीला समाप्त कर दी। रात के अंधेरे में ही सतलुज नदी के  किनारे इनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया।  लाहौर षडयंत्र के मुकदमे में भगतसिंह को फांसी की सजी दी गई थी। उस वक्त उनकी उम्र केवल 24 साल की थी।  भगतसिंह कम उम्र में ही युवाओं के प्रेरणास्रोत बन गए थे। वे समस्त शहीदों के सिरमौर थे।  23 मार्च को भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू का बलिदानी दिवस होता है। 
28 सितंबर 1907 में जन्मे भगत सिंह मात्र 12 साल के थे जब जलियांवाला बाग कांड हुआ। इसने उनके मन में अंग्रेजों के खिलाफ गुस्सा भर दिया। आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में वह महात्मा गांधी के अहिंसात्मक तरीकों से सहमत नहीं थे। उन्होंने अपने लिए क्रांतिकारी रास्ता चुना। आठ अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर ब्रिटिश भारत की दिल्ली स्थित तत्कालीन सेंट्रल एसेंबली में बम फेंके. हालांकि इस हमले का मकसद अंग्रेज सरकार को डराना था इसलिए बम सभागार के बीच में फेंके गए जहां कोई नहीं था। घटना के बाद वहां से भागने के बजाय वह खड़े रहे और खुद को अंग्रेजों के हवाले कर दिया।  करीब दो साल जेल में रहने के बाद 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी पर चढ़ा दिया गया। बकुटेश्वर दत्त को आजीवन कारावास की सजा मिली। 
 


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