सामान्य ज्ञान

राज्य वित्तीय निगम
22-Dec-2020 1:03 PM
 राज्य वित्तीय निगम

राज्य वित्तीय निगम  (State Financial Corporation) राज्य स्तरीय वित्तीय संस्थाएं हैं जो कि संबंधित राज्यों में छोटे और मध्यम उद्यमों के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। राज्य वित्त निगम उच्च निवेश उत्प्रेरित करने के उद्देश्य के साथ स्थापित किया गया था। ये संस्थाएं अधिक से अधिक रोजगार उपलब्ध कराने और बिलों की छूट, डिबेंचर/इक्विटी, लम्बी अवधि के ऋण आदि का आदान-प्रदान एवं बीज/विशेष आदि के सन्दर्भ में प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता के सन्दर्भ में अनेक सुबिधाएं उपलब्ध कराते हैं। इन संस्थाओं के माध्यम से नए प्रकार की सभी व्यवसाय को भी आर्थिक मदद उपलब्ध की जाती है, जैसे- टिशू कल्चर, फूलों की खेती, मुर्गी पालन, इंजीनियरिंग, मार्केटिंग और वाणिज्यिक परिसरों का निर्माण आदि। 
भारत में 18 राज्य वित्तीय निगम कार्य कर रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-  आंध्र प्रदेश राज्य वित्तीय निगम,  हिमाचल प्रदेश वित्तीय निगम, मध्य प्रदेश वित्तीय निगम, पूर्वोत्तर विकास वित्त निगम (एनईडीएफआई),  राजस्थान वित्त निगम (आरएफसी),  तमिलनाडु औद्योगिक निवेश निगम लिमिटेड, उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम, दिल्ली  वित्तीय निगम (डीएफसी), गुजरात राज्य वित्त निगम (जीएसएफसी),  गोवा के आर्थिक विकास निगम (ईडीसी), हरियाणा वित्त निगम (एचएफसी), जम्मू-कश्मीर राज्य वित्तीय निगम,, कर्नाटक राज्य वित्तीय निगम , केरल वित्तीय निगम (केएफसी), महाराष्ट्र राज्य वित्तीय निगम, ओडिशा राज्य वित्त निगम (ओएसएफसी), पंजाब वित्त निगम (पीएफसी)और  पश्चिम बंगाल वित्त निगम। 

गणराज्य
प्राचीन काल में भारत में राज्यों के साथ-साथ गणों के अधीन राज्यों की भी बड़ी सुदृढ़ परंपरा थी। ये गणराज्य पश्चिम, उत्तर-पूर्व ,तराई और राजस्थान तक फैले हुए थे। क्षुद्रक और मालव गणराज्यों ने सिकंदर का जोरदार विरोध करके उसे घायल कर दिया था।  श्रीकृष्ण का जन्म अंधक-वृष्णियों के गणराज्य में हुआ था।  गौतम बुद्ध भी शाक्यगण राज्य में पैदा हुए थे। लिच्छवियों का गणराज्य, जिसकी राजधानी वैशाली थी, सबसे शक्तिशाली था। गौतम बुद्ध के समय के प्रमुख गणराज्य थे- लिच्छवि, वृज्जि। विदेह,शाक्य,मल्ल,कोलिय,मोरिय, बलि, भग्ग आदि। धीरे-धीरे राजाधीन राज्यों ने भी इन्हें आत्मसात कर लिया। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के बाद, जो स्वयं मालवगण राज्य का प्रमुख था, गणों का युग समाप्त हो गया। 
गणों की इकाई कुल थी जिसका एक व्यक्ति गणसभा का सदस्य होता था। गणसभा में शलाकाओं द्वारा मतदान करके निर्णय लिया जाता था। महाभारत में राजाधीन और गणाधीन शासन का उल्लेख मिलता है। राजाधीन राज्य में सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में रहती थी जबकि गणाधीन राज्य में प्रत्येक परिवार का एक -एक राजा या कुलवृद्ध होता था, जो गणसभा के सदस्य के रूप में शासन व्यवस्था चलाने में भाग लेता था। नियम-निर्माण  का दायित्व गणसभा के ऊपर होता था, नियमों को लागू करने के लिए अंतरंग अधिकारी नियुक्त किए जाते थे। 
 


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