सामान्य ज्ञान

हिन्दू धर्म के शुभ प्रतीक चिन्ह
23-Jul-2020 12:04 PM
हिन्दू धर्म के शुभ प्रतीक चिन्ह

सर्वाधिक प्राचीन हिंदू धर्म में अनेक प्रतीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इनकी संख्या शायद किसी भी अन्य धर्म से भी ज्यादा है। इन सभी प्रतीकों का अपना विशेष महत्व और अर्थ है। 
ऊं- हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाना वाला प्रतीक शायद यही है। इसे योग और ध्यान के दौरान प्रयोग में लाया जाता है। ज्यादातर श्लोक या मंत्र इसी से शुरू होती हैं। ऊं को सृष्टि और शाश्वत सत्य के प्रतीक स्वरूप माना जाता है। वहीं कुछ विशेषज्ञ इसे हिंदू धर्म की त्रिदेव अवधारण से भी जोड़ते हैं।.
स्वास्तिक- स्वास्तिक के प्रतीक को सौभाग्य और समृद्धि से जोडक़र देखा जाता है। इसे सत्य, शुद्धता और स्थायित्व के प्रतीक स्वरूप भी प्रस्तुत किया जाता है। इसकी चार भुजाएं, चार वेदों को प्रदर्शित करती हैं। 
त्रिशूल- त्रिशूल को सामान्य तौर पर भगवान शिव से जोडक़र देखा जाता है और माना जाता है कि यह उनके संहारक की छवि को प्रदर्शित करता है। लेकिन त्रिशूल का अर्थ इससे भी कहीं ज्यादा गहरा है। दरअसल इसके तीन शूल त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) को प्रदर्शित करते हैं जिसे हिंदू धर्म की आधारभूत अवधारणा है।  करता है।
तिलक- तिलक हिंदू धर्म का बहुत ही सामान्य प्रतीक है। हिंदू माथे पर तिलक लगाते हैं जो कि विभिन्न अवसरों के अनुसार अलग-अलग तरह का हो सकता है। अंग्रेजी के अक्षर  आकार का तिलक विष्णु से जबकि तीन क्षैतिज रेखाओं के तिलक को शिव से जोडक़र देखा जाता है।
श्रीयंत्र- इसे श्री चक्र के नाम से भी जाना जाता है। यह आपस में गुंथे हुए नौ त्रिभुजों से बनी आकृति होती है। इसमें से चार उध्र्वमुखी (ऊपर की ओर) त्रिभुज पुरुष पक्ष या शिव को जबकि अधोमुखी (नीचे की ओर) त्रिभुज नारी पक्ष या शक्ति को प्रदर्शित करते हैं।
रुद्राक्ष- रुद्राक्ष हिंदू धर्म में काफी अहमियत रखता है। दरअसल रुद्राक्ष एक बीज है जिसके वृक्ष दक्षिणपूर्व एशिया, नेपाल और हिमालय की तराई में पाए जाते हैं। इसे भगवान शिव से जोडक़र देखा जाता है। यह शब्द रुद्र और अक्ष से मिलकर बना है। 
त्रिपुण्ड्र- त्रिपुण्ड्र को हिंदू धर्म की त्रिदेव अवधारण से जोडक़र देखा जाता है। यह भस्म (राख) से बनी तीन क्षैतिज रेखाओं और एक बिंदु से बनी आकृति होती है। तीन क्षैतिज रेखाओं द्वारा तीन दैवीय शक्तियों सृजक, पालक और संहारक को प्रदर्शित करता है। भस्म शुद्धता, और अहं के विनाश, वैराग्य और कर्म को प्रदर्शित करता है। वहीं बिंदु हमारे भीतर आध्यात्मिक दर्शन की उत्पत्ति को बताता है।
कमल- कमल का फूल सृजन को प्रदर्शित करता है। इसे विष्णु, ब्रह्मा और लक्ष्मी से जोडक़र देखा जाता है।
 हवन कुंड- हवन कुंड को देवों को भेंट समर्पित करने का माध्यम माना जाता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि हवन के धुएं से हमारी भेंट देवताओं को प्राप्त हो जाती है।
गोपद्म- गोपद्म एक तरह की विशेष आकृति है, जिसे शुद्धता, मातृत्व और अहिंसा के प्रतीक स्वरूप पेश किया जाता है।
षटकोण- षटकोण दो त्रिभुजों से मिलकर बनी आकृति है। उर्ध्वमुखी त्रिभुज शिव, पुरुष या अग्नि को जबकि अधोमुखी त्रिभुज शक्ति, नारी या जल को प्रदर्शित करता है। इनके संयोग से शांताकुमार का जन्म होता है जिन्हें अंक 6 से प्रदर्शित किया जाता है।

दक्कन शैली
दक्कन, यह एक प्रमुख भारतीय चित्रकला शैली हैं । इस शैली का प्रधान केन्द्र बीजापुर था किन्तु इसका विस्तार गोलकुण्डा तथा अहमदनगर राज्यों में भी था ।
रागमाला के चित्रों का चित्रांकन इस शैली में विशेष रूप से किया गया । इस शैली के महान संरक्षकों में बीजापुर के अली आदिल शाह तथा उसके उत्तराधिकारी इब्राहिम शाह थे ।
 


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